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पठानकोट एयरबेस पर हुए आतंकी हमले से पहले, हर ऐसी आतंकी कार्रवाई के बाद कुछ सरकारी बयानों और तीखे अंदाज दिखाते हुए, पूरा सरकारी तंत्र जैसे अगले हमले का इंतजार करता दिखता था। लेकिन इस बार पाकिस्तान तेजी से हरकत में आया और मुख्य साजिशकर्ता मौलाना मसूद अजहर को हिरासत में लिया गया। इसमें शक नहीं है कि भारत को इस हमले से कुछ सबक भी मिले हैं। प्रस्तुत हैं इस पूरे प्रकरण पर रक्षा विशेषज्ञ मेजर जनरल (से.नि.) अफसिर करीम से पाञ्चजन्य के सहयोगी संपादक आलोक गोस्वामी की विस्तृत बातचीत के प्रमुख अंश।
पठानकोट हमले के सन्दर्भ में थलसेनाध्यक्ष जनरल दलबीर सिंह ने सेना के एकदम तैयार होने की बात कही है। रक्षामंत्री मनोहर पर्रीकर भी पाकिस्तान को कड़ा संकेत दे चुके हैं। इससे क्या अर्थ निकलता है?
मैं किसी के बयानों पर ज्यादा कुछ कहना नहीं चाहता, क्योंकि बात वह होती है जो धरातल पर सामने आती है। सिर्फ बोलने भर से हमारा कोई खास फायदा नहीं होता। बातें तो केवल जनता को यह दिखाने के लिए भी की जाती हैं कि हम कुछ कर रहे हैं। अभी तक तक तो किसी तरह की सैन्य कार्रवाई का कोई खाका हमारे सामने नहीं आया है। मैं शुरू से कहता आ रहा हूं कि पठानकोट एयरबेस पर हुआ हमला कोई आतंकवादी कार्रवाई नहीं है, यह पड़ोसी देश के विरुद्ध एक खुला हमला है। एक ऐसी अन्तरराष्ट्रीय सीमा को लांघा गया है जहां कोई विवाद नहीं है और एक सैन्य प्रतिष्ठान पर तैयारी के साथ हमला बोला गया है। यह नि:संदेह युद्धक कार्रवाई है जिसका जवाब सैन्य तरीके से दिया जाना चाहिए। हम अगर बातें कम करें और कार्रवाई करें तो उसके नतीजे सामने आएंगे।
सैन्य प्रतिष्ठान पर हमला किया जाना क्या यह नहीं दिखाता कि आतंकियों के हौसले कितने बुलन्द हो चुके हैं?
बिल्कुल यही दिखाता है, और ऐसा इसलिए क्योंकि हमने उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। ना पहले, ना अब। कुछ विशेषज्ञ इसके पीछे कारण बताते हैं कि उनके पास परमाणु हथियार हैं, वगैरह, वगैरह। मेरा मानना है कि हमें पाकिस्तान को साफ कर देना चाहिए कि उनकी धरती से कोई भी हमला होता है, चाहे वह क करे या ख, वह हमला उनकी तरफ से किया हमला ही माना जाएगा। हम उसी हिसाब से कार्रवाई करेंगे।
हमारी दृष्टि से यह अच्छी खबर है कि पाकिस्तान में जैश-ए-मुहम्मद के सरगना मौलाना मसूद अजहर, उसके भाई और साले को गिरफ्तार करके प्रोटेक्टिव कस्टडी में भेजा गया है। मैं समझता हूं कि इससे कम से कम अब पाकिस्तान की इस नाते गंभीरता दिखती है। हमारे नजरिए से, यह एक अच्छा संकेत है।
अफगानिस्तान में भारतीय वाणिज्य दूतावास पर हमले पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
अफगानिस्तान में हुआ हमला साफ दिखाता है कि उसमें भी पाकिस्तानी सेना का हाथ है। वहां भी भारत के विरुद्ध ही हमला किया गया है। इसलिए इन सब चीजों को देखते हुए हमें अब इसे आतंकवाद से बढ़कर देखना चाहिए। आतंकवाद कहकर तो हम इसे पुलिस की जिम्मेदारी बताकर रह जाते हैं।
शायद पाकिस्तान पर दबाव ही है, जो प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ को यह कहना पड़ा कि हम अपनी धरती से आतंकवाद की हरकतें नहीं होने देंगे। शरीफ ने इस घटना की जांच के लिए एक संयुक्त जांच दल भी गठित किया है जिसके भारत आकर भी जांच करने की बात है। इस पर आप क्या कहेंगे?
देखिये, दबाव तो बहुत ज्यादा है पाकिस्तान पर। यह मामला कहीं न कहीं पेरिस पर हुए हमले के बाद अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद से जुड़ गया है। राष्ट्रपति ओबामा ने भी कहा है कि पाकिस्तान में आतंकी प्रशिक्षण केन्द्र खुलते जा रहे हैं। इससे भी पाकिस्तान पर दबाव बढ़ा है कि अगर वे कोई कार्रवाई नहीं करेंगे तो शायद उन पर प्रतिबंध लग जाएं या उनकी राहत राशि रोक दी जाए। इसलिए पाकिस्तान ने कड़ी कार्रवाई की है।
पाकिस्तान के राजनीतिक अधिष्ठान में आखिर फैसले लेने का कितना दम है?
यह ठीक है कि उसके पास खास ताकत नहीं है, पर राजनीतिक अधिष्ठान को ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने जवाब देना होता है। उस समय तो सेना सामने नहीं आती। लेकिन अफगानिस्तान और भारत के संदर्भ में उनकी जो भी नीतियां हैं, वे वहां की सेना ही तय करती है।
पठानकोट हमले से भारत ने आखिर क्या सबक सीखे?
पहला सबसे बड़ा सबक तो यही है कि आखिर एक सशस्त्र गुट को अंतरराष्ट्रीय सीमा से पार कैसे होने दिया गया? वे आतंकी एयरबेस तक कैसे पहंुच गए और कैसे दीवार फांदकर अंदर पहंुच गए? इससे शक जाता है कि अंदर का कोई आदमी उनके साथ शामिल था। इसमें सेना, पुलिस और दूसरे तंत्रांे के लिए भी सीखने को कई सबक हैं।
ल्ल पिछले दिनों वायुसेना के जो लोग जासूसी के आरोप में पकड़े गए हैं, क्या उनकी इसमें कोई भूमिका हो सकती है?
उन सबकी भूमिका है। बिना जानकारी के आतंकियों को यह नहीं पता चल सकता था, मेस कहां है, जहाज कहां खड़े हैं। कमांडो हमला इन जानकारियों के बिना नहीं किया जा सकता था। यह संदेह इसलिए गहरा होता है क्योंकि उन्होंने सामने से लड़ाई नहीं लड़ी, बल्कि चुपचाप अंदर गए। उनको मालूम था कि कहां और कैसे जाना है।
क्या इसमें गुप्तचरी की नाकामी है?
बिल्कुल है। आपके लोग मिले हुए हैं, जिन्होंने उनको सीमा पार कराई। इसमें बीएसएफ और नशीले पदार्थों के व्यापार से जुड़े दूसरे लोग भी शामिल हैं। उन्होंने वही मार्ग इस्तेमाल किया जहां से नशीली दवाएं लाई जाती रही हैं। उनका एयरबेस के अंदर घुस आना, यह हमारी बहुत बड़ी नाकामयाबी है, जिससे बहुत सबक सीखने की जरूरत है। मैं फौज मंे पैरा रेजीमेंट का अफसर रहा हूं। हमें अपने एयरबेस की रक्षा करना और दुश्मन के एयरबेस पर हमला करना ही सिखाया गया था।
पठानकोट हमला अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद से जुड़ गया है। राष्ट्रपति ओबामा ने भी कहा है कि पाकिस्तान में आतंकी प्रशिक्षण केन्द्र खुल रहे हैं। इससे भी पाकिस्तान पर दबाव बढ़ा है इसलिए उसने कड़ी कार्रवाई की है।
— मे.जनरल (से.नि.) अफसिर करीम
बीएसएफ के कई जवान पाकिस्तानी तस्करों के मददगार!
पंजाब पुलिस की आतंक निरोधी एजेंसी (सीआईए) ने अपराधी सरगना गुरजंत सिंह ऊर्फ भोलू की शिनाख्त पर सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के जवान अनिल को श्रीगंगानगर (राजस्थान) से गिरफ्तार किया। बीएसएफ ने अनिल के फोन को निगरानी पर लगाया हुआ था। उसे पाकिस्तानी सिम पर पाकिस्तान बात करते हुए पकड़ा गया था।
सीआईए ने एक अपराधी गुरजंत, उसके साथियों के लिए जाली आईडी बनाने वाले लुधियाना के हैबोवाल कलां के निवासी ट्रैवल एजेंट दीपक को भी गिरफ्तार किया है। इसी से बनवाई जाली पहचान पर गुरजंत ने जाली पासपोर्ट बनवाया और थाईलैंड गया जहां उसकी मुलाकात पाकिस्तानी तस्कर इम्तियाज से हुई थी। गुरजंत ने अपने भाई गुरवीर के साथ 2009 में तस्करी शुरू की थी। वह गुरप्रीत ऊर्फ गोपी से मिला जिसने बीएसएफ में तैनात मामा हरदेव सिंह से मिलाया। तब से गुरजंत बीएसएफ की मदद से सीमा पार से हेरोइन और हथियार मंगवाने में जुट गया। हरदेव के जरिए उसने करीब दो क्विंटल हेरोइन (अंतरराष्ट्रीय कीमत 1000 करोड़ रुपये) पाकिस्तान से पंजाब के खालड़ा पर सीमा पार करवाई थी। गुरजंत को अनिल का नंबर पाकिस्तानी तस्कर इम्तियाज ने दिया था। पिछले साल सितंबर के महीने में भी बठिंडा पुलिस सीमा सुरक्षा बल के एक जवान को तस्करी के आरोप में फाजिल्का सीमा से गिरफ्तार कर चुकी है।
गिरफ्तार हुए बीएसएफ के कांस्टेबल अनिल ने पुलिस को बताया कि तरनतारन के एक गांव में एक शादी में उसे कुछ तस्कर मिले जो पंजाब के थे। उन्होंने उसके बीएसएफ में होने का पता चलने के बाद उसे अमीर बनाने का लालच देकर इम्तियाज से लाहौर में फोन पर बात करवाई और पाकिस्तानी सिम दे गए। उसने बताया कि वह तस्करों को अपनी स्थिति गूगल मैप के जरिए बताता था। उसने बताया कि वह कई बार हथियार भी पार करवा चुका है जिसके बदले उसे 40,000 से 50,000 रू. प्रति नग के हिसाब से मिलते रहे हैं। पुलिस को शक है कि अनिल कुमार इतना बड़ा काम खुद नहीं कर सकता, जरूर इसके साथ सीमा सुरक्षा बल के अन्य कर्मचारी या अधिकारी भी मिले हुए हैं। अनिल कुमार अब न्यायिक हिरासत में है। — राकेश सैन, जालंधर से
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