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विश्व हिन्दू परिषद् व सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य राज्याभिषेक समारोह समिति के संयुक्त तत्वावधान में भारत के अंतिम हिन्दू सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य के राज्याभिषेक दिवस पर गत दिनों नई दिल्ली में गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति में एक समारोह संपन्न हुआ। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहसरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल उपस्थित रहे। उन्होंने कहा कि हेमचन्द्र विक्रमादित्य की सेना में लगभग पचास हजार घुड़सवार थे, डेढ़ हजार से अधिक हाथी, एक लाख से अधिक अन्य सैनिक, 51 बड़ी तोपें और सैकड़ों की संख्या में छोटी तोपें थीं। बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, वर्तमान हरियाणा और दिल्ली क्षेत्र के सैनिक सम्राट हेमचन्द्र के पास थे। मोहम्मद गोरी के समय से दिल्ली में जो इस्लाम की सत्ता स्थापित हुई थी, सम्राट हेमचन्द्र ने उसको बड़ी चुनौती दी। अनेक युद्ध जीतते हुए उन्होंने दिल्ली पर एक बार पुन: हिन्दू शासन स्थापित किया। लेकिन पानीपत के युद्ध में कुछ कारणों से उनकी पराजय हुई। हार और जीत महत्वपूर्ण तो होती है लेकिन प्रत्येक हार और जीत एक विश्लेषण देती है। मुगलों की सत्ता अरब देशों से सातवीं शताब्दी से आगे बढ़ी तो कुछ वषोंर् के बाद वे भारत की भूमि पर आक्रमणकारियों के रूप में आ धमके, उनका उद्देश्य शासन ग्रहण करना मात्र नहीं था। जहां-जहां उन्होंने शासन प्राप्त किया, वहां-वहां के नागरिकों को वह इस्लाम के नियंत्रण के नीचे ले आए। पूरा उत्तरी अफ्रीका, पूरा पश्चिमी एशिया और कुछ हिस्से यूरोप के, कुछ हिस्से मध्य एशिया के, कजाकिस्तान से लेकर रूस से चीन की ओर जाने वाले सारे क्षेत्र इस्लाम के नियंत्रण में आ चुके थे।
चार वर्ष से ज्यादा लड़ने की हिम्मत किसी भी देश में नहीं थी। उनकी अपनी संस्कृति-सभ्यता समाप्त होकर इस्लाम में परिवर्तित हो गयी। लेकिन भारत में सातवीं शताब्दी से लेकर बारहवीं शताब्दी तक का युद्ध भारत के वीरों ने लड़ा। लगभग साढ़े तीन-चार सौ वर्षों के बाद ही वे सिंध-पंजाब को पार कर दिल्ली तक आ सके। लेकिन भारत ने इसको स्वीकार नहीं किया। बार-बार यहां के योद्धा देश को इस्लामी आक्रमणकारियों के नियंत्रण से स्वतंत्र कराने के लिए संघर्ष करते रहे। बारहवीं शताब्दी से लेकर 1947 तक का यह संघर्ष है। हम बहुत बार हारे और जीते, लेकिन अंतत: विजयी रहे। -प्रतिनिधि
'स्वदेशी पर आधारित नीति बने'
''स्वदेशी का स्वतंत्रता आन्दोलन में अहम योगदान रहा। अंग्रेजों ने देश को ना सिर्फ राजनीतिक रूप से गुलाम बनाया था, बल्कि आर्थिक रूप से भी गुलाम बनाया जिसका असर आज तक दिखाई देता है।'' उक्त बातें स्वदेशी जागरण मंच के अखिल भारतीय संयोजक डॉ़ अश्विनी महाजन जी ने कहीं। वे पिछले दिनों शरण्या और राष्ट्र सेविका समिति के संयुक्त तत्वाधान में 'स्वदेशी-द इंडियन पर्सपेक्टिव' विषय पर नई दिल्ली के डॉ़ भीमराव आम्बेडकर कॉलेज में आयोजित युवा सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि हमारे देश के पास आयात करने के लिए विदेशी मुद्रा का भंडार सीमित है, यह हमारे देश के राजनेताओं ने नहीं कहा है, अपितु अमेरिका समेत कई पश्चिमी देशों ने कहा है कि हमें अपनी नीतियों को उनके अनुसार बनाना होगा। भारत में स्वदेशी जागरण मंच ने हमेशा से वैश्वीकरण का विरोध किया है, साथ ही भारत के लगभग सभी विचारधारा के लोगों ने भी इसका विरोध किया। हम सभी प्रकार की विचारधाराओं का सम्मान करते हैं। हमारी राष्ट्रभावी विचारधारा है। हमारा कहना है कि राष्ट्रहित के लिए स्वदेशी आधारित नीति होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि देश में किसानों की दशा ठीक नहीं है। देश के 60 प्रतिशत लोग कृषि से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं, इसके बावजूद देश की सकल घरेलू उत्पाद दर में कृषि का योगदान केवल 15 प्रतिशत है, जो कृषि की ठीक हालत को नहीं दर्शाता है। कार्यक्रम के समापन पर राष्ट्र सेविका समिति की सह प्रान्त कार्यवाहिका विदुषी ने सभी अतिथियों को धन्यवाद ज्ञापित किया। -प्रतिनिधि
चिकित्सालय का किया शुभारंभ
''राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक स्वास्थ्य, शिक्षा सहित अन्य क्षेत्रों में रात-दिन सुदूर स्थानों पर सेवा कार्य कर रहे हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाएं पूरी तरह से नहीं मिल पा रही हैं। इसी को देखते हुए स्वामी विवेकानन्द हेल्थ मिशन सोसाइटी द्वारा चार धाम के मुख्य पड़ाव, यमुनोत्री धाम के बड़कोट में धर्मार्थ चिकित्सालय खोला गया है, जिसका तीर्थयात्रियों सहित स्थानीय लोगों को भी लाभ मिलेगा।'' उक्त बातें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र प्रचारक श्री आलोक कुमार ने कहीं। वे पिछले दिनों बड़कोट के स्वामी विवेकानंद धर्मार्थ चिकित्सालय तथा विशाल स्वास्थ्य शिविर के उद्घाटन अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर विभाग संघ संचालक श्री जयपाल सिंह ने गणमान्यजनों का आभार व्यक्त किया।
(विसंकें, देहरादून)
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