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आदित्य भार्गव 29 वर्ष इंजीनियरिंग छात्र
यह पहला कदम है, जिसे देखकर अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि आने वाला समय इन युवाओं का है। इस तरह के उदाहरण देश में अनगिनत हैं। इन अनगिनत उदाहरणों में से यहां प्रस्तुत हैं दो जोरदार दस्तक
प्रेरणा
भारतीय सेना का अनुशासन
उद्देश्य
ई सामग्री का पुनर्प्रयोग
जीवन का अहम मोड़
आस्ट्रेलिया जाना
ज्ञान और धन के प्र्रति दृष्टि
जहां ज्ञान, वहां धन
दिलचस्प तथ्य
आस्ट्रेलिया जाने के दो साल में 11,000 डॉलर का ईनाम
आशीष कुमार 'अंशु'
लबर्न में हुए ईवाई-अर्न्स एंड यंग-सर्वाइव द पैनल कॉम्पटिशन में विजेता रहे इलेक्ट्रीकल इंजीनियरिंग के छात्र आदित्य भार्गव को यह जीत उस विचार की वजह से हासिल हुई है, जो ई कचरा के रिसायक्लिनिंग पर केन्द्रित था।
आदित्य के पिता मूलचंद भार्गव भारतीय सेना में रहे हैं और 2011 में वे लेफ्टिनेन्ट कर्नल के पद से सेवानिवृत्त हुए। उसके बाद पूरा परिवार पर्थ (आस्टे्रलिया) चला गया। आदित्य दो भाइयों में बड़े हैं। उनके छोटे भाई का नाम अरुणिम है। जून, 1996 में आदित्य का जन्म हुआ। पिता सेना में थे इसलिए आदित्य का स्कूल पिता के तबादले के साथ बदलता रहा। आदित्य ने दसवीं दिल्ली के आर्मी पब्लिक स्कूल, धौलाकुंआ से की। 2013 में भार्गव परिवार को आस्ट्रेलिया का स्थायी वीजा मिल गया और पूरा परिवार फरवरी, 2014 से आस्ट्रेलिया में रह रहा है।
यहां उल्लेखनीय है कि आदित्य ने अपनी पढ़ाई के लिए परिवार से सहायता नहीं ली। उन्होंने छोटी-मोटी नौकरी की और ट्यूशन पढ़ाकर अपनी पढ़ाई का खर्च खुद इकट्ठा किया। आदित्य पढ़ाई के लिए परिवार पर निर्भर नहीं रहे।
आस्टे्रलिया जाने के बाद आदित्य को एमटेक में इलेक्ट्रानिक इंजनीयरिंग में दाखिला मिल गया। अभी उनका पांचवां सेमेस्टर चल रहा है।
अब बात करते हैं आदित्य की जीत की। 'अर्न्स एंड यंग' एक कंपनी है, जिसे संक्षेप में ईवाई कहते हैं। वह एक प्रतिस्पर्धा कराती है, जिसमें प्रतिभागियों को अपना विलक्षण विचार सौ शब्दों में देना होता है। आदित्य ने ई-कचरा के फिर से इस्तेमाल पर अपना विचार लिखा था। लैपटॉप, मोबाइल, टैब जैसी इलेक्ट्रानिक सामग्रियों के नए-नए मॉडल प्रतिदिन बाजार में आ रहे हैं। ऐसे में पुराने सेट को सुविधा सम्पन्न लोग फेंक देते हैं और नया मॉडल घर ले आते हैं। जबकि पुराना वाला अधिक पुराना नहीं होता। देश में बड़ी आबादी ऐसे लोगों की है, जो पुराना वाला भी नहीं खरीद पाते। इस तरह के इलेक्ट्रानिक सामग्रियों का सही-सही निपटान भी नहीं हो पाता और ये पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाते हैं। आदित्य ने विचार दिया कि इस तरह के पुराने लैपटॉप, मोबाइल को इकट्ठा करके उसे मरम्मत करके नए पैकेट में वारंटी के साथ बाजार में उतारा जा सकता है। मसलन आईफोन फाइव है। वह लाखों की संख्या में बिका। अब लोग आई फोन फाइव को छोड़कर आई फोन सेवन खरीद रहे हैं। अब जो लोग आईफोन फाइव नहीं ले पाए, उनके लिए आदित्य का विचार एक अवसर है, आई फोन फाइव लेने का।
आदित्य के सौ शब्दों में लिख कर दिए गए विचार को हजारों प्रविष्टियों में से पहले दस में स्थान मिला। प्रतियोगिता के दूसरे चरण में 100 शब्दों में दिए गए विचार को विस्तार से लिखकर देना था। आदित्य को दूसरे चरण में दस प्रतियोगियों के बीच छह में चुना गया। छह में फिर वोटिंग हुई। वोटिंग के बाद चयनित चार प्रतियोगियों में आदित्य शामिल थे। चयनित चार प्रतियोगियों को मेलबर्न में ईवाई के पैनल के सामने अपना विचार साझा करना था। छह अक्तूबर को हुई इस प्रतिस्पर्धा में आदित्य ने पहला स्थान हासिल किया। आदित्य को इस जीत के लिए 10,000 डॉलर पुरस्कार के रूप में प्राप्त हुआ और पीपुल्स च्वाइस अवार्ड के रूप में 1,000 डॉलर।
आदित्य के पिता मूलचंद भार्गव कहते हैं, ''यह जीत हम सबके लिए गर्व की अनुभूति कराने वाला है। एक परिवार जो दो-ढाई साल पहले भारत से गया है, उस परिवार से निकल कर एक बच्चा अपने संघर्ष के दम पर अपनी पहचान बनाता है। आदित्य की यह कहानी दूसरे बच्चों को भी प्रेरित करेगा।''
एक समय था जब हम मानते थे कि लक्ष्मी और सरस्वती का साथ कभी नहीं हो सकता है। लेकिन नए समय में परिस्थियां बदली हैं और अब लक्ष्मी वहीं रहना चाहती हैं, जहां सरस्वती का वास हो।
ल्ल आशीष कुमार 'अंशु'
लबर्न में हुए ईवाई-अर्न्स एंड यंग-सर्वाइव द पैनल कॉम्पटिशन में विजेता रहे इलेक्ट्रीकल इंजीनियरिंग के छात्र आदित्य भार्गव को यह जीत उस विचार की वजह से हासिल हुई है, जो ई कचरा के रिसायक्लिनिंग पर केन्द्रित था।
आदित्य के पिता मूलचंद भार्गव भारतीय सेना में रहे हैं और 2011 में वे लेफ्टिनेन्ट कर्नल के पद से सेवानिवृत्त हुए। उसके बाद पूरा परिवार पर्थ (आस्टे्रलिया) चला गया। आदित्य दो भाइयों में बड़े हैं। उनके छोटे भाई का नाम अरुणिम है। जून, 1996 में आदित्य का जन्म हुआ। पिता सेना में थे इसलिए आदित्य का स्कूल पिता के तबादले के साथ बदलता रहा। आदित्य ने दसवीं दिल्ली के आर्मी पब्लिक स्कूल, धौलाकुंआ से की। 2013 में भार्गव परिवार को आस्ट्रेलिया का स्थायी वीजा मिल गया और पूरा परिवार फरवरी, 2014 से आस्ट्रेलिया में रह रहा है।
यहां उल्लेखनीय है कि आदित्य ने अपनी पढ़ाई के लिए परिवार से सहायता नहीं ली। उन्होंने छोटी-मोटी नौकरी की और ट्यूशन पढ़ाकर अपनी पढ़ाई का खर्च खुद इकट्ठा किया। आदित्य पढ़ाई के लिए परिवार पर निर्भर नहीं रहे।
आस्टे्रलिया जाने के बाद आदित्य को एमटेक में इलेक्ट्रानिक इंजनीयरिंग में दाखिला मिल गया। अभी उनका पांचवां सेमेस्टर चल रहा है।
अब बात करते हैं आदित्य की जीत की। 'अर्न्स एंड यंग' एक कंपनी है, जिसे संक्षेप में ईवाई कहते हैं। वह एक प्रतिस्पर्धा कराती है, जिसमें प्रतिभागियों को अपना विलक्षण विचार सौ शब्दों में देना होता है। आदित्य ने ई-कचरा के फिर से इस्तेमाल पर अपना विचार लिखा था। लैपटॉप, मोबाइल, टैब जैसी इलेक्ट्रानिक सामग्रियों के नए-नए मॉडल प्रतिदिन बाजार में आ रहे हैं। ऐसे में पुराने सेट को सुविधा सम्पन्न लोग फेंक देते हैं और नया मॉडल घर ले आते हैं। जबकि पुराना वाला अधिक पुराना नहीं होता। देश में बड़ी आबादी ऐसे लोगों की है, जो पुराना वाला भी नहीं खरीद पाते। इस तरह के इलेक्ट्रानिक सामग्रियों का सही-सही निपटान भी नहीं हो पाता और ये पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाते हैं। आदित्य ने विचार दिया कि इस तरह के पुराने लैपटॉप, मोबाइल को इकट्ठा करके उसे मरम्मत करके नए पैकेट में वारंटी के साथ बाजार में उतारा जा सकता है। मसलन आईफोन फाइव है। वह लाखों की संख्या में बिका। अब लोग आई फोन फाइव को छोड़कर आई फोन सेवन खरीद रहे हैं। अब जो लोग आईफोन फाइव नहीं ले पाए, उनके लिए आदित्य का विचार एक अवसर है, आई फोन फाइव लेने का।
आदित्य के सौ शब्दों में लिख कर दिए गए विचार को हजारों प्रविष्टियों में से पहले दस में स्थान मिला। प्रतियोगिता के दूसरे चरण में 100 शब्दों में दिए गए विचार को विस्तार से लिखकर देना था। आदित्य को दूसरे चरण में दस प्रतियोगियों के बीच छह में चुना गया। छह में फिर वोटिंग हुई। वोटिंग के बाद चयनित चार प्रतियोगियों में आदित्य शामिल थे। चयनित चार प्रतियोगियों को मेलबर्न में ईवाई के पैनल के सामने अपना विचार साझा करना था। छह अक्तूबर को हुई इस प्रतिस्पर्धा में आदित्य ने पहला स्थान हासिल किया। आदित्य को इस जीत के लिए 10,000 डॉलर पुरस्कार के रूप में प्राप्त हुआ और पीपुल्स च्वाइस अवार्ड के रूप में 1,000 डॉलर।
आदित्य के पिता मूलचंद भार्गव कहते हैं, ''यह जीत हम सबके लिए गर्व की अनुभूति कराने वाला है। एक परिवार जो दो-ढाई साल पहले भारत से गया है, उस परिवार से निकल कर एक बच्चा अपने संघर्ष के दम पर अपनी पहचान बनाता है। आदित्य की यह कहानी दूसरे बच्चों को भी प्रेरित करेगा।''
एक समय था जब हम मानते थे कि लक्ष्मी और सरस्वती का साथ कभी नहीं हो सकता है। लेकिन नए समय में परिस्थियां बदली हैं और अब लक्ष्मी वहीं रहना चाहती हैं, जहां सरस्वती का वास हो।
जापान में सीखेंगे तकनीकी के गुर
छठ के पर्व में शाम को सूरज की पूजा हो रही होगी और बिहार से उज्ज्वल प्रियंक, अमन नसीम, शुभम राज, आदित्य प्रकाश और सिद्धान्त मोहन जापान के लिए छह नवम्बर को विज्ञान और तकनीक को समझने के लिए निकल चुके होंगे। उनकी यह यात्रा 13 नवंबर तक चलेगी। सुपर-30 (संस्थापक आनंद कुमार) के इन पांच मेधावी छात्रों का चयन जापान की विज्ञान एवं तकनीक एजेन्सी द्वारा किया गया है। एजेन्सी की तरफ से जारी बयान के अनुसार, 'सुपर-30 गरीब और जरूरतमंद बच्चों के लिए काम कर रही है। इसे जापान में अच्छी तरह से लोग जानते हैं। इसलिए संस्था ने सुपर-30 के पांच मेधावी छात्रों की जापान यात्रा का सारा खर्च उठाने का निर्णय लिया है।'
इन मेधावी छात्रों को नवम्बर में एक सप्ताह के विशेष कार्यक्रम के लिए चुना गया है। इस यात्रा के दौरान छात्रों को जापान के टोक्यो विश्वविद्यालय समेत श्रेष्ठ शैक्षणिक संस्थानों को जानने का अवसर मिलेगा। वे नोबल पुरस्कार विजेता शिराकावा को भी सुनेंगे। सभी चयनित छात्र जापान के 'सुपर साइंस हाई स्कूल' के छात्र-छात्राओं से भी मिलेंगे। इन पांच छात्रों का चयन कोचिंग संस्थान ने एक परीक्षा के माध्यम से किया है। सभी छात्र जापान जाने को लेकर बेहद उत्साहित हैं, जहां जाकर वे विज्ञान और तकनीक के संबंध में जान पाएंगे।
गौरतलब है कि पिछले साल टोक्यो विश्वविद्यालय ने प्रत्येक वर्ष सुपर-30 के दो छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति देने की घोषणा भी की है।
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