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हाल ही में देश के सात राज्यों में 12 विधानसभा सीटों के लिए उप चुनावों के नतीजों ने और कुछ साबित किया हो या न किया हो, पर एक बात तो साबित कर दी है कि देश की जनता केन्द्र की मोदी सरकार की विकास नीतियों के साथ है। और यही वजह है कि भाजपा ने सहयोगी दलों के साथ 12 में से 7 सीटों पर आकर्षक जीत दर्ज की है। जेएनयू की घटनाओं से आहत देश को उप चुनावों के नतीजों से एक सकारात्मक संदेश तो गया ही है। कांग्रेस, कम्युनिस्ट और सेकुलर दलों ने भाजपा, विशेषकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रति जिस तरह से राजनीतिक अस्पृश्यता का माहौल बनाया हुआ है, उसको देखते हुए हाल के उप चुनाव नतीजों को अगर मोदी सरकार की 'सबका साथ, सबका विकास' नीति के प्रति समर्थन के तौर पर देखा जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, पंजाब, बिहार, महाराष्ट्र, तेलंगाना और त्रिपुरा में 12 सीटों पर हुए उप चुनाव ने एक तरह से लोगों के दिल में क्या चल रहा है। इसे सामने रखा है। चुनाव के नतीजों को प्रधानमंत्री ने विकास की जीत बताया है। उन्होंने ट्वीट किया, ''भारतवासियों ने विकास, विकास और विकास की नीतियों में भरोसा जताया है।''
कांग्रेस ने खाई मुंह की
विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस शासित कर्नाटक में भाजपा हेब्बल और देवदुर्ग में जीती जबकि बीदर में हार गई। कर्नाटक में मुख्यमंत्री सिद्धरमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को यह एक बड़ा झटका है। कांग्रेस ने हेब्बल चुनाव जीतने के लिए करोड़ों रु. झोंक दिए थे। हेब्बल क्षेत्र में मुस्लिम मतदाताओं की एक बड़ी तादाद है, इसलिए कांग्रेस को जनता दल (सेकुलर) के बागी प्रत्याशी जमीर अहमद खान का भी खुला समर्थन हासिल था। लेकिन वह भी काम न आया। भाजपा के वाई.ए.नारायणस्वामी ने चुनाव प्रचार के लिए कम समय मिलने के बावजूद कांग्रेस प्रत्याशी अब्दुल रहमान शरीफ (पूर्व कंेद्रीय मंत्री जफर शरीफ के पोते) को 19,149 वोटों से हरा दिया। चुनाव में ऐसी हार देखकर कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष जी. परमेश्वर तक यह कहने से अपने को रोक नहीं पाए, ''यह हमारे लिए खतरे की घंटी है।'' देवदुर्ग सीट पर कांग्रेस के पूर्व विधायक वेंकटेश नाईक के बेटे राजशेखर के बेटे को चुनाव में उतार कर भावना के बल पर जीतने की कोशिश भी असफल रही। यहां से भाजपा प्रत्याशी के.शिवनगौड़ा नाईक 72,647 वोट लेकर जीते। यह सीट कांग्रेस विधायक 79 वर्षीय वेंकटेश नाईक की रेल दुर्घटना में मृत्यु होने से खाली हुई थी। कांग्रेस के लिए गनीमत रही कि बीदर चुनाव में रहीम खान ने 22,721 मतों से भाजपा के प्रकाश खांद्रे से बाजी मार ली। वहीं जनता दल (सेकुलर) की ऐसी फजीहत हुई कि तीनों सीटों पर उसके प्रत्याशियों की जमानत तक जब्त हो गई।
पलटा पासा, जीती बाजी
बहरहाल, सबसे अहम नतीजे उत्तर प्रदेश से आए जहां साम्प्रदायिक तनाव और राजनीतिक नेताओं के बयानों ने माहौल को और जटिल बनाया हुआ है। साथ ही, इस राज्य मंे 2017 में विधानसभा चुनाव होने हैं। इस लिहाज से उप चुनावों के नतीजों से साफ पता चलता है कि हवा किस तरफ बह रही है। उप चुनाव वाली तीनों सीटों पर सपा का कब्जा था। हालांकि वह बीकापुर सीट पर तो कब्जा बरकरार रखने में सफल रही, जहां उसके प्रत्याशी आनंद सेन यादव विजयी रहे। लेकिन देवबंद और मुजफ्फरनगर सीट उसके हाथ से जाती रहीं। देवबंद में कांग्रेस जीती और मुजफ्फरनगर में भाजपा फिर से अपना कब्जा करने में सफल हुई। गाजियाबाद में मेयर के चुनाव में भाजपा उम्मीदवार आशु वर्मा 1,15,900 वोट लेकर विजयी रहे। उन्होंने सपा प्रत्याशी सुधन रावत को 47,225 रिकार्ड मतों से हराया जबकि कांग्रेस उम्मीदवार लालमन की जमानत जब्त हो गई। इन उप चुनावों में सबसे ज्यादा निगाहें मुजफ्फरनगर सीट पर लगी थीं, जहां से ये संकेत मिलने थे कि पश्चिमी उप्र की सियासत में महत्वपूर्ण मानी जाने वाली जाट बिरादरी का ताजा रुख क्या है। लोकसभा चुनाव में बिजनौर, मुजफ्फरनगर और बागपत से जीते भाजपा के तीनों सांसद इसी समुदाय से थे,तब पूरे पश्चिमी उप्र की सभी सीटें भाजपा के खाते में गई थीं।
2017 के विधानसभा चुनाव से पहले इस समुदाय के रुझान को जानने के लिए राजनीतिक समीक्षक बेताब थे। कयास लगाए जा रहे थे कि रालोद नेता अजित सिंह विधानसभा चुनावों में महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं। लेकिन मुजफ्फरनगर उप चुनाव में अजित सिंह और उनके बेटे जयंत चौधरी भरपूर प्रयास करने के बावजूद रालोद प्रत्याशी मिथलेश पाल को कामयाबी दिलाने में नाकाम रहे। भाजपा के विजयी प्रत्याशी कपिल देव ने 65,378 मत प्राप्त किये और सपा प्रत्याशी गौरव स्वरूप को 7,352 के बडे़ अंतर से पराजित किया। रालोद प्रत्याशी मिथलेश पाल को मिले 14,673 मतों में मुश्किल से दो-ढाई हजार ही जाट वोट हैं। कांग्रेस प्रत्याशी सलमान सईद कोे 10,561 वोट मिले। खादी ग्रामोद्योग आयोग के सदस्य बागपत के जाट नेता जयप्रकाश तोमर और भाजपा के पूर्व प्रांतीय महामंत्री एवं पूर्व एमएलसी डॉ़ वीरसेन सरोहा मानते हैं कि रालोद नेताओं द्वारा जाट समुदाय के रालोद के साथ जानें की खबरें समुदाय में भम्र फैलाने के लिए जान-बूझकर उड़ाई गई थीं, जिन्हें मुजफ्फरनगर उप चुनाव में जाटों ने एक बार फिर से भाजपा के उम्मीदवार के पक्ष मंें भारी मतदान करके खारिज कर दिया। उधर गाजियाबाद मेयर के चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार आशु वर्मा के पक्ष में मतदान कर जाट समुदाय ने एक बार फिर से अपनी मंशा साफ कर दी। अब यह बात पूरी तरह सच प्रतीत होती है कि अजित सिंह की वापसी मुश्किल है। गौर करने की बात है कि देवबंद विधानसभा उप चुनाव में भाजपा प्रत्याशी रामपाल पुंडीर कम मतों से पराजित जरूर हो गए, लेकिन अपनी राजपूत बिरादरी के साथ-साथ अन्य समुदायों के वोट पाने में सफल रहे। माना जाता है कि कम मतदान होना रामपाल पुंडीर की हार की वजह बना। कांग्रेस की जीत मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण और हिंदू मतदाताओं के भाजपा प्रत्याशी रामपाल पुंडीर एवं सपा प्रत्याशी मीना राणा के बीच बंट जाने के कारण हुई।
राह हुई आसान
अब बात पंजाब की। प्रदेश में खडूर साहिब उप चुनाव में शिरोमणि अकाली दल के लिए राह बेहद आसान थी। उसके प्रत्याशी को कोई प्रतिद्वंद्विता झेलनी ही नहीं पड़ी। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बागी प्रत्याशियों को तकनीकी अयोग्यता के कारण टक्कर से बाहर कर दिया गया था। पंजाब में भी अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। लेकिन सत्तारूढ़ बादल सरकार कानून और व्यवस्था के गंभीर आरोपों के घेरे में हैं। वहां आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने भ्रष्टाचार के मुद्दे भी उठाए हैं।
उधर बिहार में भाजपा की सहयोगी आएलएसपी ने हरलाखी उप चुनाव जीता है। टक्कर में सामने जदयू-राजद-कांग्रेस का गठजोड़ था। इन नतीजों पर एक सामान्य राय है कि राजग को मुख्यमंत्री नीतीश की छवि धूमिल होने का लाभ मिला। निश्चित तौर पर यह महागठबंधन की बड़ी हार है। केंद्रीय राज्यमंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने इसे नीतीश और लालू के लिए सबक बताया। भाजपा के लिए यहां ऐसे नतीजे आना इस मायने में संतोषप्रद है कि पिछले विधानसभा चुनाव में उसे यहां काफी निराशा हाथ लगी थी। अब उसकी सहयोगी पार्टी की जीत और वह भी सेकुलर गठजोड़ के सामने, बिहार के चुनावी गणित में बहुत मायने रखती है। इससे पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल निश्चित ही बढ़ गया है। इसके अलावा मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और तेलंगाना में भाजपा, शिवसेना और टीआरएस को एक-एक सीट पर जीत मिली तो त्रिपुरा में माकपा ने अपनी सीट अपने पास ही रखी। भाजपा को अपने इस प्रदर्शन को बनाए रखते हुए अगले वर्ष पंजाब और उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए अभी से तैयारी करनी होगी तभी चुनावी वैतरणी पार लगेगी।
आलोक गोस्वामी साथ में सुरेन्द्र सिंघल (उत्तर प्रदेश) संजीव कुमार (बिहार) और गुरुप्रसाद (कर्नाटक)
राज्य भाजपा कांग्रेस सपा शिअद आरएलएसपी शिवसेना माकपा टीआरएस
कर्नाटक 2 1 0 0 0 0 0 0
उ.प्र. 1 1 1 0 0 0 0 0
बिहार 0 0 0 0 1 0 0 0
महाराष्ट्र 0 0 0 0 0 1 0 0
त्रिपुरा 0 0 0 0 0 0 1 0
पंजाब 0 0 0 1 0 0 0 0
तेलंगाना 0 0 0 0 0 0 0 1
म.प्र. 1 0 0 0 0 0 0 0
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