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संजीव कुमार
भागलपुर की परिवर्तन रैली से बिहार में विरोधी खेमे में मची खलबली, जनता परिवर्तन को तैयार
आंकड़े बताते हैं कि राज्य में भाजपा का गठबंधन टूटने से और बढ़ गये अपराध
बिहार के भागलपुर स्थित हवाई अड्डा मैदान में 1 सितम्बर को हुई परिवर्तन रैली ने बिहार की सत्ता में काबिज नीतीश खेमे में खलबली मचा दी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की चौथी और अंतिम रैली में उमड़े जनसैलाब से साफ हो गया कि बिहार की जनता सत्ता परिवर्तन करने का मन बना चुकी है। भागलपुर की रैली मोदीमय हो गई क्योंकि उनके भाषण को सुनने वालों में इस कदर उत्साह था कि रेल भी ठसाठस भर गईं। जिसे जहां जगह मिली वह वहीं खड़ा होकर भाषण सुनने लगा। भाजपा की इस रैली की सफलता को विरोधी खेमे में बड़ी चुनौती के रूप में देखा जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नीतीश और उनके सहयोगियों पर कटाक्ष करते हुए कहा कि लोहिया और उनके शिष्य देश को बचाने के लिए जीवन भर कांग्रेस के खिलाफ लड़ते रहे, लेकिन उनके चेले सत्ता के लिए कांग्रेस से मिल गए। इस रैली से ऐसा लगा कि मानो बिहार की जनता के ऊपर से महागठबंधन का भूत उतर चुका है। प्रधानमंत्री के भाषण को सुनने के लिए लोग बांस-बल्लियों पर जा चढ़े, आखिर में उन्हें जनता से नीचे उतरने की अपील कर यह तक कहना पड़ा कि जब वे नीचे उतर जाएंगे तभी वे अपना भाषण देंगे।
उधर बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रचार युद्घ छेड़ रखा है। वे अपनी सभी सभाओं में 'बनता बिहार, बढ़ता बिहार' का नारा देते नहीं थक रहे। अपने करिश्माई नेतृत्व का ढोल जितना नीतीश ने पीटा होगा उतना शायद किसी अन्य मुख्यमंत्री ने कभी नहीं पीटा। चुनाव नजदीक आते ही घोषणा, तबादले, शिलान्यास और उद्घाटन की बयार आ गई, लेकिन सरकारी आंकड़े कुछ और बयान कर रहे हैं। बिहार के निष्क्रिय होते प्रशासनिक तंत्र को अक्सर पटना उच्च न्यायालय फटकार लगाता रहा है। यदि गौर करें तो बिहार में इन दिनों चोर, डकैत और लुटेरों के आतंक से कोई भी सुरक्षित नहीं है। साल 2014 में औसतन 37़ 4 लाख रुपए की संपत्ति प्रतिदिन या तो लूटी गई या फिर चोरी या डकैती कर ली गई। रोजाना राह चलते करीब 100 लोगों से सरेराह 4 लाख की संपत्ति लूटी जा रही है। लूट, चोरी और झपटमारी के करीब 3315 मामले हुए हैं, जिसमें लोगों ने लगभग 16़ 43 करोड़ की संपत्ति गंवा दी।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार देश में महाराष्ट्र में सर्वाधिक 885 डकैती के मामले दर्ज किए गए, जबकि बिहार देश में दूसरे पायदान पर रहा है। वर्ष 2014 में यहां डकैती के 538 मामले दर्ज किए गए।
बिहार में जब से गठबंधन की सरकार टूटी है तब से न्यायालय में चल रहे मामलों के निपटारे में भी गिरावट आई है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े भी इस बात की पुष्टि करते हैं। लगभग 8 लाख मामले न्यायालयों में तथा 76 हजार थानों में लंबित हैं। वर्ष 2014 के शुरुआत में कुल 6 लाख 77 हजार 867 मामले लंबित थे, जबकि साल के दौरान 1 लाख 11 हजार 20 नये मामले न्यायालय में पहुंच गए। बिहार की लड़कियों की आंखों में भय साफतौर पर देखा जा सकता है। पटना विश्वविद्यालय में भी लड़कियां स्वयं को सुरक्षित महसूस नहीं करतीं। बिहार में गत वर्ष 395 मामले मानव तस्करी के दर्ज किए गए। वर्ष 2014 में बिहार में कुल 1585 बच्चों का अपहरण किया गया। एक आंकड़े के मुताबिक करीब 200 बच्चे प्रतिमाह अपराधियों का शिकार बने। एक ओर तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बच्चों के विद्यालय जाने की संख्या में इजाफा होने की बात करते हैं। वहीं दूसरी ओर यह भी सच है कि बलात्कार से हत्या तक में पकड़े गए बच्चे ज्यादातर अनपढ़ ही होते हैं। वर्ष 2014 में प्रदेश में कुल 6404 बच्चों को 'जुवनाइल एक्ट' के तहत पकड़ा गया। ऐसे में सवाल यह खड़ा होता है कि आखिर बच्चे अपराध की ओर क्यों रुख कर रहे हैं। राज्य में गठबंधन टूटने के बाद से महिलाओं पर हुए अपराध के मामलों में तेजी आई है।
वर्ष 2014 में महिलाओं पर हुए अपराध के 15,383 मामले सामने आये। जिनमें 1127 बलात्कार, 24 सामूहिक बलात्कार और 484 बलात्कार के प्रयास के शामिल हैं। आंकड़े के मुताबिक प्रतिमाह करीब 100 महिलाएं यौन प्रताड़ना का शिकार हुई हैं। न्यायालय के फटकार के बावजूद कॉलेज एवं दफ्तरों में महिलाओं के लिए अलग प्रकोष्ठ नहीं बनाया जा सका है। बिहार में फिर से जंगलराज स्पष्ट दिख रहा है। शाम होते ही फिर लड़कियां घरों में छिपने को बाध्य हैं। पटना की सड़कों पर निर्भय होकर निकलने वाली लड़कियों का दौर चला गया। एक ओर बिहार की यह स्थिति है वहीं दूसरी ओर मुख्यमंत्री चुनावी प्रचार के लिए एकमुश्त योजनाओं का शिलान्यास कर रहे हैं। प्रदेश के पूर्व मंत्री नीतीश मिश्र ने आरोप लगाया है कि 19 हजार करोड़ की जिन योजनाओं का मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उद्घाटन और शिलान्यास किया है उनमें से कई का तो अभी 'टेंडर' तक जारी नहीं हुआ है। यह नीतीश का दोमुंहापन है, अब चुनाव में प्रतिकूल हालात देखकर उनका विश्वास डगमगा गया, बाकी परिणाम बिहार की जनता ही तय करेगी।
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