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पड़ोसी की 'शह' से अशांत घाटी

by
Sep 19, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 19 Sep 2016 12:48:55

केन्द्र और राज्य सरकार की ओर से घाटी की में लगातार शांति बहाली के लिए प्रयास किये जा रहे हैं लेकिन अलगाववादी गुट इस प्रयास में पलीता लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे

जम्मू से विशेष प्रतिनिधि

कश्मीर घाटी के कई भागों में हिंसा तथा रक्तपात का क्रम क्यों जारी है? परिस्थितियां क्यों बिगड़ी हैं? तथा शांति की बहाली के लिए क्या कुछ किया जाना चाहिए, यह प्रश्न कई क्षेत्रों में एक बड़ी चर्चा का विषय बन रहा है। कुछ राजनेताओं तथा उनके समथर्कों का कहना है कि गत वर्षों के अंतरकाल में राज्य को विशेष दर्जा तथा स्वायत्तता के साथ छेड़छाड़ की गई है तथा 1953 से पूर्व की स्थिति बहाल नहीं की गई, इसलिए यह बेचैनी तथा रोष उत्पन्न हुआ है। किन्तु बहुत से लोग ऐसा नहीं मानते, उनका कहना है कि कश्मीर में जो कुछ हो रहा है, वह पाकिस्तान द्वारा आक्रामक नीतियों तथा उग्रवाद फैलाने की चालों का ही परिणाम है। पाकिस्तान ने कश्मीर को हथियाने के लिए कई बार आक्रमण किए किंतु प्रत्येक बार मुंह की खाई। अत: उसके पश्चात गत 27 वर्षों से एक छदम युद्ध आरंभ किया गया है।
उस पार से आतंकियों  को इस ओर घुसपैठ करवाई जा रही है तथा कट्टरपंथी तत्वों को बड़े स्तर पर धन उपलब्ध करवाकर अलगाववाद तथा हिंसा को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। कभी यह लड़ाई तीव्र हो जाती है तथा कभी सुरक्षाबलों के प्रयासों से नियंत्रित की जाती है।
राज्य में जब भी सरकार बदलती है तो उसपार के आक्रमक रुख में इसलिए भी तीव्रता आ जाती है क्योंकि चुनाव हारने वाले कुछ राजनेता भी सक्रिय हो जाते हैं। अबकी बार भी ऐसा ही कुछ हो रहा है।
पीडीपी तथा भाजपा की गठबंधन सरकार के बनने पर पूर्व सत्ताधारी नेशनल कॉन्फ्रेंस तथा कांग्रेस असंतोष फैलाने में सक्रिय हो गई किंतु मुफ्ती मोहम्मद सईद एक अनुभवी शासक थे तथा उनके सामने तो विरोधी अधिक कुछ नहीं कर पाए किंतु महबूबा मुफ्ती को एक कमजोर शासक मानकर यहां इन विरोधियों ने एक वातावरण उत्पन्न किया। वहीं उस पार से घुसपैठ तथा अन्य षड्यंत्र भी तीव्र हो गए और अलगाववादियों विशेषकर कट्टरपंथी तत्वों ने अपना आतंकी अभियान छेड़ दिया।
गत जुलाई में आतंकियों के एक बड़े कमांडर बुरहान वानी के मारे जाने के साथ ही हिंसा का एक बड़ा अभियान छेड़ा गया है। इसके कारण कश्मीर के अधिकतर भागों विशेषकर दक्षिणी भाग में कट्टरपंथी इस सीमा तक हावी हो गए हैं कि शेष संगठन एक प्रकार से दबकर रह गए हैं।
दक्षिणी कश्मीर जमात-ए-इस्लामी का गत कई वर्षों से एक गढ़ सा बन रहा था जिसने अब पूर्णता इस क्षेत्र को अपने नियंत्रण में ले लिया है, स्थानीय प्रशासन पंगु-सा बना है।
विशेषज्ञों का कहना है कि कश्मीर घाटी में जो कुछ हो रहा है वह एक प्रकार के विद्रोह जैसी स्थिति है, जिसके साथ कड़ाई से निपटा जाना चाहिए। उस पार से भी बढ़कर हुए आक्रमक रुख यही संकेत करते हैं कि परिस्थितियों के साथ युद्ध स्तर पर निपटा जाना चाहिए, जो कुछ हो रहा है, इसका स्वायतता तथा अन्य मांगों के साथ कुछ लेना-देना
नहीं हैं।
पाकिस्तान कश्मीर हथियाना चाहता है, उसकी योजनाओं को दृढ़ता के साथ मात दी जानी चाहिए।  

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