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आवरण कथा 'योग के ध्वजवाहक' से यह बात स्पष्ट होती है कि भारत के नेतृत्व में दुनिया के अधिकतर देशों ने योग को स्वीकार ही नहीं किया बल्कि पूर्ण रूप से इसका समर्थन भी किया। यह बात कहते हुए बिलकुल संकोच नहीं करना चाहिए कि इस बार भी योग दिवस नई इबारत लिखने में कामयाब हुआ। यह बात सत्य है कि योग हरेक के जीवन के लिए कल्याणकारी है। जीवन में नई ऊर्जा के साथ यह हमारे शरीर को स्वस्थ रखता है जिससे हम जीवनपथ पर अपने काम को सुचारु रूप से करते चले जाते हैं। जो लोग इसे मत-पंथ से जोड़कर देखते हैं, उन्हें अपनी कुंद पड़ी बुद्धि को जगाना चाहिए और आंखें खोलकर इसके फायदे की ओर देखना चाहिए।
—बी.एल.सचदेवा, आईएनए बाजार (नई दिल्ली)
ङ्म योग दिवस पर लगभग 150 से अधिक देशों से इसका सीधा प्रसारण किया गया। कोई भी देश रहा हो लोग योग दिवस पर जुड़ने के लिए लालायित दिखे। योग मानव के हित में है। अमेरिका सहित अन्य देश जब अंतरिक्ष में अपने वैज्ञानिक भेजते हैं तो उन्हें योग विद्या का ज्ञान देकर ही भेजते हैं। जाति,धर्म, मजहब, पंथ से इसका दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है, जो लोग इसे किसी मजहब और पंथ से जोड़ते हैं वे समाज को भ्रमित करते हैं। योग पर विश्व को जोड़ने का पूरा श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जाता है। उनके अथक प्रयास से भारत की संस्कृति पूरे विश्व में पहुंची और उससे आज विश्व के लोग इसका लाभ ले रहे हैं।
—प्रदीप सिंह राठौर, कानुपर (उ.प्र.)
ङ्म भारत में योग का प्रचलन आज से नहीं बल्कि आदिकाल से है। हमारी ऋषि भूमि ही योग की जन्मदात्री है। वैदिक युग में महर्षि पंतञ्जलि द्वारा योग दर्शन का प्रतिपादन किया गया। आज भारतीय संस्कृति के संवाहक के रूप में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने योग को वैश्विक समर्थन दिलाने का जो अभियान चलाया, उसमें उन्हें पूरी सफलता मिली है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसे पूरी मान्यता देकर संपूर्ण विश्व में अलग पहचान दिलाई है।
—डॉ. रामशंकर भारती, झांसी (उ.प्र.)
ङ्म भारतीय दर्शन विश्व कल्याण और समूची मानवता के हित के लिए सदैव से ही समर्पित रहा है। हमारी वैदिक संस्कृति सदैव से सभी सुखी रहें का उद्घोष करती आई है। यूरोप सहित अधिकतर देशों के चिकित्सा वैज्ञानिक भी मान चुके हैं कि व्यक्ति यदि प्रतिदिन आधा घंटा योग करता रहे तो वह स्वस्थ रहेगा। इस तथ्य को तो लोगों को मानना चाहिए और अपने जीवन में उतारना चाहिए।
—अनूप कुमार वर्मा, मन्दसौर (म.प्र.)
ङ्म विद्यालयी शिक्षा के बाद अब मेडिकल शिक्षा में गीता, उपनिषद् के साथ ही योग को भी फिजियोथेरेपी कोर्स का अहम हिस्सा बनाया जा रहा है। इंसान का अवसाद में आना स्वाभाविक है। लेकिन अगर हम हर दिन योग करते हैं तो यह अवसाद हम पर हावी नहीं हो पाता। हमें योग से एक अद्भुत शक्ति मिलती है, जो बिल्कुल सत्य है। साथ ही आज नए-नए रोग दिखाई दे रहे हैं। लोग आज तनाव, अवसाद हिंस्र भावना, उन्माद जैसे रोगों से परेशान हैं। लेकिन योग के जरिए इन रोगों को हम अपने से दूर कर सकते हैं। अपने जीवन को ऊर्जावान बनाना है तो सभी को योग करना ही चाहिए।
—कमलेश कुमार ओझा, पुष्प विहार(नई दिल्ली)
कठिन समय से लड़ना सीखिए
रपट 'जान लेती परीक्षाएं' (26 जून, 2016) समाज को जागरूक करती है। किसी के लिए स्वयं का जीवन समाप्त करने का निर्णय लेना इतना आसान नहीं होता। ऐसा नहीं है कि आत्महत्या का विचार एकदम से कहीं आ जाता है और ऐसा होते ही व्यक्ति आत्महत्या कर लेता है। तनाव में एक लंबा समय गुजारने के बाद व्यक्ति को यह लगने लगता है कि अब सारे रास्ते बंद हैं, तब जाकर ही वह कहीं आत्महत्या का निर्णय लेता है। आजकल माता-पिता अपने बच्चों को 'सुपर किड' बनाने की जिद पर अड़े हुए हैं। ऐसे माता-पिता अपने अधूरे सपनों का बोझ बच्चों पर लाद देते हैं। इस कारण शुरू से ही बच्चा मानसिक रूप से दबाव में आ जाता है।
—अश्वनी जागड़ा, रोहतक (हरियाणा)
ङ्म आज चारों ओर वातावरण बहुत ही प्रदूषित और नकारात्मक हो चुका है। इसका असर हमारे समाज पर खासकर वर्तमान पीढ़ी पर पड़ना स्वाभाविक है। इस सबका असर हम देख भी रहे हैं कि बच्चे आत्महत्या करने जैसे कदम उठाने में हिचक नहीं रहे। बच्चों के माता-पिता को समझना चाहिए कि उनके समय और आज के समय की प्रतिस्पर्धा में काफी अंतर आ चुका है। आज की प्रतिस्पर्द्धा गलाकाट है जबकि पहले के समय ऐसी प्रतिस्पर्धा नहीं थी। इस बात को बहुत कम माता-पिता समझते हैं। कुछ तो बच्चे की रुचि जानने के स्थान पर अपनी रुचि उस पर थोप देते हैं, जिसका परिणाम अंत में बड़ा दुखद होता है।
—रमेश कुमार, जयपुर (राज.)
ङ्म बच्चों को आज यह समझना चाहिए कि परीक्षा और पढ़ाई जीवन का सिर्फ एक पड़ाव है। कम अंक आने या फेल हो जाने से भविष्य अंधकारमय नहीं हो जाता। जीवन में एक के बाद एक अवसर आते रहते हैं, बशर्तें कोई मैदान छोड़कर न भागे। आज विद्यालयों में बच्चों को ध्यान, योग और अध्यात्म की शिक्षा दी जानी चाहिए, ताकि वे तनाव से लड़ना सीख सकें। क्योंकि इन सब चीजों से दूर रहना वाला कमजोर व्यक्ति ही जीवन से छुटकारा पाने की सोचता है। बच्चों का आत्मिक बल बढ़े, इस सब पर घर के लोगों को जरूर विचार करते रहना चाहिए।
—निहारिका मुकुंद, नासिक (महा.)
भटकती युवा पीढ़ी
रपट 'सिर चढ़ता नशा' (26 जून, 2016) तथ्यों से अवगत कराती है। आज पंजाब में युवा नशा के क्षेत्र में अधिक जा रहें तो माना जा सकता है लेकिन अन्य राज्यों में भी कमोबेश कुछ यही स्थिति है। हमारे युवा नशे के कारण भटकते जा रहे हैं, जो कि दु:खद है।
—राममोहन चन्द्रवंशी, हरदा (म.प्र.)
पलायन करते हिन्दू
रपट 'घर हुआ पराया' (19 जून, 2016) हिन्दुओं के दुखदर्द को देश को बताती है। कैराना की घटना उन्मादियों के आतंक को तो बताती ही है । यह सब लचर कानून व्यवस्था और मुस्लिम समाज की तेजी से बढ़ती जनसंख्या का परिणाम है। आज से करीब 25 वर्ष पहले जहां कैराना का हिन्दू-मुस्लिम अनुपात 50-50 फीसद के आसपास था वहीं आज यह 85-15 फीसद के अनुपात पर आ गया है। नगर में मुस्लिमों की भरमार स्पष्ट रूप से देखने को मिल जाएगी।
—शिखर चानना, शामली(उ.प्र.)
ङ्म यहां पर हिन्दुओं का पालन हो रहा है। देश के ऐसे सैकड़ों क्षेत्र हैं जहां से हिंदुओं का पलायन बराबर हो रहा है। कैराना में व्यापारी वर्ग अधिक पलायन करने पर मजबूर है। इसके कारण व्यापार करना मुश्किल हो गया है। रंगदारी की धमकियां, पैसा न देने पर गोली मारने की धमकी आए दिन मिलती ही रहती हैं।
—रोहित कुमार चंदेल, रामपुर (उ.प्र.)
ङ्म यह पलायन ऐसा नहीं कि अभी कुछ दिन पहले ही शुरु हुआ हो, यह पलायन लंबे अरसे से हो रहा है। बस मीडिया ने समाचार अब बनाया है। कुछ दिन पहले अखलाक की मौत पर इक्का-दुका मुस्लिम परिवारों के पलायन की खबर मीडिया द्वारा जान-बूझकर फैलाई गई। सेकुलर मीडिया इसी को आधार बनाकर केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार को कोसने में लगी रही लेकिन अब जब कैराना से सैकड़ों हिन्दुओं के घरों में ताले जड़ चुके हैं,
तो इनके मुंह में दही जम गया है। जो सेकुलर जमात उस समय छाती कूट-कूटकर रो रही थी, उसका अब कोई
पता नहीं है। क्या उसे इस बात की खबर भी है?
—डॉ. सुशील कुमार गुप्ता, सहारनपुर (उ.प्र.)
ङ्म उत्तर प्रदेश की समाजवादी सरकार केन्द्र से मिलने वाले फंड को अपने फायदे के हिसाब से खर्च कर रही है। सपा के नेताओं को अच्छी तरह से पता है कि इस बार वे फिर से सत्ता में नहीं आने वाले और बुरी हार तय है। तो क्यों न अपनी-अपनी जेबें भर ली जाएं। वह जनता की गाढ़ी कमाई को खून-पसीने की तरह बहा रही है। वहीं प्रदेश की कानून व्यवस्था खस्ताहाल है। गुुंडों और माफिया का बोलबाला है। मुस्लिमों के हौसले बुलंद हैं। खैर, विधानसभा चुनाव नजदीक हैं। प्रदेश की जनता समाजवादी पार्टी को उसके किए गए कामों का जवाब देने वाली है।
—रामनरेश कोठारी, विकासपुरी (नई दिल्ली)
ङ्म अखलाक की हत्या, रोहित वेमुला की आत्महत्या और जेएनयू जैसे विषयों पर छाती पीटकर रोने वाले कैराना से हिन्दुओं के पलायन को झूठा साबित करने पर लगे हुए हैं। यदि कैराना से हिन्दुओं के स्थान पर मुस्लिम आबादी का पलायन हुआ होता तो निश्चित रूप से सेकुलर मीडिया, कथित बुद्धिजीवी और नेता चुप नहीं बैठते।
—शिखा चंदेल, पटना (बिहार)
उन्माद की सुनियोजित साजिश
अंक संदर्भ 'घर हुआ पराया'(19 जून, 2016) रपट ने बिना लागलपेट के हिन्दुओं की पीड़ा समाज के सामने रखी है। कैराना के अलावा प्रदेश के मेरठ, बहराइच, अलीगढ़ और शामली जिलों के साथ-साथ देबबंद से भी सैकड़ों हिन्दू परिवारों के पलायन की खबर आईं। कैराना सहित अन्य क्षेत्रों में जहां भी पलायन हुआ वहां से एक चीज सामने आई कि यह कार्य स्थानीय मुस्लिम गुंडों और मुल्ला-मौलवियों के संरक्षण में यह कार्य हुआ है। उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव नजदीक है। ऐसे में सेकुलर मीडिया अपना स्वार्थ सिद्ध करने और देश की छवि खराब करने में अपने आकाओं के इशारे पर जुट गया है। देश को असहिष्णुता की आग में झोंकने के लिए वह एकदम तैयार है। कैराना के पास देवबंद है। दारूल उलूम के इमाम व प्रवक्ता हर छोटी-मोटी बात पर फतवा जारी करते रहते हैं। लेकिन ऐसी घटनाओं पर खामोश हो जाते हैं आज जहां कुछ लोग तो दारूल उलूम को देशभक्ति का प्रमाण देने में भी नहीं हिचकते। जब कि इसकी हकीकत कुछ और ही है। समाजवादी सरकार का इस पूरे मामले पर मौन समर्थन रहा। कार्रवाई के नाम पर उसने खानापूर्ति की। कैराना के अलावा देश के विभिन्न क्षेत्रों में हिन्दुआंे का पलायन हो रहा है। मुस्लिम आबादी के ज्यादा होते ही हिन्दुओं को उन क्षेत्रों से भागना ही पड़ता है, यह बिल्कुल सत्य है। देश में एक सुनियोजित साजिश के तहत यह क्रम चल रहा है। सरकार से अपेक्षा है कि वह ऐसी घटनाओं पर तत्काल रोक लगाए पर वह वोट बैंक के लालच में इन्हें रोकना तो दूर बल्कि शह देती दिखाई देती है।
—हरिकृष्ण निगम, ए-1802, पंचशील हाईट्स,महावीर नगर, कांदीवली(प.),मुंबई (महा.)
नूतन अभियान
नमामि गंगे का चला, है नूतन अभियान
शायद इससे हो सके, गंगा का कल्याण।
गंगा का कल्याण, बड़ा संकट है आया
बांध और उद्योगों ने है नरक बनाया।
कह 'प्रशांत' जिसने अरबों-खरबों को तारा
होकर बेबस मांग रही है आज सहारा॥
—प्रशांत
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