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संवाद और संस्कृति का मेल

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Apr 18, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 18 Apr 2016 11:29:03

सिंहस्थ के अवसर पर वैचारिक और कला का आयोजन अपने में ऐतिहासिक होने वाला है। दुनियाभर के विद्वानों और कला साधकों के इस 'कुंभ' को लेकर आमजन का उत्साह देखते ही बनता है

उज्जैन में 22 अप्रैल से शुरू हो रहे सिंहस्थ महाकुंभ को ऐतिहासिक, स्मरणीय और सार्थक बनाने के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने एक अनूठी पहल की है। सिंहस्थ के दौरान अंतरराष्ट्रीय स्तर के दो बौद्धिक आयोजन किये जा रहे हैं-वैचारिक कुंभ और कला कुंभ। 12 से 14 मई तक होने वाले वैचारिक कुंभ के उद्घाटन कार्यक्रम में रा. स्व. संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत को आमंत्रित किया गया है। समापन कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आने की उम्मीद है। इसमें श्रीलंका के राष्ट्रपति, नेपाल की राष्ट्रीय संसद के अध्यक्ष, नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री और नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा, सिंगापुर के उपप्रधानमंत्री, तिब्बत के प्रधानमंत्री, योगगुरु स्वामी रामदेव, स्वामी श्री अवधेशानंदजी, सद्गुरुजग्गी वासुदेव जैसी विभूतियों को आमंत्रित किया जा रहा है।
भारत में स्थित 151 देशों के राजदूतों को तथा देश के समस्त राज्यों के मुख्यमंत्रियों को आमंत्रण पत्र भेजे गए हैं। इसके अतिरिक्त संगोष्ठी के सभी विषयों एवं उप विषयों के निष्णात् विद्वानों को भी आमंत्रित किया गया है। लगभग 350 अंतरराष्ट्रीय एवं 1,100 राष्ट्रीय विद्वानों को आमंत्रित किया जा रहा है। आयोजन से जुड़े वरिष्ठ आईएएस और प्रदेश के पुरातत्व आयुक्त अजातशत्रु बताते हैं, ''विशेषज्ञ उन्हें दिए गए विषय पर अपने अध्ययन प्रस्तुत करेंगे। विषय अनुसार ही विशेषज्ञों को आमंत्रित किया गया है।'' दरअसल प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का मत है कि कुंभ आयोजनों का मूल प्रयोजन भी यही है कि धार्मिक विश्वासों पर ऋषि-मुनियों के संवाद और संत समागम
हो सके।
इस क्रम में राज्य शासन द्वारा चार संगोष्ठियां आयोजित की गयीं। पहली संगोष्ठी 17 से 19 अप्रैल 2015 तक की गई, विषय था, 'मूल्य आधारित जीवन'। उद्घाटन सत्र में सद्गुरु जग्गी वासुदेव मुख्य अतिथि थे। मूल्यों की आधारभूत संरचना जैसे उप-विषय पर स्वामी विवेकानंद योग अनुसंधान संस्थान, बंगलुरु के कुलपति प्रो़ एच़ आऱ नागेन्द्र, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति प्रो. कपिल कपूर और हिन्दी साहित्य एवं भारतीय लोक परंपरा के वरिष्ठ विद्वान डॉ. कपिल तिवारी जैसे गणमान्यजन ने सार्थक मंथन किया। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास दिल्ली के श्री दीनानाथ बत्रा ने अध्यक्षता की। समापन सत्र में अखिल विश्व गायत्री परिवार के निदेशक प्रणव पंड्या बतौर मुख्य अतिथि मौजूद थे। विद्वानों ने मूल्य आधारित शिक्षा, मूल्य आधारित उच्च व व्यावसायिक शिक्षा आदि विषयों पर मंथन किया।
दूसरी संगोष्ठी 24 से 26 अक्तूबर 2015 को 'मानव कल्याण के लिए धर्म' विषय पर, तीसरी 21 और 22 नवंबर को 'ग्लोबल वार्मिंग एंड क्लाइमेट चेंज' जैसे सामयिक विषय पर और चौथी 12 से 14 फरवरी, 2016 को 'विज्ञान एवं अध्यात्म' विषय पर की गई। इसमें रामकृष्ण मिशन, विवेकानन्द विश्वविद्यालय, कोलकाता के कुलपति स्वामी आत्मप्रियानंद, इसरो के पूर्व अध्यक्ष और जाने-माने वैज्ञानिक डॉ. जी़ माधवन नायर और संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल जैसे विद्वान मौजूद थे। इन चारों संगोष्ठियों की अनुशंसाओं के आधार पर यह निर्णय लिया गया कि 12 से 14 मई 2016 तक उज्जैन में एक महासंगोष्ठी की जाए जिसमें उपर्युक्त चारों विषयों के अतिरिक्त जनहित से जुड़े एवं  प्रासांगिक चार नए विषयों को भी सम्मिलित किया जाए। ये विषय हैं-कृषि एवं ऋषि संस्कृति आधारित कृषि परंपरा, कुटीर एवं ग्रामोद्योग परंपरा, नारी शक्ति एवं बेटी बचाओ, स्वच्छता एवं पवित्रता का महत्व एवं परंपरा। इस महासंगोष्ठी को ही वैचारिक कुंभ का नाम दिया गया है जो उज्जैन से इन्दौर मार्ग पर 8 किमी दूर ग्राम निनौरा में आयोजित किया जा रहा है।
सरकार सिंहस्थ महाकुंभ को एक सांस्कृतिक आयोजन के रूप में भी प्रस्तुत कर रही है। प्रदेश शासन के संस्कृति विभाग ने संगीतमय 'अनुगूंज' का आयोजन किया जिसमें पद्मविभूषण पं़ हरिप्रसाद चौरसिया ने बांसुरी से, उज्जैन मूल के रमाकांत-उमाकांत गुंदेचा, उदय भवालकर, पं़ सुधाकर देवले ने ध्रुपद तथा डॉ़ मंजू मेहता ने सितार द्वारा शिप्रा तट पर रामघाट, जहां सिंहस्थ का मुख्य स्नान होता है, सांस्कृतिक छटा बिखेरी। चित्रकार प्रो़ एल़ एऩ भावसार ने प्रस्तुतियों के दौरान ही प्रत्यक्ष चित्रांकन किया। 'अनुगूंज' की श्रृंखला लगभग तीन माह तक चली जिसमें पद्मभूषण तीजन बाई और पद्मश्री मालिनी अवस्थी जैसे कलाकारों और प्रदेश की चुनी हुई प्रतिभाओं ने भी सहभागिता की।
अब जब कुंभ आरंभ हो रहा है तो 22 अप्रैल से 21 मई तक मेला क्षेत्र में चार स्थानों पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए मंच तैयार किए गए हैं। केन्द्र सरकार के सहयोग से प्रदेश का संस्कृति विभाग विभिन्न मंचों पर अलग-अलग कार्यक्रम करा रहा है। भूखी माता मंच पर एक माह तक प्रतिदिन प्रात: 6 से 10 शास्त्रीय गायन की सभा होगी। 22 अपै्रल से 6 मई तक प्रतिदिन शाम सात से रात 11 बजे तक आगर मार्ग मंच पर शास्त्रीय संगीत और नृत्य के कार्यक्रम होंगे। यहां 7 से 21 मई तक राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय द्वारा नाटकों का प्रदर्शन किया जाएगा। गढ़कालिका स्थित मंच पर साहित्य अकादमी और ललित कला अकादमी, दिल्ली के सहयोग से कार्यशाला और प्रदर्शनी का आयोजन होगा। कवि सम्मेलन और परिचर्चा भी यहां आयोजित होगी। सदावल स्थित मंच लोक कलाओं के लिए आरक्षित है जहां 22 अप्रैल से 1 मई तक प्रतिदिन शाम 7 बजे से लोक नृत्य, लोक गायन और भजन आदि होंगे, जबकि 2 मई से 21 मई तक कहानी सुनाई जाएगी।
संस्कार भारती ने उजरखेड़ा क्षेत्र में 36,000 वर्गफीट के शिविर में कला कुंभ का आयोजन किया है। यहां  प्रतिदिन सुबह 6 से 8 बजे तक गायन-वादन की सभा होगी। शिविर में कवि सम्मेलन का आयोजन भी होगा। रंगावलि दृश्यकला पर कार्यशाला सतत चलती रहेगी। प्रति सप्ताह 30 सदस्यों की संख्या वाला दल देश के अलग-अलग हिस्सों से आएगा और शिविर में तो प्रशिक्षण देगा ही, नगर के अलग-अलग हिस्सों में अपनी रंगावलि कला का प्रदर्शन  भी करेगा। संस्कार भारती के मध्यक्षेत्र प्रमुख श्रीपद जोशी कहते हैं, ''इन चित्रकारों में परंपरागत शैली के साथ-साथ समकालीन कला के साधक शामिल होंगे।''

समरसता कुंभ
उज्जैन में होने जा रहे सिंहस्थ महाकुंभ में एक शिविर ऐसा भी है जहां समरसता कुंभ का नजारा दिखाई देगा। मेले के उजरखेड़ा जोन में वनवासी कल्याण परिषद के करीब 2.5 लाख वर्ग फीट के शिविर में एक माह में देश के विभिन्न हिस्सों से 90 जनजातीय दल आएंगे और तीन-तीन दिन रुककर अपनी धर्म परंपरा से रूबरू होंगे। शिविर में प्रतिदिन रुद्राक्ष महाभिषेक, रामकथा और श्रीमद् भागवत पारायण होगा जिसका लाभ वनवासी लेंगे। शिविर व्यवस्थापक संतोष अग्रवाल कहते हैं, '' शिविर के माध्यम से वनवासी भाई यह जानेंगे कि जनजातीय और हिन्दू धर्म की परंपराएं, विधान और जड़ें एक ही हैं, वे कोई भिन्न नहीं हैं।'' शिविर में शाम सात बजे से प्रतिदिन जनजातीय दलों के सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे। विभिन्न प्रदेशों से आ रहे जनजाति के लोग अपनी पूजा पद्धति का प्रदर्शन भी करेंगे जिससे अन्य प्रांत के लोग उससे परिचित हो सकें। शिविर में करीब 10,000 वर्ग फीट क्षेत्र में प्रदर्शनी लगाई जा रही है जिसमें वनवासी कल्याण परिषद द्वारा किए गए कार्यों की जानकारी होगी। शिविर में कुल 1,000 लोगों के ठहरने की व्यवस्था की गई है। यहां 10 बिस्तरों वाला एक अस्पताल भी स्थापित किया जा रहा है जिसमें एलोपैथी के साथ-साथ आयुर्वेद तथा वनाषधि से उपचार किया जाएगा। शिविर के प्रचार के लिए विभिन्न अंचलों में रथयात्राएं निकाली गईं जिनका रामनवमी पर एक साथ उज्जैन में प्रवेश हुआ और शोभा यात्रा के रूप में ये शहर के बीच से होती हुई शिविर स्थल तक पहुंची। 

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