महिला अधिकारों पर क्यों चुप मुल्ला-मौलवी?1 मई, 2016
May 9, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

महिला अधिकारों पर क्यों चुप मुल्ला-मौलवी?1 मई, 2016

by
May 23, 2016, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 23 May 2016 12:31:24

 

आवरण कथा 'लड़ाई हक की' से स्पष्ट होता है कि मुस्लिम हमेशा में महिलाएं सदैव से  गुलाम रही हैं। उन्हें सदैव भोग-विलास का साधन ही माना गया, यह कहने में कोई संशय नहीं है। यह स्थिति पहले भी थी और आज 21वीं सदी में भी है। तमाम अत्याचारों को सहन करते-करते वे थक गई हैं। ऐसे में उनका विरोध करना और अपने हक के लिए लड़ना जायज है। मुल्ला-मौलवी अगर इनकी दयनीय स्थिति पर ध्यान देंगे तभी इन महिलाओं की हक की लड़ाई हकीकत में बदल सकती है अन्यथा यह दिवास्वप्न ही रह जाएगा, मुल्ला-मौलवियों का मजहबी ताना-बाना चलता रहेगा और मुस्लिम महिलाएं सिर्फ बच्चे पैदा करने की मशीन बनकर रह जायेंगी।
  —उमेदुलाल 'उमंग', पटूड़ी, टिहरी गढ़वाल (उत्तराखंड)

ङ्म आज चहुंओर महिलाओं को समान अधिकार देने की बात हो रही है। महिला सशक्तिकरण दिवस भी बड़े जोर-शोर से मनाया जाता है। लेकिन अभी भी इस्लाम में महिलाओं के साथ बड़े दोयम दर्जे का व्यवहार किया जा रहा है। हालत यह है कि बस सिर्फ तीन बार तलाक बोलकर ही आप शादी तोड़ सकते हैं, जबकि अन्य मत-पंथों में ऐसा नहीं है। चार-चार शादियां आज के समय कहां जायज हैं? सरकार और सर्वोच्च न्यायालय को मुस्लिम पर्सनल लॉ में बदलाव करवाना ही होगा। तभी इस मजहब में महिलाओं की हालत में कुछ परिवर्तन हो सकता है।
—हरीशचन्द्र धानुक, लखनऊ (उ.प्र.)

ङ्म मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों, समानता और स्वतंत्रता को लेकर समाज में जागरूकता है, किन्तु कट्टरपंथ और पूर्वाग्रहों के कारण ऐसा संभव नहीं हो पा रहा है। 1985 में शाहबानो प्रकरण में राजीव गांधी सरकार ने संविधान संशोधन कर न्यायालय का फैसला बदलकर न केवल कट्टरपंथ को मजबूत किया बल्कि तुष्टीकरण की नीति को भी पोषित किया। शाहबानो से लेकर शायराबानो तक की राजनीति ने फिर से एक बार सिद्ध किया है कि अब समाज में परिवर्तन की जरूरत है। दुनिया के अनेक मुस्लिम देश आज महिलाओं के अधिकारों की वकालत कर रहे हैं। यह बिल्कुल सत्य है कि तहजीब, तालीम और तरक्की से ही बेहतर समाज का निर्माण होता है।
—मनोहर मंजुल, प.निमाड़ (म.प्र.)

ङ्म     इस्लाम में समय-समय पर मौलवियों द्वारा फतवे जारी किये जाते रहे हैं। मौलवी उसके माध्यम से ही समाज पर अपनी राय थोपते हैं। यहां तक कि ये लोग नितांत निजी विषयों पर भी हुक्मनुमा राय जारी करते रहते हैं। लेकिन कभी भी इन फतवाधारियों की ओर से महिलाओं के अधिकारों को लेकर कोई फतवा नहीं आया। क्या महिलाओं के ऊपर इस्लाम में जो अत्याचार हो रहे हैं, वे उन्हें दिखाई नहीं देते? महिलाओं के अधिकारों की बात आते ही इनका मुंह सिल क्यों जाता है? क्या ऐसे में इनकी आलोचना नहीं होनी चाहिए? आज सभी मत-पंथों में महिलाओं को पूर्ण अधिकार दिये जा रहे हैं। पर इस्लाम में महिलाओं को अभी भी समान अधिकार नहीं मिले हैं।
—अरुण मित्र, रामनगर (दिल्ली)

इनसे लें प्रेरणा
रपट 'खूब फैली काम की चमक (3 अप्रैल, 2016)' प्रेरणादायक है। लघु उद्योग भारती ने भारत के छोटे-छोटे उद्योगों को जोड़े रखा है। अभी इस क्षेत्र में बहुत प्रगति की जरूरत है। लिहाजा गांवों में छोटे-छोटे उद्योग स्थापित किये जाएं। आईआईटी संस्थानों में इससे जुड़ी शिक्षा दी जाए ताकि लोग रोजगारपरक ज्ञान प्राप्त कर सकें। हालांकि केन्द्र सरकार इस क्षेत्र में काफी काम कर रही है। इसकी सराहना की जानीचाहिए।
    —श्याम माहेश्वरी, फरीदाबाद (हरियाणा)

नापाक गठजोड़
रपट 'मिलिये कश्मीर के मीडिया माफिया से (3 अप्रैल, 2016)' सेकुलर मीडिया के चेहरे से नकाब उठाती है। यह बिल्कुल सच बात है कि कश्मीर में मीडिया का रुख बेहद नकारात्मक रहता है। कुछ लालच और लोभ के कारण वे देशविरोधी खबरों को ऐसे परोसते हैं जैसे घाटी की पूरी जनता ही भारत विरोधी हो और सभी पाकिस्तान के पक्ष में हैं। वे उन खबरों को सदैव दबा देते हैं, जिनसे देश को कश्मीर की सचाई पता लगे। हर वर्ष बर्फ में सेना के जवान सैकड़ों कश्मीरी लोगों को अपनी जान पर खेलकर बचाते हैं। पर ये खबरें कश्मीरी मीडिया से गायब रहती हैं। असल में यह सब जान-बूझकर किया गया षड्यंत्र ही है। मीडिया और अलगाववादियों के बीच एक नापाक गठजोड़ है। देश को इस बात को समझना होगा।
—हरिओम जोशी, ईमेल से

ङ्म  जब से केन्द्र में भाजपा सरकार बनी है, तब से सेकुलर मीडिया देश को गुमराह करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। फिर चाहे वह जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय का मामला हो या फिर श्रीनगर एनआईटी का मामला। मीडिया के देशविरोधी छात्रों और उनकी वकालत करने वालों को इस तरीके से दिखाया जाता है जैसे वे देशभक्त हों और अपनी मांगों के लिए संघर्ष कर रहे हों। मीडिया से अपेक्षा होती है कि वह सच को देश के सामने लाए और जो देश के खिलाफ हैं, उन्हें बेनकाब करे। पर यहां तो उलटा ही दिखाई दे रहा है।  
                       —अनिमेष सक्सेना,मेल से
ङ्म  देश की एकता और अखंडता के लिए सतत चुनौती बना कश्मीर अब उस दौर में है, जहां उपचार के लिए कठोर कदम की जरूरत है। श्रीनगर में मीडिया ने जिस तरीके से हाल के दिनों में खबरों को परोसा  है, वह बेहद चिंताजनक है।
    —अशोक वर्मा, कोटा (राज.)

अद्भुत दृश्य
रपट 'नई सज्जा का सिंहस्थ (24 अप्रैल, 2016)' अच्छी लगी।  जो लोग सनातन धर्म पर कटाक्ष करते हैं और जाति-पांति को लेकर इसकी आलोचना करते हैं, उन्हें सिंहस्थ जरूर जाना चाहिए। यहां लाखों लोग बिना किसी  भेदभाव के एक साथ स्नान, भोजन और दर्शन कर रहे हैं। जो लोग मंदिरों में जाति पूछने को लेकर वितंडावाद  खड़ा करते हैं, उन्हें भी उज्जैन जाकर देखना चाहिए कि इसमें कितनी सत्यता है। असल में सेकुलर लोग झूठ के दम पर ही देश को भ्रमित करते आ रहे हैं ।
—राममोहन चन्द्रवंशी, हरदा (म.प्र.)

विराट विचार

आवरण कथा 'सोच भारत की (10 अप्रैल, 2016)' प्रेरणादायक है। पं.दीनदयाल उपाध्याय ने जिस सामाजिक समरसता और समन्वय की अवधारणा को जन्म दिया, वह आज भी न केवल प्रासंगिक है बल्कि देश और समाज की अनिवार्य आवश्यकता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण रहा कि तत्कालीन सत्ता ने पूर्वाग्रह के कारण पं. दीनदयाल जी की अवधारणा को स्वीकार नहीं किया। किसी भी समाज को आर्थिक समानता के साथ सामाजिक समानता की जरूरत होती है। जब वातावरण भेदभाव और दुराग्रहों से दूर होगा तब ही एक अच्छे समाज का निर्माण होगा। दीनदयाल जी के विचारों को मूर्त रूप न दे पाना न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है बल्कि शर्मनाक भी है।
—अखिलेश आनंद, द्वारका (नई दिल्ली)

ङ्म दीनदयाल जी ने वंचित और पिछड़े वर्ग को सम्मान दिलाने के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। राष्ट्रनिर्माण के लिए उनके द्वारा दिया गया एकात्म मानववाद का सिद्धांत आज बहुत ही       प्रासंगिक है। राष्ट्र निर्माण में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। वे ऐसे नींव के पत्थर थे जिन पर खड़ा यह राष्ट्र सदा आने वाली पीढि़यों को समरसता का संदेश देता रहेगा।
—कृष्ण वोहरा, सिरसा (हरियाणा)

ङ्म  दीनदयाल जी का सहज, सरल व्यक्तित्व, जो भी उनके संपर्क में आया, वह उनका ही होकर रह गया। वह व्यक्ति निश्चित ही भाग्यशाली था जो उनके सान्निध्य में रहा। उनके कार्य, उनके संंस्मरण, देश के प्रति उनकी दूरदर्शी सोच, गांवों के विकास के लिए उनके विचार वास्तव में दिव्य थे। वे देश के सबसे छोटे व्यक्ति का सबसे पहले विकास होते देखना चाहते थे। देश ऐसी महान विभूति के प्रति सदा ऋणी रहेगा। आज उनके द्वारा दिये गए सिद्धांत को लागू करने की जरूरत है।
—सुंदर लाल नामदेव, सतना(म.प्र.)

ङ्म  भारतीय संस्कृति व समाजनीति के पुरोधा पं.दीनदयाल जी के एकात्मवाद पर विभिन्न लेखकों के विचार उत्कृष्ट लगे। वास्तव में भौतिक दृष्टि से समाज के अंतिम व्यक्ति तक मूलभूत जरूरतों को पहुंचाना उनका लक्ष्य था। उन्होंने इस धरा को जमीन नहीं बल्कि मां भारती के रूप में माना और अंतिम समय तक उसकी और सेवा            पूजा की ।
—गोकुल चन्द्र गोयल, सवाई माधोपुर (राज.)

आस्तीन के सांप
लेख 'कौन नहीं बोलना चाहता जय (3 अप्रैल, 2016)' अच्छा लगा। देश में जो लोग भारतमाता की जय का विरोध कर रहे हैं, उन्हें शर्म आनी चाहिए। क्या वे जिस देश में रहते हैं, जहां का खाते हैं, क्या उसी की जय कहने में उन्हें ऐतराज है? ऐसे में उनसे और क्या अपेक्षा की जा सकती है?
-अनूप कायस्थ, पटना (बिहार)

 

संस्कृति से जोड़ने वाली हो शिक्षा
पिछले दिनों हमारे देश के विश्वविद्यालयों में कई देशविरोधी घटनाएं घटीं, जो बहुत ही निंदनीय है। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर इसी देश के वासियों ने देशद्रोह के नारे लगाये, वह भी उस स्थान पर जिसे देश की सबसे बड़ी पाठशाला माना जाता है। कुछ लोग ऐसा कहते हैं कि अब यह मामला पुराना हो चुका है, तो इसे तूल देना ठीक नहीं है। पर इसे यूं ही नहीं भुलाया जा सकता। असल में इस घटना ने हमारे समूचे शिक्षातंत्र पर सवालिया निशान लगाया है। क्या शिक्षा के मंदिर में इस प्रकार की घटना की कोई कल्पना भी कर सकता है? शायद कोई भी देशप्रेमी इसे स्वीकार नहीं कर सकता। आज देश का साहित्य अपने-आपको कतिपय विमशोंर् में खड़ा पाता है। नारी की स्वतंत्र अभिव्यक्ति और दलित की स्वतंत्र अभिव्यक्ति के नाम पर हमारे विश्वविद्यालयों में क्या-क्या परोसा जा रहा है? समाज को आपस में लड़ाने के लिए झूठे कुतर्कों और छल-प्रपंचों का सहारा लेकर देश को बांटने की राजनीति इन विश्वविद्यालयों से की जा रही है। ऐसे में हमारी संस्कृति कहां सुरक्षित होगी? क्योंकि विश्वविद्यालय का कार्य होता है कि वह देश की परंपरा, संस्कृति व विकास में अपना अहम योगदान दे। पर ऐसा दिखाई नहीं दे रहा, जो देश के लिए खतरनाक है। जबकि विवि. के शोधार्थियों से आशा की जाती है कि वे यहां से ही निकलकर अपने ज्ञान का उपयोग देश के विकास में करेंगे, पर यहां तो उलटा दिखाई दे रहा है। इसलिए आज देश की संस्कृति और परंपरा की ओर फिर से लौटना होगा। विश्वविद्यालयों को इस बात पर जोर देना होगा। तभी इन संस्थानों से निकलने वाले विद्यार्थी देश के विकास में सहायक होंगे।
—जितेन्द्र कुमार, 22/26, नई अनाज मंडी, रोहतक (हरियाणा)  

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान द्वारा नागरिक इलाकों को निशाना बनाए जाने के बाद क्षतिग्रस्त दीवारें, टूटी खिड़कियां और ज़मीन पर पड़ा मलबा

पाकिस्तानी सेना ने बारामुला में की भारी गोलाबारी, उरी में एक महिला की मौत

बलूच लिबरेशन आर्मी के लड़ाके (फाइल चित्र)

पाकिस्तान में भड़का विद्रोह, पाकिस्तानी सेना पर कई हमले, बलूचिस्तान ने मांगी आजादी, कहा – भारत में हो बलूच दूतावास

“भय बिनु होइ न प्रीति “: पाकिस्तान की अब आएगी शामत, भारतीय सेना देगी बलपूर्वक जवाब, Video जारी

खेत हरे, खलिहान भरे

पाकिस्तान ने उरी में नागरिक कारों को बनाया निशाना

कायर पाकिस्तान ने नागरिकों को फिर बनाया निशाना, भारतीय सेना ने 50 ड्रोन मार गिराए

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ

पाकिस्तान बोल रहा केवल झूठ, खालिस्तानी समर्थन, युद्ध भड़काने वाला गाना रिलीज

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान द्वारा नागरिक इलाकों को निशाना बनाए जाने के बाद क्षतिग्रस्त दीवारें, टूटी खिड़कियां और ज़मीन पर पड़ा मलबा

पाकिस्तानी सेना ने बारामुला में की भारी गोलाबारी, उरी में एक महिला की मौत

बलूच लिबरेशन आर्मी के लड़ाके (फाइल चित्र)

पाकिस्तान में भड़का विद्रोह, पाकिस्तानी सेना पर कई हमले, बलूचिस्तान ने मांगी आजादी, कहा – भारत में हो बलूच दूतावास

“भय बिनु होइ न प्रीति “: पाकिस्तान की अब आएगी शामत, भारतीय सेना देगी बलपूर्वक जवाब, Video जारी

खेत हरे, खलिहान भरे

पाकिस्तान ने उरी में नागरिक कारों को बनाया निशाना

कायर पाकिस्तान ने नागरिकों को फिर बनाया निशाना, भारतीय सेना ने 50 ड्रोन मार गिराए

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ

पाकिस्तान बोल रहा केवल झूठ, खालिस्तानी समर्थन, युद्ध भड़काने वाला गाना रिलीज

देशभर के सभी एयरपोर्ट पर हाई अलर्ट : सभी यात्रियों की होगी अतिरिक्त जांच, विज़िटर बैन और ट्रैवल एडवाइजरी जारी

‘आतंकी समूहों पर ठोस कार्रवाई करे इस्लामाबाद’ : अमेरिका

भारत के लिए ऑपरेशन सिंदूर की गति बनाए रखना आवश्यक

पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ

भारत को लगातार उकसा रहा पाकिस्तान, आसिफ ख्वाजा ने फिर दी युद्ध की धमकी, भारत शांतिपूर्वक दे रहा जवाब

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies