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आलोक गोस्वामी
भारत के कुछ कूटनीतिकों और विदेश मामलों के जानकारों के एक वर्ग में अभी कुछ दिन पहले यह चर्चा जाने कैसे चल निकली थी कि गुट निरपेक्ष आंदोलन का अब वैसा प्रभाव नहीं रहा, कि भारत इस आंदोलन में अपनी तय स्थिति से हटता दिख रहा है।
इस चर्चा के सूत्र कहां से उपजे, यह तो साफ कहना मुश्किल है, पर इस मौके पर दुनिया के 120 देशों के इस महत्वपूर्ण मंच ने अपने गठन के इन 55 वर्षों में कई अहम पायदान पार किए हैं। यह सही है कि शीत युद्ध के हालात के चलते दो ध्रुवों में बंटी दुनिया के बीच भारत ने एक तटस्थ छवि बनाए रखी थी और तत्कालीन उसने सोवियत संघ तथा अमेरिका के साथ बराबर की दूरियां बनाए रखते हुए दोनों के साथ आवश्यक निकटता भी रखती थी। भारत को इस गुट निरपेक्षता का लाभ मिलना था सो मिला भी। सोवियत संघ के पाले में दिखकर अमेरिका से अपनी जरूरत का व्यापार किया तो अमेरिका के पाले में न दिखकर सोवियत संघ से तिजारत की।
कालान्तर में सोवियत संघ के टूटने के बाद में धु्रव जैसा कुछ बचा ही नहीं। इसलिए तब जाकर गुट निरपेक्ष आंदोलन के महत्व को हल्का सा झटका लगा था क्योंकि अब गुट ही न बचे थे निरपेक्ष रहने को। ले-देकर अमेरिका ही एकमात्र महाशक्ति बचा और दुनिया पर उसका एकछत्र दबदबा जैसा कायम रहने लगा। लेकिन आंदोलन ने इस मायने में अपने महत्व को बचाए रखा कि यह कम से कम दुनिया के 100 से ज्यादा देशों को ऐसा साझा मंच तो देता ही है जहां सदस्य देश किसी वैश्विक समस्या पर अपना-अपना दृष्टिकोण सामने रखते हुए आपसी सलाह-मशविरा कर सकें। और आंदोलन का इस बार का शिखर सम्मेलन इसी नजरिए से महत्वपूर्ण रहा।
16 से 18 सितंबर के बीच वेनेजुएला में संपन्न हुए गुट निरपेक्ष आंदोलन के 17 वें शिखर सम्मेलन में भारत के उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने अपने वक्तव्य में बिना लाग-लपेट के सभी सदस्य देशों को आतंकवाद के विरुद्ध एकजुट होने को कहा। उन्होंने इसके विरुद्ध एक 'ठोस कार्रवाई' करने पर बल दिया। अंसारी ने मंच से असरदार सहयोग करने की अपील करते हुए अपने भाषण में साफ कहा कि आतंकवाद मानवाधिकारों के उल्लंघन का सबसे बड़ा स्रोत है और सबसे दुखद बात तो यह है कि इसे सरकारी नीति के हथियार के तौर पर प्रयोग किया जा रहा है।
दरअसल अंसारी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ में दिए उस भाषण को एक तरह से विस्तार दिया था जिसमें उन्होंने कहा था कि आतंकवाद अच्छा या बुरा नहीं होता, वह सिर्फ आतंकवाद होता है जिससे पूरी सख्ती से, साझेदारी से और पूरी ताकत से निपटा जाना चाहिए। मोदी ने आतंकवाद के मुद्दे के पुरजोर तरीके से जी-20 और ब्रिक्स सम्मेलनों में भी उठाया था। वैश्विक शांति और राष्ट्रों की संप्रभुता के लिए आतंकवाद को बड़ा खतरा बताते हुए अंसारी ने कहा कि चाहे कोई वजह रहे, पर मासूम लोगों की अंधाधुंध गोलियां चलाकर मार डालना किसी तरह से उचित नहीं ठहराया जा सकता। उन्होंने उम्मीद जताई कि गुट निरपेक्ष आंदोलन इस मुद्दे पर दुनिया के सभी देशों को चेताएगा और खतरे से निपटने के लिए एकजुट करे। लेकिन दुखद बात यह रही कि जिस दिन अंसारी वहां भाषण दे रहे थे उसी दिन तड़के कश्मीर के उरी में सैन्य ठिकाने पर फिदायीन हमला हुआ था जिसमें 18 जवानों का
शहादत देनी पड़ी।
जिम्बाब्वे में भारत के राजदूत रहे वरिष्ठ राजनयिक और विदेश मामलों के गहन जानकार जे. के. त्रिपाठी कहते हैं कि गुट निरपेक्ष आंदोलन आज भी 120 सदस्यों का एक मजबूत और अहम संगठन है। उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी द्वारा गुट निरपेक्ष आंदोलन के मंच से आतंकवाद के खिलाफ खुलकर आवाज उठाने के संदर्भ में वे कहते हैं कि वहां अंसारी के भाषण को 119 सदस्य देशों द्वारा समर्थन मिलना साफ बताता है कि आतंकवाद जैसी व्याधि से दुनिया का हर देश तंग आ चुका है और इसके विरुद्ध उठने वाली हर आवाज के साथ खड़ा होना चाहता है। उन्होंने कहा, ''गुट निरेपक्ष राष्ट्र हों या जी-20 जैसे ताकतवर समूह के सदस्य राष्ट्र, आतंकवाद के मुद्दे पर भारत के साथ खड़े दिखते हैं। यह भारत की कुशल कूटनीति का परिचायक है। और पाकिस्तान के लिए यह असहनीय होना स्वाभाविक है क्योंकि वह विश्व बिरादरी के बीच इस मुद्दे पर अलग-थलग दिखने लगा है।'' उरी हमले के बाद भारत की तरफ से उठाए जा सकने वाले संभावित कदमों के बारे में उनका कहना है कि युद्ध होगा, यह सोचने का कोई औचित्य नहीं है। आगे चलकर इस बारे में गौर किया जा
सकता है।
गुट निरपेक्ष आंदोलन की महत्ता अपने स्थान पर बनी हुई है लेकिन जरूरत है उसे और कसने की। ऐसा नहीं होना चाहिए कि दुनिया के देश गुटों (जो अब उस तरह से नहीं बचे हैं) से निरपेक्ष रहते हुए दुनिया के हित के मुद्दों से भी निरपेक्ष रहें।
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