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-दिनेश-
उत्तराखंड की हरीश रावत सरकार अब मुस्लिम सरकारी कर्मचारियों को जुम्मे की नमाज पढ़ने के लिए डेढ़ घंटे यानी दोपहर के 12:30 से 2 बजे तक का अवकाश दिया करेगी। मुख्यमंत्री ने कैबिनेट की बैठक में पिछले दिनों यह फैसला लेकर उत्तराखंड के सियासी गलियारों में हलचल मचा दी। सरकार के इस फैसले से राज्य में तीखी प्रतिक्रिया हुई है और जन मानस में यह मुस्लिम तुष्टीकरण का मुद्दा बन गया।
दरअसल रावत सरकार पहले से ही भ्रष्टाचार की वजह से जनता के बीच अपनी साख खो चुकी है। कुछ महीने पहले कांग्रेस में हुई बगावत के दौरान हरीश रावत का जो चेहरा बेनकाब हुआ उसके बाद से यह तय माना जा रहा था कि रावत सरकार 2017 के चुनावों में राज्य में नहीं आने वाली। तमाम राजनीतिक सर्वेक्षण भी यह आशंका व्यक्त कर चुके हैं। ऐसे में हरीश रावत ने मुस्लिमांे मतों को रिझाने के लिए जुम्मे की नमाज पर अवकाश का कार्ड खेला। असल में उत्तराखंड के मैदानी इलाके के चार जिलों हरिद्वार, देहरादून, नैनीताल, ऊधमसिंह नगर, में तकरीबन चौदह फीसद मुस्लिम मतदाता हैं जिनमें से कुल दो फीसद सरकारी कर्मचारी हंै जिन्हें लुभाने के लिए हरीश रावत ने यह राजनीतिक दांव खेला है। इसके पीछे उनकी सोच यह भी है कि मुस्लिम बहुल वाली विधानसभा सीटों पर बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी, कांग्रेस के बीच वोटांे का बंटवारा होता है। पिछले चुनाव में बसपा के पास चार सीटें चली गई थीं जिन पर कांग्रेस की नजरें थीं। ये इलाके उ.प्र. सीमा से लगे हुए हैं। इसलिए यहां सपा-बसपा का दबदबा ज्यादा है। हरीश रावत हरहाल में तराई की इन सीटांे को पाना चाहते हैं। लेकिन उन्हें यह नहीं पता कि उनका यह राजनीतिक दांव खुद के लिए ही उलटा पड़ जायेगा। उनके इस फैसले से पूरे उत्तराखंड में हिन्दू मतदाता एक पल में तीखे सवाल करने लगे। मीडिया भी रावत सरकार के इस फैसले की आलोचना कर रहा है। कैबिनेट के फैसले पर भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री अनिल बलूनी कहते हैं,''हरीश रावत की यह राजनीति उन्हें कांग्रेस के ताबूत में आखिरी कील ठोकने के लिए काफी है। मुख्यमंत्री को सिर्फ वोटांे का लालच है और उन्हें इसके लिए हद से ज्यादा गिरना भी आता है।''
भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष श्री अजय भट्ट कहते हैं,''मुख्यमंत्री हरीश रावत अपनी सद्बुद्धि खो चुके हैं। इस फैसले से उन्होंने संकीर्ण मानसिकता का परिचय दिया है।'' विवाद को बढ़ते देख मुख्यमंत्री ने कहा,''मैंने कोई नई घोषणा नहीं की है, ऐसा दूसरे राज्यों में भी है। हमने वही कर दिया तो क्या गलत हो गया। यदि दूसरे मत-पंथों के लोग भी किसी त्यौहार पर किसी छुट्टी का प्रस्ताव देते हैं तो हम उसपर भी विचार करेंगे।'' लेकिन राजनीतिक गलियारों से जो खबरे आ रही हैं अगर उन पर विश्वास करें तो उनकी ही पार्टी के नेता दबी जुबान से इसका विरोध कर रहे हैं। तो वहीं सोशल मीडिया के जरिये यह मुद्दा घर-घर में हरीश रावत के विरोध की वजह बन गया।
उत्तराखंड की जनता की ओर से फैसले के बाद जो प्रतिक्रिया आ रही है वह सरकार के लिए ठीक नहीं कही जा सकती। हल्द्वानी के उद्योगपति जगदीश पिपोली कहते हैं,'' फैसले से देवभूमि के जनमानस की भावनाएं आहत हुई हैं।'' स्तंभकार दिनेश पांडेय कहते हैं,''उत्तराखंड में धार्मिक प्रवृत्ति के लोग रहते है। यहां तुष्टीकरण की राजनीति नहीं चलने वाली। कांग्रेस को इसका खामियाजा भुगतना ही पड़ेगा।'' भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष मजहर नईम अपनी राय रखते हुए कहते हैं,''मुस्लिमों के साथ हरीश रावत छल करते है। पांच साल तक मुस्लिमों की परवाह नहीं की अब मदरसा बोर्ड,उर्दू अकादमी की बातें करते हैं। मुस्लिम समाज ऐसे फैसलों से खुश नहीं बल्कि आहत होता है।'' पूर्व विधान सभा अध्यक्ष प्रकाश पंत कहते हैं कि मुख्यमंत्री और कैबिनेट के फैसले से पूरे प्रदेश की जनता को तकलीफ पहुंची है।
सरकारी कर्मचारी निम्मी कुकरेती का कहना है कि ये निर्णय दुर्भाग्यपूर्ण ही कहे जा सकते हंै। मैं सोमवार का व्रत रखती हूं तो क्या मुझे भी सरकार अवकाश देगी? बहरहाल हरीश रावत नेे चुनाव से पहले मुस्लिम कार्ड खेलकर मुसलमानों के बीच अपनी पैठ मजबूत करने की कोशिश की है। लेकिन देखने वाली बात होगी कि चुनाव में उनका यह फैसला कितना कारगर साबित होता है। ल्ल
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