|
भारत में इंटरनेट तटस्थता यानी 'नेट न्यूट्रिलिटी' के मुद्दे पर मचा घमासान फिलहाल थम गया है क्योंकि टेलीकॉम रेगुलेटरी ऑफ इंडिया यानी 'ट्राई' ने 'नेट न्यूट्रिलिटी' के पक्ष में अपना फैसला सुना दिया है। 'ट्राई' ने 'नेट न्यूट्रिलिटी' का समर्थन करते हुए कहा है कि इंटरनेट कंपनियों को अलग-अलग दामों पर सेवाएं मुहैया कराने की इजाजत नहीं होगी। इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को काम के हिसाब से अपना शुल्क बदलने का अधिकार नहीं होगा। सिद्धांत में 'नेट न्यूट्रिलिटी' का मतलब है कि इंटरनेट सेवा प्रदान करने वाली कंपनियां इंटरनेट पर हर तरह के डाटा पैकेट को एक जैसा दर्जा देंगी। इंटरनेट सेवा देने वाली इन कंपनियों में टेलीकॉम ऑपरेटर्स भी शामिल हैं। वैसे भारत में अभी तक 'नेट न्यूट्रिलिटी' ही है क्योंकि एक बार किसी कंपनी से इंटरनेट सेवा लेने के बाद उस 'बैंडविड्थ' का इस्तेमाल ग्राहक अपनी सुविधा के अनुसार करता है। यानी ग्राहक चाहे तो यू ट्यूब पर वीडियो देखे, स्काइप पर बात करे, गूगल पर कुछ खोजे या मोबाइल पर व्हाट्सएप के जरिए संदेश भेजे, कंपनी को इससे लेना-देना नहीं होता। सरल भाषा में कह सकते हैं कि लोग घरों में बिजली के इस्तेमाल का बिल चुकाते हैं। मगर, कंपनियां यह नहीं कहतीं कि टीवी चलाने पर बिजली की दर अलग होगी और फ्रिज, कम्प्यूटर और वाशिंग मशीन चलाने पर अलग।
लेकिन, 2014 में जब एयरटेल ने स्काइप और वाइबर जैसी 'एप्लीकेशन्स' के इस्तेमाल के लिए ग्राहकों से अतिरिक्त शुल्क वसूलने का फैसला किया तो हंगामा मच गया। एयरटेल का तर्क था कि 'वॉयस कालिंग एंड मैसेजिंग एप्स' की वजह से सीधे तौर पर उसे नुकसान उठाना पड़ रहा है। इससे 'नेट न्यूट्रिलिटी' को लेकर बहस और तेज हो गई। ट्राई ने 118 पेज का परामर्श पत्र जारी कर दिया था, जिसमें 'नेट' नियमन से संबंधित 20 सवालों पर लोगों से राय मांगी गई थी। इस बीच फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग इंटरनेट को गांव-गांव और हर गरीब तक पहुंचाने का ऐलान करते हुए 'फ्री बेसिक्स' योजना लेकर बाजार में उतर पड़े। इसे भारत से पहले करीब 36 देशों में लागू किया जा चुका था। 'फ्री बेसिक्स' ग्राहकों को चंद वेबसाइटों तक नि:शुल्क पहुंच की सुविधा देती थी। दिसंबर में 'ट्राई' ने 'नेट न्यूट्रिलिटी' पर एक और परामर्श पत्र जारी किया तो फेसबुक ने 'सेव फ्री बेसिक्स' नाम से अभियान छेड़ दिया, लोगों से आग्रह किया कि वे फ्री बेसिक्स के समर्थन में 'ट्राई' को लिखें। अब 'ट्राई' ने फेसबुक के इरादे पर भी पानी फेर दिया है।
लेकिन सवाल फेसबुक, एयरटेल या किसी कंपनी का नहीं है। सच यही है कि 'ट्राई' का यह फैसला कई मायनों में न केवल अहम है बल्कि ऐतिहासिक है। दरअसल, 'ट्राई' ने अपने फैसले से बता दिया है कि नेट तटस्थता के मुद्दे पर देश क्या चाहता है और एक लिहाज से एक दिशा तय कर दी है कि अब 'फ्री बेसिक्स' या कुछ सेवाओं के लिए अलग शुल्क जैसे मुद्दों पर और बहस न हो।
यह फैसला इसलिए भी बहुत अहम है क्योंकि 'ट्राई' के ऊपर खासा दबाव था। फेसबुक जैसी कंपनी 400 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च कर प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में अभियान संचालित कर रही थी, और एक माहौल बनाने की कोशिश थी कि फेसबुक सामाजिक सरोकार के तहत नेट को हर गरीब तक पहुंचाना चाहती है और नेट तटस्थता का मुद्दा खोखला है। फिर, अभियान का दूसरा पक्ष था कि लोगों में धारणा बनने लगी थी कि अगर 'फ्री बेसिक्स' के जरिए नेट की कुछ सुविधाएं कुछ लोगों को निशुल्क मिल सकती हैं तो इसका विरोध क्यों हो। खासकर जब इंटरनेट अभी गांव-कस्बों तक नहीं पहुंचा है और गांव-कस्बों में लोग इंटरनेट पर न तो ज्यादा धन खर्च करने की स्थिति में हैं, न वे करना चाहते हैं। 'ट्राई' का फैसला उन छोटे नेट कार्यकर्ताओं की भी जीत है, जिन्होंने 'नेट न्यूट्रिलिटी' को बचाने के लिए छोटी-छोटी कोशिशें कीं। 'ट्राई' का फैसला उन देशों के लिए मिसाल है,जहां सामाजिक आर्थिक स्थिति भारत सरीखी है और जहां इंटरनेट तटस्थता के मुद्दे पर बहस हो रही है। पर यह साफ हो गया है कि इंटरनेट को बचाने के लिए 'नेट न्यूट्रिलिटी' जरूरी है।
निश्चित रूप से फेसबुक निराश है, और तमाम दूसरे 'टेलीकॉम ऑपरेटर' भी। उनका तर्क है कि इससे डिजिटल इंडिया अभियान को धक्का लगेगा क्योंकि 'फ्री बेसिक्स' या इस तरह की दूसरी सेवाओं के जरिए नेट की पहुंच तेजी से व्यापक होती। लेकिन 'ट्राई' ने नेट की आजादी को गिरवी रखने के बजाय व्यापक पहुंच के मुद्दे को त्यागा है तो यह भी एक साहसिक कदम है। वैसे, इससे उन स्टार्टअप कंपनियों को राहत मिलेगी, जो अपने नए रचनात्मक विचारों के साथ मैदान में उतरने को तैयार हैं। दिलचस्प है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने हमेशा यही कहा कि वह 'नेट न्यूट्रिलिटी' के पक्ष में है, लेकिन मार्क जुकरबर्ग से उनकी दो बड़ी मुलाकातों के बीच विपक्ष ने यही प्रचार किया कि सरकार नेट 'न्यूट्रिलिटी' पर समझौता करना चाहती है। अब सरकार ने साफ कर दिया कि देश में 'नेट न्यूट्रिलिटी' है और रहेगी। भारत ने यह बड़ा फैसला किया है। इसका असर दुनिया के कई दूसरे देशों की नीति पर पड़ना भी तय है। लेकिन देखना यह भी होगा कि क्या फेसबुक और तमाम दूसरी टेलीकॉम कंपनियां 'ट्राई' के फैसले के बाद हार मान लेती हैं या फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती दी जाती है। -पीयूष पांडे
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और सोशल नेटवर्किंग के अध्येता हैं)
* भारत सरकार ने लिया बड़ा फैसला-'नेट न्यूट्रिलिटी' है और रहेगी।
* अब न चलेगी टेलीकॉम ऑपरेटर्स की थानेदारी-वे नहीं तय करेंगे ग्राहक बैंडविड्थ का कैसे इस्तेमाल करे।
* फेसबुक ने 'सेव फ्री बेसिक्स' के जरिए ग्राहकों को अपने पक्ष में करने का चलाया था अभियान, पर 'ट्राई' के फैसले से फिरा उम्मीदों पर पानी।
* 'नेट न्यूट्रिलिटी' को बचाने में जुटे नेट कार्यकर्ताओं की जीत है 'ट्राई' का फैसला।
* भारत सरकार के कदम से दुनिया के दूसरे देशों के सबक लेने के बढ़े आसार।
टिप्पणियाँ