संस्कृत पत्रकारिता कार्यशाला - 'संस्कृत की प्रासंगिकता को स्वीकारता विश्व'
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संस्कृत पत्रकारिता कार्यशाला – 'संस्कृत की प्रासंगिकता को स्वीकारता विश्व'

by
Sep 14, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 14 Sep 2015 12:33:49

भारतीय धरोहर और माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार  विश्वविद्यालय द्वारा नयी दिल्ली के मालवीय स्मृति भवन में एकदिवसीय संस्कृत पत्रकारिता कार्यशाला  आयोजित की गयी। दीप प्रज्वलन एवं वैदिक मंत्रोच्चार के साथ माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृजकिशोर  कुठियाला, श्री लाल बहादुर शास्त्री संस्कृत  विद्यापीठ, नई दिल्ली  के कुलपति प्रो. रमेश कुमार पाण्डेय, दूरदर्शन के वरिष्ठ सलाहकार  संपादक के.जी. सुरेश एवं भारतीय धरोहर के महामंत्री विजय शंकर तिवारी ने संयुक्त रूप से इस कार्यशाला का उद्घाटन किया। पत्रकारिता विश्वविद्यालय नोएडा परिसर के छात्र सलमान खान ने सरस्वती वंदना की।
एक दिन की इस कार्यशाला के चार अलग-अलग सत्रों में विद्वानों एवं विशेषज्ञों ने संस्कृत पत्रकारिता कार्ययोजना-भारतीय दृष्टि, संस्कृत पत्रकारिता में अन्त:शक्ति और संभावना, संस्कृत भाषा की वैज्ञानिकता और संस्कृत पत्रकारिता की वर्तमान स्थिति और चुनौतियां विषयों पर गहन मंत्रणा की।  देश में स्वतंत्र रूप से संस्कृत पत्रकारिता विधा  को लेकर संस्कृतेतर  संस्थाओं का यह पहला आयोजन कहा जा सकता है।
कार्यशाला में अपने विचार रखते हुए प्रो. बृज किशोर कुठियाला ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव ने 1968 में अपने 3 घंटे के भाषण में आधा घंटा भारत पर बोला था और यह पीड़ा व्यक्त की थी कि भारत अपनी समृद्ध धरोहर को शेष विश्व में ठोस तरीके से प्रचारित नहीं कर पाया है। आज जब नासा समेत सारा विश्व  संस्कृत की प्रासंगिकता को स्वीकार कर रहा है तो संस्कृत जगत के लोगों को इस भाषा को जन-जन तक पहुंचाने का प्रयत्न करना चाहिए।
श्री ला.ब.शा.रा. संस्कृत विद्यापीठ के कुलपति प्रो़ रमेश कुमार पण्डेय ने कहा कि संस्कृत में गणेश और नारद की परंपरा के क्रम में भरतमुनि के नाट्यशास्त्र में संचार और संवाद की व्यापक चर्चा है।
कालिदास विश्वविद्यालय रामटेक, महाराष्ट्र की कुलपति प्रो़ उमा वैद्य ने कहा कि संस्कृत पत्रकारिता काल के औचित्य पर जोर देती है। ज़ैमिनीय ब्राह्मण, ऋग्वेद से लेकर रामायण में दूत से बढ़कर एक वार्ताहर रूप में हनुमान और सहायक से बढ़कर संवादवाहक के रूप  में महाभारत के संजय तक एक लम्बी परंपरा है पत्रकारिता  की।
दूरदर्शन के वरिष्ठ सलाहकार संपादक के.जी. सुरेश ने कहा कि संस्कृत की स्थिति विडम्बनापूर्ण है- लोगों के मन से इस उदासीनता को दूर करना होगा। दूरदर्शन और आकाशवाणी के पृथक संस्कृत चैनल और स्टेशन  सरकार तभी बनायेगी जब लोग अर्थात दर्शक भी रुचि लें। नौकरशाहों की अरुचि भी संस्कृत के लिए बाधक है। अलग उर्दू चैनल के बावजूद दूरदर्शन पर उर्दू खबरें अलग से प्रसारित होती हैं, जिनके समाचार संपादक और वाचक हिंदी में ही लिखते हैं, जबकि संस्कृत में तो पूरा व्यवस्थित
मामला है।
नेपाल विश्वविद्यालय  से पधारे डॉ. निर्मल मणि अधिकारी ने कहा कि सम्प्रेषण और संचार की एक प्रविधि होती है, भरतमुनि का नाट्य शास्त्र और भतृर्हरि  का वाक्यपदीयम संचारशास्त्र को समृद्ध करने वाले ग्रन्थ हैं। पत्रकारिता के नियम-कानून हमें पाश्चात्य जगत से नहीं सीखने हैं।
भारत संस्कृत परिषद् के राष्ट्रीय अध्यक्ष और अलीगढ़ विश्वविद्यालय के पूर्व संस्कृत प्राध्यापक प्रो़ महेंद्र कुमार मिश्र  ने कहा कि संस्कृत को भूलने के कारण हमने अपना सांस्कृतिक और राष्ट्रीय चरित्र खो दिया है। यह पूरी तरह वैज्ञानिक भाषा है और 'इदं राष्ट्राय इदं न मम' का विवेक देती है।
आकाशवाणी के पूर्व समाचारवाचक और अखिल भारतीय संस्कृत पत्रकार संघ के महामंत्री डॉ. बल्देवानंद सागर ने कहा कि संस्कृत में 2000 मूल धातु, 23 उपसर्ग और 200 प्रत्यय हैं। यह समृद्ध भाषा है।  संस्कृत पत्रकारिता को प्रोत्साहन की जरूरत है।
दिल्ली संस्कृत अकादमी के सचिव और संस्कृतमंजरी पत्रिका के संपादक डॉ. जीतराम भट्ट ने कहा कि अपने यहां पत्रकारिता पश्चिम से युगों पुरानी है। नारद, गरुड़, काकभुशुंडि, व्यास और कुरुक्षेत्र से संजय तक की वैदिक परंपरा है। वस्तुत: जो समस्या संस्कृत भाषा के साथ है वही संस्कृत पत्रकारिता के साथ भी है। आज धन की समस्या के लिए पत्रकार मधुकरी वृत्ति वाले हो गए है। तो संस्कृत के पत्रकार भी अन्वेषण की बजाय लोभ वृत्ति के हो गए हैं।
कार्यशाला के विभिन्न सत्रों में दूरदर्शन के पूर्व अतिरिक्त  महानिदेशक रामजी त्रिपाठी, प्रो. देवी प्रसाद त्रिपाठी, डॉ. संजय द्विवेदी, डॉ. श्याम्वाला राय,आशुतोष भटनागर, रमेश कपूर, डॉ. जगदीश शर्मा व डॉ. रजनी नागपाल ने भी अपने विचार व्यक्त किये। इस अवसर पर काठमांडू विश्वविद्यालय के डॉ. निर्मलमणि अधिकारी द्वारा लिखित पुस्तक 'भरतमुनि के नाट्य शास्त्र में निहित संचार के सिद्धांत', डॉ. अर्चना द्विवेदी रचित संचार अवधारणा व प्रक्रिया : महर्षि पाणिनी का भी लोकार्पण हुआ।
अलग-अलग  सत्रों का संचालन  डॉ. कृष्ण चन्द्र पांडे, सूर्य प्रकाश सेमवाल एवं डॉ. अविनाश  वाजपेयी  ने किया।     
ल्ल पाञ्चजन्य ब्यूरो

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