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पश्चिम बंगाल के बहुचर्चित उत्तरी 24 परगना जिले के बारासात गांव के कामदुनी सामूहिक बलात्कार मामले में कोलकाता की एक अदालत ने अपना फैसला दे दिया है। इसमें शामिल तीन अभियुक्तों में से अंसार अली, शेख अमीन अली और सैफल अली को फांसी और अमीनुर इस्लाम, शेख इनामुल और भोलानाथ को उम्र कैद की सजा दी है। इस जघन्य घटना के बाद कई मानवाधिकार और सामाजिक संगठनों ने न्याय की मांग की थी। लेकिन घटना में विरोध का प्रमुख चेहरा बनकर सामने आईं टुम्पा कयाल ने इसको परिणति तक पहुंचाया। टुम्पा फैसले से संतुष्ट हैं और इसे वे सत्य की जीत कहती हैं। टुम्पा कयाल से इसी विषय पर फोन से बात की अश्वनी मिश्र ने। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश:-
न्यायालय के फैसले के बाद कैसा महसूस कर रही हैं?
मैंने शुरुआत से ही इस मामले में मानव अधिकारों को ध्यान में रखा और इसी आधार पर हमारी जीत हुई है। न्यायालय के फैसले से मैं ही नहीं बल्कि इस लड़ाई में शामिल प्रत्येक व्यक्ति खुश है। जो दो आरोपी साक्ष्यों के अभाव में बरी हुए हैं उनके लिए भी हम उच्च न्यायालय में जाएंगे और सजा दिलाने के लिए पूरे प्रयास करेंगे क्योंकि वे भी उतनी ही सजा के अधिकारी हैं। इन हैवानों ने जो जघन्य अपराध किया है उसके लिए फांसी की भी सजा कम है। इस फैसले के बाद से अब हर अपराधी अपराध करने के पहले एक बार जरूर सोचेगा।
इस पूरी लड़ाई में क्या-क्या चुनौतियां सामने आईं?
महिला होने के नाते हर कदम पर समस्या ही समस्या थी। मैं जहां रहती हूं वहां किसी भी प्रकार की सुविधाएं नहीं है। सड़क, बिजली, पुलिस और अन्य सभी जरूरी संसाधन यहां कुछ नहीं है। अगर किसी भी प्रकार की घटना महिला या अन्य किसी के साथ घटती है तो घंटों बाद पुलिस पहुंचती है। 7 जून, 2013 को भी यही हुआ था। कॉलेज से लौट रही कामदुनी, 21 वर्ष, (काल्पनिक नाम) को नौ लोग अपहरण करके एक सुनसान जगह पर ले गए और फिर उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया। इसके बाद उसकी हत्या कर दी गई। जिन मजहबी तत्वों ने मेरी सहेली को मौत के घाट उतारा वे सभी रसूख वाले लोग थे। उनसे बराबर खतरा भी था। वे इतने सक्षम और दबंग थे कि कभी भी कुछ कर सकते थे। यहां तक कि जब मैंने इसके विरोध में सबको एकजुट करना शुरू किया तो कुछ दलों और अपराधियों को शह देने वाले लोगों ने मुझे धमकियां भी दीं।
आप अकेली थीं, डर नहीं लगा?
मैं इससे बिल्कुल भी नहीं डरी। इस घटना के बाद बारासात गांव के सभी लोग एकजुट हुए। सभी का एक ही उद्देश्य था कि जिन हैवानों ने ऐसा जघन्य अपराध किया है उनको जब तक मौत की सजा नहीं मिल जाती वे चैन से नहीं बैठेंगे। हमने लड़ाई लड़ी और हर कठिनाई का मुंहतोड़ जवाब दिया।
इस कठिन लड़ाई की प्रेरणा कहां से मिली?
मुझे यह प्रेरणा मेरी मां से मिली। जब यह घटना घटी थी तो हर गांववासी की आंखों में आंसू थे और सब क्रोध से भरे हुए थे। मेरी मां ने कहा था कि यह सच और इंसानियत की लड़ाई है। वह तुम्हारी सहेली है इसलिए तुम्हें उसे न्याय दिलाने के लिए लड़ना चाहिए। मेरे ससुराल पक्ष ने भी इसमें बहुत मदद की। जब-जब मुझे आन्दोलन के लिए गांव आना होता था तो वे सब मेरी हिम्मत बढ़ाते थे। साथ ही मेरी चाची मौसमी कयाल जो कंधे से कंधा मिलाकर मेरा साथ दे रही थीं। मुझे इन सभी बातों से हौसला मिलता था। सबसे बड़ी बात यह थी कि वह मेरी अच्छी सहेली थी। मुझे उसका दर्द अपना दर्द लगता था। मेरी आत्मा कहती थी कि जिसने भी कामदुनी के साथ ऐसा जघन्य अपराध किया है उसको कड़ी से कड़ी सजा दिलाकर ही रहूंगी।
इस पूरे प्रकरण में किन-किन लोगों का सहयोग रहा?
इसमें सभी की मदद रही। यह कह सकते हैं पूरा पश्चिम बंगाल हमारे साथ था। हर ऐसा व्यक्ति जिसके हृदय में जरा भी इंसानियत थी उसने इसमें आगे आकर समर्थन किया और हौसला बढ़ाया। सबसे बड़ा सहयोग सरकारी वकील का था जिन्होंने पूरे मन से इस मुकदमे को लड़ा और हमारी जीत हुई।
अदालत ने हमारी दलीलें स्वीकार करते हुए इसे दुर्लभतम मामला मानकर दोषियों को कठोरतम सजा सुनाई है। इससे हम संतुष्ट हैं।
—अनिंद्य रंजन, सरकारी अधिवक्ता
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