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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राजग सरकार को दिल्ली की सत्ता संभाले दो साल पूरे हो गए हैं। यह वक्त है सरकार के वायदों, प्राथमिकताओं और देश को हर दिशा में आगे बढ़ाने वाले क्रियान्वयन का लेखा-जोखा लेने का। इस विशेष आयोजन में हमने प्रमुख मंत्रालयों/ विभागों के कामकाज पर बारीक दृष्टि डालते हुए एक विशद आकलन किया है। इसमें संदेह नहीं है कि सरकार बनने से पहले राजग ने देशवासियों से जो वायदे किये थे और जिन योजनाओं का खाका सामने रखा था, उसमें उसे पूरी नहीं तो काफी हद तक सफलता हासिल हुई है। अर्थव्यवस्था मजबूती की राह पर है तो विदेशों से संबंधों में गर्मजोशी आई है। खेत-खलिहान की चिंता हुई है तो जवानों को सुसज्ज करने के प्रयास भी जारी हैं
-अरुण श्रीवास्तव-
दी सरकार की दूसरी वर्षगांठ के बाद प्रचार के मैदान में सरकार और विपक्ष ने बांहें चढ़ा ली हैं। राजग सरकार के मंत्री और सांसद अपने संसदीय क्षेत्रों के साथ पूरे देश की जनता को सरकार की उपलब्धियां बताएंगे तो वहीं मुख्य विपक्षी पार्टी के साथ संपूर्ण विपक्ष अपने समर्थक वोटरों के सामने सरकार की खामियां गिनाएगा। दोनों पक्ष उपलब्धियों और खामियों के साथ ही जनता को यह भी बताएंगे कि कौन उनका सबसे बड़ा हितैषी है।
परंतु इन उपलब्धियों और कमियों की फेहरिस्तों के बीच दरख्तों से झांकता आम आदमी यह जानना चाहता है कि जिस मोदी सरकार को उसने दो साल पूर्व पूरे विश्वास के साथ 'रायसीना हिल्स' की सत्ता की चाभी सौंपी थी, आखिर वह किस हद तक उसकी बेहतरी के लिए प्रगति की बुनियाद को ईंट दर ईंट जमा पा रही है! वह जानना चाहता है कि जिस अच्छे दिन के स्वप्न को हर रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने युवाओं और आम लोंगों के जेहन में उकेरा था, वह वास्तव में हकीकत की जमीन पर उतर पाएगा या फिर स्वप्निल आकाश की अनंत ऊंचाइयों में गुम होकर रह जाएगा।
वैश्विक अर्थव्यवस्था की वर्तमान दशा में भारतीय अर्थव्यवस्था भी तेज रफ्तार से डगमगाई है। उसकी प्रगति दर में कमी दर्ज की गई है, जिसका सीधा प्रभाव अर्थव्यस्था से जुड़े सभी क्षेत्रों पर पड़ना लाजिमी है। ऊपर से 2014 में सत्ता में आने के बाद से मानसून की बेरुखी ने भी सरकार का साथ नहीं दिया। सबसे महत्वपूर्ण राज्यसभा में नंबरों के खेल में मोदी सरकार का पिछड़ना उसके सुधारवादी वायदों में एक बड़ी रुकावट बना हुआ है। देखना यह होगा कि बंधे हाथों से केंद्र की मोदी सरकार जितना कुछ कर सकती है, उसे उसने ईमानदारी से किया अथवा नहीं?
राजनीतिक बिसात में केंद्र के बाद राज्यों में भी हाशिए पर पहुंच रहीं विपक्षी पार्टियां अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर में आई मंदी और उसके कारण उससे जुड़े क्षेत्रों में आ रही कमियों को मोदी सरकार के खिलाफ अपने आक्रमण का मुख्य हथियार बना रही हैं।
राज्यसभा में कांग्रेस के उपनेता तथा पूर्व मंत्री आनंद शर्मा ने सरकार के दो वर्षों के कार्यकाल की आलोचना करते हुए पिछली 13 मई को कहा कि जब हम अर्थव्यवस्था की हालत, रोजगार को हुए नुकसान देखते हैं तो पाते हैं कि रोजगार नहीं पैदा हो रहे हैं और भारत में रोजगार गुम हो रहे हैं। स्वयं सरकार के आंकड़े बताते हैं कि उसने 35,000 रोजगार पैदा किए हैं, पर बड़ी संख्या में रोजगार खो गए हैं; इसके लिए अनुसंधान की आवश्यकता नहीं है। विनिर्माण क्षेत्र लगातार गिरावट पर है जबकि निर्यात पिछले 16-17 महीनों में कम हो रहा है। यही नहीं, विनिर्माण क्षेत्र में लाखों की संख्या में रोजगार खत्म हो रहे हैं।''
विरासत से समझिए कारण
पर इन आलोचनाओं को दरकिनार करते हुए भाजपा की नई दिल्ली संसदीय क्षेत्र की सांसद और प्रवक्ता मीनाक्षी लेखी उन परिस्थितियों का हवाला देती हैं जब राजग सरकार ने सत्ता संभाली थी। वे कहती हैं,''2014 में हमें विरासत में आशाविहीन सामाजिक-आर्थिक हालात और कुंडली मारे आर्थिक मंदी मिली थी। एक के बाद एक पिछली सरकारों ने घरेलू मांगों की पूर्ति के लिए आयात आधारित व्यवस्था को सहायता दी। इस प्रकार की नीतियां न केवल हमारे विदेशी मुद्रा भंडार में कमी करती हंै बल्कि विनिर्माण तथा खेती कायार्ें को विदेश ले जाती हैं। जब हम कम आयात करते हैं तब घरेलू आर्थिक गतिविधियां नए रोजगारों तथा व्यापारिक अवसरों में उचित हिस्सेदारी पाती हैं। भ्रष्टाचार मुक्त, दक्ष और विकासपरक कार्यपालिका के लिए शासन व्यवस्था में 'मेक ओवर' की आवश्यकता है, जिसके लिए जाहिर है, कुछ समय चाहिए होता है। सुधार अपेक्षाकृत धीमी लेकिन प्रभावकारी प्रक्रिया है जिसमें सभी हिस्सेदार कौशल निर्माण, पूंजी तथा नियामक प्रक्रिया के ढांचे को बनाने में भागीदारी करते हैं और जिससे रोजगार तथा व्यापार सृजित होता है, जो आर्थिक समृद्धि लाता है।'' लेखी जोर देकर कहती हैं, ''डिमांड, डेमोक्रेसी और डेमोग्राफी के तीन 'डी' भारत का समर्थन कर रहे हैं।''
वित मंत्री अरुण जेटली ने भी अर्थव्यवस्था की वर्तमान अवस्था के संदर्भ में उठाए गए सवालों का जवाब वैश्विक परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में दिया है। हालांकि उन्होंने ये बातें सीधे-सीधे मोदी सरकार के दो साल के अवसर पर तो नहीं कही हैं। उन्होंने लोकसभा में बजट सत्र के दौरान वित्त बिल 2016 पेश करने के बाद विपक्षी सदस्यों के सवालों का जवाब देते हुए कहा,''आज भी पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था चिंताजनक बनी हुई है। पहले अंदाजा था कि विश्व (अर्थव्यवस्था) 3़ 4 प्रतिशत दर से बढ़ेगी और अब 3़1 प्रतिशत है, हम ऐसा मानते हैं कि शायद इससे भी कम हो जाए। एशियाई देशों की अर्थव्यवस्था बाकी विश्व की तुलना में थोड़ी बेहतर बनी हुई है क्योंकि इसमें चीन और भारत के योगदान की वजह से औसत थोड़ी बढ़ती है। इसकी भी अपेक्षा थी कि यह (एशियाई अर्थव्यवस्था) 5़9 प्रतिशत पर बढ़ेगी, अब 5़ 7 प्रतिशत का अंदाजा है। इस 5़7 प्रतिशत में चीन की प्रगति, इस वर्ष 6़5 प्रतिशत से थोड़ा आगे, पहली तिमाही में उनका योगदान 6.7 प्रतिशत रहा। भारत का पिछले वर्ष का योगदान 7़ 6 प्रतिशत था।''
क्या है मंदी का कारण
वित्त मंत्री ने लोकसभा में उत्तर देते हुए कहा, ''विश्व में गंभीर स्थिति इसलिए भी है कि अभी तक पूरे विश्व में कोई यह अंदाजा नहीं लगा पा रहा है कि विश्व की मंदी की स्थिति कितनी लंबी चलेगी और किस दिशा में चलेगी। तेल की कीमतें, उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतें कब तक इस स्तर पर रहेंगी, इसका भी अंदाजा नहीं है। इतिहास में पहले ऐसा कभी नहीं हुआ, इसमें एक बात का गर्व होता है कि दो वर्ष लगातार 2014-15 में 7़2 प्रतिशत और 2015-16 में अंदाजा 7़ 6 प्रतिशत का है।'' वित्त मंत्री ने देश की अर्थव्यवस्था का जिक्र करते हुए कहा,''भारत विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है। विश्व की तुलना में हम सबसे आगे हैं। लेकिन हम स्वयं मानते हैं कि हमारी क्षमता इससे भी ज्यादा तेज विकास करने की है। इसमें कई ऐसे कारण हैं जिनका असर पड़ सकता है। पिछले दो साल क्रमश: 7़ 2 और 7.6 प्रतिशत विकास हुआ, इसमें विश्व की अर्थव्यवस्था अपने आप में एक रुकावट थी।''
निर्यात में कमी, रोजगार में कम अवसरों के सृजन के कारणों की व्याख्या करते हुए जेटली ने कहा, ''विश्व में वातावरण हमारे विरोध में था। पीछे से हमारी सहायता के लिए कुछ नहीं था, जिसकी वजह से हमारा निर्यात कमजोर रहा।'' वे आगे कहते हैं,''विश्व का व्यापार अपने आप में चार-पांच प्रतिशत तक सिमट चुका है। इसके साथ-साथ दोनों वर्ष बरसात की कमी रही। जब बरसात की कमी होती है तो केवल कृषि पर प्रभाव पड़े, ऐसा नहीं है, ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इससे इस देश में कम से कम 55 फीसदी लोगों की खरीदारी करने की क्षमता पर असर पड़ता है।''
इस साल है आशा
मौसम विभाग की घोषणाओं का जिक्र करते हुए जेटली कहते हैं, ''इस वर्ष का जो अंदाजा है कि शायद बरसात की स्थिति पिछले दो वषार्ें की तुलना में बेहतर हो तो शायद इस वर्ष कृषि में सुधार आएगा और ग्रामीण आय में कुछ बढ़ोतरी होगी। आज जो हमारी अर्थव्यवस्था है वह बढ़े हुए सरकारी खर्च का नतीजा है और देश में अब तक का सबसे ज्यादा विदेशी निवेश आया है उसके कारण हैं। इसमें कहीं ग्रामीण मांग भी जुड़ जाए तो उसका अपने आप अर्थव्यवस्था को और तीव्रता से बढ़ाने में काफी सहयोग रहेगा।''
बैंकों के सुधार हैं महत्वपूर्ण
सांसद मीनाक्षी लेखी मानतीं हैं, ''शुरू की गई बहुत सी सुधार की पहल में बैंकिंग क्षेत्र के सुधार महत्वपूर्ण हैं। कुछ अपवादों के साथ बैंकिंग क्षेत्र 'क्रोनी कैपिटलिस्टों' और गैर राष्ट्रवादी ताकतों के लिए एक लूट का साधन है। किताबों में 10 लाख करोड़ रुपयों से अधिक का 'नॉन परफार्मिंग ऐसेट और बैड लोन' है। ऋण केवल कुछ चुनिंदा लोगों की पहुंच तक सीमित रहा है। स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार मोदी सरकार के काल में बैंकों को उनके कृत्यों के लिए जिम्मेवार माना जा रहा है। जान बूझकर कर्ज न वापस करने वाले 'डिफाल्टर' आज भागे हुए हैं। करदाताओं के धन का बेहतर उपयोग और ऋण लेने की प्रक्रिया को 'बैंकरप्ट्सी बिल' ने मजबूत किया है। इतिहास में कभी भी एक साथ 15 करोड़ बैंक खाते नहीं खोले गए। सरकारी सब्सिडी को लोगों के खाते में सीधे पहुंचाने का काम भी बैंकों के माध्यम से हो रहा है।'' जेटली भी इस तथ्य को स्वीकारते हैं। संसद में दिए गए उत्तर में वे कहते हैं, ''बैंकों की अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ी जिम्मेवारी होती है क्योंकि देश के विकास के लिए पूरी अर्थव्यवस्था का सहयोग बैंकों के माध्यम से होता है। बैंकों की देनदारी विकास के लिए आवश्यक होती है। बैंकों को विकास को समर्थन देना होता है। बैकों की कमजोर की स्थिति निश्चित रूप से चिंता का विषय है और सरकार का दृढ़ संकल्प है कि बैंकों को इस परिस्थिति से बाहर निकालना है और उसके लिए सरकार पूर्ण रूप से बैंकों का समर्थन करेगी।''
प्रशंसा के साथ कूटनीति पर प्रश्नचिन्ह
उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में डिग्री कॉलेज में सहायक प्रोफेसर रामानुज सिंह मोदी सरकार के दो साल की उपलब्धियों पर अपनी राय व्यक्त करते हुए कहते हैं, ''इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि केंद्रीय सरकार के कार्यकाल में अर्थव्यवस्था की सेहत में सुधार आया है। लेकिन नौकरियों के मोर्चे पर निराशा मिली है। महंगाई की मार मे कमी आई है और कुछ मामलों में आम लोगों की जेब को राहत मिली है।''
बेशक सिंह मानते हैं कि मोदी सरकार विदेश नीति के मोर्चे पर कुछ पिछड़ती नजर आती है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और महासचिव शकील अहमद भी मानते हैं कि अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के मामले में मोदी सरकार की नीति स्पष्ट नहीं है। वे खुले रूप से अपने विचारों को रखते हुए पाकिस्तान और चीन के मामले में भारतीय नीति की तीखी आलोचना करते हैं।
हालांकि दुनियाभर में रहने वाले भारतीयों का मानना है कि विदेशी नीति के मामले में भारत की छवि पहले से बहुत बेहतर हुई है।
विदेशी कूटनीति के मोर्चे से दूर अगर देश के आर्थिक मोर्चे की बात करें तो सरकार का 'मेक इन इंडिया' कार्यक्रम नए विदेशी निवेश को आकर्षित करने तथा रोजगार के सृजन के लिए अच्छी पहल माना जा रहा है। लेखी इस कार्यक्रम के बारे में कहती हैं,''यह कार्यक्रम भारत को वैश्विक विनिर्माण पावरहाउस में तब्दील कर देगा।'' गौरतलब है कि सरकार ने इस कार्यक्रम के सफल क्रियान्वयन के लिए बहुत कर छूट तथा दूसरी प्रकार की रियायतें प्रदान की है।
कृषि क्षेत्र
दो साल पूरे होने के मौके पर अगर कृषि क्षेत्र में हुई पहल और सुधार की चर्चा न की जाए तो सही नहीं होगा। कृषि बीमा योजना तथा मंडियों में किसानों के लिए शुरू की गई ई-नीलामी की योजना उनके जीवन में आमूलचूल परिवर्तन लाने के लिए महत्वपूर्ण पहल साबित हो सकती है। नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगडि़या इस बात को स्वीकार करते हुए कहते हैं, ''ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग अस्सी प्रतिशत जनता के निवास करने के कारण सरकार ने इस क्षेत्र को सबसे अधिक प्रमुखता प्रदान करके अच्छा किया है।'' जानकार भी इस तथ्य को मानते हैं। नाम न छापने की शर्त पर एक सूत्र कहते हैं, ''ऐसा नहीं है कि कृषि बीमा योजना अथवा मंडियों में किसानों को उत्पाद बेचने की व्यवस्था संप्रग के शासन काल में नहीं थी। परंतु मोदी सरकार ने उस समय की योजनाओं की खामियों को सुधार कर योजनाओं को फिर से लागू किया है। हालांकि अभी इन योजनाओं को पूरी तरह से जमीनी हकीकत में लागू होना बाकी है फिर भी इन्हें अच्छी पहल माना जा सकता है।''
अंत में मैट्रो की एक यात्रा के दौरान चार-पांच यात्रियों के एक समूह की आपसी वार्ता का जिक्र करना चाहूंगा जिसे आज के भारतीयों की मानसिकता का चित्रण कहा जाए तो गलत नहीं होगा। यह समूह दिल्ली सरकार और केंद्रीय सरकार की कार्यशैली पर बहस कर रहा था जिसे सुन रहे एक बुजुर्ग ने टिप्पणी की, ''मोदी की नीतियां लंबे समय को ध्यान में रखकर बनाई और लागू की जा रही हैं। शुरुआत में हो सकता है कि लोगों को लगे कि केंद्र सरकार का कोई काम दिखाई नहीं पड़ रहा है पर एक बात तय है कि लंबे समय में इसका परिणाम आम आदमी के लिए अच्छा रहेगा।''
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