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तिनका तिनका जोड़कर भविष्य संवारने वाले देश के किसानों और खेती की तस्वीर बदसूरत हो गई है। तार-तार हो चुकी खेती को समेटकर पटरी पर लाने के उपाय समय-समय पर किये तो गये लेकिन खेती को कभी समग्रता में देखा नहीं गया। यही वजह है कि खेती बिगड़ती गई। जड़ से शीर्ष तक सूखती गई और किसान की दशा दयनीय हो गई। इसे सहारा देने और सुधारने की जगह उस पर दया व सहानुभूति दिखाई जाने लगी। खेती की मूलभूत जरूरतों को नजरअंदाज किया गया। नतीजा, सीमित होते खेती के संसाधनों और बदलता जलवायु की विभीषिका के बीच सवा सौ करोड़ आबादी वाले देश की खाद्य सुरक्षा का संकट गहराने लगा है। इतनी बड़ी आबादी की जरूरतें पूरी करने की क्षमता दुनिया के किसी और देश की मिट्टी व किसानों में नहीं है। ऐसे में 'कर बहियां बल आपनो छोड़ पराई आस' की कहावत पर भरोसा कर केंद्र की मौजूदा राजग सरकार ने आम बजट में गंभीरता से मजबूत कदम उठाते हुए खेती व खेतिहरों की सुध ली है। आम बजट में सरकार ने किसानों की आय को दोगुना करने का संकल्प किया है।
पहली हरितक्रांति के समय गेहूं व चावल की खेती पर ही जोर दिया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि देश में दलहन व तिलहन की खेती पिछड़ गई। पिछले पांच दशक में भारत दाल व खाद्य तेल आयात के मामले में दुनिया का सबसे बड़ा आयातक बन चुका है। इससे सालाना लगभग एक लाख करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा खर्च करनी पड़ती है। आम बजट में कृषि उपज की संतुलित पैदावार पर जोर दिया गया है।
कृषि और इससे जुड़े उद्यमों को सहारा देने के लिए प्रधानमंत्री के नेतृत्व में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने साहसिक कदम उठाया है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के उद्देश्य से कृषि क्षेत्र को मिली तरजीह काबिलेतारीफ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आम बजट के बाद अपने भाषण में कहा कि किसान व गांव के समृद्ध हुए बगैर देश के विकास की कल्पना नहीं की जा सकती। आम बजट के प्रावधानों में कृषि क्षेत्र की चुनौतियों को सुलझाने का प्रयास किया गया है। सरकार ने आम बजट में कृषि क्षेत्र को लगातार चुभने वाले दो बड़े कांटे निकालने की कोशिश की है। पहला कांटा जहां खेती की लागत का बढ़ना है तो दूसरा उपज का उचित मूल्य न मिलना। आम बजट के सभी प्रावधान इन्हीं समस्याओं को सुलझाने के ईद गिर्द बुने गए हैं। आम बजट में पहला प्रयास कृषि लागत में कटौती करने के लिए किया गया है। लागत कम करने के साथ खेती में किसानों के जोखिम को कम करने की कोशिश भी की गई है। खेती के तीन मूल तत्व मिट्टी, बीज और पानी मुहैया कराने को इस आम बजट में तरजीह दी गई है।
रासायनिक खाद के अंधाधुंध प्रयोग से जहरीली धूल में तब्दील हो रही मिट्टी को बचाने के लिए खाद के संतुलित प्रयोग पर जोर दिया गया है। इसके लिए मिट्टी की जांच कराने के लिए 'सॉइल हेल्थ कार्ड' बनाने की योजना शुरू की गई है। अगले दो साल के भीतर ही देश के 14 करोड़ किसानों को 'सॉइल हेल्थ कार्ड' उपलब्ध कराने का लक्ष्य तय किया गया है। गांव-गांव मिट्टी की जांच की लैब स्थापित करने की जो योजना तैयार की गई है, उसमें किसान समूहों और ग्रामीण युवाओं को प्राथमिकता दी जाएगी।
देश की 60 फीसद खेती असिंचित है, ऐसे क्षेत्रों में उत्पादकता न्यूनतम है। इस समस्या को सुलझाने के लिए सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था की गई है। हर खेत तक पानी पहुंचाने के सरकारी नारे पर अमल शुरू हो गया है। प्रति बूंद से अधिकाधिक उत्पादन बढाने के लिए जहां आधुनिक प्रौद्योगिकी पर जोर दिया गया है, वहीं सिंचाई की लगभग एक सौ लघु व मझोली लंबित परियोजनाओं को चालू करने के लिए आम बजट में समर्थन दिया गया है। इनमें 23 सिंचाई परियोजनाएं आगामी सत्र में ही शुरू हो जाएंगी। इन परियोजनाओं के शुरू हो जाने पर लगभग 80 लाख हेक्टेयर भूमि को सींचा जा सकेगा। पूरी योजना को अभियान की तरह चलाने का फैसला किया गया है। सिंचाई के अभाव में पैदावार कम होने से आत्महत्या करने वाले ज्यादातर किसान असिंचित क्षेत्र के ही हैं। दरअसल, सिंचाई परियोजना में निवेश से केंद्र सरकार ने लगभग 35 साल पहले ही तौबा कर ली थी। सिंचाई राज्य का विषय है, इसका हवाला देकर केंद्र ने इससे नाता तोड़ लिया था। उधर, सीमित संसाधनों के चलते राज्यों ने इस दिशा में बहुत कुछ नहीं किया। लिहाजा असिंचित क्षेत्र सिंचाई से वंचित रह गया। कृषि मंत्रालय के अधीन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के एक सौ से अधिक शोध संस्थान हैं जहां हजारों वैज्ञानिक कार्य कर रहे हैं। लेकिन किसानों को उन्नत प्रजाति के बीज उपलब्ध नहीं हैं। आगामी वित्त वर्ष के बजट में सरकार ने इसके लिए करीब एक हजार करोड़ रुपये की अतिरिक्त व्यवस्था की है। आज अत्याधिक पैदावार वाले हाईब्रिड बीजों की सख्त जरूरत है।
क्षेत्र के किसानों को मुश्किलों से उबारने के लिए सरकार ने उनकी लागत में कटौती के उद्देश्य से उनके लिए परंपरागत कृषि विकास योजना शुरू की है। इसके तहत जैविक खेती को प्रोत्साहित किया जाएगा। कंपोस्ट खाद और प्राकृतिक संसाधनों के माध्यम से ही अत्यधिक उत्पादन की इस विधा को विकसित किया जा रहा है। इसके लिए सरकार किसानों को अगले दो वर्ष तक वित्तीय मदद मुहैया कराएगी।
उपज का उचित मूल्य दिलाने के प्रयास के तहत आम बजट में जबरदस्त प्रावधान किये गये हैं। किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाने का प्रावधान ही नहीं है। सब कुछ बाजार यानी मंडियों पर छोड़ दिया गया है, जहां आढ़तियों व दलालों के चंगुल से निपटना किसानों के बूते की बात नहीं है। इस ओर से राज्य सरकारें भी हाथ खड़े कर चुकी थीं। मंडियों के मामले में अपनी-अपनी ढपली-अपना अपना राग बज रहा है। वहां किसी की नहीं चलती। हैरानी की बात यह है कि मंडी कानून के नाम पर सबका अपना नियम, कानून है। कुछ भी पारदर्शी नहीं है। आम बजट में इस दिशा में क्रांतिकारी कदम उठाये गये हैं। न्यूनतम समर्थन मूल्य पर उपज की खरीद का प्रावधान भी सीमित राज्यों तक ही है। गेंहू की खरीद पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश तक सीमित है। जबकि धान की खरीद भी कुछ राज्यों में ही की जाती है। इससे ज्यादातर राज्यों को इसका लाभ नहीं मिल पाता। राष्ट्रीय स्तर पर न कोई कानून है और न ही कोई राष्ट्रीय मंडी, जहां देश भर के किसान अपनी उपज बेच सकें।
कृषि उपज की देश के एक कोने से दूसरे कोने तक की आवाजाही पर अजीब किस्म की रोकटोक है, जिसका खामियाजा सीधे किसानों को भुगतना पड़ता है। आम बजट में किसानों की इस कठिन समस्या से निपटने के लिए कारगर पहल की गई हैं। बजट भाषण में कहा गया है कि देश की सभी मंडियों के कानून में एकरूपता लाने के उद्देश्य से आदर्श कानून राज्यों को भेजा गया है। 12 राज्यों ने इस पर अपनी सहमति जता दी है। राज्यों की इस पहल से मंडी कानून में सुधार को लेकर बड़ी उम्मीदें हैं। सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर 'ई-कॉमन एग्री मार्केट' की शुरुआत की है। इसके पहले चरण में ही देश की प्रमुख 585 थोक मंडियों को शामिल किया जा रहा है। इसकी शुरुआत इसी 14 मार्च को की जा रही है।
इसके अलावा कृषि क्षेत्र को सहारा देने के लिए आम बजट में 38,500 करोड़ के बजट वाली मनरेगा का 60 फीसद हिस्सा खेती का बुनियादी ढांचा तैयार करने पर खर्च किया जाएगा। मनरेगा से ही 10 लाख कंपोस्ट खाद वाले गड्डे तैयार कराये जाएंगे। पांच लाख तालाबों का निर्माण किसानों के खेतों पर किया जाएगा। -सुरेंद्र प्रसाद सिंह
लेखक दैनिक जागरण (नई दिल्ली) के नेशनल डिप्टी ब्यूरो चीफ हैं
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