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आंबेडकर जयंती पर समरसता का मंत्र

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Apr 27, 2016, 12:00 am IST
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दिंनाक: 27 Apr 2016 16:50:07

बाबासाहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर की 125 वीं जयंती के उपलक्ष्य में 17 अप्रैल को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने राजधानी दिल्ली में भिन्न-भिन्न तरह की घोष रचनाओं का वादन कर पथ संचलन निकाला। सदर बाजार के नबी करीम स्थित हरिमंदिर विद्यालय, मंदिर मार्ग स्थित बाल्मीकि मंदिर तथा पहाड़गंज स्थित आंबेडकर भवन से स्वयंसेवकों ने समता सद्भावना घोष पथ संचलन निकाला।

पहाड़गंज स्थित करनैल सिंह स्टेडियम में एकत्र हुए घोष वादकों ने विभिन्न प्रकार की घोष रचनाओं का वादन कर वहां मौजूद जनसमूह को रोमांचित कर दिया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल ने कहा कि ''जब बाबासाहेब का जन्म हुआ, उस समय देश 700-800 वर्षों की पराधीनता से स्वतन्त्रता के लिए लड़ रहा था। सदियों से चल रहे इस संघर्ष के चलते समाज में अनेक कुरीतियां आ गईं थीं। जो अच्छी बातें थीं, वे पीछे छूट गई थीं, जो अनुपयोगी था वह हमारे साथ आ गया। बाहरी आक्रमणों के समय प्राणों की रक्षा मूल्यवान थी किसी भी तरह से प्राण बच जाएं, इस कारण हमारे देश में महिलाओं में परदा प्रथा, जातिप्रथा तथा छुआछूत जो पहले नहीं थी वह भी आ गई। वेद-उपनिषदों में अस्पृश्यता का उल्लेख नहीं है। जब ऐसी कुरीतियां समाज में आ जाती हैं तो हिन्दू समाज में कोई न कोई समाज सुधारक पैदा होता है। भगवान बुद्ध ने भी ऐसा काम किया था। कबीर, रैदास, गुरुनानक, महात्मा फुले ने भी यही काम किया और बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर ने भी यही काम किया। बाबासाहेब एक वर्ग विशेष के नहीं बल्कि सब के थे।''

श्री कृष्ण गोपाल ने कहा, ''समाज में मौजूद कुरीतियों के कारण बाबासाहेब ने कई बार अपमान सहा लेकिन उन्होंने समाज से भेदभाव दूर करने के लिए पश्चिमी देशों की तरह कभी वर्ग संघर्ष को नहीं अपनाया। वे भगवान बुद्ध के बताए शांति और प्रेम के मार्ग पर चले और महात्मा फुले, गुरुनानक, कबीर व रैदास के मौलिक दर्शन को आगे ले जाते हुए उन्होंने शोषित समाज को उनके अधिकार दिलवाए।''

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के न्यूक्लियर फिजिक्स के प्रोफेसर डा. पी.डी सहारे ने कहा कि- बाबासाहेब को किसी एक विषय में नहीं बांधा जा सकता। वे अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ व समाज सुधारक थे। बाबासाहेब ने जिन कुरीतियों के खिलाफ आजीवन संघर्ष किया वह उनके जाने के बाद कुछ रुक सा गया था लेकिन आज लगता है कि रा.स्व. संघ सार्थक प्रयास कर उनके कार्य को बढ़ाने का प्रयास कर रहा है।

दिल्ली प्रांत के सह संघचालक श्री आलोक कुमार ने मंच संचालन किया। कार्यक्रम के अंत में दिल्ली प्रांत के संघचालक श्री कुलभूषण आहूजा ने कार्यक्रम में आए सभी नागरिकों का धन्यवाद किया।

सामाजिक समरसता मंच द्वारा दिल्ली के संसद भवन परिसर में स्थित बाबासाहेब आंबेडकर की प्रतिमा पर माल्यार्पण करते हुए दिल्ली प्रांत संघचालक श्री कुलभूषण आहूजा ने कहा कि बाबासाहब का जोर इस बात पर रहा कि प्रत्येक भारतीय को जिंदगी के आखिरी पल तक भारतीय ही रहना चाहिए। दिल्ली प्रांत सह संघचालक श्री आलोक कुमार ने कहा कि सामाजिक सौहार्द का डॉ. आंबेडकर का संदेश प्रत्येक भारतीय तक पहुंचना चाहिए। इस अवसर पर मंच के संयोजक ओमप्रकाश गिहारा, सांसद श्रीमती मीनाक्षी लेखी व श्री उदित राज भी उपस्थित थे।

दिल्ली के ही डॉ. आंबेडकर नगर में लोकमत परिष्कार द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में एकात्म मानवदर्शन अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान के अध्यक्ष व पूर्व सांसद डॉ. महेशचन्द्र शर्मा ने कहा कि आंबेडकर की पूरी सोच, उनके दर्शन और भारत एवं भारतीयता के प्रति उनके विराट भाव का अपेक्षित मूल्यांकन होना चाहिए। राष्ट्रीय दलित बचाओ आंदोलन के अध्यक्ष डॉ. ओ.पी. शुक्ला ने कहा कि बाबासाहेब की शिक्षा, उनके कृतित्व और उनके विचारों पर व्यापक कार्य की जरूरत है। रा.स्व.संघ के दिल्ली प्रांत सहसंघचालक श्री आलोक कुमार व सांसद उदितराज ने सामाजिक भेदभाव दूर करने पर जोर दिया। कार्यक्रम का संचालन श्री छत्रपाल सिंह ने किया तो अतिथियों का स्वागत श्री बाबू सिंह व श्री मुकेश गौतम ने किया।

इसी शृंखला में जोधपुर महानगर द्वारा बाबासाहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर का 125वां जयंती समारोह मेडिकल कॉलेज सभागार में हुआ। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. एस.एन. मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य एवं नियंत्रक डॉ. अमीलाल भाट ने कहा कि रा.स्व. संघ बाबासाहेब के ही देखे हुए सपने को पूरा करने में लगा है।

मुख्य वक्ता रा.स्व.संघ के क्षेत्रीय प्रचारक श्री दुर्गादास ने कहा कि बाबासाहेब संपूर्ण समाज के पथ प्रदर्शक थे, वे किसी वर्ग, दल या जाति तक सीमित नहीं थे। वे समाज में व्याप्त दोषों के, विषमता के विरोधी थे। बाबासाहेब ने संघ के कार्य और लक्ष्य की मुक्तकंठ से प्रशंसा की। 1949 में संघ पर लगे प्रतिबंध को हटाने हेतु भी उन्होंने सरकार के समक्ष अपनी बात रखी।

इस अवसर पर प्रांत संघचालक श्री ललित शर्मा एवं विभाग संघचालक डॉ. शान्तिलाल चोपड़ा भी उपस्थित रहे। संचालन डॉ. अभिनव पुरोहित ने किया।

सामाजिक समरसता मंच द्वारा भरतपुर में एक गोष्ठी आयोजित की गई। सेवा भारती के वरिष्ठ नेता श्री प्रवीण भाई ओटिया ने कहा कि सभी को मिलकर सामाजिक विषमता को दूर करने का संकल्प लेना होगा।

विश्व संवाद केंद्र फरीदाबाद द्वारा एनआईटी स्थित फुटबॉल मैदान में आयोजित पथ संचलन में रा.स्व.संघ के अ.भा. सह संपर्क प्रमुख श्री अरुण कुमार मुख्य अतिथि थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता वाईएमसीए विश्वविद्यालय के कुलपति डा. दिनेश अग्रवाल ने की।

श्री अरुण कुमार ने कहा कि हर हिन्दू को समाज से जोड़कर उसका राष्ट्रहित में उपयोग होना जरूरी है। इस मौके पर स्वयंसेवकों ने शारीरिक, योग, दण्ड आदि का प्रदर्शन किया। उन्हें देखने जनसमूह उमड़ पड़ा। पथ संचलन दो टुकडियों में शुरू हुआ। एक टुकड़ी एक नंबर मार्केट, फव्वारा चौक, नीलम-बाटा रोड होते हुए नीलम चौक पहुंची जबकि दूसरा संचलन बीके चौक से होते हुए पांच नंबर मार्केट से होते हुए पहली टुकड़ी से जुड़ गया और कदमताल करते हुए दोबारा फुटबॉल ग्राउंड पहुंचा। पथ संचलन का जगह-जगह फूलों से स्वागत किया गया। पथ संचलन में सामाजिक समरसता का संदेश देती झांकियां आकर्षण का केंद्र रहीं।

चेन्नै में थिरुनीरमलाई शक संस्था ने आंबेडकर जयंती पर फुटबॉल मैच का आयोजन किया। राष्ट्रीय हाकी खिलाड़ी डॉ. अनबरांसु, क्रीड़ा भारती के संगठन मंत्री श्री जगताल प्रतापन और आंबेडकर संगम के श्री मुथुकुमारन श्रीधर अतिथि रूप में मौजूद थे।

डॉ. हेडगेवार स्मारक समिति ने भी शक्ति संघ कार्यालय में एक कार्यक्रम आयोजित किया। इसकी अध्यक्षता करते हुए मद्रास उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश श्री के. वेंकटरमन ने कहा कि रा.स्व.संघ देशभर में समरसता व समाज विकास के कार्य कर रहा है लेकिन संघ की छवि नकारात्मक ढंग से प्रस्तुत की जाती है। इस मौके पर अरुंदतियार सवई मायम के महामंत्री श्री आनंदराज और हिन्दू मुन्नानी से जुड़े श्री भक्तवत्सलम, न्यायमूर्ति कनकराज, श्री सेतु माधवन और डा. एम.एल. राजा आदि उपस्थित थे।

बेंगलुरु में बी- पीएएसी फोरम द्वारा आयोजित कार्यक्रम में रा.स्व.संघ के अखिल भारतीय सह बौद्धिक प्रमुख श्री मुकुंद सी.आर ने कहा कि डॉ. आंबेडकर पिछली शताब्दी के एक महान दूरद्रष्टा और समाज सुधारक थे। कार्यक्रम में निदुमंमिदि मठ के पू. चन्नामल्ला स्वामी, टी.वी. मोहनदास पाल, लेखक डॉ. दोदारंजे गौड़ा, ऐक्यता फाउंडेशन के डॉ. संदीप पाटिल, समाजसेवी व्यवसायी अनिल शेट्टी, पत्रकार रवि हेगड़े और कई राजनीतिक दलों से जुड़े कार्यकर्ता शामिल हुए। इस प्रकार देशभर में डॉ. आंबेडकर की जयंती राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं द्वारा समरसता दिवस के रूप में मनाई गई। पाञ्चजन्य ब्यूरो

वीर सपूत अमित देसवाल को श्रद्धांजलि

हरियाणा की वीरभूमि में जन्मे एक और सपूत ने भारत मां की रक्षा में अपने प्राण न्योछावर कर दिए। झज्जर के गांव सुरेहती के मेजर अमित देसवाल के दादा नत्थूराम जाट और पिता ऋषिराम भी सेना से सेवानिवृत्त हुए। सेना की पृष्ठभूमि वाले इस सैनिक ने अनेक अभियानों का नेतृत्व किया। 13 अप्रैल को मणिपुर के तामेंगलोंग जिले में एनएससीएन व जैडयूएफ के उग्रवादियों की धरपकड़ के लिए चलाए गए अभियान के दौरान वे आतंकियों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए। सेना के जवान जब तिरंगे में लिपटा उनका शव लेकर गांव पहुंचे तो हजारों लोगों ने पुष्प वर्षा कर अपने लाडले को अंतिम विदाई दी। शहीद का अंतिम संस्कार 15 अप्रैल को उनके पैतृक गांव में पूरे सैनिक सम्मान के साथ किया गया। तीन वर्षीय पुत्र अर्जुन ने अपने चाचा अंकित के साथ वीर पिता को मुखाग्नि दी। शहीद अमित देसवाल के पिता ने कहा कि ''उन्हें अपने पुत्र की शहादत पर गर्व है। उनका परिवार सदैव मां भारती की सेवा करता रहेगा। डॉ. गणेश दत्त वत्स

'स्वतंत्रता, समता और बंधुता हमारा दर्शन'

कर्णावती। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ , कर्णावती महानगर द्वारा आयोजित वर्ष प्रतिपदा उत्सव के अपने उद्बोधन में रा.स्व.संघ के सरसंघचालक श्री मोहन भागवत ने कहा कि संघ में हम लोग उत्सवों का जो निर्वहन करते हैं वे सारे उत्सव इस देश में सदियों से चलते आये उत्सव हैं। संघ जिन छह उत्सवों का पालन करता है, उन्हें राष्ट्रीय आशय के साथ जोड़कर संपन्न करता है। वर्ष प्रतिपदा संकल्प का दिवस है। प्राचीनतम घटना के अनुसार वर्ष प्रतिपदा सृष्टि का प्रारंभ है। संयोग से वर्ष प्रतिपदा संघ के संस्थापक परमपूज्य डॉ. हेडगेवार जी का जन्म दिवस भी है। भारत के नवोत्थान का संकल्प जो नियति के रूप मे आया वही डॉ. साहब का रूप लेकर जन्मा। श्री मोहनराव भागवत ने कहा कि स्वतंत्रता, समता और बंधुता पर इस मिट्टी में उपजे बुद्घ के विचार हैं, हमने उनको स्वीकार किया है। उस बंधुभाव को ही धम्म कहा गया है। यही धर्म है। उनको भी यह चिंता थी। उन्होंने कहा कि आपस के भेदों को भूलकर एक देश के नाते यदि हमने अपने जीवन को जीया नहीं तो मात्र यह संविधान आपकी रक्षा नहीं

कर सकेगा। विसंके, कर्णावती

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