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गाय हमारी संस्कृति में माता के रूप में मान्य है। माता का स्थान स्वर्ग से भी महान है। माता शिशु का पालन पोषण करते हुए अपने परिवार, समाज और राष्ट्र के लिए सुयोग्य एवं संस्कारवान नागरिकों का निर्माण करती है परंतु गाय उससे भी बढ़कर बालक के पालन पोषण में सहयोग देते हुए उसे धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक, शारीरिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से गुरुत्तर एवं स्वावलम्बी बनाती है। यही कारण है कि हमारे प्राचीन धार्मिक ग्रंथों-पुराणों में गाय को महत्ता दी जाती रही है। सुलभ रूप का भी वर्णन मिलता है। बाल गोपाल, गोविन्द आदि नाम कृष्ण के गायों के सम्मान के प्रतीक रूप में ही हैं। संसार में जहां स्वर्ग लोक की कल्पना की गयी है वहां गाय को सुरभि नाम से संबोधित करते हुए उनके स्वर्गिक निवास को गोलोक की संज्ञा दी गयी है। गायों के दूध में अमृत जैसे गुणों का प्राचुर्य मिलता है। प्रायोगिक रूप से देखने में आया है कि स्वदेशी गायें जो कुछ भी खाती हैं, उसका प्रभाव उनके गले तक ही रहता है और दूध उनसे अछूता अमृत तुल्य बना रहता है।
यही नहीं स्वास्थ्य की दृष्टि से भी गाय मानव जीवन में महत्वपूर्ण योगदान देती है। गायों से पंचगव्य की प्राप्ति होती है। इसमें दूध, दही, घी, गोमूत्र और गोबर प्राप्ति का वर्णन है। दूध, दही और घी जहां एक ओर मानव स्वास्थ्य की वृद्धि, आरोग्य, मानसिक उन्नयन और बौद्धिक विकास के लिए उपयोगी रहता है वहां गोमूत्र से अनेक प्रकार की दवाइयां और कीटनाशकों का निर्माण होता है। जो चिकित्सीय पद्धति और फसल संरक्षण के लिए उपयोगी सिद्ध हुई हैं। गाय के गोबर से घर आंगन की लिपाई करने से हानिकारक कीट पतंगों से सुरक्षा होती है। गोबर कृषि फसलों के विकास और वृद्धि के काम ाता है। इससे भूमि की उर्वराशक्ति भी बढ़ती है।
वर्तमान में संसाधन के रूप में भी गायों का पर्याप्त योगदान है। गायों का गोबर गैर पारंपरिक ऊर्जा का एक अक्षय स्रोत है। पेट्रोल, डीजल, कोयला जैसे संसाधन व्यय साध्य और समाप्ति की ओर बढ़ रहे हैं वहां दूसरी ओर उनसे नि:सृत कार्बन डाइऑक्साइड जैसी जहरीली गैसें वायुमंडल को प्रदूषित कर मानव अस्तित्व के लिए खतरा बनी हुई हैं।
गोबर से ऊर्जा रूप में प्राप्त गैस न केवल सस्ती और सुलभ रहेगी वरन् इससे बिजली उत्पन्न करने से न केवल 14 करोड़ लीटर का ईंधन व्यय बचेगा वरन् इससे पांच करोड़ टन कार्बन उत्सर्जन भी रुकेगा। साथ ही कच्चे तेल पर व्यय होने वाले आठ करोड़ रुपयों की भी बचत होगी। इसी दृष्टि से उत्तराखण्ड के नैनीताल जिले में हल्दू चौक नित्यानंद आश्रम में संचालित गोशाला में लगभग 300 गायों का पालन पोषण होता है। उनसे पंचगव्य की प्राप्ति के अतिरिक्त गोबर और गोमूत्र के संयंत्र लगाकर पंद्रह किलोवाट बिजली पैदा की जाती है। गोबर से पानी और आश्रम के चूल्हों को ऊर्जा तथा बिजली मिलती है।
गोबर संयंत्र के अवशिष्ट भाग को कृषि में खाद के रूप में प्रयोग किया जाता है तथा इस संयंत्र से उत्पादित बिजली का कुछ भाग बेचकर आमदनी के स्रोत के रूप में भी काम आता है। गोबर की जैविक खाद से कृषि उत्पादन तो बढ़ता ही है। रासायनिक खादों पर व्यय होने वाली धनराशि की भी बचत होती है और कृषि जिन्सों के दुष्प्रभावित होने से मुक्ति मिलती है इससे मानव को शुद्ध हानि रहित भोजन की प्राप्ति होती है।
कृषि कार्य में अपेक्षित आवागमन के लिए गायें एक महत्वपूर्ण संसाधन का काम करती हैं। खेतों की जुताई, बुआई, सिंचाई निराई आदि में गायों से प्राप्त बैलों की बहुत बड़ी भूमिका रहती है। फसलों तथा अनाजों को घर, बाजार आदि में लाने और ले जाने में बैल जैसे संसाधन सुलभ और सस्ते रहते हैं जबकि ट्रैक्टर, हार्वेस्टर जैसी मशीनें और संसाधन सहज सुलभ नहीं रहते। महंगे होने के कारण ये प्रत्येक किसान की सामर्थ्य से बाहर रहते हैं। अत: गायों से प्राप्त बैल अधिक उपयेागी सिद्ध होते हैं। इस प्रकार गाय भारतीय कृषि का अभिन्न अंग है। – डॉ. गिरीश दत्त शर्मा
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