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'ब्रिंगिग अवर गॉड्स होम' के सक्सेना अपने 700 से ज्यादा कार्यकर्ताओं के साथ मूर्तियों को खोजने की एक अनूठी मुहिम में जुटे हैं। अब तक उनके प्रयास से चोरी हुईं 11 मूर्तियां भारत वापस आ चुकी हैं
अश्वनी मिश्र
जब कोई प्राचीन मूर्ति किसी देवालय से चोरी कर ली जाती है तो लगता है जैसे देश के स्थापत्य और इतिहास का एक हिस्सा निकाल लिया गया है। मूर्ति चोरों के गिरोहों के सरपरस्त तस्कर प्राचीन कला के इन दुर्लभ प्रतीकों को अपने सुगठित तंत्र के जरिए भारी कीमत में अन्तरराष्ट्रीय बाजारों में बेच देते हैं। मूर्तियों के तस्कर इन दुर्लभ कृतियों के खरीददार संग्राहक और संस्थाएं वर्षों से बेखटके अपना धंधा चलाते रहे हैं। लेकिन इसे रोकने के लिए कुछ मतवालों ने कमर कस ली है।
भारत से चुराई मूर्तियां 70 हजार
लगभग 280हो चुकी हैं चिह्नित 11आ चुकी हैं वापस
जैसे ही कोई मूर्ति चोरी होती है सैकड़ों चौकन्नी निगाहें उस मूर्ति को ढूंढने में लग जाती हैं। 'ब्रिंगिग अवर गॉड्स होम' संस्था के प्रमुख अनुराग सक्सेना अपने 700 से ज्यादा देशी-विदेशी कार्यकर्ताओं के साथ देवालयों से चुराई गईं मूर्तियों को ढूंढने में लगे हुए हैं और अब तक उनके प्रयास से भारत से चुराई गईं 11 मूर्तियां वापस आ चुकी हैं और पांच मूर्तियों की कागजी कार्रवाई पूरी होते ही वह भी जल्द देवालयों में सुशोभित हो जाएंगी। पेशे से बैंकर और सिंगापुर में रह रहे अप्रवासी भारतीय सक्सेना अपनी मुहिम के बारे में बताते हैं,''सबसे पहले हम लोग विश्वसनीय तरीके से पता लगाते हैं कि मूर्ति चोरी कब हुई थी। इसके बाद हमारे खोजकर्ता यह पता लगाने में जुट जाते हैं कि मूर्तियों से जुडे़ फर्जी कागजात कहां-कहां बन रहे हैं। जब मूर्तियों का पता चल जाता है कि वे उस देश के इस संग्रहालय में हैं। हम कुछ लोगों को उस संग्रहालय में मूर्ति की तस्वीर लेने के लिए भेजते हैं। वे लोग वहां जाकर मूर्ति की 'हाई रेजल्यूशन' तस्वीर लेते हैं और मुझे भेजते हैं। वे बताते हैं,''जैसे ही मूर्ति की फोटो आ जाती है हम चोरी की गई मूर्ति और संग्रहालय की मूर्ति से मिलाते हैं। अगर सब कुछ मिलता है तो संग्रहालय को चिट्ठी लिखते हैं और उससे पूछते हैं कि आपने यह मूर्ति कहां से और किससे खरीदी? साथ ही यह भी चिट्ठी में साक्ष्य के साथ बताते हैं कि यह मूर्ति चोरी की है और हम सभी साक्ष्य आपको दे रहे हैं। इसके बाद भारत के संस्कृति मंत्रालय और जिस देश में मूर्ति हैं वहां भारत के दूतावास को भी चिट्ठी लिखते हैं। यहां लगभग हमारा काम खत्म होता है और सरकार का शुरू होता है। सरकार अपने स्तर पर उस देश की सरकार से इस बारे में बात करती है और अगर सिद्ध हो जाता है कि वास्तव में यह मूर्ति चोरी की है तो 1970 में यूनेस्को के साथ हुई संधि (संधि के बारे में विस्तृत जानने के लिए देखें साक्षात्कार) के तहत उस देश को मूर्ति वापस करना पड़ता है।'' हाल ही में नई दिल्ली के मालवीय स्मृति भवन में 'ब्रिंगिग अवर गॉड्स होम' की एक गोष्ठी हुई। इसमें मुख्य वक्ता के तौर पर राज्यसभा सांसद तरुण विजय उपस्थित थे। कार्यक्रम में तरुण विजय ने कहा कि मूर्ति चोरी पर भारत में बड़ा ही कमजोर कानून है। इस विषय पर राजनीतिकों को जागरूक करने की आवश्यकता है।
असल में कुछ समय से विदेशी राष्ट्राध्यक्षों या वहां की सरकारों ने भारत से चुरा कर उनके देशों में लाई गईं मूर्तियों को वापस किया है। इसमें सक्सेना का बड़ा योगदान है। इसके लिए वे लगभग तीन वर्ष से कार्य कर रहे हैं। वे भारत की धरोहर को बचाने के लिए काफी गंभीर हैं। आस्ट्रेलिया और जर्मनी के राष्ट्राध्यक्षों ने जब भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को नटराज और दुर्गा की सदियों पुरानी मूर्तियों को वापस किया तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। सक्सेना कहते हैं,''हमारा अभियान सफल हो रहा है और जल्द ही और भी मूर्तियां भारत वापस आएंगी।''
फलता-फूलता करोबार
नटराज भारत से 9,000 किमी. का सफर तय करके आस्ट्रेलिया के कैनबरा स्थित राष्ट्रीय कला दीर्घा (एनजीए) में कैसे विराजमान हुए? वे वहां कैसे पहुंचे? ऐसे ही बिहार के पूर्णिया शहर के तत्कालीन राजा पृथ्वीचंद लाल के रिहायशी इलाके के मंदिर से चोरों ने त्रिपुर सुंदरी की मूर्ति चोरी की। इसका बाजार मूल्य करीब 10 करोड़ रुपये था। तीन क्विंटल 80 किलोग्राम की यह मूर्ति सवा मन सोना, सवा मन चांदी के अलावा तांबा,जस्ता एवं अन्य धातु से निर्मित थी। इसे राजा ने नेपाल से लाकर अपनी हवेली में लगाया था। संपूर्ण भारत में यह दूसरी मूर्ति थी जबकि नेपाल को शामिल कर लिया जाये तो यह अपने ढंग की तीसरी ऐसी मूर्ति थी। लेकिन चोरी के बाद मंदिर अब सूना है। ऐसा नहीं है कि यह अकेला मंदिर है जहां चोरों ने मूर्तियों को चुराया है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र खासकर संपूर्ण दक्षिण के मंदिरों पर मूर्ति तस्करों ने लगातार धावा बोला है। विश्व में बेशकीमती मूर्तियों की चोरी और तस्करी का मजबूत तंत्र चलाने वाला एक भारतीय सुभाष कपूर है जिसे इस धंधे का सबसे बड़ा और सफल तस्कर माना जाता है। कपूर ने 2012 में जांच में स्वीकार किया था कि उसने 2008 में नटराज को एनजीए को बेचा था। हालांकि सुभाष कपूर 2012 से चैन्ने की पुझल जेल में है।
सरकारी एजेंसियों के मुताबिक कुछ स्थानों पर तस्करों की निगाहें गड़ी रहती हैं और उन स्थानों पर वे स्थानीय चोरों की मदद से मौका पाते ही मूर्तियों को चुरा लेते हैं। चेन्नै में आर्थिक अपराध शाखा के एक अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं,''कला शिल्पों और प्राचीन मूर्तियों की चोरी ने नशे की तस्करी, हथियारों के व्यापार और काला धन सफेद करने वाले धंधे को मात दे दी है। पुलिस भी ऐसे मामलों में कम ही रुचि लेती है, क्योंकि उसको लंबी कागजी कार्रवाई करनी पड़ती है और मूर्ति मिलने की संभावना कम ही दिखाई देती है। बहुत कम ही बार ऐसा होता है कि मूर्ति बरामद हो पाती हो। अधिकतर मामलों में मामला अपने आप ठंडा हो जाता है और तब तक मूर्ति अन्तरराष्ट्रीय बाजार में पहुंच जाती है।''
ऐसा नहीं है कि इस मुहिम की राह में रोड़े नहीं हैं लेकिन जिस तरीके से यह अभियान निरंतर बढ़ रहा है उससे भारत के लोगों में एक आस जरूर जगी है कि आने वाले दिनों में उनकी प्राचीन दुर्लभ कृतियां भारत लौट आएंगी।
मूर्ति तस्करों पर कसता शिकंजा
अप्रवासी भारतीय एवं वर्ल्ड एजूकेशन फाउंडेशन, यूके के दक्षिण एशिया और आशियान के क्षेत्रीय प्रमुख अनुराग सक्सेना ने विदेश के संग्रहालयों और दीर्घाओं में करीब 280 मूर्तियों को चिह्नित किया है जो भारत के विभिन्न मंदिरों से चुराई गई हैं। सरकार बदलने के बाद से उनके प्रयास से विदेश से कुछ मूर्तियां वापस लौटी हैं। प्रस्तुत है अश्वनी मिश्र द्वारा अनुराग सक्सेना से हुई विस्तृत बातचीत के प्रमुख अंश:-
अन्तरराष्ट्रीय तस्कर कैसे भारत से मूर्तियां चोरी करके विदेशों तक पहुंचाते हैं, कौन-कौन लोग इसमें शामिल हैं?
इसमें चार लोग प्रमुख तौर से शामिल रहते हैं। सबसे पहले कलाकृतियों के दलाल, जो मुख्य रूप से हांगकांग, फ्रांस और इंग्लैंड के होते हैं, वे भारत आते हैं। एक-एक मंदिर में पर्यटक के तौर पर घूमते हैं और मूर्तियों को चिह्नित करतेे। पता करते हैं कि इन मूर्तियों की अन्तरराष्ट्रीय कीमत कितनी है। दूसरा, चोरों-अपराधियों से संपर्क रखने वाला मजबूत स्थानीय सूत्र तलाशते हैं। तीसरा, नीलामी घर। चोर कलाकृतियों के दलाल को मूर्ति चुराकर देता है। कलाकृतियों के दलाल नीलामी घर को मूर्ति देता है और मूर्तियों के फर्जी कागजात तैयार करता है। इस सबके बीच मूर्ति को करीब एक साल तक छिपा कर रखना पड़ता है और यह सब कुछ ऑर्ट डीलर के जिम्मे होता है। कलाकृतियों के दलाल मूर्तियों को नीलामी घर तक पहंुचाते हैं जो अन्त में मूर्ति के ग्राहक ढूंढते हैं।
आप मूर्तियों को वापस कैसे लाते हैं?
इसमंे चार चरण हैं। सबसे पहले हम विश्वसनीय तरीके से पता लगाते हैं कि मूर्ति चोरी कब हुई थी। दूसरा, इसके बाद हमारे कुछ खोजकर्ता यह पता लगाते हैं कि मूर्तियों से जुडे़ फर्जी कागजात कहां-कहां बन रहे हैं। जैसे शिपिंग का उदाहरण लें तो वहां के कुछ अधिकारी हमें संदेह होने पर जानकारी देते हैं। हरेक शिपिंग आइटम का एक कोड होता है, जिसे एचएस कोड कहते हैं और हजारों एसएच कोड होते हैं। ज्यादातर मूर्तियां तस्करी की जाती हैं उनके लिए गार्डन फर्नीचर के एचएस कोड द्वारा ही की जाती है। संबंधित अधिकारी को यही कहा जाता है कि यह मूर्ति दो दिन पहले ही बनाई है और यह बगीचे में सजाने के लिए है। ऐसे मामले में उनका एचएस कोड ट्रैक करते हैं। तीसरा चरण,जब मूर्तियों का पता चल जाता है कि वे फलां देश के किसी संग्रहालय में हैं तो हमारे कुछ साथी जो विभिन्न देशों में हैं, वे उस संग्रहालय में जाकर मूर्ति की 'हाई रेजल्यूशन' तस्वीर लेते हैं और मुझे भेजते हैं। हम उस तस्वीर को और जो मूर्ति चोरी हुई है उसका मिलान करते हैं। अगर तस्वीर और अन्य साक्ष्य पूरी तरीके से मेल खाते हंै तब हम उस संग्रहालय को चिट्टी लिखते हैं और उससे पूछते हैं कि आपने यह मूर्ति कहां से और किससे खरीदी? उसे चिट्ठी में साक्ष्य के साथ बताते हैं कि यह मूर्ति चोरी की है। कई बार संग्रहालय या जिसने मूर्ति खरीदी जांच-परख करने के बाद खुद मूर्ति देने के लिए तैयार हो जाता है। लेकिन कई बार ऐसा नहीं होता। संग्रहालय या दीर्घाओं के मालिक मूर्ति लौटाने से मना करते हैं। तब हम एक चिट्टी सभी साक्ष्यों के साथ भारत के संस्कृति मंत्रालय, पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग और उस देश में भारत के दूतावास को लिखते हैं। इसके बाद सरकार का काम शुरू होता है। भारत सरकार अपने स्तर पर उस देश की सरकार से बात करती है। साथ ही 1970 में यूनेस्को के साथ 140 से ज्यादा देशों की संधि का हवाला देती है, क्योंकि इस संधि के बाद से सांस्कृतिक संपत्तियों के अवैध निर्यात पर पूरी तरह से रोक है और किसी भी देश की सांस्कृतिक महत्व की संपदा के स्वामित्व का हस्तांतरण नहीं किया जा सकता। इस सबके बाद वहां की सरकार सांस्कृतिक संपदाओं को देने के लिए तैयार हो जाती है।
इस काम में कुछ अड़चनें भी आईं? और मुहिम के जरिये कौन-कौन सी-खास मूर्तियों को भारत लाने में सफलता मिली?
अड़चन न आए वह काम नहीं कहलाता। अड़चन आना स्वाभाविक है। कई बार हम संग्रहालय या दीर्घाओं को पूरे कागजात, फोटो व अन्य साक्ष्य के साथ यह भी बता देते हैं कि फर्जी कागजात फलां आदमी ने बनाए हैं और आपने मूर्ति खरीदी है। तो कई बार उनका जवाब होता है कि आप की बात तो ठीक है पर आप हैं कौन? तब कुछ समस्या महसूस होती है लेकिन फिर भी हम काम करते रहते हैं। रही खास मूर्तियों को भारत वापस लाने की बात तो हमारी मुहिम के बाद से भारत सरकार को 11 मूर्तियां प्राप्त हो चुकी हैं और 5 मूर्तियों की कागजी कार्रवाई बाकी रह जाने से अभी भारत को नहीं मिल पाई हैं। लेकिन जल्द ही वह भी भारत को मिल जाएंगी।
किन देशों में भारतीय देव मूर्तियां ज्यादा हैं?
कई ऐसे देश हैं जहां सामान्य तौर से हमारी मूर्तियां बेची जाती हैं जैसे- अमेरिका, इंग्लैण्ड, जर्मनी, हांककांग, फ्रांस और आस्ट्रेलिया। ल्ल
पिछले 20 वर्ष से एक भी मूर्ति वापस नहीं आई, लेकिन हाल के 18 महीने के दौरान 11 मूर्तियां वापस आ चुकी हैं। हमारे देश से 70,000 मूर्तियां चोरी हुई हैं, लेकिन एक का भी दावा नहीं हुआ। आगे मूर्ति चोरी की घटनाएं न हों इसके लिए मांग को खत्म करना होगा। जो मूर्ति खरीद रहा है उसे इस कार्य में खतरा दिखाई देना चाहिए। जिस दिन उन्हें ऐसा लगने लगेगा मूर्तियां चोरी होना बंद हो जाएंगी।
मूर्ति चोरी की कुछ प्रमुख घटनाएं
यहां हैं भारत की मूर्तियां
चन्द्रशेखर
पहले श्रीपुरंतन में
अब अमेरिका के एक महानगरीय संग्रहालय में
गणेश
पहले श्रीपुरंतन में
अब टोलीडो म्यूजियम ऑफ आर्ट, अमेरिका
उमा महेश्वरी
पहले श्रीपुरंतन से चोरी
हाल ही में एसीएम, सिंगापुर ने वापस की
बुद्ध की मूर्ति
पहले मथुरा, उ.प्र.
अब एसीएम, सिंगापुर में
यक्षिणी खड़ी प्रतिमा
पहले सतना, म.प्र.
अब आईसीए, अमेरिका में
भैरव
पहले बोधगया
अब आईसीए, अमेरिका
जिन महावीर
पहले म.प्र.
अब लंदन के निजी संग्रहकर्ता के पास
यक्षिणी
पहले राजस्थान
अब अमेरिका के एक संग्रहालय में
विष्णु
पहले ओडीशा
अब हर्न संग्रहालय, अमेरिका
2008-09 में तमिलनाडु के श्रीपुरंतन एवं सुथामल्ली गांव से 28 मूर्तियां चोरी की गईं।
2008 में वर्धराजा परमुल मंदिर से 19 मूर्तियों पर चोरों ने हाथ साफ किया जिसमें से अधिकतर हांगकांग और लंदन के संग्राहलयों में पहुंच चुकी हैं।
तमिलनाडु के तिरुनेलवेली से तस्करों ने पांच बेशकीमती मूर्तियों को चुराया हालांकि वे पकड़े गए।
बक्सर के सुरोधा गांव से भोजपुर के कृष्णागढ़ मठ से 70 करोड़ रु. की दो अष्टधातु मूर्तियां चोरी हुईं लेकिन बाद में बरामद हो गईं। भागलपुर में 11 मूर्ति चोरों के पास से 20 करोड़ रु. की मूर्तियां बरामद हुई।
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