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'दसवें विश्व हिंदी सम्मेलन' का आयोजन 10,11 एवं 12 सितम्बर 2015 को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में हो रहा है। आयोजन का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 10 सितम्बर को प्रात: 10 बजे किया जाएगा। विदेश राज्यमंत्री जनरल वी.के. सिंह की देखरेख में इसके प्रबंधन एवं अन्य व्यवस्थाओं का संचालन किया जा रहा है। आयोजन का आधार 'हिंदी जगत- विस्तार एवं संभावनाएं' विषय एवं संकल्पना को रखा गया है। सम्मेलन में 12 विषयों को आधार बनाकर लगभग 26 सत्रों के संयोजन की रूपरेखा है। विषय इस प्रकार हैं-
1-विदेश नीति में हिंदी, जिसकी अध्यक्षता स्वयं विदेशमंत्री सुषमा स्वराज करेंगी 2-विज्ञान में हिंदी 3- सूचना प्रौद्योगिकी में हिंदी 4- विधि एवं न्यायालय में हिंदी 5-बाल साहित्य में हिंदी 6-हिंदी राज्यों में हिंदी 7- गिरमिटिया देशों में हिंदी 8-हिंदी पत्रकारिता में भाषा की शुद्धता 9-हिंदी अनुवाद स्वरूप एवं महत्त्व 10- विदेशों में हिंदी अध्यापन का कार्य-समस्याएं एवं समाधान 11-विदेशों में बसे हिंदी प्रेमियों के लिए सुविधा 12-देश और विदेशों में प्रकाशन-समस्या एवं समाधान।
इस प्रकार सभी विषयों के सत्रों में केंद्रीय मंत्री डॉ. हर्षवर्धन, रविशंकर प्रसाद, राज्यपाल केसरी नाथ त्रिपाठी, डॉ. बालशौरि रेड्डी, मृणाल पाण्डे, कमलकिशोर गोयनका, सतीश मेहता (महानिदेशक अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद्), बल्देव भाई शर्मा (अध्यक्ष, नेशनल बुक ट्रस्ट), मनोहर पुरी आदि सत्रों की अध्यक्षता या संयोजन करेंगे। फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन की भी उपस्थिति सम्मेलन की गरिमा बढ़ाएगी। आयोजन भोपाल में होने से मध्यप्रदेश के शिवराज सिंह चौहान एवं संस्कृति राज्यमंत्री सुरेन्द्र पटवा के साथ राज्यसभा सांसद अनिल दवे विदेश मंत्रालय की केंद्रीय टीम के साथ आयोजन का कार्य देख रहे हैं। विदेश मंत्रालय एवं मध्य प्रदेश सरकार के कई विभाग और अधिकारी आयोजन की सफलता के लिए संकल्पित हैं।
प्रत्येक दिन सायंकाल को एक भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन होगा। सम्मेलन का समापन 12 सितम्बर की शाम अंतरराष्ट्रीय कविसम्मेलन से किया जाएगा जिसमें देश के वरिष्ठ कवि काव्यपाठ करेंगे।
भारत और हिन्दी का बढ़ता व्याप
विश्व हिन्दी सम्मेलन के अवसर पर इस बात पर अवश्य विचार होना चाहिए कि देश और विदेश में हिन्दी का विस्तार हो और इसकी क्षमता में अधिकाधिक वृद्धि हो। देश में हिन्दी की स्वीकृति और विस्तार पर किसी को शंका नहीं होनी चाहिए। हमारे देश में हिन्दी का बहुत कम विरोध दिखाई पड़ता है लेकिन विस्तार उसकी तुलना में कई गुना ज्यादा। खासकर मीडिया और संचार व्यवस्था ने हिन्दी का व्यापक रूप से प्रचार-प्रसार किया है। आज अधिकांश लोगों के पास मोबाइल फोन हैं। केेवल बातचीत ही नहीं एसएमएस, व्हाट्सऐप, फेसबुुक और ईमेल आसानी से स्मार्ट फोन पर चल रहे हैं जो केवल और केवल हिन्दी के व्याप को बढ़ा रहे हैं। चाहे टेलीविजन चैनल हों या विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाएं, सब ओर सहज रूप से हिन्दी का वर्चस्व दिखाई देता है। आज बहुराष्ट्रीय और विदेशी कंपनियां महसूस कर रही हैं कि भारत जैसे बड़े देश में अपने व्यापार का विस्तार करना है तो हिन्दी के बिना कोई गुजारा नहीं चलने वाला। केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा ऐसे हजारों शिक्षार्थियों को हिन्दी का प्रशिक्षण देता है जो अपने देश में जाकर हिन्दी का प्रचार-प्रसार करने के साथ जीविका के रूप में प्रतिष्ठित पद भी प्राप्त करते हैं। आज विदेशों में हिन्दी पूरे स्वाभिमान के साथ खड़ी होती दिखाई पड़ती है। अमरीका सरकार हिन्दी के शिक्षण के लिए पर्याप्त मात्रा में धन उपलब्ध करवा रही है। आस्ट्रेलिया सरकार ने भी अपने दो विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्रभावी शिक्षण और अनुसंधान के लिए धन उपलब्ध करवाया है। यही स्थिति इंग्लैंड आदि देशों की है। विश्व में आज प्रत्येक देश में हिन्दी शिक्षण की व्यवस्था उपलब्ध है। अमरीका के न्यूजर्सी शहर में तो हिन्दी की ताकत प्रत्यक्ष रूप से देखने को मिली है। वहां 'हिन्दी यू.एस.ए.' नाम से हिन्दी अनुरागी देवेन्द्र सिंह ने एक संस्था बनाई है जिससे उन्होंने हजारों भारतीय परिवारों को जोड़ा है तो उनके द्वारा सैकड़ों युवक-युवतियों को हिन्दी का प्रशिक्षण दिया जाता है। कुछ दिन पहले यहां एक द्विदिवसीय हिन्दी का भव्य सम्मेलन आयोजित किया गया था जिसमें 400 विद्यार्थियों ने 25 से अधिक सांस्कृतिक कार्यक्रम हिन्दी भाषा में प्रस्तुत किए। यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि कही जा सकती है हिन्दी के लिए।
नि:संदेह आने वाला समय हिन्दी का है और जब से भारत में प्रधानमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी सत्ता में आए हैं विदेशों में भारत, भारतीयता और हिन्दी भाषा का प्रभाव बढ़ा है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने विदेशों में हिन्दी और संस्कृत भाषा के प्रचार के लिए व्यापक अभियान छेड़ा है।
विशेषकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भारत समेत पूरे विश्व को उम्मीद है कि उनके नेतृत्व में हिन्दी का अपेक्षित विस्तार होगा, हिन्दी को वांछित प्रतिष्ठा प्राप्त होगी और देश-विदेश से लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ तक में हिन्दी को मान्यता प्राप्त होगी।
लेखक केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा के निदेशक हैं
सोशल मीडिया ने हिन्दी की ताकत बढ़ाई है और जाने-अनजाने हिन्दी की तरफ एक बहुत बड़े वर्ग को जोड़ा है। जो हिन्दी के संकट का रोना रोते हैं उन्हें देखना चाहिए कि फेसबुक या व्हाट्सऐप ने हिन्दी के साथ आम जन को जोड़ा है और हिन्दी पढ़ने-लिखने के प्रति रुझान पैदा किया है। टीवी मीडिया भी अब इस बात को जान गया है कि हिन्दी बाजार की अपेक्षा करके वे जिन्दा नहीं रह सकते। हिन्दी की ताकत बढ़ रही हैै। अब लोग बाग हिन्दी के प्रति पहले जैसा संकोच भाव नहीं करते।
—सूरज प्रकाश
शिक्षाविद् एवं पत्रकार, मुम्बई
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