विशेष रपट- आत्मरक्षा की अलख
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विशेष रपट- आत्मरक्षा की अलख

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Feb 15, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 15 Feb 2016 12:50:28

गाजियाबाद में अंग्रेजी माध्यम के एक प्रतिष्ठित स्कूल का नौंवी का छात्र सचिन सुबह स्कूल जाने से पहले अखाड़े में कुश्ती के दांव-पेच सीखने के बाद ट्रेक सूट पहनकर घर जाने की तैयारी में है। सचिन का कहना है, ''मैं स्वस्थ्य रहने और आत्मरक्षा के लिए अखाड़े जाता हूं।'' फर्राटेदार अंग्रेजी बोल रहा सचिन कुछ ही मिनट बाद गायत्री मंत्र और महामृत्युजंय मंत्र शुद्ध उच्चारण करते हुए चौंका देता है। शरीर को स्वस्थ-सबल बनाते हुए संस्कृति रक्षा के संकल्प की राह पर बढ़ते सचिन अकेले नहीं हैं, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद, मेरठ, मुजफ्फरनगर जिले के गांवों के हजारों छात्र-छात्राएं उनके साथ हैं। ये बच्चे स्कूल व कॉलेज में पढ़ाई के अलावा नियमित रूप से अपने गांव में शारीरिक अभ्यास करते हैं। इनको देख किसी को भी लगेगा कि ये बच्चे खिलाड़ी बनने के लिए अभ्यास कर रहे हैं, लेकिन अभ्यास के पीछे खिलाड़ी बनने की इच्छा या प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए शारीरिक दक्षता बढ़ाना नहीं है वजह है क्षेत्र में बढ़ते उन्माद और अपराध के विरुद्ध कमर कसना।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इस पूरी मुहिम की शुरुआत करने वाले गाजियाबाद स्थित डासना देवी मंदिर के महंत यति बाबा नरसिम्हानंद सरस्वती कहते हैं ''आतंकवाद और मजहबी उन्माद दिनों दिन बढ़ रहा है। ऐसे में हर हिंदू युवा का शारीरिक रूप से मजबूत होना बेहद आवश्यक है। वैसे भी हमारे धर्म में कहा गया  है—धर्मो रक्षति रक्षित: अर्थात धर्म की रक्षा से ही व्यक्ति की रक्षा होती है। हमारी पुरातन शिक्षा पद्धति को देखें तो शस्त्र विद्या भी शिक्षा का एक हिस्सा होती थी। गुरुकुल में छात्रों को तमाम विषयों की शिक्षा के साथ-साथ युद्ध कला भी सिखाई जाती थी जिसका उद्देश्य संकट आने पर उससे निबटने का सामर्थ्य पैदा करना था। हम उसी परंपरा का पालन कर रहे हैं ।''
क्षेत्र में बढ़ते तनाव और उन्माद को देखते हुए सरस्वती ने करीब तीन वर्ष पहले 'हिंदू स्वाभिमान संगठन' बनाया था। उनका वास्तविक नाम दीपक त्यागी है। संन्यास लेने से पहले लोग उन्हें इसी नाम से जानते थे। वर्ष 1995 में मास्को से फूड प्रोसेसिंग में एमटेक करने के बाद उन्होंने कुछ समय तक लंदन में नौकरी की। लेकिन देश की याद वापस खींच लाई। गाजियाबाद आकर बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। क्षेत्र में बढ़ते उन्माद ने उन्हें झकझोरा तो इस समस्या से जूझने और इसका हल निकालने का संकल्प ले लिया। परिवार के साथ रहकर समाज के लिए काम करना मुश्किल था। सो, उन्होंने संन्यास ले लिया। हरिद्वार के आनंद अखाड़े से दीक्षा लेने के बाद वे यति बाबा नरसिम्हा नंद सरस्वती के नाम से जाने जाते हैं। उनके साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सैकड़ों गांवों के हजारों युवक जुड़े हुए हैं।
महंत कहते हैं ''पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मजहबी उन्माद के मामलों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। ऐसे में हमारे बच्चों को बुद्धि के साथ शारीरिक रूप से भी सक्षम होना जरूरी है। हम गांव-गांव जाकर लोगों को प्रेरित करते हैं कि वे बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ आत्मरक्षा करने की ट्रेनिंग भी दें ताकि समय आने पर अपनी, अपने परिवार की, अपने गांव की, अपनी मातृभूमि की रक्षा कर सकें। ''  
उनके विचारों से प्रभावित होकर करगिल युद्ध में लड़ चुके रोरी गांव के पूर्व सैनिक परमिंदर आर्य (अब बाबा परमिंदर ) महंत जी के काम से जुड़े। परमिंदर गांव-गांव जाकर युवक-युवतियों को आत्मरक्षा का प्रशिक्षण देते हैं। वे बताते हैं ''सबसे पहले अपने रोरी गांव में बच्चों को लाठी, तलवार चलाना सिखाना शुरू किया। शुरुआत में संख्या 15 से 20 ही थी। इसके बाद यह संख्या बढ़ती चली गई। दूसरे गांवों से भी युवक उनके पास आने लगे। कई गांवों—जैसे भंडौला, प्रथमगढ़ी, मोइद्दीनपुर, भूड़भराल, दौराला, रूहारा, डासना, बम्हेटा, हरियाखेड़ा आदि में उनके संगठन से जुड़े लोग आत्मरक्षा का प्रशिक्षण लेकर अपने-अपने गांवों में बच्चों को प्रशिक्षित करने में जुटे हैं। इनमें पढ़ने वाले, नौकरी करने वाले दोनों ही तरह के लोग हैं। परमिंदर कहते हैं ''मैं ज्यादातर समय आसपास के गांवों में घूमने में ही बिताता हूं। जहां जाकर मैं बच्चों को आत्मरक्षा करने के तरीके सिखाता हूं।''
बम्हेटा गांव के अखाड़े में प्रशिक्षण ले रहे 11वीं के छात्र चमन यादव कहते हैं ''मैं चार वर्ष से अखाड़े आता हूं। मेरा उद्देश्य पहलवान बनना नहीं है, मैं पढ़ाई पूरी करने के बाद शिक्षक बनकर बच्चों को पढ़ाना चाहता हूं। मैंअखाड़े जाकर अभ्यास इसलिए करता हूं ताकि खुद स्वस्थ रह सकूं और जब शिक्षक बनूं तो बच्चों को किसी और का नहीं बल्कि अपना उदाहरण देकर उन्हें शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने की प्रेरणा दे सकूं।''
अखाड़े के प्रशिक्षक हिन्दू स्वाभिमान संगठन के राष्ट्रीय महामंत्री अनिल यादव कहते हैं  ''हमारे यहां बच्चे हर रोज आकर अभ्यास करते हैं। इनमें ज्यादातर ऐसे हैं जो आत्मरक्षा के लिए सीखते हैं। हम उन्हें दांव-पेच तो  सिखाते ही हैं साथ ही धर्म की रक्षा की शपथ भी दिलाते हैं और उन्हें योद्धाओं की गाथाएं भी सुनाते हैं। वे कहते हैं ''अखाड़े में आने वाले बच्चों को सिखाने के अलावा मैं टोली से समन्वय भी रखता हूं।'' सोशल मीडिया के माध्यम से वे रोजाना कार्यकर्ताओं से बातचीत करते हैं। टोली आपसी संदेश के लिए भी सोशल मीडिया का ही इस्तेमाल करती है।
संगठन की राष्ट्रीय अध्यक्ष मेरठ की चेतना शर्मा पेशे से वकील हैं, उनकी दो बेटियां हैं। शर्मा की सबसे बड़ी चिंता यह है कि पश्चिम उत्तर प्रदेश में हिंदू युवतियों को बरगलाया जा रहा है। कई बार राह चलते उन पर फब्तियां कसी जाती हैं ऐसे में जरूरी हैं कि वे आत्मरक्षा में समर्थ हों। इसके लिए उन्हें मानसिक व शारीरिक तौर पर स्वस्थ रहने की जरूरत है। चेतना बाबा परमिंदर आर्य के साथ गांव के प्रमुख लोगों से बातचीत कर बेटियों के लिए आत्मरक्षा प्रशिक्षण की जरूरत बताती हैं। इसके अलावा गांवों में रहने वाले उनके कार्यकर्ताओं द्वारा बनाए गए दर्जनों वाट्सअप ग्रुप पर भी वह सक्रिय रहती हैं।
बाबा सरस्वती सैकड़ों युवाओं के संपर्क में हैं। कोई भी किसी भी समय उनसे संपर्क कर सकता है। वे कहते हैं '' हमारा उद्देश्य फौज बनाना नहीं, बल्कि हर तरह से सक्षम भावी पीढ़ी का निर्माण है। हम बच्चों को आत्मरक्षा के तरीके सिखाते हैं। देश और संस्कृति को प्यार करने वालों को नींद से जागने की जरूरत है। अभी नहीं चेते तो देर हो जाएगी।''
कल तक यह क्षेत्र यदि अपराध और उन्माद के कारण कुख्यात रहा तो आज इसका दूसरा पहलू उभर रहा है। सुरक्षा और सर्तकता को लेकर हुई पहल को सामाजिक स्वीकृति का आधार मिल रहा है। सरस्वती कहते हैं ''दस वर्ष पहले घूमता हुआ डासना देवी मंदिर पहुंचा तो पता चला कि इस पांडव कालीन मंदिर में कोई महंत नहीं टिकता। उन्मादी बदतमीजी करके भगा देते हैं। मैंने रुकने का संकल्प लिया। आज साधू बेखटक मंदिर आते है।''
आत्मरक्षा संग सामाजिक मूल्यों की सुरक्षा की अलख जगाए सरस्वती अपने संकल्प पर दृढ़ हैं। क्षेत्र में चीजें बदल रही हैं।     -आदित्य भारद्वाज

हमारा  उद्देश्य युवाओं को मानसिक और शारीरिक रूप से  स्वस्थ बनाना है। उन्हें आत्मरक्षा के तरीके सिखाकर हम अपनी परंप२ाओं का पालन कर रहे हैं।
-यति बाबा नरसिम्हा  नंद सरस्वती

    क्षेत्र में लोग बेटियों को ऐसा प्रशिक्षण नहीं दिलाते। मैं बाबा के साथ गांव-गांव जाकर प्रमुख लोगों से बातचीत कर उन्हें समझाती हूं। बच्चियां इकट्ठा होती हैं और बाबा परमिंदर आर्य उन्हें प्रशिक्षण देते हैं।    
     -चेतना शर्मा, राष्ट्रीय अध्यक्ष, हिन्दू स्वाभिमान संगठन 

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