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नई दिल्ली : 11 मई को कांस्टीट्यूशन क्लब के स्पीकर हॉल में आदि शंकराचार्य के1,228 वेंं जन्मदिवस को दार्शनिक दिवस के रूप में मनाया गया। नवोदयम व फेथ फाउंडेशन द्वारा आयोजित इस समारोह में मुख्य अतिथि थे रा.स्व.संघ के सहसरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल। समारोह का उद्घाटन केन्द्रीय संस्कृति एवं पर्यटन राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. महेश चन्द्र शर्मा ने किया।
अपने वक्तव्य में डॉ. कृष्ण गोपाल ने कहा कि आदि शंकर के जन्मदिवस को मनाने का निर्णय स्वागतयोग्य कदम है। हमारी संस्कृति और दर्शन की जो शब्दावली है, जरूरी नहीं कि पश्चिम में उसका ठीक अनुवाद हो। पाश्चात्य विद्वान गहराई से विश्लेषण करते हैं, जगत को देखते हैं, भूत, वर्तमान, भविष्य में झांककर बाहर की दुनिया को देखते हैं फिर सिद्धांत बनाते हैं, ज्ञान देते हैं और लोगों को उसके अनुसार चलने की राय देते हैं। भारत का दार्शनिक बाहर की खबर देने के साथ अपने अन्दर देखकर एकात्म बोध को आत्मसात करता है। जरूरी नहीं कि वह विद्वान हो या उसने ग्रंथ ही पढ़े हों। स्वामी रामकृष्ण परमहंस किसी विश्वविद्यालय में नहीं गए थे लेकिन वे विश्व के बड़े दार्शनिक हैं। दार्शनिक वह है जो जिस चीज को देखता है, उसको व्यवहार में जीता है। आदि शंकर उसी परम्परा के महान दार्शनिक हैं। 8 वर्ष की आयु में संन्यास, 16 वर्ष की आयु में सम्पूर्ण शिक्षा, उसके बाद देशभ्रमण एक विलक्षण व्यक्तित्व से संपन्न हैं आदि शंकर-
चित्रं वटतरोरमूले वृद्ध शिष्य गुरोर्युवा।
गुरोस्तुमौन व्याख्यानं शिष्यस्तु छिन्नसंशय:।।
ज्ञान के लिए, शिक्षा के लिए बोलना आवश्यक नहीं, साधना बोलती है, अंदर का ज्ञान बोलता है। उस समय देश की महान वैदिक परम्परा पर संकट आ गया था। बुद्ध पराक्रमी व्यक्ति थे। उन्होंने अहिंसा, करुणा, प्रेम व अपरिग्रह के साथ चीवर व भिक्षा का आचरण सिखाया था जिस कारण राजा-महाराजा, युवक, व्यापारी सब उनके साथ चल पड़े थे। लेकिन बाद में बुद्ध के शांत होने पर हीनयान, महायान, पांचरात्र और पाशुपत जैसे मतों के बाद लोगों को लगा कि पुराना ही ठीक था। बुद्ध को उन्होंने विष्णु का अवतार माना। उस समय आदि शंकर ने देश को दिशा देने का काम किया। उन्होंने बताया कि आत्मा व परमात्मा एक ही हैं। उन्होंने कई प्रकार के शास्त्रों, ग्रंथों और स्तोत्रों की रचना की। गीता, ब्रह्मसूत्र और बारह उपनिषदों के भाष्य लिखे। पिछले 2000 वर्ष में लुप्त हो गई गीता को शंकराचार्य जन-जन के सामने लाए।
डॉ. कृष्ण गोपाल ने कहा कि शाश्वत सत्य के दार्शनिक आदि शंकराचार्य ने हजारों प्रकार की पूजा पद्धतियों के स्थान पर शिव, विष्णु, सूर्य, गणेश, शक्ति इन पांच की पूजा की बात की, उनके अनुसार यह पूजा भी साध्य को प्राप्त करने का माध्यम थी। उनके विचार में निराकार की यात्रा लम्बी है-
न मृत्योर्शंका न बधुर्नर्मित्र।
चिदानंद रूपं शिवोहं शिवोहं।।
आदि शंकर सबको साथ लेकर चलते हैं। उन्होंने एक बड़े दर्शन के साथ व्यावहारिक जीवन की शैली दी। वे उस समय के ऊहापोह से समाज को बाहर निकालकर लाए। जिन मंडन मिश्र को शास्त्रार्थ में पराजित किया, वे सुरेश्वराचार्य के रूप में उनके शिष्य बनकर एक पीठ के प्रमुख बन गए।
डॉ. महेशचन्द्र शर्मा ने कहा, यह 'फिलॉसफर डे' एक मील का पत्थर साबित होगा और आने वाली पीढि़यों के लिए यह शुभ संकेत है। हम धन एवं सम्पत्ति जमा करने की बात नहीं करते बल्कि अपनी घनी संस्कृति की बात करते हैं। यह संस्कृति हमारी मूल भावना का केन्द्र बिन्दु है। संत मां की अंतिम क्रिया नहीं कर सकता लेकिन ऐसा करके शंकराचार्य ने उस समय की प्रचलित रूढि़ को भी तोड़ा। आज भी पूरा विश्व भारत के दर्शन को खोजने में लगा है। हमारे युवाओं को चाहिए कि वे विश्व के किसी भी कोने में जाएं। उन्हें अपनी संस्कृति और परंपरा एवं भौगोलिक समृद्धि का ज्ञान रखना चाहिए।''
दिव्य ज्योति जागृति संस्थान से जुड़ी साध्वी जया भारती ने कहा कि सनातन धर्म का ज्ञान मनुष्य को साहस की ओर प्रेरित करता है। शंकराचार्य जी ने एक दशक को शताब्दी की तरह जिया। इंटरनेशनल हरिहर योगाश्रम के स्वामी संतोषानंद ने कहा कि शंकराचार्य ने हमें सेवा, साधना, सत्संग, स्वाध्याय व परमात्मा के प्रति समर्पण के पांच सूत्र हमें दिए।
रा.स्व.संघ के अ.भा. सहप्रचार प्रमुख श्री जे. नंदकुमार ने कहा कि शंकराचार्य एक साहसी ऋषि थे। उन्होंने सारे संसार के लिए आत्मदर्शन का श्रेष्ठ ज्ञान दिया। इस ज्ञान को हमें अपने आचरण में उतारकर भावी पीढि़यों तक पहुंचाना है।
इस अवसर पर 'कालड़ी से केदार' यात्रा पर एक वृत्तचित्र भी दिखाया गया। नवोदयम के अध्यक्ष डॉ. कैलाशनाथ पिल्लई ने स्वागत भाषण दिया और महामंत्री रामचंद्रन ने सबका आभार व्यक्त किया। फेथ फाउंडेशन के कर्नल अशोक केनी ने केन्द्र सरकार से शंकराचार्य के जन्मदिवस को बड़े स्तर पर दार्शनिक दिवस के रूप में मनाने का आग्रह किया और केदारनाथ में आपदा प्रभावितों के उचित पुनर्वास के साथ शंकराचार्य जी के मंदिर के जीर्णोद्धार का आग्रह किया। समारोह के प्रारंभ में वेद विद्यालय मंडोली गुरुकुल के वेदपाठी छात्रों ने मंत्रोच्चार के साथ पूजाविधि संपन्न की। संचालन श्री पंकज चतुर्वेदी ने किया। -सूर्य प्रकाश सेमवाल
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