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भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के नक्सलवादियों यानि माओवादियों से निबटने में जिस आंध्र मॉडल का उल्लेख किया जाता है, वह दरअसल प्रदेश सरकार की राजनीतिक, सुरक्षा संबंधी और विकास की कार्रवाइयों का सम्मिश्रण है।
अविभाजित आंध्र प्रदेश में सभी राजनीतिक दलों के बीच में माओवाद की चुनौती से निबटने की आम सहमति थी। राज्य के राजनीतिक नेतृत्व को यह बात समझ आ गई थी कि माओवादियों की चुनौती वास्तविक हैं और उसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। माओवादियों से निबटने की यह रणनीति लंबे अरसे में जाकर तैयार हुई।
भाराज्य में माओवादी प्रभाव वाले क्षेत्रों में तेज गति से सामाजिक और आर्थिक विकास के उद्देश्य से दो बार विकास अभियान शुरू किए गए। ऐसा पहला प्रयास 1990 में हुआ और दूसरा अभियान 2005 में छेड़ा गया। 1990 में जो पहल की गयी, वह योजना आयोग से स्वीकृत कार्यक्रम रिमोट एरियाज डेवलेपमेंट प्रोग्राम (आरएडीपी) था जिसका उद्देश्य दूरदराज के क्षेत्रों में विकास करना था। 2005 की पहल रिमोट एण्ड इंटीरियर एरियाज डेवलेपमेंट प्रोग्राम के नाम से जानी जाती है जिसके तहत प्रभावित क्षेत्रों के भीतरी इलाकों में विकास के काम छेड़े गए। आम तौर पर आंध्र प्रदेश मॉडल को माओवादियों के समूल नाश के लिए सुरक्षा बलों—आंध्र में विशेष रूप से खड़े किए गए नक्सल विरोधी बल ग्रेहाउंडस का अभियान मान लिया जाता है। स्पष्ट रूप से यह एक गलत धारणा है। सुरक्षाबल की कार्रवाई के साथ अन्य कई कारक भी थे और इन सबने मिलकर माओवादियों की रोकथाम में बड़ी
भूमिका निभाई।
इनमें प्रमुख हैं-
एक प्रभावी समर्पण और पुनर्वास नीति।
राज्य की पुलिस क्षमता में मानव शक्ति को बढ़ाकर, उन्हें प्रशिक्षण देकर, ढांचागत सुविधाएं और अन्य साजो-सामान उपलब्ध करवाकर उसे मजबूत करना।
हरेक स्तर पर राज्य की पुलिस की समझ बढ़ाना, इसी के साथ सीधी भर्ती से आए जवानों को विभिन्न स्तरों के प्रशिक्षण का अनुभव कराना और ग्रेहाउंडस को पूरे अधिकार देना।
पुलिस मुख्यालय और जिलास्तर पर विशेषज्ञ गुप्तचरी और सुरक्षाविंग के गठन सहित विशेषीकृत प्रहार दल बनाकर मजबूत संस्थागत मशीनरी खड़ी करना।
मजबूत खुफिया नेटवर्क तैयार करना।
ऑपरेशन के प्रत्येक चरण की विस्तृत योजना बनाना।
विभिन्न उपायों से पुलिस थानों की सुरक्षा सुनिश्चित करना।
थानों की सुरक्षा के लिए कई पुलिस थानों को मिलाकर एक ग्रिड तैयार करना।
पुलिस अधिकारियों में प्रत्येक स्तर पर तेजी से प्रमोशन, विभागीय कार्रवाई से निश्िंचतता और उनमें नेतृत्व तैयार करना।
लगभग 205.12 करोड़ लागत की 112 छोटी सिंचाई परियोजनाएं लगायी गयी थीं जिनमें मात्र 28 ने कार्य पूरा किया जबकि शेष बची 82 अलग-अलग स्तरों पर प्रगति पर हैं। शेष दो योजनाओं पर कार्य होना बाकी है।
11 संरक्षित ग्रामीण जल आपूर्ति योजनाओं पर कार्य चल रहा है। जिनके लिए लगभग 70 करोड़ रुपए आबंटित किए गए हैं।
29 जन स्वास्थ्य केन्द्रों के भवन निर्माण की योजनाओं पर अभी कार्य होना बाकी है जिनके लिए 20.1 करोड़ रुपए आबंटित किए गए हैं।
वनवासी क्षेत्रों में स्थित सभी 5 स्वीकृत डिग्री कॉलेज में स्थायी आधार पर एक भी शिक्षक की नियुक्ति नहीं की गयी है। इन महाविद्यालयों में जिनको चलते दो वर्ष हो गए हैं, ठेके पर नियुक्त किए गए कुछअध्यापक पढ़ा रहे हैं। (यह 2008 की स्थिति है)
उच्च शिक्षा के प्रधान सचिव कई बार समीक्षा बैठक ले चुके हैं लेकिन इन दुर्गम क्षेत्रों में जाने के लिए कोई भी तैयार नहीं होता। परिणाम यह है कि स्थायी प्रवक्ताओं की नियुक्ति करने में वे भी असमर्थ दिखाई पड़ते हैं।
इस सबके बावजूद विकास प्रक्रिया को बढ़ाने के क्रम में सरकार ने बड़ी मात्रा में जमीनों के पुनर्वितरण का अभियान चलाया है। और लगभग 4.2 लाख एकड़ जमीन गरीब किसानों में बांटी है। इससे माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में गरीबों और भूमिहीनों में एक नया आत्मविश्वास जगा है और वे माओवादियों के जाल में फंसने से बच गए हैं।
अन्य विकास योजनाएं भी सरकार की ओर से शुरू की गई हैं जिनमें सिंचाई, स्वास्थ्य, ग्रामीण और शहरी विकास आदि की विभिन्न योजनाएं शामिल हैं। पिछले कुछ दशकों में केन्द्र और राज्य दोनों की ही कई विकास योजनाएं नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में अमल में लाई गई हैं। सुरक्षा उपायों के साथ ही विकास के इन कार्यक्रमों से माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में चमत्कारी बदलाव हुआ है। सुरक्षा योजनाओं के साथ ही इन विभिन्न उपायों से प्रभावित क्षेत्रों में माओवाद का असर कम करने में मदद मिली है। इसमें विकास योजनाओं की महत्वपूर्ण भूमिका है। इस तरह आंध्र प्रदेश का मॉडल कई तत्वों का सम्मिश्रण है। इसमें राज्य सरकार के राजनीतिक उपाय विकास के कदम और विशिष्ट सुरक्षा बल ग्रेहाउंडस की तैनाती सहित कई सुरक्षा अभियान शामिल हैं।
दूसरे प्रभावित राज्यों के सामने नक्सलियों से निपटने का आंध्र प्रदेश का अनुभव है। इन राज्यों को यह समझना होगा कि आंध्र प्रदेश मॉडल विशिष्ट सुरक्षा बल ग्रेहाउंडस की तैनाती के अलावा भी बहुत कुछ है। इसके अंतर्गत राज्य पुलिस की आक्रामक क्षमता को बढ़ाना, उनका प्रशिक्षण, उनके साजो-समान का बंदोबस्त और खुफिया तंत्र को मजबूत करने की वर्षों की तैयारी आती है।
इसी के साथ प्रशासन में हर स्तर पर नेतृत्व क्षमता भी विकसित की गई। राजनीतिक इच्छाशक्ति और प्रतिबद्धता किसी भी नक्सल विरोधी पहल के लिए आवश्यक है उसी तरह सरकार के दूसरे विभागों की प्रतिक्रिया भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। कुल मिलाकर यह कहना सही नहीं होगा कि आंध्र प्रदेश में माओवादियों से निपटने के लिए जो रणनीति अपनायी गयी उसका ही प्रतिरूप सब जगह लागू हो। अच्छा हो कि इसे अन्य प्रभावित राज्यों के लिए संदर्भ बिन्दुओं के रूप में ग्रहण किया जाए। तभी इससे उनके लिए एक समग्र उपाय का शिल्प प्रस्तुत हो सकेगा।
पी.वी. रमन्ना (लेखक इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एण्ड एनालिसिस, नई दिल्ली में रिसर्च फेलो हैं)
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