नेहरू जी का कश्मीर-विभाजन संबंंधी प्रस्ताव राष्ट्रभक्ति शून्य
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नेहरू जी का कश्मीर-विभाजन संबंंधी प्रस्ताव राष्ट्रभक्ति शून्य

by
Apr 4, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 04 Apr 2016 11:44:47

पाञ्चजन्य के पन्नों से

पत्रकार-सम्मेलन में श्री उपाध्याय की घोषणा

(निज प्रतिनिधि द्वारा)

लखनऊ। ''प्रधानमंत्री द्वारा किए गए इस रहस्योद्घाटन के कारण कि उन्होंने एक बार युद्ध विराम-रेखा पर जम्मू-कश्मीर राज्य का विभाजन स्वीकार करने का प्रस्ताव पाकिस्तान के समक्ष रखा था, अत्यंत वेदना हुई है। उक्त प्रस्ताव न केवल देशभक्ति शून्य है वरन् कूटनीति के विरुद्ध भी है,'' ये शब्द भारतीय जनसंघ में महामंत्री श्री दीनदयाल उपाध्याय के स्थानीय कृष्णा होटल में आयोजित एक पत्रकार सम्मेलन में कहे। सम्मेलन में प्राय: सभी समाचार-पत्रों के प्रतिनिधि उपस्थित थे।

'लगान आधा हो' आंदोलन व जनसंघ

यह प्रश्न पूछे जाने पर कि अब तक जनसंघ ने किसानों पर लदे लगान के संबंध में आंदोलन क्यों नहीं किया, श्री उपाध्याय ने कहा, ''हमारी संस्था को केवल पांच वर्ष हुए हैं। इस छोटे से काल में हमारे समक्ष समय-समय पर अनेक समस्याएं उपस्थित होती रही हैं, जैसे, कश्मीर, गोआ, गोहत्या निषेध आदि। हमारी दृष्टि में कश्मीर, गोवा आदि प्रश्नों को उस समय नहीं टाला जा सकता था। यही कारण है कि इतने समय पश्चात् हम इस ओर कदम उठा पाए हैं।'

द्वितीय पंचवर्षीय योजना

एक पत्र-प्रतिनिधि द्वारा यह आशंका व्यक्त किए जाने पर कि लगान आधा करने के कारण जो क्षति होगी, क्या उसके कारण द्वितीय पंचवर्षीय योजना के मार्ग में बाधा उपस्थित नहीं होगी, जनसंघ के महामंत्री ने उत्तर दिया,'' प्रथम, हम इस प्रकार की योजनाओं के विरुद्ध हैं।

भारतीय जनसंघ सदैव से जम्मू-कश्मीर का भारत के साथ एकीकरण अंतिम तथा निर्णायक मानता रहा है और इसीलिए उसके भविष्य के संबंध में किसी प्रकार के जनमत-संग्रह का विरोध करता रहा है।

जनसंघ के नेतृत्व में हजारों किसानों का प्रदर्शन

मांगें पूरी न होने पर लखनऊ में किसान-सम्मेलन किया जाएगा

(निज प्रतिनिधि द्वारा)

लखनऊ। '10 मई को भारतीय जनसंघ के नेतृत्व में टेहरी गढ़़वाल, नैनीताल, अल्मोड़ा तथा लखनऊ को छोड़कर उत्तर प्रदेश के सभी जिला-स्थानों पर सहस्रों किसानों द्वारा 'लगान आधा हो' आंदोलन के सिलसिले में विशाल प्रदर्शन किए गए। इस अवसर पर जिलाधीशों की सेवा में स्मृति-पत्र भी भेंट किए गए, जिनमें किसानों की कठिनाइयों का वर्णन करते हुए प्रमुख रूप में 'लगान आधा हो,' दसगुना वापस हो' मांगें प्रस्तुत           की गईं।

जनसंघ के कार्यकर्ता महीनों से गांव-गांव घूमकर 10 मई के प्रदर्शन के लिए किसानों को तैयार कर रहे थे। इस दौरान में कार्यकर्ताओं को जहां किसानों का पूर्ण सहयोग प्राप्त हुआ, वहां कांग्रेस के तीव्र विरोध का सामना भी करना पड़ा। कांग्रेसियों ने स्थान-स्थान पर किसानों को भय, प्रलोभन तथा आतंक के द्वारा प्रदर्शन में भाग लेने से रोकना चाहा। अन्तिम दिवस अर्थात् 10 मई को तो कहीं- कहीं स्थिति यह भी आ गई कि कांग्रेसियों ने गुण्डों तथा पुलिस से सांठ-गांठ करके प्रदर्शनकारियों को रोकने का भरसक प्रयास किया। किन्तु सब प्रयास व्यर्थ रहे। गांव – गांव से जनसंघ के दीपकाङ्कित ध्वज हाथों में लेकर तथा सिरों पर केशरिया टोपियां धारण किए हुए 9 मई से ही किसानों के झुण्ड के झुण्ड जिला स्थानों की ओर चल पड़़े। किसी-किसी गांव से तो जिला स्थान 50-50, 60-60 मील दूर भी था, किन्तु फिर भी वे दोपहर की कड़ी धूप को झेलते हुए पैदल ही वहां पहुंचे।

प्रदर्शनकारियों में जहां युवकों ने भारी संख्या में भाग लिया, वहां वृद्धों और महिलाओं की संख्या भी कोई कम नहीं थी। अनेक महिलाओं को तो अपनी गोद में बच्चों को लेकर भी लम्बी-लम्बी यात्राएं करनी पड़ीं।

10 मई को सभी जिला स्थानों पर अपार जनसमूह उमड़ पड़ा। ठीक समय 'लगान आधा हो', 'दसगुना वापस हो', 'सिंचाई कर घटाया जाए', 'भारत माता की जय', 'जनसंघ अमर है' नारे लगाते हुए जुलूस जिलाधीश की कोठियों पर पहुंचे, जहां जिलाधीश की सेवा में स्मृतिपत्र भेंट किए गए। कहीं-कहीं स्मृतिपत्र भेंट करने के पश्चात जनसभा का आयोजन भी किया गया। कहीं-कहीं पर दफा 144 लगाकर प्रदर्शनों को रोकने का भी प्रयास किया गया। परन्तु प्रदर्शनकारी 144 के भय से रोके न जा सके। उन्होंने किंचित भी चिंता न करते हुए जुलूसों व सभाओं का आयोजन किया। इस अवसर पर श्री पीताम्बरदास एडवोकेट एम.एल.सी. व प्रधान उ.प्र. जनसंघ ने नगीना में; श्री नाना देशमुख, मंत्री उ.प्र. जनसंघ ने गोंड़ा में; श्री यादवेन्द्रदत्त जी दुबे, उपाध्यक्ष उत्तर-प्रदेश जनसंघ ने जौनपुर में एवं श्री शारदाभक्त सिंह,एम.एल.ए. ने हरदोई में प्रदर्शन का नेतृत्व किया।

दिशाबोध

एकात्म मानव दर्शन के सूत्र

भारतीय संस्कृति का जीवन-दर्शन एकात्मवादी है, अत: शरीर, मन, बु्द्धि एवं आत्मा से युक्त; धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष के चतुर्विध पुरुषार्थों की साधना करने वाला, और एक ही साथ परिवार, जाति, राष्ट्र एवं मानव-समाज आदि विविध एकात्म समष्टियों का प्रतिनिधित्व करने की क्षमता रखने वाला मानव इस दर्शन का केन्द्र बिन्दु है।

पश्चिम देशों में मानवतावाद के नाम पर अनेक विचार धाराएं प्रचलित हैं, किन्तु उनमें से अधिसंख्य विचारधाराएं केवल भौतिकवादी हैं, अत: वे मानव-कल्याण की दृष्टि से सफल नहीं रही हैं। जीवन का सर्वांगीण विचार भारतीय संस्कृति की अपनी विशेषता है। इसीलिए अर्थ और काम दोनों पुरुषार्थों को उसने मानवता का विकास करने वाले व धर्म और मोक्ष पुरुषार्थों के साथ संयुक्त चौखट में बिठाया है।

—पं. दीनदयाल उपाध्याय (पं. दीनदयाल उपाध्याय विचार-दर्शन खण्ड-4, पृष्ठ संख्या-13)

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