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शबरी, जटायु और निषादराज श्रीराम के उदात्त चरित के अभिन्न अंग और सामाजिक समरसता के संदेश वाहक हैं। महर्षि वाल्मीकि की पूजा के चलन से रामलीला अब पूरी तरह राममय हो गई है
अश्वनी मिश्र
महेश उज्जैनवाल वाल्मीकि समाज से आते हैं। उनके पूर्वज फरीदाबाद के थे लेकिन अब उनका सारा परिवार वर्षों से दिल्ली के त्रिलोकपुरी इलाके में रहता है। उन्होंने अपने पिताजी से बचपन से ही सामाजिक क्षेत्र में बढ़-चढ़कर भाग लेना सीखा है। जैसे-जैसे रामलीला का समय नजदीक आता है, वे रामलीला की व्यवस्था में जुट जाते हैं और अपने समाज के साथ इसमें बढ़चढ़ हिस्सा लेते हैं। पर इस बार की रामलीलाओं के स्वरूप में जो परिवर्तन हुआ, उसको लेकर वे अत्यधिक खुश हैं। महेश बताते हैं कि इस बार दिल्ली की अधिकतर रामलीलाओं में कुछ अलग ही दृश्य दिखाई दिया। वे कहते हैं, ''दिल्ली में दशकों से सैकड़ों स्थानों पर श्रीरामलीला का मंचन होता चला आ रहा है। हम और हमारा समाज इसमें भाग लेता ही है। लेकिन इस बार हमारी प्रसन्नता तब कई गुना अधिक हो गई जब भगवान वाल्मीकि को भगवान श्री राम के समान ही रामलीलाओं में पूजा जा रहा था। जगह-जगह भगवान वाल्मीकि के चित्रों से मंच, बैनर व तोरण द्वार सजे हुए थे। समाज के लोगों का श्रीरामलीला कमेटी और सामाजिक संस्थाओं द्वारा सम्मान किया जा रहा था, यह सब देखकर मन को जो प्रसन्नता मिली उसे शब्दों में नहीं बताया जा सकता।'' दिल्ली की रामलीलाओं में पहली बार भगवान वाल्मीकि और वाल्मीकि समाज को जो सम्मान दिया गया, उससे केवल महेश ही खुश नहीं है बल्कि वंचित समाज के हजारों-लाखों लोगों में समरसता और सामाजिक सद्भाव की भावना जाग्रत हुई है। दिल्ली में वैसे तो शायद ही ऐसा कोई स्थान होगा जहां रामलीला का मंचन न होता हो। लेकिन प्रमुख रूप से कुछ रामलीलाएं समाज का ध्यान आकर्षित करती हैं। रा.स्व.संघ, दिल्ली प्रांत के सह संघचालक श्री आलोक कुमार रामलीला के इस बदले स्वरूप पर कहते हैं, ''दिल्ली में अभी तक श्री रामलीलाओं में भगवान वाल्मीकि को जो स्थान और सम्मान मिलना चाहिए वह नहीं मिल पा रहा था। जबकि भगवान वाल्मीकि की कृपा से ही हम भगवान के जीवन चरित को उनकी रामायण के माध्यम से जान पाते हैं। इसलिए इस बार तय हुआ कि जब भगवान श्री राम की आरती होती है तो वहीं पर भगवान वाल्मीकि की भी आरती होनी चाहिए और उन्हें उसी स्थान पर विराजमान किया जाना चाहिए। साथ ही कमेटियों से ये निवेदन रहा कि आरती, मंचन के उद्घाटन में वंचित समाज के भाई-बहन शामिल रहें। जब इस बात का प्रयत्न हुआ तो दिल्ली की 80 फीसद रामलीलाओं में इसका प्रतिसाद अच्छे से मिला।''
हरिओम गुप्ता लवकुश रामलीला कमेटी के उपाध्यक्ष और रामलीला महासंघ के उपाध्यक्ष हैं। वे कहते हैं, ''रामलीला तो हर बार होती है। लेकिन इस रामलीला के पीछे समाज को जोड़ने का संदेश रहा। भगवान राम ने समस्त समाज को उचित सम्मान दिया। पर आज कुछ कारणों से हिन्दू समाज के बीच जात-पात की खाई चौड़ी हो गई है। हमने इस खाई को पाटने की शुरुआत की। सामाजिक संगठनों और श्री रामलीला कमेटी महासंघ के अध्यक्ष सुखवीर शरण अग्रवाल के प्रयासों से इस बार दिल्ली की अधिकतर रामलीलाओं को भगवान वाल्मीकि के चित्रों से पंडाल, मूर्ति स्थापना, स्थान-स्थान पर चित्र, बैनर और तोरण द्वारों से सजाया गया था। साथ ही जिस दिन केवट राम-संवाद, शबरी लीलाएं हुईं, उस दिन कमेटियों की ओर से वंचित समाज के लोगों को अतिथि बनाकर उनका सम्मान किया गया।''
पीतमपुरा की श्रीरामलीला कमेटी अपने अध्यक्ष श्री कृष्ण बसिया की सरपरस्ती में समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलने और समाज को एक बनो, नेक बनो का संदेश देती दिखाई दी। श्री शोभराज वाल्मीकि समाज से हैं और 18 वर्षों से रावण के किरदार का जोशीला प्रदर्शन कर रहे हैं। इस वर्ष उन्होंने अपने नेत्र दान करने की घोषणा की, जिसकी सभी ने सराहना की। शोभराज अपने समाज से अकेले नहीं हैं बल्कि उनके ही समाज से राकेश कुशवाहा 16 वर्षों से अंगद, खरदूषण, जैसे किरदार निभाकर लोगों को मनोरंजित कर रहे हैं।
राजुकुमार नायक, हरिचंद वंशीवाल, मंजीत साहसी, जीतू कुमार, गोलू ऐसे ही कलाकर हैं जो हर बार रामलीला में प्रदर्शन के माध्यम से वाल्मीकि समाज की ओर से योगदान करते हैं। ल्ल
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