|
ग्वादर बंदरगाह के विकास के नाम पर उस शहर में बसी बलूच आबादी का जीना मुहाल हो गया है। पहले से ही पिछड़े हालातों में पिसते चले आ रहे इस शहर के बाशिंदे चीनी दखल को लेकर आशंकित हैं। बंदरगाह को सुरक्षा देने के नाम पर पाकिस्तानी फौजियों ने उन पर कहर बरपाया हुआ है
संतोष वर्मा
ग्वादर पिछले कुछ वर्षों में एक महत्वपूर्ण भू राजनैतिक केंद्र के रूप में उभरा है जो दक्षिण एशिया में आर्थिक राजनैतिक और सामरिक व्यवस्था को प्रभावित करता है। चीन द्वारा यहां एक सामरिक बंदरगाह स्थापित किया जा रहा है जिसके कारण इस क्षेत्र में चीन की भविष्य में होने वाली भूमिकाओं और उसके होने वाले प्रभावों को लेकर संबद्ध देशों में संदेह व्याप्त है। ग्वादर बलूचिस्तान में अरब सागर के किनारे मकरान तट पर स्थित एक बंदरगाह शहर है। 2011 में इसे बलूचिस्तान की शीतकालीन राजधानी घोषित कर दिया गया था। ईरान तथा फारस की खाड़ी के देशों से अत्यधिक निकट होने के कारण इस शहर का सामरिक और राजनैतिक महत्व बहुत बढ़ जाता है। ग्वादर मूलत: एक छोटा सा शहर है जिस की आबादी विभिन्न स्त्रोतों के अनुसार 50,000 से एक लाख के मध्य है। यह तीन तरफ से समुद्र से घिरा हुआ है। यहां समुद्री हवाएं चलती रहती हैं जो इसके नाम को चरितार्थ करती हैं। गवादर का मतलब 'हवा का दरवाजा' है। इस शहर के निवासियों की आमदनी का सबसे बड़ा स्रोत मछली पकड़ना है। इसके अलावा अन्य जरूरतें पड़ोसी देश ईरान, संयुक्त अरब अमीरात और ओमान से पूरी होती हैं।
ग्वादर का महत्व समझने के लिए हमें संबधित भू-अर्थशास्त्र का अध्ययन करना होगा। ग्वादर को चीन ने पाकिस्तान से पट्टे पर ले लिया है और वह यहां एक सामरिक बंदरगाह विकसित कर रहा है। इससे उसका पहला उद्देश्य भारत को नौसैनिक अड्डों की एक श्रृंखला (जिसे बहुधा स्ट्रिंग ऑफ पर्ल या मोतियों की माला कहा जाता है) से घेरना। इस दिशा में काम करते हुए उसने बंगलादेश से चटगांव और श्रीलंका से हम्बनटोटा के बंदरगाह पट्टे पर लिए। चीन के पास विशाल विमानवाहक पोतों का अभाव है जिसकी कमी वह हिंद महासागर में अपने सैन्य ठिकाने बनाकर करना चाहता है, जैसा कि कभी अमेरिका ने द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद विश्व भर में किया था। दूसरा, चीन अपने पैट्रोलियम आयात के लिए ईरान समेत खाड़ी देशों पर निर्भर है जिसका परिवहन मार्ग होर्मुज की खाड़ी से होते हुए श्रीलंका के दक्षिण से गुजरकर मलक्का जलडमरूमध्य होते हुए चीन के पूर्वी तट पर स्थित शंघाई और तियानजिन बंदरगाह तक पहुंचता है। यह मार्ग अत्यधिक लंबा होने के साथ ही साथ सामरिक रूप से उपयुक्त नहीं कहा जा सकता। यह एक अति व्यस्त मार्ग है और अंतरराष्ट्रीय तेल व्यापार का एक बड़ा भाग इसी रास्ते होता है। साथ ही चूंकि इस मार्ग पर अमेरिका सहित बड़ी शक्तियों का प्रभाव है, इसलिए किसी विवाद की स्थिति निर्मित होने पर चीन को लगता है कि दक्षिण एशियाई देशों के साथ उसके संबंधों को देखते हुए उसकी ऊर्जा सुरक्षा प्रभावित हो सकती है। अत: पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह को एक टर्मिनल के रूप में प्रयोग कर यहां से थल मार्ग से चीन के काश्गर तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। जहां एक ओर फारस की खाड़ी स्थित होर्मूज से बीजिंग पहुंचने के लिए 13,000 किलोमीटर का फासला तय करना पडता है वहीं होर्मुज से ग्वादर होते हुए सड़क मार्ग से चीन के काश्गर की दूरी मात्र 2,500 किलोमीटर है। साथ ही चीन के लिए यह मार्ग सुरक्षित भी है। इसके बदले चीन पाकिस्तान को कुछ बड़ी रियायतें देने जा रहा है। 46 अरब डॉलर की इस योजना में पाकिस्तान को प्राप्त होने वाले लाभों को आर्थिक आधारभूत संरचनाओं का विकास सामरिक स्थिति में सुधार और सबसे महत्वपूर्ण, पाकिस्तान में बिजली उत्पादन की दशा के सुधार में वर्गीकृत किया जा सकता है। इस योजना से पाकिस्तान और चीन दोनों को ही लाभ है, परंतु बलूचिस्तान को नही और न ही विशिष्ट रूप से ग्वादर को।
ग्वादर एक अत्यधिक प्राचीन बंदरगाह है। यह प्राचीन हड़प्पा सभ्यता के अंतर्गत आता था। हखमनी सम्राटों ने इस क्षेत्र पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। अरबेला की लड़ाई में डेरियस तृतीय को हराकर यह क्षेत्र सिकंदर ने अपने अधीन कर लिया। सिकंदर के साथ आने वाले निआर्कस एरिस्टोबुलस और ओनसेक्रिटिस ने अपने वृत्तांत लिखे। निआर्कस ने मकरान तट से गुजरते हुए इस स्थान पर पड़ाव डाला। वह अपने यात्रा वृत्तांत में कलमात ग्वादर और चाबहार का उल्लेख करता है। सिकंदर के जाने के बाद इस क्षेत्र की कमान सैल्युकस निकेटर के हाथों में आई जिसका महान सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य से संघर्ष हुआ और सैल्युकस ने विजय उपहार के रूप में अपने क्षेत्र में से अराकोसिया, जैड्रोसिया और परोपनिसदई चंद्रगुप्त को अर्पित कर दिए। उल्लेखनीय है कि ग्वादर मकरान तट पर स्थित जैड्रोसिया का हिस्सा था।
1783 में ओमान के एक राजकुमार सईद सुल्तान का अपने भाई, जो वहां का सुल्तान भी था, से झगड़ा हो गया, जिस पर सईद सुल्तान ने कलात के खान मीर नसीर खान से शरण मांगी, जिस पर नसीर खान ने उसे कलात बुला लिया और उसे ग्वादर का इलाका और वहां से प्राप्त होने वाला राजस्व असीमित समय के लिये उसके नाम कर दिया। इसके बाद सुल्तान ने ग्वादर में आकर रहना शुरू कर दिया। परंतु राजनैतिक स्थितियां परिवर्तित हुईं और 1797 में सुल्तान वापस मसकत चला गया और वहां अपनी खोई हुई सल्तनत दोबारा प्राप्त कर ली, परंतु ग्वादर पर अधिकार नहीं छोड़ा।
1804 में सुल्तान के देहांत के बाद उसके वंशजों ने ग्वादर को अपने अधिकार में बनाए रखा और इसके लिए कई बार उन्हें शक्ति प्रदर्शन भी करना पड़ा।1838 में प्रथम अफगान युद्ध के समय और सिंध विजय के दरम्यान अंग्रेज इस स्थान के संपर्क में आए और 1861 में अंग्रेजों ने मेजर गोल्डस्मिथ की कमांड में इस इलाके पर कब्जा कर लिया और 1863 में ग्वादर में अपना एक सहायक राजनीतिक एजेंट नियुक्त कर दिया। इधर भारत में ब्रिटिश इंडिया स्टीम नेवीगेशन कंपनी के जहाजों ने ग्वादर और पसनी के बंदरगाहों को इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। मार्च 1948 में कलात समेत समस्त बलूचिस्तान को पाकिस्तान में मिला लिया गया।
1955 में इस क्षेत्र को नवनिर्मित मकरान जिले में शामिल कर दिया गया। 1958 में एक सौदे में पाकिस्तान सरकार ने ओमान से ग्वादर खरीद लिया और उसे मकरान जिले के अंतर्गत एक तहसील का दर्जा दे दिया। याहया खान द्वारा 1 जुलाई 1970 को जब 'वन यूनिट' योजना की समाप्ति हुई और बलूचिस्तान भी एक प्रांत बना दिया गया। इसके बाद 1977 में मकरान को डिवीजन (विभाग) का दर्जा दे दिया गया और 1 जुलाई 1977 को तुरबत, पंजगुर और ग्वादर, तीन जिले बिना दिए।
पाकिस्तान की राजनीति और अर्थव्यवस्था पर चीन का प्रभाव उसी तरह स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है जैसे कभी ब्रिटेन, अमेरिका और सऊदी अरब का देखा जाता था। परंतु चीन के द्वारा किए जा रहे व्यापक हस्तक्षेप से समस्त बलूचिस्तान सशंकित है और ग्वादर भी। ग्वादर में पीने के पानी की कमी, सफाई के इंतजाम की कमी और अन्य आवश्यक सामान की किल्लत सदैव से बनी रही है। मौजूदा ग्वादर शहर में टूटी सड़कें, छोटी तंग गलियां और बाजारों में गंदगी के ढेर लगे हुए हैं। ग्वादर के बहुसंख्य निवासियों के सामने उनके मछली पकड़ने के व्यवसाय के सम्मुख खतरा उत्पन्न हो गया, जिससे उनकी जीविका संकट में है। इसके अलावा यहां काम करने के लिए चीनियों और अकुशल श्रमिकों में खैबर पख्तूनख्वा समेत पाकिस्तान के अन्य भागों के लोगों को वरीयता दी जा रही है। ऐसे में बलूचिस्तान, खासकर ग्वादर के लोगों के लिए स्थितियां अत्यंत ही भीषण हैं। इसके साथ ही यहा कॉरीडोर और सामरिक महत्व के ठिकानों की सुरक्षा के नाम सुरक्षा बलों का हस्तक्षेप बढ़ता जा रहा है।
खतरा है कि बलूचों को ग्वादर शहर में घुसने से ही रोक दिया जाएगा। यह डर अस्वाभाविक नहीं है। एक आम बलूच का मानना है कि सीपीईसी से उसे भी 'विकास में सहभागिता' मिलेगी, पर इतनी कि वे सड़कों पर दौड़ती चीनी गाडि़यों के पंक्चर लगाते रहेंगे ।
टिप्पणियाँ