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18 दिसंबर, 2016
आवरण कथा 'कौन भरेगा शून्य' में तमिलनाडु की मुख्यमंत्री स्वर्गीय जयललिता के संदर्भ में जो बातें कही गई हैं, वे हर किसी को भावुक कर देने वाली हैं। जयललिता जन नेता थीं। इसी वजह से उनकी अंतिम यात्रा में लाखों लोग शामिल हुए। शायद जयललिता ही ऐसी एक मात्र नेता थीं, जिनके लिए लोग अपनी जान तक देने के लिए तैयार रहते थे। राजनीतिक विश्लेषकों को यह शोध करना चाहिए कि आखिर उनमें कौन-सी ऐसी बात थी, जिसकी वजह से उन्हें जनता का इतना प्यार मिला था।
—विकास कुमार, थाणे (महाराष्ट्र)
ङ्म जयललिता के जाने से तमिलनाडु की राजनीति का एक युग समाप्त हो गया है वे लोकनायिका थीं। अपने कार्यों के कारण वे जन-जन की आंखों का तारा बन गई थीं। उन्होंने गरीबों और महिलाओं के लिए सर्वाधिक कल्याणकारी योजनाएं प्रारंभ कीं। उन्होंने गरीबों के लिए 'अम्मा भोजन' योजना शुरू करके बड़ी प्रसिद्धि पाई थी। बालिकाओं के लिए शिक्षा और महिलाओं के लिए रोजगार के अच्छे अवसर भी उन्होंने उपलब्ध कराए थे। इन्हीं कारणों से वे वहां इतनी लोकप्रिय थीं।
—कृष्ण वोहरा, सिरसा (हरियाणा)
आज कुछ लोग हर बात के लिए नेताओं को जिम्मेदार ठहराते हैं और उन्हें हेय दृष्टि से देखते हैं, वहीं जयललिता के लिए कुछ लोगों ने जान दे दी। आखिर उनमें कुछ तो ऐसी बात थी कि लोग उन्हें
जान से भी बढ़कर मानते थे और उनका समर्थन करते थे। जनता का ऐसा प्यार हर नेता को नहीं मिलता। अपने राजनीतिक गुरु रामचंद्रन के सपनों को साकार करने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
एक महिला होने के बावजूद जयललिता
ने वह कर दिखाया था, आम नेता
जिसकी कल्पना तक नहीं कर पाते।
—आशुतोष, बेगूसराय (बिहार)
विनाश को आमंत्रण
पाकिस्तान में जिस प्रकार हिंसा और क्रूरता की विचारधारा फैलाई जा रही है, उससे पूरी मानवता कराह रही है। 'पाकिस्तान है आतंकिस्तान' लेख में यह बताने की कोशिश हुई है कि मजहब और जिहाद के नाम पर वहां जो हो रहा है, वह खुद पाकिस्तन के लिए भी खतरा पैदा कर रहा है। लेकिन कठमुल्लापन की वजह से वहां के कुछ लोगों को यह
सब नहीं दिखाई दे रहा। वहां बच्चों को नफरत और हिंसा का पाठ पढ़ाया जाता है। नई पीढ़ी के मन में इस तरह की बातों को डालना
अपने विनाश को आमंत्रित करना ही है। लेकिन पाकिस्तान के लोगों को शायद यह बात समझ में नहीं आ रही है।
—मनोहर 'मंजुल', पिपल्या बुजुर्ग, प. निमाड़ (म.प्र.)
वैचारिक घुट्टी पर चोट
'विचार पर वार' लेख में सही कहा गया है कि इस्लामी जिहादियों को ऐसी वैचारिक घुट्टी पिलाई जाती है कि वे हर तरह के भय को त्याग मरने और मारने के लिए तैयार हो
जाते हैं। इस वैचारिक घुट्टी पर चोट किए
बिना आतंकवाद को समाप्त नहीं किया जा सकता। आतंकवाद से दुनिया का कोई भी
हिस्सा अछूता नहीं रहा है। इसलिए मानवता
के पक्षधर हर व्यक्ति को जिहादी
विचारधारा के खिलाफ आवाज उठानी
चाहिए। आतंकवाद से टुकड़ों में नहीं
लड़ा जा सकता। इसकी समाप्ति के लिए दुनिया के सभी देशों को इसकी जड़ों पर प्रहार करना होगा।
—उदय मिश्र 'कमल', सीधी(म.प्र.)
अच्छा कदम
निकाय चुनावों पर आधारित रपट 'नतीजों के निहितार्थ' का मूल संदेश है कि नोटबंदी के कारण हुई दिक्कतों के बावजूद लोग भाजपा के साथ इसलिए खड़े हैं कि यह एक अच्छा कदम है। हाल ही में हुए चंडीगढ़ के निकाय चुनाव का परिणाम भाजपा के पक्ष में रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस कदम से लोगों को लगने लगा है कि अब भ्रष्टाचार खत्म होगा और देश विकास के पथ पर दौड़ने लगेगा।
—सतीश मांडीवाल, जलालगढ़, पूर्णिया (बिहार)
असलियत उजागर
वामपंथ पर कड़ा प्रहार करने वाले आलेख 'वामवाद अब खोखलावाद' से वामपंथियों की असलियत पता चली। इसमें कोई दो मत नहीं है कि वामपंथ हिंसा के बल पर बढ़ा था।
सभी कम्युनिस्ट सराकारों को अंतहीन हिंसा का सहारा लेना पड़ा। एक आंकलन के अनुसार कम्युनिस्ट सरकारों ने लगभग 10 करोड़ लोगों की हत्या करवाई। अभी भी यह सिलसिला चल रहा है। पूरी दुनिया में नक्सलवादी या माओवादी इन्हीं के 'नातेदार' हैं। ये लोग आए दिन निर्दोष लोगों की हत्या कर रहे हैं।
—कमलकांत वर्मा, बोकारो (झारखंड)
नोटबंदी के बाद नक्सलवादी घटनाओं में काफी कमी आई है। पैसे के बल पर ये लोग आम युवाओं को भड़काते थे और अपने साथ जोड़ लेते थे। अब इनके पास पैसे हैं नहीं। ऐसे समाचार बराबर पढ़ने को मिल रहे हैं कि जंगल में डेरा जमाए नक्सलियों को खाना भी नहीं मिल रहा है। बिहार में जमुई, मुंगेर जैसे जिले, जो नक्सल प्रभावित थे, नोटबंदी के बाद से शांत हैं।
—मुकेश सिंह, सुल्तानगंज, भागलपुर (बिहार)
कुनबे के टंटे
कालीदास के मार्ग पर, भई सपाई भीड़
अमर मुलायम को नहीं, लगती जिसकी पीर
लगती जिसकी पीर, अखिलेश को शिव न भाते
जनता रही है देख, कुनबे के ये टंटे
— आशु
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