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'चरित्र निर्माण के संस्कार जरूरी'

by
Aug 1, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 01 Aug 2016 13:22:27

नई दिल्ली, 24 जुलाई को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने सिविक सेंटर स्थित केदारनाथ साहनी सभागार में अखिल भारतीय 'शिक्षा भूषण' शिक्षक सम्मान समारोह में शिक्षकों को सम्बोधित करते हुए कहा कि शिक्षा में परम्परा चलनी चाहिए। शिक्षक को शिक्षा व्यवस्था के साथ विद्या और संस्कारों की परम्परा को भी साथ लेकर चलना चाहिए। सभी विद्यालय अच्छी ही शिक्षा छात्रों को देते हैं फिर भी चोरी डकैती, अपराध आदि के समाचार आज टीवी और अखबारों में देखने-पढ़ने को मिल रहे हैं, तो कमी कहां है?
बच्चे सर्वप्रथम मां फिर पिता बाद में अध्यापक के पास सीखते हैं। बच्चों के माता-पिता के साथ अधिक समय रहने के कारण माता-पिता की भूमिका महत्वपूर्ण है। इसके लिए पहले माता-पिता को शिक्षक की तरह बनना पड़ेगा साथ ही शिक्षक को भी छात्र की माता तथा पिता का भाव अंगीकार करना चाहिए। शिक्षक को चली आ रही शिक्षा व्यवस्था के अतिरिक्त अपनी ओर से अलग से चरित्र निर्माण के संस्कार छात्रों में डालने पड़ेंगे। लेकिन यह भी सत्य है कि हम जो सुनते हैं वह नहीं सीखते और जो दिखता है वह शीघ्र सीख जाते हैं।
श्री भागवत ने कहा कि आज सिखाने वालों को जो दिखना चाहिए वह नहीं दिखता और जो नहीं दिखना चाहिए वह दिख रहा है। इसलिए शिक्षकों को स्वयं समाज में विशेष उदाहरण बनकर दिखाना चाहिए तभी वह छात्रों को सही दिशा दे सकेंगे। शिक्षक ऐसे उदाहरण बन कर समाज को संस्कारित कर फिर से चरित्रवान समाज खड़ा करें।
कार्यक्रम के विशेष अतिथि देव संस्कृति विश्वविद्यालय हरिद्वार के कुलपति तथा गायत्री परिवार के अंतर्राष्ट्रीय प्रमुख डॉ. प्रणव पंड्या ने कहा कि हर व्यक्ति को जीवन भर सीखना और सिखाना चाहिए। शिक्षा जीवन के मूल्यों पर आधारित होनी चाहिए। शिक्षा एक एकांगी चीज है जब तक उसमें विद्या न जुड़ी हो। 1991 के बाद उदारीकरण की नीति बनाते समय हमने शिक्षा नीति के बारे में कुछ सोचा नहीं। इसका परिणाम आज अपने ही देश के विरुद्घ नारे लगाते हुए छात्रों के रूप में दिख रहा है। शिक्षक को अपना कर्तव्यबोध नहीं छोड़ना चाहिए।
अखिल भारतीय शैक्षिक महासंघ द्वारा आयोजित 'शिक्षा भूषण' शिक्षक सम्मान समारोह में शिक्षा बचाओ आंदोलन से जुड़े वरिष्ठ शिक्षाविद् श्री दीनानाथ बत्रा, डॉ़ प्रभाकर भानूदास मांडे व सुश्री मंजू बलवंत राव महालकर को श्री मोहनराव भागवत तथा डॉ़ प्रणव पंड्या ने 'शिक्षा भूषण' सम्मान से सम्मानित किया। इस अवसर पर श्री महेन्द्र कपूर, के़ नरहरि, प्रो. जे़ पी़ सिंहल व श्री जयभगवान गोयल सहित
कई बुद्धिजीवी शिक्षक व मीडियाकर्मी उपस्थित थे।     ल्ल प्रतिनिधि

उलेमा आमने-सामने
सहारनपुर। देवबंदी मसलक की विश्व विख्यात इस्लामिक शिक्षण संस्था के मोहतमिम मुफ्ती अबुल कासिम नौमानी बरेलवियों के देवबंद पर दहशतगर्दी को बढ़ावा देने के संगीन आरोप से बुरी तरह तिलमिला गए हैं। उन्होंने बरेलवियों के इस आरोप पर अपनी सफाई में कहा कि दारूल उलूम देवबंद ने 25 फरवरी 2008 को फतवा जारी कर सभी तरह की दहशतगर्दी की कार्रवाइयों को इस्लाम विरोधी घोषित करने का महत्वपूर्ण कदम उठाया था जिसकी विश्वभर में सराहना हुई थी।
ध्यान रहे 26 जुलाई को मुरादाबाद में ईदगाह मैदान में आयोजित सुन्नी-बरेलवी कांफ्रेंस के जलसे में बरेलवी मसलक के प्रमुख हजरत अल्लामा सुब्हान रजा खां उर्फ सुब्हानी मियां ने अपने भाषण में कहा था कि आतंकवाद वहाबी एवं देवबंदी मसलक की देन है। उनका यह भी कहना था कि जम्मू-कश्मीर की समस्याएं भारत का अंदरूनी मामला है। उन्होंने पाकिस्तान और चीन दोनों देशों को चेताया कि वे इस मामले से खुद को पूरी तरह से अलग रखंें और भारत के मामलों में हस्तक्षेप करने की कोशिश न करें।
दारूल उलूम के मोहतमिम (रेक्टर) मुफ्ती अबुल कासिम नौमानी नेे बरेलवियों पर पलटवार करते हुए कहा कि वे देवबंद को आरोपित कर रहे हैं जबकि जरूरत इस बात की है कि वे खुद अपने भीतर झांककर देखें कि उनका अतीत क्या रहा है?
देवबंद और बरेलवी फिरको में बुनियादी मतभेद हैं। हालांकि दोनों हनफी सुन्नी हैं। लेकिन देवबंद और बरेलवी फिरके इस्लाम के दो स्वरूपों का प्रतिनिधित्व करते हैं। शुद्घतावादी और नवीनता का पालन करने वाले इस्लाम के कट्टर स्वरूप का पालन करने वाले वहाबी या देवबंदी कहे जाते हैं। इनका दारूल उलूम देवबंद से संबंध है। आरोप है कि देवबंद मदरसा तालिबानियों की प्रेरणा  से बना। जबकि देवबंद मदरसे के नजरिए और शिक्षा को चुनौती देने वाले इमाम अहमद रजा खान ने बरेली में बरेलवी मदरसा स्थापित किया। बरेलवी देवबंदियों की कट्टरता की हमेशा से भर्त्सना करते हैं।  -सुरेन्द्र सिंघल

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