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आयुष नादिम्पल्ली
संघ के आरंभिक तीन चरणों का लक्ष्य देश भर में इसकी शाखाओं को विस्तार देना और जनमानस में देशभक्ति और व्यक्तित्व निर्माण का बीजारोपण करना था। विविध संगठनों के विस्तार की प्रक्रिया ने इसमें अहम योगदान किया।
2005 के बाद के समय को संघ के विकास का चौथा चरण माना जा सकता है। इस चरण के दौरान, संघ के कार्य विभिन्न कदमों और गतिविधियों के माध्यम से समाज के नए वर्गों तक पहुंच रहे हैं।
शाखाओं की संख्या में वृद्धि: संघ कार्य की प्रगति का सबसे अहम पैमाना है शाखाओें की संख्या में वृद्धि। मार्च, 2016 में यह 56,859 हो गई थी। संघ-शाखाओं की चार श्रेणियां हैं- स्कूल के छात्र, कॉलेज छात्र, व्यवसायी तरुण (40 से कम आयु वर्ग) और प्रौढ़ (40 से ऊपर आयु वर्ग)।
संगठन और जागरण श्रेणी: संगठन और जागरण श्रेणी कार्यकर्ताओं का एक लचीला ढांचा है जिसका सकारात्मक पहलू यह है कि जहां इसके जरिए स्वयंसेवक चुनौतियों का समाधान करते हैं, वहीं दूसरी तरफ शाखाओं की संख्या में वृद्धि होती है।
श्रेणी कार्य : इस कार्यनीति के तहत विस्तार के पायदान इस प्रकार निर्धारित किए गए: पहली मंडली, फिर मिलन और अंत में शाखा। मार्च, 2016 में साप्ताहिक मिलनों की संख्या 13,784 थी।
आईटी साप्ताहिक मिलन: यह 2000 में बेंगलुरू में शुरू हुआ जो आज भाग्यनगर (हैदराबाद), पुणे, दिल्ली, चेन्नै, कोच्चि और कोलकाता जैसे विभिन्न शहरों तक फैल चुका है।
महाविद्यालयीन छात्र कार्य: युवा छात्रों को राष्ट्र के लिए काम करने हेतु प्रेरित करने के उद्देश्य से कॉलेज परिसर के अंदर और बाहर की गतिविधियों की कार्य-योजना तैयार की गई है। महाविद्यालयीन कार्य प्रमुखों के लिए दो साल में एक बार अखिल भारतीय बैठकें आयोजित की जाती हैं।
संस्कार गतिविधि अपार्टमेंट-बालभारती और बाल गोकुलम : केरल में बालगोकुलम का जबरदस्त प्रभाव पड़ा, जिससे प्रिेरत होकर स्वयंसेवकों ने बड़े अपार्टमेंट परिसरों और गेटेड आवासीय इलाकों में बालगोकुलम या बालभारती केंद्र शुरू किए हैं।
सामाजिक मुद्दों से संबंधित संघ के प्रस्ताव: पिछले एक दशक में संघ ने विभिन्न सामाजिक और पर्यावरण संबंधी मुद्दों पर अपने विचार और प्रस्ताव पेश किए हैं। सामाजिक सद्भाव, गो संरक्षण, भ्रष्टाचार उन्मूलन, भारतीय परंपरा आधारित शिक्षा, जल नीति, खुदरा बाजार में एफडीआई, पश्चिमी घाट का संरक्षण, कम खर्चीली स्तरीय शिक्षा, सभी के लिए सुलभ सस्ती स्वास्थ्य सुविधाएं, अल्पसंख्यकवाद और एकता और अखंडता पर इसका प्रभाव, विश्व के लिए योग की उपयोगिता, जनसंख्या में असंतुलन, राष्ट्रीय सुरक्षा आदि से संबंधित प्रस्ताव पारित किए गए। उल्लेखनीय है कि इन प्रस्तावों में से कई सामाजिक दायरे के अंर्तगत थे।
ऐसे क्षेत्रों की पहचान की गई जहां तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता थी और संघ की विभिन्न गतिविधियों— जैसे, ग्राम विकास, गोसेवा, समरसता, धर्म जागरण और कुटंम्ब प्रबोधन के माध्यम से जागरूकता फैलाई जा रही है। वर्ष 2009 में प्रख्यात संतों ने विश्व मंगल गो-ग्राम यात्रा शुरू की थी जिसका संघ ने समर्थन किया था। 75,668 ईसाइयों, 10,73,142 मुसलमानों सहित करीब 8़34 करोड़ नागरिकों ने इसे समर्थन दिया, 23,300 गांवों में संपर्क कार्यक्रमों का आयोजन किया गया जिसमें 11,32,117 लोगों ने भाग लिया। 201 सांसदों और 867 विधायकों ने समर्थन में हस्ताक्षर किए। 1,23,796 केंद्रों में स्थानीय यात्राएं निकाली गईं जिसमें 1,48,46,274 नागरिकों ने भाग लिया।
धर्म जागरण: जिन हिंदुओं को धोखाधड़ी, बल और छल से कन्वर्ट किया गया उन्हें अपने धर्म में वापस लाना ही है धर्म जागरण विभाग की महत्वपूर्ण पहल।
समरसता और सामाजिक सद्भाव : गुरुजी जन्मशताब्दी उत्सव के दौरान सद्भाव का माहौल तैयार करने के लिए महत्वपूर्ण कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। 1़ 6 करोड़ हिंदुओं ने संकल्प लिया-मम् दीक्षा हिंदू रक्षा, मम् मंत्र समानता। फरवरी, 2011 में मंडला में नर्मदा सामाजिक कुंभ का आयोजन हुआ। इस अवसर पर 336 जिलों की 1,179 तहसीलों के 4,000 गांवों से 415 विभिन्न अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों और 400 अन्य सामाजिक समूहों ने भाग लिया।
2015 में विजयदशमी के दिन अपने संबोधन में पूज्य सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने सभी हिंदुओं के लिए समान रूप से मंदिर प्रवेश और जल स्रोतों के उपयोग और भेदभाव रहित श्मशान भूमि सुनिश्चित करने की दिशा में काम करने के लिए स्वयंसेवकों का आह्वान किया।
कुटुंब प्रबोधन : एक सशक्त और ऊर्जस्व हिंदू समाज के निर्माण के लिए कुटंुब प्रबोधन महत्वपूर्ण है।
तेजी से अग्रसर कदम : दुनिया आज अशांतिं के दौर से गुजर रही है। राष्ट्रों के बीच वैर, पर्यावरण असंतुलन, अनियंत्रित उपभोक्तावाद, जातिगत और स्त्री-पुरुष असमानताएं और सामाजिक भेदभाव जैसी समस्याओं से विश्व घुट रहा है। संघ ने हाल ही में नवंबर, 2016 में अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में वर्तमान वैश्विक संकट के समाधान के तौर पर एकात्म मानव दर्शन (यानी समन्वित मानवतावाद) का संकल्प लिया। एक ऐसे समाज की स्थापना के लिए जो विश्व के लिए प्रकाश स्तंभ बने। इस दर्शन को समझकर अपने दैनिक व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में उतारना बहुत आवश्यक है। एक मजबूत राष्ट्र के निर्माण के लक्ष्य और विश्व में सौहार्द बहाल करने की दिशा में बढ़ते संघ के साथ स्वयंसेवकों को एक बड़ी भूमिका निभानी है।
(लेखक परिचय : लेखक हैदराबाद स्थित एक आईटी कंपनी के सीईओ हैं)
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