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केरल में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की जर्जर होती हालत से उसके नेता परेशान हैं। माकपा के नेताओं को लगता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके आनुषांगिक संगठनों की गतिविधियों और सामाजिक कार्यक्रमों से प्रभावति होकर माकपा के कार्यकर्ता उनकी ओर रुख करते जा रहे हैं। वहां संघ की प्रेरणा से कार्य करने वाली संस्था 'बालगोकुलम्' माकपा के नेताओं के लिए एक चुनौती बन चुकी है। उल्लेखनीय है कि बालगोकुलम् केरल में जन्माष्टमी महोत्सव बड़े पैमाने पर मनाती है। इससे केरल में एक अलग ही वातावरण पैदा हो रहा है। यह वातावरण माकपा को नहीं सुहाता है। इसलिए माकपा ने केरल में पहली बार जन्माष्टमी महोत्सव मनाने का निर्णय लिया। लेकिन उसका यह निर्णय उसी के लिए मुसीबत साबित हो रहा है। माकपा समर्थित संगठन 'बालसंघम्' की ओर से जन्माष्टमी के दिन केरल के अनेक भागों में शोभायात्राएं निकाली गईं। कन्नूर (जिसे माकपा का गढ़ कहा जाता है) के अलावा राज्य के किसी भी भाग में इन शोभायात्राओं को लोगों ने कोई महत्व नहीं दिया, बल्कि लोग पार्टी की इस हरकत से खासे नाराज थे। जन्माष्टमी के दिन निकाली गईं इन शोभायात्राओं में श्रीकृष्ण का तो नहीं पर देशी-विदेशी मार्क्सवादी नेताओं के ढेरों चित्र प्रदर्शित किए जा रहे थे। माकपा के कार्यकर्ता मार्क्स, जोसफ स्टालिन, हरकिशन सिंह सुरजीत, ई.एम.एस. नम्बूदिरीपाद आदि नेताओं के चित्र थामे चल रहे थे।
इतना ही नहीं शोभायात्रा में भारत के महान संत एवं समाज सुधारक श्रीनारायण गुरु को कम्युनिस्टों ने सलीब से बंधा दिखाया। नारायण गुरु के बाने में एक व्यक्ति सलीब से बंधा था। नारायण गुरु के संदेश-'मानव की एक जाति, एक धर्म और एक ईश्वर' को विकृत रूप में प्रस्तुत किया गया। उनके संदेश को इस तरह प्रदर्शित किया गया कि मानो श्रीनारायण गुरु कह रहे हों, 'दुनिया वालो, सब ईसाई हो जाओ।'
श्रीनारायण गुरु को अपमानित करने के ऐसे कृत्य माकपा पहले भी कई बार कर चुकी है। उनके प्रिय शिष्य और प्रसिद्ध मलयालम कवि श्री कुमारन आसन को भी उन्होंने लांछित किया है। ऐसी ओछी हरकतें करने के बाद माकपा ने अब उनको 'ईसाई' बाना पहना कर अपमानित किया है। जबकि नारायण गुरु ने हमेशा ही कन्वर्जन का विरोध किया था। नम्बूदिरीपाद और बाद में नयनार के मुख्यमंत्रित्व काल में भी नारायण गुरु की प्रतिमाओं को राज्य भर में ध्वस्त किया गया था। माकपा कामरेडों ने जगह-जगह उनकी प्रतिमाओं को तोड़ा था।
माकपा की इन हरकतों से केरल का हिन्दू समाज, खासकर इड्ज्वा समुदाय, जिनके लिए नारायण गुरु बहुत पूज्य हैं, गुस्से में है। लोगों का कहना है कि माकपा ने न केवल हिन्दू समाज की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है, बल्कि एक महान संत का भी अपमान किया है। यह अक्षम्य अपराध है। इड्ज्वा समुदाय से जुड़े संगठन 'श्रीनारायण धर्म परिपालना योगम्' के महासचिव वेल्लपल्ली नतेशन ने माकपा की इस हरकत की निन्दा करते हुए कहा है कि नारायण गुरु महान सामाजिक सुधारक थे। उन्होंने राज्य के पुनरुत्थान का मार्ग प्रशस्त किया। जो भी उन्हें अपमानित करेगा उसे उसका नतीजा भुगतना होगा। इस संगठन के कार्यकर्ताओं ने केरल के अनेक स्थानों पर माकपा के विरुद्ध प्रदर्शन किया है। विश्व हिन्दू परिषद् ने कहा है कि श्रीनारायण गुरु का अपमान करने की माकपा की कोशिश हिंदू समुदाय के लिए एक चुनौती है। वहीं अद्वैत आश्रम के सचिव स्वामी शिवस्वरूपानंद ने भी नारायण गुरु के अपमान के लिए माकपा की ओछी राजनीति को जिम्मेदार ठहराया है। लेकिन माकपा अपनी गलती स्वीकार कर पूरे देश से माफी मांगने की जगह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके आनुषांगिक संगठनों पर दोष मढ़ रही है। माकपा के राज्य सचिव के़ बालासुंदरम ने आरोप लगाया है कि यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा का दुष्प्रचार है कि माकपा ने श्रीनारायण गुरु का अपमान किया है।
श्रीनारायण गुरु का जन्म दक्षिण केरल के एक साधारण परिवार में वर्ष 1854 में हुआ था। बचपन से धार्मिक और सामाजिक रुझान वाले श्रीगुरुजी परमतत्व की खोज में अरुविप्पुरम आ गए थे। वहां घने जंगल में कुछ दिन एकांतवास में बिताए। उस समय मंदिरों में प्रवेश को लेकर अनेक प्रकार की वर्जनाएं लागू थीं। इसको श्रीनारायण गुरु सही नहीं मानते थे। उनका कहना था कि मंदिर ऐसा होना चाहिए, जिसमें किसी किस्म का कोई भेदभाव न हो। दक्षिण केरल में नैयर नदी के किनारे एक जगह है अरुविप्पुरम। आज यह तीर्थस्थल के रूप में प्रसिद्ध है। श्रीनारायण गुरु ने यहां ऐसा ही एक मंदिर बनवाया, जिसके दरवाजे सबके लिए खोले गए। इस पर उनका कुछ लोगों ने विरोध भी किया, लेकिन वे उनके आगे झुके नहीं। वे जाति बंधन तोड़ने, छुआछूत समाप्त करने और ऊंच-नीच की खाई पाटने के लिए निकल पड़े। इसका लोगों पर बहुत ही अच्छा प्रभाव पड़ा और समाज समरस होता गया। -प्रतिनिधि
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