समरस भारत के स्वप्नद्रष्टा
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समरस भारत के स्वप्नद्रष्टा

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May 9, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 09 May 2016 12:35:22

17 अप्रैल, 2016
आवरण कथा 'समरसता के शिल्पकार'  से स्पष्ट होता है कि डॉ. आंबेडकर ने वंचित और पिछड़े वर्गों को समाज में सम्मान दिलाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। राष्ट्रनिर्माण में उनका योगदान सराहनीय है। उनके द्वारा किये गए कार्य सदा याद किये जाते रहेंगे। वे समाज में प्रत्येक वर्ग को समान अधिकार देने के लिए प्रयासरत थे और जातिवाद, प्रांतवाद के खिलाफ थे। वे कहा करते थे कि हम सब एक संस्कृति के सूत्र में बंधे हैं। इसलिए कोई जाति-पांति नहीं, कोई ऊंच-नीच नहीं, कोई भेदभाव नहीं, कोई छोटा बड़ा नहीं। आओ सब मिलकर भारत की  जय बोलें।
—कृष्ण वोहरा, सिरसा (हरियाणा)

 श्रेष्ठ कर्म श्रेष्ठ आत्माओं द्वारा ही किए जाते हैं, भले ही मार्ग में कितनी ही बाधाएं क्यों न आएं। वे उन्हें पार करके ही दम लेते हंै। बाबासाहेब ऐसी ही श्रेष्ठ आत्मा थे। वे समाज के वंचित वर्ग को उसका उचित स्थान दिलाने के पक्षधर थे। उन्होंने संविधान सभा के अपने अंतिम भाषण में कहा था कि भारत सदा से गुलाम नहीं था। एक समय ऐसा भी था जब यह देश साधन संपन्न था पर अपने लोगों की आपसी लड़ाई और कुछ लोगों की गद्दारी ने इसे गुलाम बना दिया। वे चाहते थे कि भारत फिर से विश्वगुरु के पद पर आसीन हो। इसलिए उन्होंने देश को एक ऐसा संविधान दिया, जिससे कभी भी भारत के सामने ऐसा परिस्थितियां पैदा न हों।
—रामसनेही, रायपुर (छ.ग.)

ङ्म दु:ख की बात यह है कि बाबासाहेब जो चाहते थे, उसे उनके ही समर्थकों ने दरकिनार किया  है। उनका नाम लेकर स्वयं को दलितों का नेता बताने वाले लोगों के कारण बाबासाहेब आज एक ही समाज के नेता बने हुए हैं। जबकि सत्य यह है कि बाबासाहेब हर वंचित समाज और देश के नागरिकों के साथ थे। उनका व्यक्तित्व बहुआयामी था। उन्होंने जो कष्ट सहे, वे किसी को भी विचलित कर सकते थे, पर बाबासाहेब इसके बाद भी सदैव देश और समाज के साथ रहे।
—अश्वनी जांगड़ा, रोहतक (हरियाणा)

 बाबासाहेब पर केन्द्रित विशेषांक फिर से उनके बारे में देश के लोगों की समझ में बढ़ाने के लिए सही सिद्ध होगा। राष्ट्र निर्माण ही बाबासाहेब का एकमात्र उद्देश्य था। उन्होंने दलित, शोषित,  वंचित समाज के उत्थान में अपना सर्वस्व लगाया, वहीं संविधान के माध्यम से सर्वोपयोगी, सर्वसमावेशी, ऐसे प्रावधान किए जिससे भारत आज समग्र दुनिया के सफलतम लोकतंत्र के रूप में स्थापित है। पर कुछ स्वार्थी तत्वों ने इतने महान व्यक्तित्व को क्षुद्र राजनीति में कैद करके उनकी छवि को अपने तरीके से प्रेषित किया और ये आज भी उनके नाम को गलत ढ़ंग से परिभाषित कर रहे हैं।
—विजय कुमार सिंह, गोविंदपुरी (नई दिल्ली)

 समरसता के शिल्पकार डॉ. आंबेडकर की 125वीं जयंती के उपलक्ष्य में पाञ्चजन्य ने जाने-माने लेखकों और चिंतकों के सहयोग से डॉ. साहेब के व्यक्तित्व व कृतित्व पर एक बार फिर प्रकाश डाला है। उन लोगों को जो बाबासाहेब को एक बंधन में बांधकर दूसरी जातियों के खिलाफ दिखाते हैं, इस अंक को जरूर पढ़ना चाहिए। डॉ. साहेब कुरीतियों और गलत कार्यों के खिलाफ थे। उनका किसी से व्यक्तिगत द्वेष नहीं था। वे सिर्फ समानता के पक्षधर थे।
—सुलोचना वर्मा, मेल से

आरक्षण की बात को लेकर कुछ लोग बाबासाहेब की कटु आलोचना करते हैं, लेकिन उन्होंने आरक्षण के लिए एक समय सीमा तय की थी। पर हमारे नेताओं ने आरक्षण प्रणाली को वोट बैंक के हथियार के रूप में ले लिया। वे चुनाव आते ही आरक्षण का जुमला उठाते हैं और बाबासाहेब की याद दिलाकर वोट बटोरते हैं। पर डॉ. आंबेडकर ऐसा कभी नहीं चाहते थे। आज जिस प्रकार राजनीतिक दल आरक्षण के नाम पर समाज को लड़ाने का काम कर रहे हैं, वे निंदनीय है।
—अनिल पुरोहित, देहरादून (उत्तराखंड)

 डॉ. आंबेडकर सशक्त, समृद्ध व संगठित राष्ट्र चाहते थे। वे किसी के विरोधी नहीं थे और न ही यहां के रीति-रिवाजों या सनातन परंपरा के विरुद्ध थे। उनकी सनातन धर्म में आस्था थी। वे हिन्दू धर्म को मानते थे। हां, जो कुछ रूढि़यां थीं, उनका उन्होंने खुलकर विरोध किया और करना भी चाहिए। आज तक आंबेडकर के बारे में कुछ कथित लोगों द्वारा सदैव उनका नाम लेकर दिग्भ्रमित ही किया गया है। यहां तक कि सवर्णों के विरुद्ध भड़काया गया है, जबकि  उनकी ऐसी कभी कोई मानसिकता ही नहीं थी।
—बी.एल.सचदेवा, आईएनए बाजार(नई दिल्ली)

बाबासाहेब का सारा जीवन विवादों से भरा रहा। इसलिए बिना विवाद के उन्हें समझ पाना या ग्रहण कर पाना बहुत मुश्किल है। डॉ. आंबेडकर को बिना पढ़े या कुछ लोगों द्वारा उनकी छवि बताने से उन्हें समझ पाना बिल्कुल संभव नहीं है। उनका व्यक्तित्व अत्यंत विशाल और महान है। उसे सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक एवं राजनैतिक सीमाओं में नहीं बांधा         जा सकता।
                   —शशांक खन्ना, उज्जैन (म.प्र.)
ङ्म    मत परिवर्तन के समय भी बाबासाहेब ने अपनी महान राष्ट्रभक्ति और स्वदेश प्रेम का परिचय दिया था। उन्होंने स्पष्ट कहा था कि मैं किसी विदेशी मत-पंथ को ग्रहण नहीं करूंगा, जिससे मेरी या मेरे समाज की राष्ट्रभक्ति पर संदेह किया जाए और हमें अपनी ही मातृभूमि पर विदेशी माना जाए। यह भारतभूमि हमारी और हमारे महापुरुषों की जन्मभूमि है। हिन्दू धर्म को ज्यादा ठेस न पहुंचे इसलिए मैं बौद्ध मत को स्वीकार कर रहा हूं क्योंकि यह मत हिन्दू धर्म का सहोदर है। लगातार जलालत और तिरस्कार सहने के बाद भी कोई अपने देश और समाज के प्रति इतना प्रेम रखे, तो  सिर स्वयं उसके सामने नतमस्तक हो  जाता  है। 
  सवर्ण जाति के लोगों के बारे में तो क्या कहूं, दलित और वंचित जातियों के अधिकांश लोग भी बाबासाहेब के विशाल व्यक्तित्व से पूरी तरह परिचित नहीं हैं। इनमें अधिकतर वे लोग हैं जो डॉ. आंबेडकर की मानसिकता 'शिक्षित बनो, संघर्ष करो और संगठित रहो' को ही उनका संपूर्ण ज्ञान समझ बैठे हैं। जहां भी देखो ये लोग सभा, समारोह और जयंती आदि के अवसरों पर बस इन तीन बातों के अलावा एक शब्द नहीं बोल पाते। डॉ. आंबेडकर को सीमित राजनीतिक दृष्टि से नहीं देखा जा सकता। वे महान व्यक्ति और मानवतावादी विचारक थे और राष्ट्र को विश्वगुरु बनते देखना चाहते थे।
—पंकज कुमार, मेल से

देश के खिलाफ कुत्सित षड्यंत्र
रपट 'श्रीनगर में अलगाववादी षड्यंत्र (17 अप्रैल, 2016)' से एक बात स्पष्ट है कि एनआईटी श्रीनगर में हुए विवाद को कश्मीरी और गैर कश्मीरी का मुद्दा बनाकर अलगाववादी अपना हित साधना चाहते थे।  केन्द्र में जब भी राष्ट्रवादी सरकार आती है, इनके द्वारा इस प्रकार के षड्यंत्र रचकर देश का माहौल खराब करने की कोशिश की जाती रही है। पिछले कुछ समय से देश देख रहा है कि किस प्रकार वामपंथी और अलगाववादी ताकतों द्वारा देश के कुछ विश्वविद्यालयों में विद्यार्थियों को भड़काकर देश के खिलाफ माहौल बनाया जा रहा है। पर इनके षड्यंत्र कामयाब नहीं होने वाले, चाहे वे कितना ही प्रयास क्यों न कर लें।
—अतुल कटारिया, रोहतक(हरियाणा)

 वंचित तथा शोषित वर्ग को अधिकार दिलाने की बात करने वाले वामपंथी अब खुलकर देश के टुकड़े करने की बात करने लगे हैं। यह किसी से भी छिपा नहीं है कि इन वामपंथियों और इनकी विचारधारा ने कभी भी देश की एकता व अखंडता का समर्थन नहीं किया। ये एक तरीके से देश के अंदर रहकर ही देश के दुश्मन हैं। आज इनके द्वारा जो षड्यंत्र रचा जा रहा है, वह बेहद खतरनाक है। लेकिन केन्द्र में नरेन्द्र मोदी की सरकार बनने के बाद से भारत में लाल गलियारे का सपना संजोये माओ के ये मानसपुत्र अपनी सत्ता व विचारधारा खिसकने से बेचैन हैं। इसलिए वे इस प्रकार की घटनाओं का सहारा लेकर अपनी वैतरणी पार लगाना चाहते हैं।
—रमेश कुमार मिश्र, अम्बेडकर नगर (उ.प्र.)

  एक तरफ करोड़ों लोग भारतमाता की जय-जयकार करते हैं वहीं देश के अंदर ही कुछ लोग धडल्ले से देश तोड़ने की बात करते हैं। श्रीनगर में जिस प्रकार की घटना घटी, उससे हर देशवासी को दु:ख हुआ होगा। दुर्भाग्य से कुछ लोग हमारे ही देश का अन्न-जल ग्रहण करते हैं, यहां रहते हैं, यहां की आबोहवा में सांस लेते हैं, पर गुणगान पाकिस्तान का करते हैं। ये तथाकथित स्वार्थी तत्व पाकिस्तान पोषित उग्रवादियों के हाथ का खिलौना बन जान-बूझकर घाटी में अशांति फैला रहे हैं? असल में ऐसे लोग देश के दुश्मन हैं और इनके खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।
—हरेन्द्र प्रसाद साहा, कटिहार (बिहार)

 

सेकुलर साजिश
प्रत्येक भारतवासी को भारतमाता की जय बोलनी चाहिए, इसे लेकर सेकुलर खेमे में जगह-जगह भ्रांतियां फैलाई जा रही हैं और दुष्प्रचार किया जा रहा है। कहा जा रहा है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा इस तरह से सभी मजहब के लोगों पर अपनी संस्कृति थोपना चाहते हैं। यानी एक जैसा रहन-सहन, एक जैसा खान-पान, एक जैसी सोच और एक ही संस्कृति। लेकिन इतने के बाद भी कुछ लोगों को लगता है कि भारतमाता की जय बोलना हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं है। जहां तक संस्कृति का सवाल है तो भारतीयों की संस्कृति एक है, हां पूजा पद्धति भिन्न-भिन्न हो सकती है। हमारे पूर्वज एक हैं। यदि राम, कृष्ण, शंकर, गौतम, शिवाजी, विवेकानंद की जगह, गजनवी, गोरी और बाबर जैसे विदेशी आक्रान्ता इनके महापुरुष हैं तो फिर वे राष्ट्र के नागरिक नहीं हो सकते? रहा सवाल अन्य विभिन्नताओं का तो न तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और न भाजपा ने ही कभी यह कहा कि हम विभिन्नताओं के खिलाफ हैं। यहां तो अनेकता में एकता की बात कही जाती है। यानी खान-पान, रहन-सहन, भाषा, वेशभूषा, मजहब भले भिन्न हों पर मन सबका एक होना चाहिए। संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरुजी कहते थे कि राष्ट्र के लिए पहली शर्त यह है कि सभी वगार्ें के लोग आपसी द्वेष को भूलकर मातृभूमि का श्रद्धापूर्वक गायन करें।
चाहे 'वंदेमातरम्' का विरोध हो या 'भारतमाता की जय' का, यह अलगाववादी भावना है,। कुछ लोग देश में अशांति चाहते रहे हैं। निस्संदेह यह प्रवृत्ति वोट बैंक की राजनीति और मुसलमानों को राष्ट्र की मुख्यधारा से अलग रखने की सोची-समझी साजिश है।
—वीरेन्द्र सिंह परिहार, अर्जुन नगर, सीधी (म.प्र.)
कांग्रेस ध्वस्त
दो दिन में ही कर दिया, कांग्रेस को ध्वस्त
स्वामी के आरोप से, मैडम जी हैं पस्त।
मैडम जी हैं पस्त, किया किसने मुंह काला
मनमोहन शासन में ही तो हुआ घुटाला।
कह 'प्रशांत' साहस है तो सच सम्मुख लाओ
किसने खाए नोट, देश को साफ बताओ॥     —प्रशांत

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