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इस आयोग की भी करे कोई सेवा

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Apr 25, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 25 Apr 2016 13:01:56

उत्तर प्रदेश में हाईकोर्ट द्वारा यूपीपीएससी अध्यक्ष की नियुक्ति को ही अवैध ठहराए जाने के बाद अब नए अध्यक्ष ने पदभार संभाला है। उन्होंने छात्रों से आयोग में और ज्यादा पारदर्शिता लाने की बात कही है

सुनील कुमार/इलाहाबाद

उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) की परीक्षा में विवादस्पद त्रिस्तरीय आरक्षण लागू करने, पीसीएस की 'प्री' परीक्षा का पहली पारी का पर्चा लीक होने व नियुक्ति के दौरान स्वयं के ऊपर चले आपराधिक मामलों की जानकारी न देने के चलते आयोग का अध्यक्ष पद छोड़ने के लिए मजबूर होने वाले डॉ. अनिल यादव के बाद 15 मार्च को डॉ. अनिरुद्ध सिंह यादव ने यह पद संभाला है। उन्होंने अभ्यर्थियों को आश्वासन दिया है कि आयोग परीक्षा में और अधिक पारदर्शिता लाएगा। फिलहाल अभ्यार्थियों ने उनके सामने और भी कई मांगें रखी हैं जिन पर विचार चल रहा है।
उत्तर प्रदेश पीसीएस परीक्षा में हर वर्ष तकरीबन 4.5 लाख अभ्यर्थी शामिल होते हैं। प्री और मुख्य परीक्षा के बाद साक्षात्कार होता है, फिर उनका चयन होता है। वर्ष 2012 में उत्तर प्रदेश में सपा के सत्ता में आने के बाद 2013 में डॉ. अनिल यादव उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष बनाए गए। अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने पीसीएस में सबसे पहले त्रिस्तरीय आरक्षण लागू कर दिया जिसके तहत प्री व मुख्य परीक्षा के बाद साक्षात्कार में भी आरक्षण दिए जाने की बात थी। इसका जोरदार विरोध हुआ।  अभ्यर्थियों के आंदोलन के कारण पूरे प्रदेश में कानून व्यवस्था की समस्या  उत्पन्न हो गई। सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव  के दखल देने के बाद यह मामला शांत हुआ। 29 मार्च, 2015 को उत्तर प्रदेश में रविवार के दिन पीसीएस  प्री  की  परीक्षा आयोजित कराई जा रही थी, शाम को दूसरी पाली की परीक्षा होनी थी। इस दौरान पहली पाली के दौरान पर्चा लीक होने की खबर आई। उस समय उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के सचिव रिजवान उल रहमान ने बयान दिया था कि ''कोई पर्चा लीक नहीं हुआ है , हम लोग दूसरी पाली की परीक्षा कराने जा रहे हैं।'' अगले दिन आयोग में इस मामले को लेकर बैठक हुई जिसमें माना गया कि पर्चा लीक हुआ है इसलिए पहली पाली की परीक्षा रद्द की जाती है लेकिन दूसरी पाली की परीक्षा रद्द नहीं की जाएगी। डॉ. अनिल यादव ने दूसरी पाली की परीक्षा रद्द करने से मना कर दिया।  आयोग के इस फैसले के बाद हजारों की संख्या में ऐसे परीक्षार्थी परीक्षा रद्द करने की मांग को लेकर सड़कों पर आ गए जिन्होंने दूसरी पाली की परीक्षा इसलिए नहीं दी कि पहली पाली का पर्चा लीक हो गया तो दूसरी पाली की परीक्षा भी नहीं होगी। इस मामले ने इतना तूल पकड़ा कि परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्र इलाहाबाद हाइकोर्ट के दरवाजे पर पहुंच गए।
प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति के पूर्व अध्यक्ष अयोध्या सिंह बताते हैं ''डॉ. अनिल यादव की नियुक्ति के संबंध में आरटीआई लगाकर जानकारी मांगी गई। आरटीआई में पता चला कि मैनपुरी स्थित चित्रगुप्त महाविद्यालय के प्राचार्य रहे डॉ. यादव, हत्या व हत्या के प्रयास जैसे 15 संगीन मामलों में आरोपी रहे हैं, 3 मामले अभी भी न्यायालय में चल रहे हैं।'' अयोध्या सिंह का आरोप है कि नियुक्ति के दौरान उन्होंने इन बातों को छिपाया। वे कहते हैं ''जब उनका बायोडाटा निकलवाया तो चौंकाने वाली जानकारियां मिलीं। आयोग का अध्यक्ष बनने के लिए शेष सभी लोगों ने अपना-अपना बायोडाटा अपने घर से भेजा था। मगर डॉ.  यादव का बायोडाटा समाजवादी पार्टी के केन्द्रीय कार्यालय से  भेजा गया था।'' प्रदेश के कार्मिक मंत्रालय से आरटीआई के तहत मिली जानकारी के अनुसार अध्यक्ष पद के लिए कुल 83 लोगों ने आवेदन  किया था। जिसमें 41 लोग पीएचडी, 6 लोग लॉ  ग्रेजुएट व 4 एमफिल थे  मगर उन लोगों के नाम पर विचार नहीं किया गया। अयोध्या सिंह कहते हैं, ''समाजवादी पार्टी की सरकार बनने के बाद यूपीपीएससी  की  साख पर जितना बट्टा लगा उतना कभी नहीं लगा। पहले त्रिस्तरीय आरक्षण और फिर पर्चा लीक का विवाद सामने आने के बाद डॉ. यादव ने आयोग की समस्त सूचनाओं पर पहरा लगा दिया यहां तक कि  वे किसी से फोन पर बात करने को भी तैयार नहीं होते थे।''
रिटायर्र्ड आईएएस सूर्य प्रताप को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने प्रमुख सचिव माध्यमिक शिक्षा के पद पर तैनात किया था। बाद में मंत्री से विवाद होने के कारण उन्हें हटा दिया गया। सूर्यप्रताप सिंह का आरोप है, ''उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग में एक और ऐसे व्यक्ति को सदस्य बनाया गया है जो इस पद के लायक नहीं है। आयोग में राजनीतिक प्रभाव वाले लोगों की नियुक्ति की जा रही है।''
प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति के मीडिया प्रभारी अविनाश पांडे का कहना है, ''एक अप्रैल 1937 को उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की  स्थापना हुई थी।  उस समय इस आयोग  में एक अध्यक्ष और दो सदस्य हुआ करते थे, विडंबना यह है कि वर्तमान समय में भी आयोग में कुल तीन ही सदस्य हैं। आयोग में आठ सदस्यों को रखने की क्षमता है  मगर सरकार किसी की नियुक्ति नहीं कर रही है। '' वे कहते हैं, ''आयोग में सदस्यों की संख्या कम होने के चलते साक्षात्कार की प्रक्रिया बाधित हो रही है मगर आयोग का कोई भी व्यक्ति इस पर बयान देने को तैयार नहीं है।'' कहा जा रहा है कि सपा सरकार का महज एक वर्ष और शेष है इसके बाद चुनाव होने हैं आयोग के अध्यक्ष पद को लेकर सरकार की इतनी फजीहत हो चुकी है कि वह अब किसी नए सदस्य की नियुक्ति ही नहीं करना चाहती। बहरहाल आयोग के नए अध्यक्ष डॉ. अनिरुद्ध सिंह यादव इसे नई ऊंचाइयों तक ले जाने की प्रतिबद्धता जताते हैं। उनका दावा है कि परीक्षाएं पारदर्शी तरीके से कराई जाएंगी। ताकि ''लोग हमारी प्रणाली की शुचिता की मिसाल दें।'' डॉ. यादव कहते हैं कि गुणवत्ता बढ़ाने के लिए वे कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। उनका कहना है कि प्रतियोगी परीक्षाओं के छात्रों को अब शिकायत नहीं रहेगी। देखना होगा कि डॉ. यादव अपनी कोशिशों में  कितने     सफल होते हैं। 

आयोग के अध्यक्ष   पर नियुक्ति के दौरान डॉ. अनिल यादव ने अपने ऊपर चले अपरााधिक मामलों में जानकारी छिपाई थी।
अयोध्या सिंह (पूर्व अध्यक्ष, प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति)
पूरा मामला एक नजर में
'    2 अप्रैल, 2013 को अनिल यादव को यूपीपीसीएस अध्यक्ष बनाया गया। उन्होंने पीसीएस परीक्षा में त्रिस्तरीय आरक्षण की व्यवस्था विवाद होने पर सरकार को यह फैसला बदलना पड़ा।
'    29 मार्च, 2015 को पीसीएस परीक्षा का पर्चा लीक हुआ। डॉ. यादव ने पहली पाली की परीक्षा रद्द की पर दूसरी पाली की नहीं।
'    13 मई, 2015 को डॉ. यादव की नियुक्ति के संबंध में हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई।
'    14 अक्टूबर, 2015 को हाईकोर्ट ने पूरे मामले पर गौर करने व डॉ. यादव के आपराधिक इतिहास को देखते हुए नियुक्ति को अवैध ठहराया दिया। इसके बाद उन्होंने पद छोड़ दिया।
'    नवंबर 2015 में तीन महीने के लिए आयोग के एक सदस्य डॉ. सुनील कुमार जैन को कार्यवाहक अध्यक्ष बनाया गया।
'    15 मार्च, 2016 को डॉ. अनिरुद्ध यादव ने अध्यक्ष पद संभाला।

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