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कश्मीर घाटी का अर्थ गैर कश्मीरियों के लिए आतंक और अशांति का पर्याय सा बन गया है। जबकि इसी घाटी के लिए कहा गया-दुनिया में कहीं स्वर्ग है तो यहीं है। लेकिन आज दिल्ली के अखबार और खबरिया चैनलों को देखकर लगता है मानो घाटी में हमला, हत्या और बलात्कार के अलावा कोई घटना ना घटती हो। वहां कोई फूल ना खिलता हो। कहीं कोई उम्मीद की रोशनी ना दिखाई देती हो।
आजादी के बाद पहली बार कश्मीर घाटी में महाकुंभ आयोजन हुआ। बिना किसी विज्ञापन के हजारों की संख्या में कश्मीरी पंडित इस कुंभ मेले में शामिल हुए, लेकिन इसकी चर्चा मुख्य धारा के मीडिया में नहीं हुई क्योंकि कुंभ मेला के उत्सव में ना हत्या थी और ना सुरक्षा बलों पर हमला था। इससे पहले 1941 में कुंभ का आयोजन हुआ। उसके बाद 75 साल बाद घाटी में कुंभ का आयोजन हुआ है। महाकुंभ आयोजन से जुड़े पंडित प्रेमनाथ शास्त्री, सांस्कृतिक शोध संस्थान के संयोजक ओमकार शास्त्री के अनुसार, जब दस योग का मिलन होता है, तब ही इस महाकुंभ का आयोजन होता है। ऐसा योग इस बार पूरे 75 साल बाद आया है। ओमकार शास्त्री दस योग की जानकारी देते हुए बताते हैं-''ज्येष्ठ माह होना चाहिए, शुक्ल पक्ष, दशमी तिथि, दिन मंगलवार-बुधवार हो, हस्त नक्षत्र, यतिपाद योग, गर तारण, आनंद योग, कन्या राशि में चन्द्रमा और वृष राशि में सूर्य का योग होने के बाद ही महाकुंभ का योग बनता है।''श्री शास़्त्री ने यह जानकारी भी दी कि कई बार महाकुंभ का योग दो घंटे या कुछ घंटों के लिए ही बनता है लेकिन इस बार यह योग पूरे दिन रहा। कुंभ मेले से कुछ समय पहले की बात है, जब जम्मू कश्मीर की सरकार ने बडगाम में आचार्य अभिनवगुप्त की यात्रा को क्षेत्र विशेष में जाने से रोका था। दूसरी तरफ जो घाटी मेंे पाकिस्तानी इशारे पर काम करने वाला अलगाववादियों का खेमा है, वह इसलिए सरकार से नाराज चल रहा है क्योंकि सरकार विस्थापित कश्मीरी पंडितों को फिर से घाटी में बसाने की योजना पर काम कर रही है। इन घटनाओं के बीच कुंभ मेले को लेकर भी आयोजकों के मन में आशंका थी कि इसे कहीं प्रशासन द्वारा रोक ना दिया जाए। वैसे भी आयोजन स्थल के संवेदनशील होने की वजह से किसी प्रकार के खतरे से इंकार नहीं किया जा सकता था। लेकिन श्रद्धालुओं के मन में किसी प्रकार का संदेह नहीं था।
जम्मू कश्मीर अध्ययन केन्द्र से जुड़े अजय भारती अपने परिवार के साथ सुबह आठ बजे महाकुंभ आयोजन स्थल पर पहुंच गए थे। श्री भारती के अनुसार-''हमें अनुमान था कि आयोजन में आठ से दस हजार लोग शामिल होंगे लेकिन इतनी संख्या तो सुबह आठ बजे ही आयोजन स्थल पर हो गई थी। इसी का परिणाम था कि व्यवस्थाएं कम पड़ गईं। आठ से दस हजार लोगों की व्यवस्था थी और महाकुंभ में तीस हजार से अधिक श्रद्धालु शामिल हुए। जबकि इसका कोई प्रचार नहीं था।'' एक अनुमान के अनुसार आयोजन में नब्बे प्रतिशत लोग कश्मीर और जम्मू से थे। जिन्हें महाकुंभ की जानकारी वीजीश्वर पंचांग या पारिवारिक समाराहों में मिली थी।
कुंभ शामिल होने वाले वे लोग भी थे, जिन्होंने कश्मीर के बाहर अपना घर बना लिया है लेकिन खुद को कश्मीर की मिट्टी से अलग नहीं कर पाए हैंं। ऐसे कश्मीरी पंडित भी आए थे, जिन्होंने चाहे अपना घर कश्मीर से बाहर बना लिया हो लेकिन अपनी पुश्तैनी जमीन कश्मीर घाटी में बेची नहीं। इस उम्मीद में कि एक दिन सब सामान्य हो जाएगा। जब एक दिन घाटी का वातावरण सबके अनुकूल होगा, तो लौटकर आने के लिए एक घर तो यहां चाहिए। इसी सोच ने उन्हें अपना घर नहीं बेचने दिया।
मेले का आयोजन झेलम और सिंधु नदी के तट पर श्रीनगर से तीस किलोमीटर दूर उत्तरी कश्मीर के शादीपुरा में 14 जून को हुआ था जिसमें हजारों की संख्या में कश्मीरी पंडित शामिल हुए। कुंभ मेले में शामिल होने आए श्रद्धालुओं ने खीर भवानी मेले में भी भागीदारी की। जम्मू कश्मीर सरकार ने कुंभ मेले में शामिल होने आए कश्मीरी पंडितों के लिए यातायात और सुरक्षा का विशेष ख्याल रखा था। मेला के स्थान पर स्वच्छता और साफ सफाई का खास इंतजाम देखने को मिला। किसी तरफ गंदगी नहीं थी। सफाई बनाए रखने में मेले में शामिल श्रद्धालुओं ने भी सहयोग किया। झेलम नदी के घाट पर श्रद्धालुओं के लिए सहायता डेस्क बनाया गया था। जहां से वे अपने लिए उपयोगी कुंभ से जुड़ी जानकारी हासिल कर सकते थे। जम्मू कश्मीर में पत्रकार दिनेश मल्होत्रा ने बताया, ''महाकुंभ के आयोजन से सियासी लोग दूर थे। आयोजन के शांतिपूर्वक सफल होने की एक वजह यह भी हो सकती है।'' यह जानना उस मेले में ना शामिल हुए लोगांे के लिए दिलचस्प होगा कि कुंभ में पूजा से जुड़ी या अन्य आवश्यक सामग्री, जो श्रद्धालुओं को उपलब्ध कराई जा रही थी, उसे उपलब्ध कराने वाले अधिकांश दुकानदार स्थानीय मुसलमान थे। मेले में फूल, फल, सब्जी, जूस, चाय और भी जरूरी सामग्रियों की दुकानें मुसलमान ही चला रहे थे। आज घाटी में अलगाववादियों से अलग राय रखने वाली अधिसंख्य मुस्लिम आबादी और कश्मीर का पंडित ईश्वर से यही प्रार्थना कर रहा है कि कश्मीर घाटी में अमन फिर से लौट आए जिसे मुट्ठी भर अलगाववादियों ने छीन रखा है। कश्मीर घाटी फिर से जन्नते फिरदौस बने और कश्मीरी पंडितों की एक बार फिर से घाटी में वापसी हो पाए। इस महाकुंभ में श्रद्धालुओं ने नदी में डूबकी लगाई और बड़ी संख्या में कश्मीरी पंडितों ने अपने इष्ट देवता से मन्नत मांगी कि घाटी के हालात को उनकी सुरक्षित वापसी के अनुकूल बना दे। जिस झेलम नदी के किनारे महाकुंभ का आयोजन हुआ, वह भारत और पाकिस्तान दोनों में 725 किलोमीटर तक बहती है। यह चेनाब नदी की सहयोगी नदी है।
झेलम पंजाब की महत्वपूर्ण पांच नदियों में से एक है और झेलम जिले से होकर बहती है। इस नदी का जिक्र पौराणिक ग्रंथों में वितस्ता के नाम से आया है। दूसरी नदी है सिंधु। जिसके किनारे महाकुंभ के श्रद्धालु इकट्ठे हुए। 3180 किलोमीटर में बहने वाली इस नदी को एशिया की सबसे बड़ी नदी भी कहते हंै। यह जम्मू-कश्मीर, तिब्बत से होती हुई पाकिस्तान में बहती है। झेलम और सिंधु नदी का जिक्र ऋग वेद में भी आया है।
– आशीष कुमार 'अंशु'
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