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महाशिवरात्रि पर विशेष : सात सागर पार शिव सागर

by
Mar 7, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 07 Mar 2016 14:21:37

संपूर्ण देश श्वेत आभा से मण्डित है। यह आभा है पवित्रता की। यह सफेदी है उस रिक्त मन की जो शिव भक्ति के लिए तत्पर है। चारों तरफ सफेद कपड़ों में पैदल चल रही भक्तों की टोलियां जैसे सारी नदियां सागर में मिलने के लिए बढ़ती हैं, उसी तरह ये सफेद वस्त्र पहने पदयात्री गंगा तालाब की ओर बढ़ रहे हैं। भक्ति का यह रंग गेरुआ नहीं, श्वेत है! परम शांति के इस वातावरण में सब खुश हैं सब प्रसन्न हैं। ठीक वैसे ही जैसे सैगा गीतों पर नाचते हुए होते हैं। सैगा मॉरीशस का वह गीत है जिसमें डूब कर वे अपने सारे दु:ख-दर्द भूल जाते हैं, ठीक शिवरात्रि भी ऐसा ही पर्व है जब मॉरीशस में 10 दिनों तक किसी को किसी भी दु:ख-दर्द की कोई सुध नहीं रहती। सारा मॉरीशस शिवोहम हो जाता है। यहां भले ही महादेव स्वयं प्रकट न होते हों पर कण-कण में शिव का वास जरूर हो जाता है।
भारत में शिवरात्रि एक दिन का पर्व है लेकिन मॉरीशस में यह 10 दिनों का आनंद है। सबको एक परिक्रमा गंगा तालाब की जो लगानी होती है। गंगा तालाब मॉरीशस का एक मात्र हिंदू तीर्थ स्थल है, जो टापू के दक्षिण में स्थित है। इसलिए सबसे पहली पदयात्रा सुदूर उत्तर के भक्त शुरू करते हैं क्योंकि उन्हें पैदल आने और वापस लौटने में कम से कम 4-5 दिन का समय लगता है। इसी तरह जैसे-जैसे शिवरात्रि पास आती है निकटवर्ती क्षेत्र के लोगों की पदयात्राएं शुरू हो जाती हैं। पदयात्राएं आमतौर पर समूह में की जाती हैं। यह समूह शिवरात्रि से महीनेभर पहले अपनी झांकीनुमा कांवड़ को तैयार करते हैं। सबसे सुंदर और आकर्षक कांवड़ को पुरस्कृत भी किया जाता है। अब ये समूह गंगा तालाब पहुंचकर वहां से लोटों, बोतलों, डिब्बों में जल भरते हैं। वहां एक दिन निवास करते हैं, भजन-कीर्तन करते हैं। रास्तेभर कांवडि़यों के रहने और खाने-पीने की पूरी व्यवस्था की जाती है।
गंगा तालाब के समीप पहुंचते ही दूर से 108 फीट ऊंचे मंगल महादेव का दर्शन और उनकी जटाओं से निकल रही जलधारा में भीगकर हर पदयात्री की थकान मिट जाती है।
गंगा तालाब की कथा और अन्य तथ्य
सन 1897 में उत्तरी मॉरीशस के त्रियोले प्रांत के पुजारी झम्मन गिरी गोसाईं को सपने में यह तालाब दिखाई दिया। जिसके बाद वे और अन्य भक्त इस तालाब की खोज करने के लिए मॉरीशस में घूमने लगे। तब घो-बांसे नामक प्रांत में समुद्रतल से 1,800 फीट की ऊंचाई पर यह तालाब मिला जो गोसाईं को सपने में दिखाई दिया था। उस वर्ष से लेकर आज तक यह प्रथा जारी है कि पूरे देश से लोग महाशिवरात्रि पर इस स्थान की पैदल यात्रा करते हैं। पहले इसे परी तालाब कहा जाता था। लेकिन जब से भारत से गंगा नदी का पवित्र जल इसमें मिलाया गया तब से इस तालाब का नाम गंगा तालाब हो गया। अब यह पवित्र स्थल विभिन्न मंदिरों से घिरा है। यह इतना सुंदर है कि मॉरीशस आने वाला प्रत्येक पर्यटक यहां अवश्य आना चाहता है।
गंगा तालाब के आसपास का 10 किलोमीटर क्षेत्र 'नो-कंस्ट्रक्शन जोन' है। इसलिए चारों तरफ हरियाली, बड़े-बड़े पेड़ और शानदार सड़क ही नजर आती है। स्थानीय प्रतिष्ठान एवं मंदिर प्रशासन सड़क किनारे आराम एवं भोजन की व्यवस्था करते हैं। बड़ी झांकियों को पहियों के सहारे खींचा जाता है जबकि छोटी झांकियों को कावडि़ये अपने कंधों पर ले जाते हैं।
पूरे क्षेत्र में इतने टेंट और रेस्ट हाउस बनाए जाते हैं कि शिवरात्रि पर यह एक नगर का स्वरूप ले लेता है। यात्री अपने साथ पूजन सामग्री घर से ही लाते हैं, यहां किसी भी प्रकार के सामान की बिक्री की व्यवस्था नहीं होती।
गंगा तालाब पहुंचकर पहले गंगा मां की पूजा की जाती है तब इस तालाब से जल भर कर मंदिर में शिवजी पर चढ़ाया जाता है। साथ ही वे लौटते समय इसी गंगा तालाब का जल लेकर आते हैं जो अपने गांव के मंदिर में चढ़ाते हैं। इस सबको मिलाकर यहां का शिवरात्रि का पर्व पूर्ण होता है।
ल्ल  मॉरीशस से सविता तिवारी
लेखिका मरीशस में सनातन धर्म टेम्पल्स फेडरेशन से जुड़ी हैं। 

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