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बिहार को लेकर यदि अनेक विश्लेषक खुलकर यह कहने लगे हैं कि राज्य में फिर से जंगलराज लौट रहा है तो उन्हें एकबारगी गलत ठहराना कठिन है। जंगलराज जैसे शब्द से किसी की आपत्ति हो सकती है, यह शब्द निश्चय ही बिहार सरकार में सबसे बड़े साझेदार राष्ट्रीय जनता दल के लालू प्रसाद यादव एवं उनके समर्थकों की त्यौरियां चढ़ा देता हो किंतु बिहार के अंदर बढ़ते दुस्साहसी अपराध और उसके सामने किंकर्तव्यविमूढ़ दिखती सरकार की स्थिति को क्या कहा जाए। यह शब्द पटना उच्च न्यायालय ने राबड़ी देवी के शासन के संदर्भ में प्रयोग किया था। लालू प्रसाद यादव एवं राबड़ी देवी का कार्यकाल बिहार में 1990 से 2005 तक रहा। तब फिरौती के लिए अपहरण, रंगदारी, लूट, डकैती, गैंगवार, हत्या आदि के आतंक से भयभीत न जाने कितने लोगों ने अपने परिवार के साथ राज्य से बाहर जाने का चयन किया। पर्व त्योहार में घर जाते रहे और कामना करते रहे कि किसी तरह सुरक्षित लौट जाएं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उनके प्रवक्ताओं और समर्थकों का जवाब आता है कि अपराध किस राज्य में नहीं हो रहा है। कई राज्यों का ग्राफ अपराध के मामले में बिहार से बड़ा है। निस्संदेह ऐसा है। कोई राज्य अपराध से अछूता नहीं है। किंतु बिहार और अन्य राज्यों में मौलिक अंतर है।
दरअसल, बिहार में जितनी हत्याएं हो रहीं हैं उनमें निजी दुश्मनी वाली वारदातों की संख्या कम है। उनके पीछे या तो रंगदारी है, दादागिरी कर की मांग है। यह तो संयोग कहिए कि 26 दिसंबर को दरभंगा में दो इंजीनियरों की हत्या के बाद जो हंगामा हुआ उससे ऐसी खबरें बिहार के बाहर सुर्खियां पाने लगीं या चर्चा होने लगी, अन्यथा नीतीश कुमार अपने सुशासन बाबू के उपनाम की छवि को ही विज्ञापनों के सहारे चमकाने की रणनीति अपनाए हुए थे। इन दो इंजीनियरों की हत्या के तीन-चार दिनों के अंदर ही वैशाली में एक इंजीनियर की लाश मिली और मुजफ्फरपुर में एक कारोबारी की हत्या कर दी गई। कुल मिलाकर 29 दिसंबर तक राज्य में 4 दिनों में 3 इंजीनियरों और एक कारोबारी समेत 8 लोगों का कत्ल किया जा चुका था। दरभंगा में दो इंजीनियरों की हत्या के बाद वैशाली के बराटी थाने के तहत एनएच-103 के किनारे 42 वर्ष के इंजीनियर अंकित झा की लाश मिली। उसकी पहचान रिलायंस मोबाइल कंपनी के क्वालिटी इंजीनियर के तौर पर हुई। अंकित के शरीर पर धारदार हथियार से गहरे जख्म के कई निशान मिले। अंकित कुमार रिलायंस कंपनी में उत्तर बिहार के प्रमुख थे। 28 दिसंबर को अंकित झा के साथ दो और शव वैशाली जिले के अलग-अलग इलाकों में मिले। दूसरा शव नगर थाना क्षेत्र में मछलीहट्टा के समीप रेल लाइन किनारे मिला। उसकी पहचान नगर थाना क्षेत्र के पीएचईडी कॉलोनी मोहल्ले में रहने वाले चंदन कुमार के रूप में हुई। वह प्लंबर मिस्त्री था और गोरौल थाना क्षेत्र के राजखंड का रहने वाला था। रविवार की सुबह घर से निकला और सोमवार को रेलवे लाइन किनारे उसकी लाश मिली। जीआरपी थानाध्यक्ष शशि कपूर का बयान है कि उसके माथे पर गंभीर चोट थी जिसके कारण उसकी मौत हुई। जाहिर है, उसकी भी हत्या हुई। तीसरा शव रुस्तमपुर ओपी क्षेत्र के चांदठकुरी गांव के समीप दियारे में एक महिला का मिला। महिला साड़ी पहने हुए थी। उसकी हत्या गला काटकर की गई। हत्या कर शव को पानी भरे एक गड्ढे में फेंक दिया गया।
28 दिसंबर को ही मुजफ्फरपुर में रात करीब साढ़े दस बजे एक गल्ला व्यवसायी संतोष कुमार चौधरी की गोली मारकर हत्या कर दी गई। अपराधियों का मनोबल देखिए कि उन्हें गिरफ्तार करने गई पुलिस पर बम से हमला कर उन्हें घायल कर दिया गया। इसके बाद अपराधी फरार हो गए। समस्तीपुर से 24 सितंबर को अपहरण किए गए राहुल की लाश 29 दिसंबर की सुबह खेत से मिली। अपहरणकर्ताओं की ओर से उसकी रिहाई के बदले 15 लाख रुपए की मांग की गई थी। रकम नहीं मिलने पर राहुल की हत्या कर उसकी लाश को खेत में गाड़ दिया गया था। 28 दिसंबर को ही बाढ़ में मुंडन कुमार नामक एक कारोबारी की रंगदारी न देने पर हत्या कर दी गई तो 26 दिसंबर को रोहतास के एक कारोबारी की। 29 दिसंबर को ही कटिहार जिले के बलरामपुर थाने के तहत घुमटोला में एक पति-पत्नी की हत्या कर दी गई और उसके बेटे को जान से मारने की कोशिश हुई जो घायल होकर अस्पताल में पड़ा है।
इस तरह के उदाहरण ही इस बात का प्रमाण हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एवं लालू प्रसाद यादव की जोड़ी के नेतृत्व में बिहार किस अवस्था में पहुंच गया है। 29 दिसंबर को पटना एनआईटी के एक छात्र का अपहरण कर लिया गया। उसके पिता ने कहा कि अपहरणकर्ताओं ने फोन कर पांच लाख रुपए की फिरौती मांगी है। आरंभ में पुलिस इससे इनकार करती रही किंतु बाद में प्राथमिकी दर्ज हुई एवं उसे तीन दिनों बाद बरामद किया जा सका।
विरोधियों की बातें छोडि़ए, सरकार के वरीय साझेदार राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के उपाध्यक्ष रघुवंश प्रसाद सिंह ने नीतीश के शासन को प्रश्नों के घेरे में खड़ा किया है। 1 जनवरी 2015 को रघुवंश प्रसाद ने कहा कि इंजीनियरों की सनसनीखेज हत्या की घटना ने इस बात को साबित किया है कि राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति अच्छी नहीं है। सरकार में नीतीश कुमार ड्राइवर की भूमिका में हैं उन्होंने इस स्थिति को और नीचे जाने से रोकने के लिए कदम उठाने चाहिए। यह बयान आखिर क्या बताता है? रघुवंश सिंह चूंकि राजद के बड़े नेता हैं, इसलिए उनका बयान हम सबके संज्ञान में आ गया, अन्यथा राजद के स्थानीय नेताओं के अपराध को लेकर इस तरह के बयान आ रहे हैं।
स्वयं लालू प्रसाद यादव का बयान यद्यपि इस तरह से नीतीश के विरुद्घ नहीं है, पर वे भी अपराध पर लगातार बोल रहे हैं। मसलन, उन्होंने एक सुझाव जिलाधिकारी एवं जिला पुलिस अधीक्षक तक को गांव में जाने का दिया। उन्होंने कहा कि जब पुलिस अधिकारी गांव जाएंगे तो वहां लोग बता देंगे कि कौन किसे धमका रहा है या पैसे मांग रहा है। उन्होंने कहा कि यह सब दहशत फैलाने के लिए किया जा रहा है। वे लोग सोच रहे हैं कि एक-दो को मार दो बाकी सब खुद पैसा पहुंचाने लगेंगे। कोई इसका जो भी अर्थ लगाए लेकिन यह लालू यादव द्वारा रंगदारी के लिए बढ़ते अपराध की आत्मस्वीकृति तो है ही।
नीतीश कुमार कह रहे हैं उनकी सरकार जनता की उम्मीदों पर खरी उतरेगी। मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद अगले दिन यानी 21 नवंबर को सबसे पहली बैठक उन्होंने कानून व्यवस्था पर की इसके बाद फिर 28 दिसंबर को कानून व्यवस्था पर दूसरी बैठक हुई। नीतीश कुमार ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये पुलिस महानिरीक्षकों, उपमहानिरीक्षकों, पुलिस अधीक्षकों और जिलाधिकारियों से बात की और उन्हें कानून का शासन कायम रखने का निर्देश दिया। मुख्यमंत्री ने तीन घंटे की बैठक के बाद संवाददाताओं से कहा कि उन्होंने अधिकारियों को साफ निर्देश दिया है कि हर हाल में अपराध पर काबू पाना है। जो कोई कानून तोड़ता है, वह अपराधी है और उसके साथ कानून के अनुसार बर्ताव करना चाहिए, भले ही उसका कद कुछ भी हो। 28 दिसंबर को भी उन्होंने यही बातें दोहराईं।
सवाल है कि इन बैठकों से हुआ क्या? मुख्यमंत्री कहते हैं कि अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो, किसी को बख्शा नहीं जाए, अपराध पर हर हाल मंें नियंत्रण पाया जाए तो ऐसा हो क्यों नहीं रहा है? मुजफ्फरपुर में बोचहा से निर्दलीय विधायक बेबी कुमारी से पहले पांच करोड़ की फिरौती मांगी गई जब उन्होंने पुलिस से शिकायत की तो कहा गया कि पांच करोड़ दो नहीं तो परिणाम भुगतने होंगे। बेबी कुमारी इस समय सुरक्षा में रह रहीं हैं। सरकार कितनी बेबी कुमारियों को सुरक्षा देगी? वो विधायक हैं, इसलिए पूरे राज्य की सुर्खियां बनीं। आम लोग तो ले देकर मामला निपटाने में ही अपनी भलाई समझते हैं। मुख्यमंत्री यदि दंभ छोड़ें और केन्द्र सरकार से सहयोग की मांग करें तो ही कुछ हो सकता है। अर्द्धसैनिक बल, बिहार सैन्य पुलिस एवं प्रदेश पुलिस तीनों का संयुक्त अभियान चले और उसे पूरा अधिकार दिया जाए तो शायद कुछ परिणाम आए, अन्यथा बिहार को बचाना कठिन हो जाएगा। -अवधेश कुमार
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