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भारत के प्राचीन ज्ञान-विज्ञान की मदद से गांवों को विकास के नए सोपानों पर ले जाना आज की महती आवश्यकता है। नानाजी देशमुख जानते थे कि भारत का विकास इसके गांवों के विकास के रास्ते ही संभव है इसीलिए उन्होंने भारत के ग्रामीण अंचल को अपनी कर्मभूमि बनाकर वहां असाधारण काम खड़े किए।'' यह कहना था भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र (बीएआरसी) के पूर्व निदेशक और वर्तमान में बीएआरसी में आइएएनई सतीश धवन पीठ के प्रमुख डॉ. अनिल काकोडकर का। वे गत 25 मार्च को नई दिल्ली स्थित दीनदयाल शोध संस्थान में छठे नानाजी स्मृति व्याख्यान में मुख्य वक्ता के नाते बड़ी संख्या में वहां एकत्रित राजधानी के विशिष्टजनों को संबोधित कर रहे थे। विषय था, 'विज्ञान की भारतीय परंपरा।' डॉ. काकोडकर ने कहा कि हालांकि उन्होंने चित्रकूट में नानाजी द्वारा खड़े किए ग्रामीण विकास के काम को प्रत्यक्ष नहीं देखा है लेकिन उसके बारे में जितना पढ़ा-जाना है उससे स्पष्ट होता है कि नानाजी देशमुख का व्यक्तित्व महान था।
डॉ. काकोडकर ने कहा कि हमारे यहां नालंदा और तक्षशिला जैसे महान विश्वविद्यालयों में दूर देशों से छात्र आते थे। उस काल में भी सिर्फ विज्ञान ही नहीं, प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी बहुत गजब के काम किए गए। वास्तुशिल्प कमाल का रहा है। इसी तरह सर्जरी, औषधि में हमने ऐसी ऊंचाइयां छुई थीं कि आज भी सुश्रुत और चरक पर आधुनिक संदर्भ में शोध किए जाते हैं। वह जमाना था जब भारत की सकल घरेलू उत्पाद दर बहुत ऊंची थी। आज दो तिहाई भारतवासी गांवों में बसे हैं, उनके रहन-सहन को बेहतर बनाना आज के आवास कार्यक्रमों के सामने बहुत बड़ी चुनौती है।
डॉ. काकोडकर ने बताया कि महाराष्ट्र के पंढरपुर में गोपालपुर गांव और छत्तीसगढ़ के गढ़चिरौली में किसानों को मौसम के पूर्वानुमान, बेहतर बीज तैयार करने के तरीकों की जानकारी देने के लिए आईआईटी के छात्र स्थानीय किसानों की मदद से दो बड़े प्रयोग कर रहे हैं जिनसे सैकड़ों किसानों का भला हो रहा है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे केन्द्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने इस बात पर हैरानी जताई कि जाने क्यों भारत के प्राचीन ज्ञान-विज्ञान का जिक्र करते ही बुद्धिजीवियों और मीडिया के एक वर्ग की त्योरियां चढ़ जाती हैं। डॉ. हर्षवर्धन ने बताया कि 2010 में उन्होंने जापान के कोबे शहर में वहां के एक प्रमुख चिकित्सक को आयुर्वेद के गहन अध्ययन में रत देखा था। आज विदेशों में भारत के प्राचीन ज्ञान को सम्मान दिया जाता है जबकि भारत में बहुत से लोग ऐसे हैं जो यहां की गौरवगाथा सुनते ही चिढ़ जाते हैं। उन्होंने कहा कि भारत ने सुनामी जैसी विभीषिका की बहुत पहले जानकारी देने वाला यंत्र बना लिया है जिसका लाभ कितने ही देश उठा रहे हैं। कार्यक्रम की शुरुआत में भारत के प्राचीन विज्ञान की महानता दर्शाते डिस्कवरी चैनल की एक छोटी सी डॉक्यूमेंटरी भी दिखाई गई। कार्यक्रम का संचालन दीनदयाल शोध संस्थान के प्रधान सचिव अतुल जैन ने किया। प्रतिनिधि
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