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मणिपुर में रोकना होगा हिन्दी भाषियों का पलायन

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Sep 14, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 14 Sep 2015 12:50:32

जगदम्बा मल्ल
मणिपुर 80 के दशक से आतंकवाद और नरसंहार की चपेट में सुलग रहा है। छोटी-छोटी बातों पर इम्फाल घाटी में मकानों को आग के हवाले कर दिया जाता है। हैरानी की बात यह है कि वहां आग लगाने वाले बहुत हैं, लेकिन बुझाने वाला कोई नहीं है। पूर्ववर्ती संप्रग सरकार ने मणिपुर में राष्ट्र विरोधी और देशी-विदेशी शत्रुओं से बचाने के लिए कोई सार्थक कदम नहीं उठाया। मणिपुर सितम्बर माह के शुरू में एक बार फिर से आग में जल उठा और मणिपुर सचिवालय तक को आगे के हवाले कर दिया गया। दर्जनों गाडि़यांे और लोगों के घरों को आग लगा दी गई।
पूवार्ेत्तर राज्यों-असम, नागालैण्ड, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय और त्रिपुरा में एक साथ आतंकवाद का ज्वालामुखी फूट पड़ा। केवल हिन्दू देशभक्तों के कारण अरुणाचल प्रदेश ही बच सका। वहां उन दिनों ईसाई और बंगलादेशी मुसलमान भी नहीं थे। मणिपुर की वर्तमान राज्य सरकार या पूर्ववर्ती सरकारों ने आतंकवादी संगठनों के साथ केवल अपनी जान और सरकार को बचाये रखने का ही कदम उठाया है। हालत यह है कि बजट की दो तिहाई राशि तो केवल आतंकवादियों को खुश करने में खर्च करनी पड़ती है। ऐसा करने के पीछे न केवल राज्य सरकारें, बल्कि पूर्व की केन्द्र सरकारें भी शामिल रही हैं। दरअसल मणिपुर और नागालैण्ड से आतंकवाद को दूर करना अकेले राज्य सरकार के बस की बात नहीं है। सेना और समझौता दोनों प्रभावी ढंग से साथ-साथ चलने से ही आतंकवाद खत्म हो सकेगा, लेकिन पूर्व की केन्द्र सरकारों ने केवल खानापूर्ति ही की है।
राज्य में आतंकवादी खुले घूमते रहे और वार्ता करवाने का जिम्मा लेने वाले मलाई खाते रहे। अमरीका-ब्रिटेन और दूसरे देशों से ईसाई मिशनरियां यहां बिना किसी रोक-टोक के आती-जाती रही हैं। दिन में ईसाइयों की बैठकें होती हैं तो रात में आतंकवादियों के साथ गुप्त बैठकों का दौर जारी रहता है। यहां तक कि आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु आदि राज्यों से मुल्ला-मौलवी बड़ी संख्या में मणिपुर आ रहे हैं। ये लोग बच्चों को राष्ट्रद्रोह का पाठ पढ़ाते हैं। यहां की आम जनता जब इन सबकी जानकारी रखती है तो क्या केन्द्र सरकार को यह सब नहीं मालूम था? चर्च, प्रायोजित गैर सरकारी संगठन, आईएसआई, मदरसे, माओवादी और अपराधी संगठन मणिपुर  का नाश करने पर तुले हुए हैं। इनके कुचक्र में राष्ट्रवादी मैतेई हिन्दू समाज, राष्ट्रभक्त जनजाति हिन्दू समाज, हिन्दी व गैर हिन्दी भाषी हिन्दू समाज दो पाटों में गेंहू की तरह पिस रहा है। कुछ मैतेई बंधु तो राष्ट्र विरोधी शक्तियों के जाल में फंस भी चुके हैं। उन्हें ढाल बनाकर विदेशी और आतंकवादी शक्तियां मणिपुर में अपनी परियोजनाएं चला रही हैं। आतंकवादी खुली चुनौती देते हुए हर बार हिन्दी भाषियों को ही निशाना बनाते हैं और उनकी हत्याएं करवाते हैं। ऐसे मरने वाले हिन्दी भाषियों की संख्या मणिपुर में सैकड़ों में है। आईएसआई यहां बैठे मुसलमानों के बीच समन्वय स्थापित कर रहा है। आज भी वहां से हिन्दी भाषियों का पलायन जारी है। इस समय भी मणिपुर से हिन्दी भाषियों का पलायन हो रहा है जिसे तत्काल रोका जाना चाहिए। ये लोग मैतेई हिन्दुओं के समान ही इम्फाल को दिल्ली से जुड़ा रखने के लिए मजबूत कड़ी हैं। मणिपुर में मैतेई समाज, कूकी और नागा समुदाय के लोग प्रमुख हैं। मैतेई समाज कट्टर वैष्णव हिन्दू है और राष्ट्रभक्त है। नागा समाज व दूसरे समाजांे में भी काफी संख्या में हिन्दू हैं, लेकिन ईसाइयों की संख्या अधिक है, जहां विभिन्न आतंकवादी संगठनों ने अपना गढ़ बना रखा है।  वर्तमान हालात देखते हुए मैतेई समाज का भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा है। मैतेई समाज देख रहा है कि नागा व कूकी लोग अपने गांव की भूमि तो सुरक्षित रख रहे हैं, लेकिन घाटी क्षेत्र की भूमि को पैसे के बल पर हथियाने में जुटे हुए हैं। पहाड़ी का पूरा क्षेत्र वन संपदा, खनिज संपदा और जैव संपदा से भरा पड़ा है, लेकिन मैतेई लोग वहां हाथ भी नहीं लगा पाते हैं। इसलिए घाटी में मैतेई हिन्दुओं की जनसंख्या का संतुलन बिगड़ता जा रहा है और यदि यही प्रक्रिया जारी रही तो मैतेई हिन्दू अल्पसंख्यक हो जाएंगे और उन्हें हथियार के बल पर ईसाई बना दिया जाएगा।

ल्ल    मणिपुर में दंगाइयों द्वारा सचिवालय को कर दिया गया आग के हवाले
ल्ल    हिन्दी भाषियों को बनाया जा रहा है हर बार निशाना
नागा और कूकी की तरह उनका धर्म और संस्कृति नष्ट हो जाएंगे। इस जनसंख्या के असंतुलन को रोकने के लिए मणिपुर सरकार ने 31 अगस्त, 2015 को तीन अधिनियम पारित किए। इनमें पहला मणिपुर जन संरक्षण अधिनियम 2015, दूसरा मणिपुर भूमि राजस्व एवं भूमि सुधार अधिनियम 2015 और तीसरा मणिपुर दुकान एवं स्थायी स्थान अधिनियम 2015। इन तीनों अधिनियमों के कारण नागा व कूकी के नेतृत्व में वनवासी समाज उबल पड़ा है और सड़कों पर उतर आया है। उधर मैतेई समाज पहले से ही तैयार बैठा है।  राज्य सरकार ने जरा सी भूल की तो मैतेई समाज और नागा-कूकी समाज आमने-सामने आ जाएंगे। ऐसा होने पर भीषण नरसंहार मच जाएगा और इम्फाल घाटी रक्त-रंजित हो उठेगी। आज मैतेई समाज को बचाने और उसका संरक्षण करने का समय है। राष्ट्र विरोधी शक्तियां मणिपुर को नागालैण्ड के रास्ते पर ले जाने के लिए तुली हुई हैं। वे दिमासा-कारबी संघर्ष के समान ही 

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