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पाञ्चजन्य
वर्ष: 13 अंक: 10
21 सितम्बर ,1959
इतिहास के पन्नों से
कम्युनिस्ट साम्राज्यवादियों से समझौता करना महान भूल होगी
चीनी आक्रमण का कारण
''आज साधारण जनता में यह भ्रांत धारणा फैलाई जा रही है कि चीन का भारत पर आक्रमण केवल कुछ उत्तरी भारत आक्रमण केवल कुछ उत्तरी भारत के पहाड़ी प्रदेशों को, हस्तगत करने का प्रयास मात्र है, और इससे आगे चीन नहीं बढ़ेगा। पिछले इतिहास को यदि हमने उठाकर उसका अध्ययन करने का प्रयास कियातो स्पष्ट पता लगेगा कि चीन का यह सीमा अतिक्रमण कम्युनिस्टों की विश्व संस्था को कोमिस्न्टर्न की समस्त विश्व में कम्युनिस्ट साम्राज्यवाद फैलाने के लक्ष्य की पूर्ति की दिशा में एक निश्चित कदम है।
लेनिन की घोषणा- आज से 30 वर्ष पूर्व 1949 साम्यवाद के मसीहा लेनिन ने कहा था-''मास्को से पेरिस का मार्ग पेंकिंग और कलकत्ता होकर जाता है।'' अर्थात् पश्चिमी यूरोप को विजय करने से पूर्व चीन और भारत पर विजय प्राप्त करना है। चीन कम्युनिस्टों द्वारा हस्तगत किया जा चुका है और अब भारत की बारी है। एक बार किसी कम्युनिस्ट मसीहा के द्वारा निकाले हुए मूर्खतापूर्ण शब्दों को भी अपनी पूरी शक्ति लगाकर पूरा करना प्रत्येक अंधविश्वासी कम्युनिस्ट अपना धर्म समझता है।
पिछले दिनों हम ख्रुश्चेव की छलपूर्ण घोषणाओं से समझने लग गए कि कम्युनिस्टों के साथ सह अस्तित्व संभव है उनके साथ मिली-जुली सरकार भी आवश्यकता पड़ने पर चलाई जा सकती है। इसी भ्रांत धारणा के आधार पर हमारे भोले प्रधानमंत्री ने चीन के प्रधानमंत्री के साथ पंचशील की घोषणा पर हस्ताक्षर किए। रूसी साम्राज्यवाद के विस्तार तथा दूसरे देशों पर आक्रमण को नीति का प्रतिपादन करते हुए लेनिन लिखता है-''हम न सिर्फ एक राज्य में रह रहे हैं, बल्कि राज्यों की एक व्यवस्था में रह रहे हैं और साम्राज्यवादी राज्यों के साथ-साथ सोवियत प्रजातंत्र की मौजूदगी असंभव है। अंत में एक या दूसरे का जरूर विजयी होना है।''
मैकमोहन रेखा का आधार तिब्बत की प्रभुसत्ता ही है
देशभक्त दलाईलामा का नेहरूजी को उत्तर
''आजकल भारत सरकार यह तर्क दे रही है कि भारत और तिब्बत के मध्य सीमा का निर्धारण मैकमोहन रेखा द्वारा हो चुका है जिसका निर्णय शिमला सम्मेलन में हुआ था। यह सम्मेलन केवल तिब्बत और ब्रिटिश सरकार के मध्य हुआ था। यदि तिब्बत का इस सम्मेलन के आयोजन के अवसर पर कोई अन्तरराष्ट्रीय अस्तित्व था ही नहीं तो भला वह इस समझौते को करने का अधिकारी कैसे बन सका?
अत: यह बहुत स्पष्ट है कि यदि आप तिब्बत की प्रभुसत्ता को अस्वीकार करते हैं तो आप शिमला सम्मेलन के कानूनी औचित्य को अस्वीकार करते हैं और मैकमोहन रेखा के अस्तित्व को ही अस्वीकार करते हैं।''
यह तर्कयुक्त किन्तु मुंहतोड़ उत्तर है महान देशभक्त दलाई लामा का प्रधानमंत्री पं. नेहरू को। पं. नेहरू ने शनिवार को लोकसभा में जनसंघ सदस्य श्री अटल बिहारी के उस गैरसरकारी प्रस्ताव कि भारत को तिब्बत के प्रश्न को संयुक्त राष्ट्रसंघ में उठाना चाहिए को अस्वीकार करते हुए तर्क दिया था कि 'तिब्बत का कभी अन्तरराष्ट्रीय अस्तित्व नहीं रहा और वह कभी प्रभुसत्ता सम्पन्न राष्ट्र नहीं रहा।'
मेरी प्रेरणा का स्रोत : दलाई लामा ने 7 सितम्बर को दिल्ली में काउन्सिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर्स के तत्वावधान में भाषण करते हुए प्रधानमंत्री के लंगड़े तर्कों का उत्तर देने के पूर्व बहुत ही मार्मिक शब्दों में अपनी अन्तर्व्यथा को प्रकट किया।
''मैं न तो कूटनीतिक हूं और न राजनीतिज्ञ और न अन्तरराष्ट्रीय कानून का ज्ञाता। मैं तो केवल शान्ति और स्वतंत्रता के धर्म के प्रति श्रद्धा रखने वाला एक साधारण पुरोहित हूं और अपनी जनता के कल्याण के शुभ उद्देश्य के लिए समर्पित हूं। विधाता ने यह पवित्र दायित्व मुझ पर सौंपा है। अत:मेरे लिए यह स्पष्ट करना आवश्यक नहीं है कि केवल मेरी प्रेरणा का एकमेव स्रोत उस समय उस लक्ष्य को जो मेरे अन्तकरण के निकटतम है, प्राप्त करने की इच्छा मात्र है और यदि अपनी भावनाओं को प्रकट करते समय मुझे कतिपय महान और ख्यातिप्राप्त कूटनीतिज्ञों द्वारा व्यक्त कि ए गए मत से मतभेद प्रकट करना ही पड़े तो मैं उसे अत्यधिक दु:खपूर्वक और विनम्रतापूर्वक करूंगा।''
तिब्बत की प्रभुसत्ता के प्रमाण- दलाई लामा ने घोषित किया ''यह मेरा दृढ़ विश्वास है कि तिब्बत उस समय एक पृथक और पूर्ण प्रभुसत्ता सम्पन्न राष्ट्र था, जब उसकी भौगोलिक सीमाओं को का चीन द्वारा अतिक्रमण किया गया। इस सत्य के पक्ष में अनेक वजनी तर्क प्रस्तुत किए जा सकते हैं-
प्रथम ,1894 से, जब 13वें दलाई लामा ने सरकार बनाई 1950 के बीच, जब चीनी सेनाओं ने तिब्बत में प्रवेश किया, तिब्बत पर चीन की सत्ता बिल्कुल लागू नहीं थी। चीन ने उस सत्य को 1951 की संधि, जिसे पेंकिग सरकार ने ही गढ़ा था और तिब्बती जनता पर भावी सैनिक कार्रवाई को धमकी के आधार पर तिब्बत पर बलपूर्वक लाद दिया था, की भूमिका में स्वीकार किया है।
द्वितीय, मुझे प्राप्त हुए सर्वोत्तम परामर्शों के अनुसार किसी राज्य के प्रभुसत्ता स्तर का प्रमुख लक्षण यह है कि उसे अन्य राष्ट्रों से संधि करने का अधिकार प्राप्त हो। यदि यही किसी प्रभुसत्ता सम्पन्न राष्ट्र का लक्षण हो तो निश्चित ही तिब्बत की सरकार को बाह्य प्रभुसत्ता के पूर्ण अधिकार प्राप्त थे, क्योंकि तिब्बत ने कम से कम पांच अन्तरराष्ट्रीय समझौते किए।
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