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अभिव्यक्ति की स्वंतत्रता भारत जैसे गणतंत्र की एक विशेषता है, लेकिन संविधान द्वारा दी गई इस स्वंत्रता की आड़ में जब समाज के एक बड़े हिस्से की भावनाओं को चोट पहुंचाई जाती है तो यह आजादी उदार समाज को भी खल जाती है। देश में 'बढ़ती असहिष्णुता' की बेबुनियाद बहस छेड़ने वाली 'ब्रिगेड' के मुखिया बने आमिर और शाहरुख खान शायद समाज का यही गुस्सा झेल रहे हैं। असहिष्णुता के मुद्दे का राजनीतिकरण करने वाली अनावश्यक बयानबाजी शाहरुख और आमिर को सोशल मीडिया पर ही भारी नहीं पड़ी, इसका आर्थिक झटका भी दोनों अभिनेताओं को लगा है। विवादित बयान के बाद शाहरुख की जी-तोड़ कोशिश भी उनकी बहुचर्चित फिल्म के लिए दर्शक नहीं जुटा सकी और ऑनलाइन बिक्री की साइट स्नैपडील ने तो आमिर से पल्ला छुड़ाने में ही भलाई समझी।
बीते साल नवम्बर में अचानक एक दिन आमिर को लगा कि भारत में 'असहिष्णुता' बढ़ रही है और उनकी पत्नी को 'ऐसा लगता है कि उन्हें देश छोड़कर कहीं और चले जाना चाहिए'। इस सार्वजनिक बयान के बाद देशभर में आमिर के प्रशंसकों और गैर प्रशंसकों में तेज प्रतिक्रिया देखने को मिली। जनवरी में भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय ने आमिर खान को 'अतुल्य भारत' का ब्राड एंंबेसेडर बनाने वाली कंपनी से अपने करार का नवीकरण नहीं किया। ज्यादातर लोग इससे सहमत लगे। जनता का वाजिब तर्क यह था कि जिस व्यक्ति को भारत एक असहिष्णु देश लगता है, वह उस देश का ब्रांड एम्बेसडर कैसे हो सकता है? आमिर 'अतुल्य भारत अभियान' से 2009 से जुड़े थे। सिलसिला वहीं तक नहीं थमा। लोग सोशल मीडिया पर आमिर के बयान की आलोचना के अलावा उन उत्पादों के बहिष्कार की बातें करने लगे जिनसे आमिर जुड़े थे।
आमिर ऑनलाइन व्यापार करने वाली स्नैपडील का चेहरा थे। कंपनी पर भारी दबाव पड़ा। लोग विरोधस्वरूप इसके मोबाइल एप को धड़ाधड़ हटाने लगे। स्नैपडील के प्रबंधकों ने कंपनी के वित्तीय स्वास्थ्य पर मंडराता खतरा भांप लिया। प्रिंट और टीवी पर चल रहे आमिर के विज्ञापन 'दिल की डील' को रोक दिया गया। विज्ञापन और मार्केटिंग के जानकार सुभाष सूद कहते हैं, ''विज्ञापन-विपणन के छात्रों के लिए यह घटना ब्रांड एम्बेसडर द्वारा गलत समय पर गलत बयान देने और कंपनी द्वारा सही समय पर गलती सुधार लेने का नमूना है।'' जानकारों की राय में स्नैपडील के साथ अनुबंध से आमिर 15 से 20 करोड़ रु. वार्षिक कमा रहे थे, जिससे वे हाथ धो बैठे।
बहरहाल, कभी कुपोषण, सड़क सुरक्षा जैसे सरकारी अभियानों का हिस्सा रहे और गोदरेज, टाटा स्काई, कोका कोला, टाइटन, अतुल्य भारत, स्नैपडील जैसे कई निजी ब्रांड का प्रतिनिधि चेहरा बन कर करोड़ों की कमाई करते रहे आमिर के पास आज एक भी बड़ा ब्रांड नहीं बचा है।
'असहिष्णुता ब्रिगेड' के दूसरे बड़े 'सैनिक' शाहरुख खान के बयान के बाद लोगों की प्रतिक्रिया से उपजा दर्द इतना गहरा था कि उन्हें कुछ और बयान देने पड़े।
रोहित शेट्टी के निर्देशन में बनी 'दिलवाले' के प्रदर्शन के पहले शाहरुख खान ने यह कह कर पलटी मारी कि उन्होंने कभी कहा ही नहीं कि भारत असहिष्णु देश है। उनके बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है। जब लगा कि इतने से बात नहीं बनी तो लगा-बंधा भावनात्मक जुमला (कि वे तो पक्के भारतीय हैं और उन्हें भारत पर गर्व है) भी आजमाया गया। दरअसल, उनको डर था कि बयान का परिणाम आशंका से ज्यादा गहरा हो सकता है। 'दिलवाले' भारी-भरकम बजट की फिल्म थी। मायानगरी के आकलन कहते हैं कि शाहरुख का मेहनताना जोड़ दिया जाए तो फिल्म का कुल बजट (प्रचार समेत) 125 करोड़ रु. से कम नहीं था। लेकिन 'खान' और उनसे आस लगाए निर्माताओं-वितरकों की उम्मीदों का जहाज डूब गया। रोहित शेट्टी, शाहरुख खान, काजोल जैसे बड़े नाम 'दिलवाले' को पिटने से नहीं बचा सके। फिल्म कारोबार के जानकारों ने 'दिलवाले' को 'फ्लॉप' घोषित कर दिया। वितरकों और सिनेमा हॉल मालिकों के पैसे डूब गए। सत्ता खतरे में आई तो शाहरुख ने माना कि फिल्म के डूबने की वजह असहिष्णुता पर दिए उनके बयान से बना माहौल है। लेकिन साथ ही कहा कि वे 'अपने बयान को वापस नहीं ले सकते क्योंकि ऐसा करके वे खुद अपनी नजर में गिर जायेंगे।'
बड़ा सवाल यह है कि कभी मायानगरी और विज्ञापन बाजार पर राज करने वाली 'खान द्वय' को दर्शकों और जनता द्वारा दिए जोरदार झटके तात्कालिक हैं या उनका जादू छीजने लगा है?
कुछ संकेत दूसरी बात की ओर इशारा करते हैं। शाहरुख के ताजा बयान के बाद यह भी कहा जा रहा है कि शाहरुख 'दिलवाले' की 'पिटाई' को अपने बयान से उपजे विवाद से जोड़कर खुद अपनी असफलता छिपाने की कोशिश कर रहे हैं। मुंबई स्थित फिल्म आलोचक भारती दुबे कहती हैं, ''मैं दावे से नहीं कह सकती कि शाहरुख की फिल्म के डूबने में उनके विवादास्पद बयान का ही हाथ है, लेकिन यह जरूर कह सकती हूं कि 'दिलवाले' एक कमजोर फिल्म थी।''
यह तय है कि जनता में बढ़ते गुस्से और खतरे में पड़ी प्रतिष्ठा ने 'खान टोली' को नए आधार तलाशने और अपने मतभेद भुलाने पर मजबूर कर दिया है। कभी सबसे तो कभी आपस में भी टकरा जाने वालों के लिए यह चुनौतीपूर्ण समय है। अक्षय कुमार, कैटरीना कैफ जैसे सितारे शाहरुख, आमिर और उनके मित्र करण जौहर के विचारों से खुलेआम असहमति जता रहे हैं। मायानगरी का यह चलन नया है।
अकेले पड़ जाने के इस अनुभव के बाद नए आधार तलाशने की कवायद जोरों पर है। 2016 में शाहरुख, आमिर और सलमान खान की फिल्में आ रही हैं। यह शायद पहला मौका है जब किसी एक साल में 'तीन खान' मैदान में उतर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने आपसी मनमुटाव भी भुला दिए हैं। मित्रता, देशभक्ति और साथ-साथ 'पाकिस्तानी' दर्शकों में आधार बढ़ाने की इस पहल के कई दिलचस्प पहलू हैं।
पहले बात 'रईस' की। जानकारों के अनुसार 'मियांभाई की डेयरिंग (दुस्साहस)' को 'टैग लाइन' की तरह लहराती इस फिल्म को पहले ईद पर प्रदर्शित करने की योजना थी। लेकिन परिस्थितियां बदलीं तो दिन भी बदल गया। फिल्म इंडस्ट्री में चर्चा है कि शाहरुख 'रईस' को देशभक्ति वाले दिन यानी 15 अगस्त को प्रदर्शित करेंगे। ईद पर ही सलमान खान की नई फिल्म 'सुलतान' को भी प्रदर्शित करने की योजना थी। दोनों फिल्मों का टकराव तय था लेकिन नाजुक हालत को देखते हुए शाहरुख और सलमान के बीच हाल तक की दुश्मनी अब दोस्ती में बदल गयी है। दोनों को महसूस हो गया है कि आपसी दुश्मनी में धंधे पर बुरा असर होता है। सलमान की 'सुलतान' के जारी करने का दिन अभी अंतिम तौर पर तय नहीं हो सका है।
यशराज फिल्म्स के लिए 'मेरे ब्रदर की दुल्हन' जैसी फ्लॉप फिल्म बना चुके अली अब्बास जफर 'सुलतान' के निर्देशक हैं। 'सुलतान' भी यशराज फिल्म्स की ही फिल्म है। 'रईस' के निर्माता फरहान अख्तर और शाहरुख की पत्नी गौरी खान हैं और निर्देशक हैं राहुल ढोलकिया, जो इससे पहले गुजरात दंगों पर आधारित 'परजानिया' नाम की फिल्म बना चुके हैं। 'परजानिया' को 2005 में राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला था। मीडिया में आयी खबरों के अनुसार, 'रईस' की कहानी कथित रूप से गुजरात में शराबबंदी और नशाबंदी पर केन्द्रित है और ऐसे प्रतिबंधों की आलोचना करती है। लेकिन 'रईस' की चर्चा 'खान दोस्तों' में पैदा हुई नई समझ के अलावा कुछ और वजहों से भी है। कहा जा रहा है कि इस फिल्म के जरिए शाहरुख पाकिस्तानी दर्शकों में अपनी पैठ बढ़ाना चाहते हैं। क्या ऐसा भारतीय दर्शकों के छिटकते जाने की वजह से है? फिल्म की नायिका माहिरा खान पाकिस्तान की हैं। पहली बार एक पाकिस्तानी अभिनेत्री को शाहरुख खान जैसे बड़े सितारे के साथ लाने के सर्मथन में तर्क देते हुए फरहान अख्तर ने कहा कि दरअसल 'रईस' की कहानी गुजरात के एक मुस्लिम बहुल इलाके के एक स्थानीय माफिया पर केन्द्रित है जिसके लिए उन्हें एक ऐसी लड़की की दरकार थी जिसमें एक खास किस्म की भाव-भंगिमा हो और जिसकी चाल-ढाल अलग हो। ऐसी कोई मुस्लिम लड़की उन्हें यहां मिली नहीं, सो उन्होंने पाकिस्तान जाकर माहिरा को ले लिया। सच तो वह ही जानें। बहरहाल, प्रमुख फिल्म वितरक संजय मेहता कहते हैं, ''शाहरुख जानते हैं कि अपनी फिल्म की मार्केटिंग कैसे की जाए, लेकिन असहिष्णुता विवाद की पृष्ठभूमि में किसी पाकिस्तानी हीरोइन को साथ लेकर भारतभर में अपनी फिल्म का प्रचार करना उनके लिये भी शायद आसान न हो।''
नामी फिल्म आलोचक सैबल चटर्जी कहते हैं, ''एक आलोचक के तौर पर मेरे लिए सिर्फ यह महत्वपूर्ण है कि फिल्म का कथानक क्या है, फिल्म बनी कैसी है, निर्देशन कैसा है और फिल्म के पात्रों ने कैसा अभिनय किया है। फिल्म से जुड़े लोगों के निजी जीवन या उनके इतिहास से मुझे कोई लेना-देना नहीं है।'' लेकिन हमारे देश में कई ऐसे लोग हैं जिनके लिए यह भी महत्वपूर्ण है कि जिस अभिनेता को वे परदे पर देख रहे हैं, वह अपने निजी जीवन में कैसा है और उसका चरित्र कैसा है? दुबे कहती हैं, ''हिंदी सिनेमा के लिए पाकिस्तान का बाजार धीरे-धीरे बढ़ रहा है। वहां पहले से ही शाहरुख की फिल्मों को लेकर उत्साह रहा है। ऐसे में किसी पाकिस्तानी हीरोइन को लेकर अगर उस बाजार में उत्सुकता बढ़ जाए तो क्या हर्ज है? हां, मुझे अभी यह नहीं पता कि इसका हिन्दुस्थानी दर्शकों पर कैसा अच्छा या बुरा असर होगा?''
बहरहाल, शाहरुख और आमिर, दोनों के लिए 2016 महत्वपूर्ण है। शाहरुख के सामने दो प्रमुख चुनौतियां हैं-पहली, असहिष्णुता विवाद के बाद अपनी खोयी जमीन को वापस पाना, जो कि फिलहाल आसान नहीं दिख रही है़ दूसरी, 'रईस' की पाकिस्तानी हीरोइन को हिन्दुस्थानी दर्शकों के बीच स्वीकार करवाना।
दूसरी तरफ, आमिर खान की 'दंगल' को 2016 के क्रिसमस पर जारी करने की योजना है। पर अभी तो सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या दर्शकों के एक बड़े धड़े का गुस्सा क्या उनकी अगली फिल्म पर भी फूटेगा? यह कहना अभी मुश्किल है लेकिन आमिर के करीबी पत्रकार और आमिर के प्रचार तंत्र का काम देख रही कंपनी सक्रिय हो गयी है। खुद आमिर ने अपनी देशभक्ति की कसमें खानी शुरू कर दी हैं। 23 दिसम्बर को जारी होने वाली 'दंगल' का हिट ही नहीं, सुपरहिट होना बहुत जरूरी है वरना 300 करोड़ रु. के हीरो की उनकी छवि पर बट्टा लग जाएगा। वैसे आमिर के लिए यह अच्छी खबर नहीं है कि बीते साल जारी हुई सुपरहिट 'बाहुबली' के निर्देशक राजमौली इस बार उनसे दो-दो हाथ करने की सोच रहे हैं। 'बाहुबली 2' उसी दिन जारी जाएगी जिस दिन 'दंगल' जारी होगी! -अमिताभ पाराशर
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