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मीडिया में संघ – ''और संघ के प्रति बदल गई मेरी धारणा''

by
Jun 27, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 27 Jun 2016 13:29:50

-अंकित जैन –

अभी कुछ दिन पहले मुझे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, दिल्ली प्रान्त की तरफ से आयोजित प्रथम वर्ष संघ शिक्षा वर्ग के समापन कार्यक्रम में जाने का अवसर मिला। मैं भाजपा के कार्यक्रमों में तो कई बार गया हूं पर संघ के किसी आयोजन में जाने का मेरा यह पहला अवसर था। कार्यक्रम एक खुले मैदान में चारों तरफ टेंट लगा कर किया जा रहा था।
शुरुआत में स्वयंसेवकों ने शारीरिक क्रियाओं आदि का प्रदर्शन किया। उसके बाद मुख्य वक्ता श्री रामेश्वर के संबोधन का समय आया। जैसे ही रामेश्वर जी ने अपना संबोधन शुरू किया, जोरदार आंधी-तूफान ने दस्तक दी। चारों तरफ टेंट लगे होने के कारण हवा उनसे जोर से टकरा रही थी। एक पल को लगा कि कहीं ये टेंट हमारे ऊपर ही न आ गिरे। मंच भी साधारण बल्लियों से बनाया गया था, वह भी हवा से हिलने लगा था। यह सब चंद सेकंड में हुआ, मुझे लगा वहां से हट जाने में ही भलाई है। मुझे लगा, ऐसी परिस्थिति में तो प्रशिक्षित 'इवेंट मैनेजर' के भी हौसले जवाब दे जाते हैं तो ये लाठी लिए, निक्कर पहने, काली टोपी लगाए स्वयंसेवक हालात को कैसे संभल पाएंगे।
 जिस मंच से मुख्य वक्ता संबोधित कर रहे थे वह मंच जबरदस्त हिलोरें लेने लगा। मुझेे लगा कि वक्ता अभी मंच से कूद के भाग लेगा, भला ऐसी भयंकर आंधी और लगभग गिरने  को हो रहे मंच पर कोई अपनी जान जोखिम में क्यों डालेगा? लेकिन अगले चंद सेकंड में जो हुआ, उसने मेरा नजरिया ही बदल के रख दिया। आंधी-तूफान के अपना रौद्र रूप दिखाना शुरू करते ही स्वयंसेवक हरकत में आ गये। जो जिस खंभे के पास बैठा था, उसने वहां लगे टेंट के कपड़ों को खंभों से खोल दिया।
लगभग 20 स्वयंसेवक उस मंच की तरफ दौड़े जो हवा के कारण हिलोरें ले रहा था और जल्दी से चारों तरफ से उस मंच को पकड़ लिया। लोहे की हर पाइप को 6-7 स्वयंसेवक कसकर पकड़े हए थे ताकि मंच को कोई नुकसान न पहुचे। यद्यपि टेंट की व्यवस्था टेंट वालों की रही होगी परन्तु उस समय दूर-दूर तक टेंट हाउस का कोई आदमी नहीं दिख रहा था। कुछ ही क्षणों में उन युवाओं ने टेंट का हर खंभा पकड़ लिया, जिसकी वजह से हवा का ठोस दबाव कम हो गया। यह सब देखते ही देखते हुआ।
इस घटना में जो सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाली बात थी वह थी संघ के उस कार्यक्रम के मुख्य वक्ता का व्यवहार। जब मंच हिलोरें लेता हुआ हवा में तैर-सा रहा था, वक्ता के ठीक ऊपर मंच की छत का कपड़ा बांधने के लिए प्रयोग प्रयुक्त लोहे का खंभा भी उखड़कर अब गिरा या तब गिरा की हालत में था। उसके गिरने से शायद उनकी जान भी जा सकती थी। इस सबके बाद भी न तो वक्ता के एक शब्द में डर का भाव दिखा और न ही उनके चेहरे पर कोई ऐसा चिंता का भाव दिखा। ऐसे ही आंधी-तूफान में वक्ता ने पूरे 40 मिनट स्वयंसेवकों को संबोधित किया तथा अपने भाषण में आंधी का जिक्र तक नहीं किया। यह  अत्यंत विस्मयकारी अनुभव था। किस प्रकार चंद सेकंड में बिना किसी पूर्व योजना के स्वयंसेवकों ने भयानक आंधी में कार्यक्रम संपन्न कराया, हर एक खंभों पर     2-2 स्वयंसेवक तन कर खड़े थे, कुछ तो ऊपर चढ़कर संभों को कसकर जकड़े हुए थे। मुझे डर लग रहा था कि उन में से कोई कहीं गिर न जाए। मंच पर एक स्वयंसेवक तो लगभग 40 मिनट ऊपर की तरफ हाथ और गर्दन किए उस उखड़े लोहे के स्तम्भ को पकड़े खड़ा रहा कि कहीं वह नीचे गिरकर मंचासीन व्यक्तियों को न लगे। नीचे लगभग 25 स्वयंसेवक मंच को चारों ओर से साधे हुए थे। क्या गजब का भरोसा था एक दूसरे पर!
इसी आंधी-तूफान में श्री रामेश्वर ने संबोधन के दौरान कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व्यक्ति निर्माण की प्रयोगशाला है। यह पंक्ति मैंने अनेक संघ कार्यकर्ताओं से पहले भी कई बार सुनी तो थी, पर जब उनका प्रबधंन अपनी आंखों देखा तो ये पंक्ति चरितार्थ होती दिखी। क्या गजब के व्यक्तियों का निर्माण किया है। मुख्य वक्ता एक बड़े अधिकारी हैं संघ के। जो स्वयंसेवक मंच संभाले हुए थे उनसे उनका कोई व्यक्तिगत परिचय भी नहीं था, ऐसे में उन पर पूरा भरोसा करना एक विश्वास, एक भरोसे की कहानी को बयान करता है जो कि एक स्वयंसेवक का दूसरे स्वयंसेवक के प्रति होता है। जब मैंने यह दृश्य देखा तो आश्वस्त हो गया कि समाज इन स्वयंसेवकों के हाथों में सुरक्षित है। शायद इसी चरित्र निर्माण, व्यक्ति निर्माण की बात संघ के लोग करते हैं। मैंने स्वयं अनुभव किया तो सोचा आपके साथ इसे साझा करूं। शायद यही छोटी-छोटी चीजें इस संगठन को इतना महान बनाती हैं। मेरी शुभकामनाएं ऐसे संगठन को। मेरी कामना है कि प्रत्येक व्यक्ति इन स्वयंसेवकों जैसा बने। क्या गजब का काम करते हैं, क्या संस्कार देते हैं बच्चों को ये लोग।  समय मिले तो कभी ऐसे वगार्ें का भ्रमण कीजिए, आप स्वयं में एक नई स्फूर्ति एवं ऊर्जा पाएंगे।     (ऑप इंडिया से साभार )

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