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फिल्म 'दंगल' सामाजिक विषय पर बनी एक ऐसी फिल्म है जो लड़कियों को अलग वजूद बनाने और अपने हुनर को पहचानने के लिए प्रेरित करती है। इसके लेखक और निर्देशक नीतेश तिवारी ने आमिर खान के सपने को साकार कर दिया है। मैं शुरू से ही आमिर खान से बहुत प्रभावित रहा हूं। शायद इसलिए भी कि जिस दिन मैंने नवभारत टाइम्स के मुंबई संस्करण में अपनी पहली बड़ी नौकरी की शुरुआत की, उसी दिन आमिर की पहली फिल्म 'कयामत से कयामत तक' रिलीज हुई थी। वह 29 अप्रैल, 1988 का दिन था। हालांकि मैं वह फिल्म पहले दिन तो नहीं देख पाया लेकिन जब देखी तो मुझे उनमें खूब संभावनाएं दिखाई दी थीं। दूसरे, उनका जन्म का वर्ष भी वही है, जो मेरा है। खैर, जिन दिनों उनकी फिल्म 'दंगल' की शूटिंग का दिल्ली चरण शुरू हुआ तो आमिर खान से मिलने की इच्छा ने भी जोर पकड़ा। इसकी एक वजह तो यह थी कि मैं लंबे अरसे से मैं कुश्ती पर लिखता रहा था और इस खेल के हर ओलंपिक पदक विजेता की लाइव कमेंट्री का मौका मिला था। इससे भी बड़ी बात यह कि कमेंट्री को हर क्षेत्र से खूब सराहना मिली। मुझे 'दंगल' फिल्म की कमेंट्री टीम से जुड़ने की दिली इच्छा थी। संयोग से मुझे उसी वक्त एक फोन आया, जब मैं इसके बारे में सोच ही रहा था। वह अर्जुन पुरस्कार प्राप्त पाशंकर का फोन था, जो इस फिल्म में बतौर रेस्िंलग कोरियोग्राफर जुड़े हुए थे। उन्होंने मेरे सामने वह प्रस्ताव रखा, जो मेरे दिल में था। कुछ दिन बाद दिल्ली के त्यागराज स्पोर्ट्स कॉप्लेक्स में फिल्म के निर्देशक नीतेश तिवारी से मिलना तय हुआ। उधर गुवाहाटी में होने वाले साउथ एशियन खेलों की तारीखें भी तय हो गई थीं। संयोग से 'दंगल' में मेरी कमेंट्री की तारीखें उससे टकरा रही थीं जिससे मुझे दोनों में से एक को छोड़ना जरूरी हो गया। साउथ एशियन ख्ेालों की कमेंट्री का प्रस्ताव दूरदर्शन की ओर से था, जिसमें मुझे अच्छी-खासी राशि मिलनी थी। मेरा झुकाव इसी लाइव कवरेज पर था। खैर, बातचीत के बाद तय हुआ कि वह कमेंट्री किसी और से करवा लेंगे लेकिन एक रोल मुझे करना ही होगा। दुर्भाग्य से उस रोल के लिए शूटिंग की तारीख भी उन खेलों की तारीखों से टकरा गई। मैं निराश हो गया। घर-परिवार चाहता था कि मैं किसी भी हालत में 'दंगल' से मिले मौके को हाथ से न जाने दूं। आखिरकार ईश्वर ने मेरे दोनों रास्ते खोल दिए। फिल्म की हीरोइन फातिमा साना शेख को कुश्ती के कुछ सीन करते हुए पैर में चोट लग गई जिससे आगे होने वाली शूटिंग की तारीखों को कुछ पहले कर दिया गया। हालांकि मुझे फातिमा को चोट लगना बुरा लगा लेकिन एक कड़वा सच यह भी था कि इस घटना ने मेरी लॉटरी निकाल दी। मुझे 'दंगल' में काम करने और आमिर खान से बात करने का अवसर मिला और मैंने साथ ही साउथ एशियन खेलों की भी कमेंट्री की। उसी दिन आमिर को एक शॉट देते हुए देखा तो मैं दंग रह गया। दर्शक दीर्घा से उनका एक संवाद था कि 'हारना नहीं है गीता'। इस वाक्य को उन्होंने 18 बार बोला। जब तक उनकी तसल्ली नहीं हुई, तब तक वह अलग-अलग भंगिमाओं के साथ उसे दोहराते रहे।
आखिरकार इस साल 2 फरवरी को हमारी शूटिंग शुरू हुई। शूटिंग में मुझे सुबह सात बजे बुला लिया गया था। पहली बार मुझे वैनिटी वैन में बैठने का मौका मिला। वहां हर्ष शर्मा नाम के एक कलाकार पहले से ही इंतजार कर रहे थे। ये वही हर्ष शर्मा थे जिनके साथ मुझे परदे पर होना था। हर्ष जी 'बजरंगी भाईजान' में नवाजुद्दीन सिद्द्की के बॉस की भूमिका से सुर्खियों में आए थे। करीब एक घंटे गपशप करने के बाद हमें स्क्रप्टि दे दी गई। हर्ष इस फिल्म में टीवी एंकर की भूमिका निभा रहे थे जबकि मुझे कुश्ती एक्सपर्ट की भूमिका दी गई थी। आखिरकार फिल्म की शूटिंग के लिए हमें उस हॉल में बुलाया गया, जहां न्यूज चैनल का सेट बनाया गया था। फिल्म का तामझाम देखकर मैं दंग रह गया। नीतेश तिवारी शायद इस बात को भांप गए थे। उन्होंने मुझसे गपशप करके माहौल को खुशनुमा बना दिया। ये वही नीतेश तिवारी हैं जो इससे पहले 'भूतनाथ' और 'चिल्लर पार्टी' जैसी सफल फिल्में बना चुके थे। उनसे मेरी पहले भी तीन-चार बार मुलाकात हो चुकी थी। हर्ष और मेरा दृश्य फिल्माया जाने लगा। पहले टेक में मैं एक्सपर्ट की तरह बोला लेकिन नीतेशजी की तरफ से आवाज आई कि स्क्रप्टि से बाहर मत जाइए मनोजजी। खैर, दूसरा टेक बहुत अच्छा हुआ और तीसरा उससे भी अच्छा। दो दिन पहले मैं शूटिंग देखने गया था। तब मैं कलाकारों को एक्टिंग करते देख रहा था लेकिन उस दिन लोग मुझे एक्टिंग करते देख रहे थे। शूटिंग के बाद नितेशजी ने कहा कि आपका न्यूज चैनल में लाइव शो करना काफी काम आया। आपके पहले दो शॉट सबसे अच्छे थे। ऐसा लगा ही नहीं कि आप पहली बार फिल्म में काम कर रहे हैं। उनकी यह बात मेरी हौसला अफजाई के लिए थी, या वाकई वे ऐसा महसूस कर रहे थे, मैं समझ नहीं पाया, बहरहाल, फिल्म की रिलीज से दो दिन पहले फिल्म की सह-निर्देशक विधि का फोन आया कि 22 दिसंबर को फिल्म की मुंबई में स्क्रीनिंग है, आप आएंगे तो हमें अच्छा लगेगा। बस, फिर क्या था। स्क्रीनिंग में बतौर कलाकार जाने का भी मेरा पहला अनुभव था। उस शाम आमिर खान सहित फिल्म के सभी कलाकार मौजूद थे। आमिर से मिलना भी हुआ। -मनोज जोशी
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