केरलराजनीतिक रंग 'खूनी लाल'
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केरलराजनीतिक रंग 'खूनी लाल'

by
Sep 12, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 12 Sep 2016 12:46:41

 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके समविचारी संगठनों के केरल में बढ़ते दायरे से माकपा परेशान है। इन संगठनों के खिलाफ उसके तेवर हिंसक और खूनी हैं जिससे समाज में गहरा आक्रोश फैल रहा है

 

कुमार चेलप्पन
पिछले 3 सितंबर को तिल्लंकेरी पी. विनेश की माकपा के गुंडों ने नृशंस हत्या कर दी। केरल में मुख्यमंत्री पिनारयी विजयन के सत्ता संभालने के बाद से अब तक अकेले कन्नूर जिले में माकपा गुंडों द्वारा मारे गए संघ कार्यकर्ताओं की संख्या तीन हो गई है। मई, 2016 में केरल में माकपा सत्ता में आई और तब से औसतन हर महीने संघ के एक नेता की हत्या हो रही है।
दरअसल, केरल में पिनारयी विजयन के मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही माकपा कार्यकर्ताओं और श्रमिकों ने अपने नेताओं की मिलीभगत से कन्नूर में आतंक फैला रखा है। इस दौरान जिले में हिंसा की करीब पचास गंभीर घटनाएं हुईं, लेकिन माकपा के हाथों की कठपुतली बनी पुलिस ने एक भी मामला दर्ज नहीं किया।
मुख्यमंत्री विजयन के गांव पिनारयी मंे हिन्दुत्वनिष्ठ कार्यकर्ताओं के सैकड़ों घरों पर माकपा के गुंडों ने हमला किया। ऐसा मालूम होता है कि माकपा कार्यकर्ताओं ने केरल से संघ परिवार से जुड़े लोगों के सफाए का मिशन चला रखा है। 6 सितंबर को संघ के कन्नूर जिला पदाधिकारियों ने केरल पुलिस के साइबर सेल में माकपा के कार्यकर्ताओं के खिलाफ शिकायत की कि वे रा.स्व.संघ और संघ परिवार से जुड़ी अन्य इकाइयों के कामकाज में बाधा डालने के उद्देश्य से संघ परिवार की विभिन्न इकाइयों के नाम से सोशल मीडिया पर फर्जी पेज और व्हाट्स एप पर समूह बना रहे हैं। सोशल मीडिया पर इन फर्जी साइट और व्हाट्स एप समूहों का इस्तेमाल उलटे-सीधे संदेशों को पोस्ट करने के लिए किया जाता है ताकि संघ परिवार के सहयोगी संगठनों के बीच गलतफहमी पैदा हो और इनके अधिकारियों के बारे में अफवाहों का बाजार गर्म रहे।
दरअसल, माकपा नेतृत्व की अल्पसंख्यकों को खुश करने की नीतियों के कारण केरल में बड़ी संख्या में पार्टी कार्यकर्ता संघ और संघ परिवार के अन्य संगठनों में शामिल हो गए हैं। लिहाजा, अपने जनाधार में आई गिरावट ने माकपा को परेशान कर रखा है। इसका सिरा केरल में हिंदू आबादी में आई चिंताजनक गिरावट और मुस्लिम व ईसाई आबादी में वृद्धि के साथ जुड़ा हुआ है। वर्ष 1901 में केरल की जनसंख्या में हिंदुओं का प्रतिशत 69 था, जो 2011 की जनगणना के अनुसार घटकर 54.73 प्रतिशत हो गया है। 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य में मुस्लिम आबादी बढ़कर 26़ 56 प्रतिशत (12़ 84 फीसदी की वृद्घि) हो गई जबकि ईसाइयों की आबादी 18़ 38 फीसदी है।
 केरल में मजहबी आधार पर आबादी के स्वरूप में आ रहे बदलाव ने माकपा की नींद उड़ा रखी है। माकपा नेताओं को महसूस होता है कि अल्पसंख्यक मतों को एकजुट करके ही केरल की राजनीति में अपनी प्रासंगिकता कायम की जा सकती है और यही वजह है कि पार्टी नेतृत्व ने रा.स्व.संघ और संघ परिवार से जुड़े संगठनों के हरसंभव विरोध का फैसला किया है। पार्टी नेतृत्व का मानना है कि अगर वे हिंदूवादी ताकतों के खिलाफ हिंसा और आतंक का माहौल बनाएंगे तो माकपा को
राज्य की मुस्लिम और ईसाई आबादी का समर्थन मिलेगा।
नतीजा यह है कि संघ और संघ परिवार से जुड़े संगठन जब भी कोई प्रस्ताव पेश करते हैं, माकपा उसे सांप्रदायिक ठहराते हुए विरोध कर देती है। इसके अलावा जिन हिंदू त्योहारों और प्रतीकों को संघ परिवार के संगठन बड़े आदर भाव से देखते हैं, माकपा उनका इस्तेमाल करके अपनी किस्मत आजमाने की जुगत में है। इस रणनीति के तहत माकपा ने अपनी नजर श्रीकृष्ण जयंती और विनायक चतुर्थी समारोहों पर टिका रखी है। कन्नूर में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव समारोह का सफल आयोजन करने में माकपा बुरी तरह विफल रही, जिसका गुस्सा संघ कार्यकर्ताओं पर निकाला गया जो जन्माष्टमी उत्सव मनाने में सबसे आगे थे। माकपा का कोई भी समारोह लोगों को आकर्षित नहीं कर सका और कामरेडों द्वारा कन्नूर में आयोजित समारोहों के पंडाल सूने रहे। खीज में माकपाइयों ने चार हिन्दुत्वनिष्ठ कार्यकर्ताओं के साथ मारपीट की। 

माकपा के लिए केरल में कन्नूर जिले का वही स्थान है जो बंगाल में 24 परगना का। कभी 24 परगना की 3200 शाखा समितियों,  200 स्थानीय समितियों की पूरे राज्य में तूती बोलती थी, लेकिन आज वह स्थिति नहीं हैं। पार्टी की केरल इकाई का वही हाल है। भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, लालच और विलासिता की प्रवृत्ति ने माकपा की जड़ों को खोखला कर दिया है। पार्टी नेतृत्व में कोई वैचारिक प्रतिबद्धता नहीं दिखती। अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए उसका मानो एक ही लक्ष्य है कि संघ कार्यकर्ताओं का निष्कासन या विनाश। माकपा को यह बात भी खाए जा रही है कि संघ परिवार तेजी से युवाओं को अपनी ओर खींच रहा है।
 माकपा ने वर्ष 1969 से 2016 के दौरान अकेले कन्नूर जिले में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 81 कार्यकर्ताओं की हत्या की। ये सभी हत्या इस कारण हुईं कि कन्नूर जिले में संघ की गतिविधियों को रोकने के माकपाइयों के प्रयासों का संघ कार्यकर्ताओं ने कड़ा विरोध किया था। वर्ष 1969-2016 के दौरान पूरे राज्य में संघ परिवार, खास तौर पर रा.स्व.संघ के लगभग 400 स्वयंसेवकों को माकपा के षड्यंत्र के कारण जान गंवानी पड़ी। हैरत की बात यह है कि ऐसी ज्यादातर हत्या को माकपा के हाथों की कठपुतली के केरल की मीडिया ने पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया या फिर सही तरीके से नहीं दिखाया। मुझे आज भी वर्ष 2004 में कन्नूर के जिला सचिव अश्विनी कुमार की इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा की गई नृशंस हत्या याद है। चैनल एशियानेट (जहां मैं उस समय काम करता था) के कन्नूर के रिपोर्टर ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि पारिवारिक विवादों के कारण संघ के उभरते नौजवान नेता अश्विनी की हत्या की गई। मुझे अश्विनी की हत्या के बताए गए कारण हजम नहीं हुए और मैंने कन्नूर के पुलिस अधीक्षक को फोन कर दिया। उन्होंने मुझे बताया कि अश्विनी की हत्या इस्लामी आतंकवादियों ने की है।
यह सिर्फ बानगी है कि संघ और संघ परिवार के अन्य संगठनों से जुड़े मामलों के प्रति पत्रकारों का नजरिया कैसा रहता है। ये स्वयंभू जागरूक मीडिया सुनामी या बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के समय संघ द्वारा किए गए अच्छे काम को तो नजअंदाज कर देता है, लेकिन तमाम छोटे-छोटे मामलों में नमक-मिर्च लगाकर परोसने में कोताही नहीं करता।
संघ कार्यकर्ताओं के सकारात्मक प्रचार अभियान का ही नतीजा था कि 2016 के विधानसभा चुनाव में कई भाजपा उम्मीदवारों ने माकपा के परंपरागत गढ़ में दिलचस्प और कड़ी चुनौती दी। माकपा नेताओं को डर है कि अगर यही रुझान बरकरार रहा तो देश में उनके इक्के-दुक्के गढ़ों में से एक केरल में भी पार्टी अपनी प्रासंगिकता खो देगी। पिछले दो साल के दौरान माकपा ने स्कूली पाठ्यक्रम में संस्कृत और हिंदी को शामिल करने जैसे मुद्दों पर अपनी बाहें चढ़ाईं और मीडिया के जरिये इस पर जोरदार हमले कराए जिससे अल्पसंख्यकों के मन में यह बात बैठ जाए कि देश में शिक्षा के भगवाकरण का ठोस अभियान चलाया जा रहा है। हालांकि केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के संदर्भ में आम जनता की राय जानने के लिए चंद प्रस्ताव व सुझाव पेश किए हैं। पर, बुद्धिजीवियों और वामपंथियों ने सरकार के इस कदम के खिलाफ अभियान ही छेड़ दिया।
पिछले कुछ वर्षों में केरल में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद एक मजबूत ताकत बनकर उभरी है, जबकि एसएफआई के साथ-साथ डीवाईएफआई (क्रमश: माकपा के छात्र और युवा संगठन) के प्रति युवाओं की दिलचस्पी लगातार घट रही है। इससे पार्टी नेतृत्व को करारा झटका लगा है और उसका मानना है कि संघ की जड़ों को हर हाल में  बढ़ने से रोकना होगा। कामरेड लोकतंत्र को अभिशाप मानते हैं, इसलिए माकपा को देश में किसी भी समूह या पार्टी का फलना-फूलना फूटी आंखों नहीं सुहाता। वे बहस और विमर्श के बजाय विनाश में विश्वास करते हैं। संघ परिवार के बुद्धिजीवियों और समर्पित कार्यकर्ताओं को निशाना बनाने के माकपाई एजेंडे की सबसे बड़ी वजह यही है।
 माकपाइयों द्वारा पूरे राज्य में आतंक का माहौल बना देने के बावजूद गृह मंत्रालय का प्रभार भी अपने पास रखे मुख्यमंत्री पिनारयी विजयन ने हाल में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, ''माकपा कार्यकर्ताओं द्वारा अपने प्रतिद्वंद्वियों पर किए गए किसी भी हमले की उन्हें कोई जानकारी नहीं है।'' इस पर जाने-माने कांग्रेस नेता बिंदू कृष्णन तक ने टीवी चैनलों पर टिप्पणी कर दी कि पिनारयी विजयन को पार्टी सचिव की तरह नहीं, बल्कि मुख्यमंत्री की तरह बात करनी चाहिए। पूर्व मुख्यमंत्री ओमान चांडी को अगले ही दिन कहना पड़ा कि माकपा ने पूरे केरल में आतंक का माहौल बना रखा है और फिर से सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है। 

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