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ये दोनों गांव मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिलान्तर्गत करेली तहसील के अंदर आते हैं। लगभग बीस वर्ष पहले दोनों गांव देश के अन्य पिछड़े गांवों की तरह ही थे। लेकिन ग्रामीणों के सामूहिक प्रयासों तथा सरकारी योजनाओं को पारदर्शितापूर्ण तरीके से लागू करने के कारण दोनों गांव आज ग्रामीण विकास के लिए मिसाल बन चुके हैं।
मोहद की आबादी 4,500 है। साक्षरता दर 100 फीसदी है। गांव के अधिकांश लोग संस्कृत बोलते हैं। गांव में 42 तरह के लघु और कुटीर उद्योग हैं। गांव की सारी कृषि भूमि सिंचित है। अधिकतर किसान रासायनिक खाद और कीटनाशकों को त्यागकर जैविक खेती को अपना रहे हैं। अब कोई भी परिवार खाना पकाने के लिए लकड़ी नहीं जलाता। सभी घरों में बायो गैस प्लांट अथवा एलपीजी कनेक्शन हैं। सभी घरों के आंगन में तुलसी का पौधा और पुष्प वाटिका हैं। सभी घरों में शौचालय हैं और गांव चोरी और हिंसा से मुक्त है। इसके अलावा सभी तरह के नशे यहां तक कि पान, बीड़ी, सिगरेट, गुटखा, शराब आदि से मुक्त है। गांव का कोई भी मामला पुलिस थाने या न्यायालय में लम्बित नहीं है। इस मौन क्रान्ति के प्रणेता थे स्वर्गीय सुरेन्द्र सिंह चौहान, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय ग्राम विकास प्रमुख भी थे। उन्होंने गांव की प्रतिभा गांव में, गांव का पानी गांव में और गांव का पैसा गांव में के सूत्र पर काम किया। गांव में कोई भी व्यक्ति गली में कूड़ा नहीं फेंकता और सभी परिवार अपने अपने घर के सामने सड़क की भी सफाई करते हैं। सरकारी अधिकारी नियमित रूप से इस गांव में विकास की इस अनोखी विधि का रहस्य जानने आते रहते हैं। एक दशक पहले स्वच्छता और गांव के प्रत्येक परिवार में शौचालय की सुविधा सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रपति ने गांव को सम्मानित किया था। गांव के बाहर एक बड़ा बोर्ड इस सूचना के साथ आने वालों का स्वागत करता है – 'पूर्णत: बाह्य शौचमुक्त गांव में आपका स्वागत है।'
यहां स्थानीय लोग सरकारी योजनाओं में अपनी सहभागिता अलग ही प्रकार से सुनिश्चित करते हैं। यह ऐसा गांव है जहां गांव के लोग अपने पास से उतना ही धन देते हैं जितना सरकार की तरफ से स्वीकृत होता है। इसीलिए सरकारी योजना के तहत जमीन पर जो काम होता है वह स्वीकृत धनराशि से कहीं अधिक होता है। करीब एक दशक पहले सामुदायिक भवन हेतु सरकार ने दो लाख रुपए आवंटित किये लेकिन ग्रामीणों ने इसमें अपनी तरफ से पैसा मिलकर खर्च किये पांच लाख रुपए। इसी प्रकार स्टॉप डैम बनाने के लिए पंचायत को मिले ढाई लाख रुपए लेकिन गांव वालों ने खर्च किये पांच लाख रुपए।
मानस सत्संग भवन के लिए मिले 1,़50,000 रुपए मगर गांव वालों ने खर्च किये पांच लाख से अधिक। इसी प्रकार माध्यमिक विद्यालय को उच्च विद्यालय बनाने के लिए मिले 1़ 96 लाख रुपए लेकिन खर्च हुए 3़ 5 लाख। जहां अपनी जेब से लोग इतना अंशदान देते हांें वहां भ्रष्टाचार की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती।
मोहद, नरसिंहपुर जिला, मध्य प्रदेश
स्थान: करेली तहसील से 6 किमी
जनसंख्या: 4,500
प्रयास: 100 प्रतिशत साक्षरता, 42 से अधिक लघु एवं कुटीर उद्योग, इंच-इंच कृषि भूमि सिंचित, अधिकांश किसान जैविक खेती करते हैं, सभी घरों में बायो गैस संयंत्र और शौचालय, यह गांव विवाद से मुक्त है, न्यायालय में एक भी मामला लंबित नहीं है।
बघुवार, नरसिंहपुर जिला, मध्य प्रदेश
स्थान: नरसिंहपुर से 16 किलोमीटर
जनसंख्या: 2,500
प्रयास: दस साल पहले सभी घरों में शौचालय का लक्ष्य पूरा किया। स्वच्छता के लिए राष्ट्रपति से सम्मानित, ग्रामीणों की सरकारी योजनाओं में 100 फीसदी भागीदारी। किसी भी न्यायालय में कोई भी मामला लंबित नहीं।
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