संपूर्ण सफलता की राह बड़ी कठिन है
May 9, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

संपूर्ण सफलता की राह बड़ी कठिन है

by
Jan 25, 2016, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 25 Jan 2016 15:28:13

पिछले साल वामपंथी अतिवाद से प्रभावित कई राज्यों में सुरक्षा की स्थिति में सुधार हुआ है। लेकिन यह तात्कालिक हो सकता है। माओवादियों का जड़ों से उन्मूलन तभी संभव है जब सुरक्षा के साथ विकास के कार्य और स्थानीय लोगों के अधिकारों के सम्मान की समग्र रणनीति अपनाई जाए

वामपंथ से प्रभावित राज्यों की सुरक्षा परिस्थिति में पिछले वर्ष बड़ा सुधार देखा गया है। हालांकि इससे वामपंथी अतिवाद के भारत में समाप्ति के संकेत तो नहीं मिलते लेकिन इसे भारत की हृदय स्थली में अतिवाद की बढ़त और विस्तार को रोकने में राज्य और उनके सुरक्षा बलों की क्षमता के सबूत जरूर मिलते हैं।
छत्तीसगढ़ और ओडिशा को छोड़कर अन्य प्रभावी राज्यों में भी वामपंथियों द्वारा की गई हत्याओं की संख्या में खासी कमी आयी है। पिछले दशक में नक्सलियों द्वारा की गई हत्याओं की संख्या में उतार के चिन्ह स्पष्ट दिखते हैं। (देखें ग्राफ)
इस सब में ध्यान देने योग्य बात यह है कि पिछले दो वर्षों में नागरिकों और सुरक्षा बलों के जवानों की मौतों की संख्या कम हुई है। 2015 में इन मौतों की संख्या में 2014 की तुलना में 20-30 प्रतिशत कमी आयी है जो एक सकारात्मक लक्षण है और इसे और मजबूत किया जाना चाहिए।
वामपंथी अतिवादी हिंसा की बढ़ोत्तरी और प्रसार का मुकाबला करने के लिए सरकार ने त्रिस्तरीय उपाय किये हैं जो डीएसआर मॉडल पर आधारित है। इसका मलतब है डेवलेपमेंट (विकास), सिक्यूरिटी (सुरक्षा) और राइट्स ऑफ द पीपल (लोगों के अधिकार) और ये तीनों ही साथ-साथ चल रहे हैं। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि जिन प्रभावित क्षेत्रों में राजनीतिक पहुंच हुई है, जैसे पश्चिम बंगाल और बिहार, वामपंथी अतिवाद की घटनाएं लगभग समाप्त हो गई हैं। यह लोकतांत्रिक सहभागिता के महत्व को रेखांकित करता है, जिसमें सामान्य लोग अपनी समस्याओं को उठाने के लिए विभिन्न राजनीतिक समूहों के साथ हो लेते हैं और इस तरह अतिवाद से लोगों की आवाज बनने का अवसर छिन जाता है। यह सहभागिता माओवादियों की अतिवादी विचारधारा में रोक लगाने का काम करती है।
लेकिन डीएसआर मॉडल को क्रियान्वित करने के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है। यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि माओवादी विचारधारा का मुकाबला वैकल्पिक विचारधारा के फैलाव से ही संभव है और वह विकल्प भारतीय लोकतंत्र का ही हो सकता है। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि लोकतांत्रिक ढांचा सक्रिय और प्रभावी रूप से काम करे जिसपर लोग विश्वास कर सकें और अपनी बात रखने के लिए जिसके दरबाजे खटखटा सकें। इसके लिए वर्तमान के मुकाबले अधिक मजबूत  और सक्रिय न्याय व्यवस्था के तंत्र की जरूरत होगी। अभी कानून की प्रक्रिया बहुत पेचीदा है और न्याय मिलने में वर्षों लग जाते हैं। इससे स्थानीय लोगों में न्याय तंत्र के प्रति भरोसा कम होने लगता है। इसके साथ ही अधिकारों की अवधारणा की भी बात उठती है। वाम पोषित अतिवाद के विरुद्ध यह एक प्रभावी हथियार के रूप में सिद्ध हो सकता है और प्रभावित राज्यों में प्राथमिकता के तौर पर क्रियान्वित किया जाना चाहिए। नक्सल प्रभावित राज्यों के राज्यपाल संविधान के अनुच्छेद 244 के तहत इसके क्रियान्वयन के लिए जवाबदेह होने चाहिए और अन्य प्रावधानों के लिए भी, जहां  वनवासियों और अन्य लोगों को भूमि और जंगल इत्यादि के अधिकारों की गारंटी दी गयी है। सामान्य तौर से संवैधानिक प्रावधानों को गंभीरता से और सचेतन भाव से क्रियान्वित करना चाहिए। इससे स्थानीय लोगों में व्याप्त रोष कम होगा और इससे विकास और सुरक्षा की राह खुलेगी। निचले स्तर पर स्थानीय लोगों के संपर्क में आने वाले पुलिस सिपाहियों और वन्यरक्षकों जैसे सरकारी प्रतिनिधियों को संवेदनशील बनाने के लिए बार-बार दखल देने की भी जरूरत है ताकि स्थानीय लोग में अलगाव की भावना न बढ़े। जब तक जमीनी स्तर पर अहंकार में चूर अधिकारी अपना व्यवहार नहीं सुधारते तब तक हम माओवादियों के सामने भारतीय लोकतंत्र की मजबूती के प्रभावी विकल्प को स्थापित करने में पूरी तरह सफल नहीं हो सकते।
अभी कई कारणों से नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास प्रक्रिया बहुत मंद गति से चल रही है। लेकिन इसमें तेजी लाई जा सकती है बशर्ते कि विकास को लेकर कोई दीर्घकालीन दृष्टिकोण अपनाया जाए। फिलहाल तो ऐसा लगता है कि सारा ध्यान तुरत-फुरत नतीजे हासिल करने पर है। यह नहीं सोचा जा रहा है कि आखिरकार हासिल क्या करना है। अच्छा होगा कि हरेक प्रभावित जिले को दस वर्षीय विकास योजना का खाका तैयार करने को कहा जाए जिसे राज्य सरकार को छानबीन और समन्वय के लिए भेजा जाए। इसके बाद राज्य सरकार से स्वीकृत और पर्याप्त धनराशि के आबंटन और दूसरी मदद के साथ उन जिलों को क्रियान्वयन के लिए वापस भेजी जाए। केन्द्र सरकार को ऐसी योजनाओं के लिए धनराशि उपलब्ध करानी चाहिए। इससे विकास का मुद्दा निचले स्तर पर चिंता का विषय बनेगा न कि दिल्ली से निर्देशित होगा। यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि हरेक जिले की अपनी चिंताएं और जरूरतें हैं और उनको सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए, बजाय इसके कि सबके लिए एक तरह के विकास का मॉडल बना दिया जाए। इस तरह के जिला आधारित विकास मॉडल से उसमें होने वाली प्रगति की निगरानी की जा सकेगी और जमीनी स्तर पर होने वाली कार्रवाई के लिए संबंधित अधिकारियों की जवाबदेही तय की जा सकेगी। इसके अलावा निजी और सरकारी क्षेत्र का औद्योगिक विकास स्थानीय लोगों की कीमत पर नहीं होना चाहिए। इसके बजाय उनको विकास के उपायों में सहभागी बनाना चाहिए।
हालांकि सुरक्षा के मोर्चे पर काफी सुधार हुआ है लेकिन अभी बहुत कुछ करना बाकी है। मौतों की संख्या में कमी का अर्थ यह कदापि नहीं कि इससे सुरक्षा बलों के ऑपरेशन में भी सुधार हुआ है। ऐसा लगता है कि पिछले कुछ वर्षों में  माओवादी देश के दूसरे हिस्सों में पांव पसारने की अपनी मंशा में क्षमता से अधिक आगे बढ़ गए जिसकी वजह से उनका वरिष्ठ काडर बड़ी संख्या में या तो मारा गया या सुरक्षा बलों के हाथों पड़ गया। अब उन्होंने रणनीतिक विराम ले लिया है और हमले के लिए उचित अवसर की तलाश में है।
सुरक्षा बल अभी कमजोर नेतृत्व और अपर्याप्त प्रशिक्षण से ग्रसित हैं। नेतृत्व का मुद्दा केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बलों की समूची बटालियनों को उनके कमांडिंग अधिकारियों के साथ तैनाती से हल किया जा सकता है।आईजी स्तर के अधिकारियों को अपने दस्तों के साथ जंगलों में रहना चाहिए और अभियानों का नेतृत्व करना चाहिए। उन्हें चाहिए कि वे अपने बलों की तैनाती ग्रिड (एक दूसरे से जुड़े दस्ते) के रूप में करें जैसे जम्मू और कश्मीर तथा उत्तर पूर्व में सेना की तैनाती होती है।
अभियान को सफल बनाने के लिए सुरक्षा टुकडि़यों के अलग-अलग समूह बनाये जाने चाहिए जो स्वतंत्र रूप से दिन-रात ऑपरेशन की प्रक्रिया को संचालित कर सकें। जरूरत के हिसाब से उन्हें रात में कार्रवाई करने का प्रशिक्षण भी दिया जाना चाहिए ताकि माओवादियों की हरकतों को रोका जा सके। अच्छे प्रशिक्षण से युक्त और प्रेरणा से भरी टुकडि़यां इस स्थिति को एक छोटी अवधि में भी सार्थक बना सकती हैं।
इससे जनता के आत्मविश्वास को बढ़ाकर विकास प्रक्रिया तेज हो सकेगी। स्थानीय लोगों के अधिकारों को प्राथमिकता देते हुए डीएसआर मॉडल को समन्वित रूप में अपनाने से प्रभावित क्षेत्रों में स्थानीय लोगों को माओवादी विचारधारा से दूर करेगा और शांति बहाल होगी।    

मे. जन. धु्रव सी. कटोच
(लेखक क्लॉज के पूर्व निदेशक और 'सैल्यूट'
पत्रिका के संपादक हैं)

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

यह युद्ध नहीं, राष्ट्र का आत्मसम्मान है! : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने ऑपरेशन सिंदूर को सराहा, देशवासियों से की बड़ी अपील

शाहिद खट्टर ने पीएम शहबाज शरीफ को बताया गीदड़

मोदी का नाम लेने से कांपते हैं, पाक सांसद ने पीएम शहबाज शरीफ को बताया गीदड़

ऑपरेशन सिंदूर पर बोले शशि थरूर– भारत दे रहा सही जवाब, पाकिस्तान बन चुका है आतंकी पनाहगार

ड्रोन हमले

पाकिस्तान ने किया सेना के आयुध भण्डार पर हमले का प्रयास, सेना ने किया नाकाम

रोहिंग्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद अब कुछ शेष नहीं: भारत इन्‍हें जल्‍द बाहर निकाले

Pahalgam terror attack

सांबा में पाकिस्तानी घुसपैठ की कोशिश नाकाम, बीएसएफ ने 7 आतंकियों को मार गिराया

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

यह युद्ध नहीं, राष्ट्र का आत्मसम्मान है! : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने ऑपरेशन सिंदूर को सराहा, देशवासियों से की बड़ी अपील

शाहिद खट्टर ने पीएम शहबाज शरीफ को बताया गीदड़

मोदी का नाम लेने से कांपते हैं, पाक सांसद ने पीएम शहबाज शरीफ को बताया गीदड़

ऑपरेशन सिंदूर पर बोले शशि थरूर– भारत दे रहा सही जवाब, पाकिस्तान बन चुका है आतंकी पनाहगार

ड्रोन हमले

पाकिस्तान ने किया सेना के आयुध भण्डार पर हमले का प्रयास, सेना ने किया नाकाम

रोहिंग्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद अब कुछ शेष नहीं: भारत इन्‍हें जल्‍द बाहर निकाले

Pahalgam terror attack

सांबा में पाकिस्तानी घुसपैठ की कोशिश नाकाम, बीएसएफ ने 7 आतंकियों को मार गिराया

S-400 Sudarshan Chakra

S-400: दुश्मनों से निपटने के लिए भारत का सुदर्शन चक्र ही काफी! एक बार में छोड़ता है 72 मिसाइल, पाक हुआ दंग

भारत में सिर्फ भारतीयों को रहने का अधिकार, रोहिंग्या मुसलमान वापस जाएं- सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

शहबाज शरीफ

भारत से तनाव के बीच बुरी तरह फंसा पाकिस्तान, दो दिन में ही दुनिया के सामने फैलाया भीख का कटोरा

जनरल मुनीर को कथित तौर पर किसी अज्ञात स्थान पर रखा गया है

जिन्ना के देश का फौजी कमांडर ‘लापता’, उसे हिरासत में लेने की खबर ने मचाई अफरातफरी

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies