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पाञ्चजन्य के पन्नों से
वर्ष: 12 अंक: 22
8 दिसम्बर 1958
(विशेष प्रतिनिधि द्वारा)
अपनी एक पिछली प्रादेशिक चिट्ठी में, बिहार प्रदेश में सरकार तथा गैर सरकारी क्षेत्रों में हिन्दी विरोधी तत्वों के सिर उठाए जाने की चर्चा मैं कर चुका हूं। उसमें मैंने बतलाया था कि इस विशुद्ध हिन्दी भाषी प्रदेश में किस तरह अहिन्दी भाषी और अहिन्दू लोगों का एक संयुक्त मोर्चा हिन्दी के विरुद्ध तैयार किया जा रहा है और किस तरह सरकार की ढुलमुल नीति का अनुचित लाभ उठाकर ऐसे तत्व धीरे-धीरे अपने पैर जमाते चले आ रहे हैं। अभी-अभी इस दिशा में चल रहे अभियान के कुछ ऐसे उदाहरण सामने आए हैं, जिनसे मेरी उपर्युक्त धारणा को बल ही नहीं मिलता, आपितु उसकी परिपुष्टि भी होती है।
बिहार में मुसलमानों की प्रसन्नता
बिहार में मुसलमानों की एक छद्म नाम ''साहित्यिक'' संस्था बिहार अंजुमन तरक्की ए उर्दू नाम की है, जो पिछले कई वर्षों से इस प्रदेश में मुस्लिम हितों की रक्षा का प्रयत्न करती आ रही है। इस संस्था ने इसी गुरुवार को 27 नवंबर को अपनी कार्यसमिति की एक बैठक बुलाई और एक प्रस्ताव स्वीकृत कर बिहार सरकार के प्रति, इस निर्णय के लिए आभार प्रदर्शित किया कि राज्य के लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं की अनिवार्य विषय सूची से हिन्दी हटा दी जाए। स्मरण रहना चाहिए कि बिहार सरकार द्वारा उपर्युक्त निर्णय बहुत पहले लिया जा चुका है, जिसको लेकर यहां के हिन्दी प्रेमी नागरिकों द्वारा जोरदार आन्दोलन भी चलाया जा रहा है।
हिन्दी विरोधी तत्व सक्रिय
मुश्किल तो यह है कि जितनी तीव्रता के साथ यह आन्दोलन बढ़ रहा है, उतनी ही तीव्रता के साथ हिन्दी-विरोधी तत्व भी अपना काम कर रहे हैं। अंजुमन तरक्की एक उर्दू द्वारा आरंभ किया गया आन्दोलन इसी बात का सबूत है। अंजुमन ने अपने प्रस्ताव में कहा है कि लोकसेवा आयोग की परीक्षाओं की अनिवार्य विषय सूची से हिन्दी को हटाने का निर्णय बिहार सरकार ने बिहार की उर्दू भाषी जनता की जबरदस्त मांग पर और राज्य सरकार तथा केन्द्रीय सरकार की भाषा-संबंधी घोषित नीति के अनुरूप ही विचारपूर्वक लिया है और इसलिए उक्त निर्णय को बदलवाने के लिए जो आन्दोलन चलाया जा रहा है, वह घोर चिंता और खतरे का विषय है। अंजुमन ने यह भी कहा है कि केवल लोकसेवा आयोग की परीक्षाओं से ही नहीं, अन्य परीक्षाओं से भी हिन्दी को हटा दिया जाना चाहिए था। उसने बिहार सरकार ये यह अपेक्षा की है कि वह उक्त निर्णय से अब कदापि पीछे न हटे, अन्यथा भाषात्मक अल्पसंख्यकों, विशेषकर उर्दू भाषी लोगों में असंतोष और विक्षोभ की एक लहर पैदा हो जाएगी।
तुष्टीकरण की सरकारी नीति
अंजुमन के उपर्युक्त प्रस्ताव से यह स्पष्ट है कि बिहार सरकार ने लोकसेवा आयोग की परीक्षाओं से हिन्दी को हटा लेने का उपर्युक्त निर्णय लेने में मुस्लिम तुष्टीकरण की अपनी परंपरागत नीति का विशेष रूप से प्रश्रय लिया है और इस नीति की आड़ में सरकार के उच्च अहिन्दी भाषी अधिकारीगण भी (जिनमें राज्य सरकार के मुख्य सचिव एवं लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष भी शामिल हैं) अपना उल्लू सीधा करने में सफल रहे।
उड़ीसा में गांव-गांव में ईसाइयों के गढ़ बने
वोटों के लालच में कांग्रेस सरकार ईसाइयत के प्रचार में सहायक
(विशेष प्रतिनिधि द्वारा)
75 प्रतिशत आदिवासी एवं परिगणित जाति की जनसंख्या वाला सुन्दरगढ़ इस समय ईसाई मिशनरियों की धर्म परिवर्तन की गतिविधियों का प्रमुख गढ़ बना हुआ है। वैसे तो वे इस जिले में पिछले बहुत वर्षों से सक्रिय हैं, परन्तु हमारी स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से उनकी गतिविधि बहुत बढ़ गई है।
उड़ीसा प्रदेश में स्थित यह जिला गंगपुर और बोनाई नामक दो भूतपूर्व देशी रियासतों को मिलाकर बना है। इसकी कुल जनसंख्या साढ़े पांच लाख के लगभग है। राउरकेला में लोहे और राजगंगपुर में सीमेंट के कारखाने स्थापित होने के बाद से यहां की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। 1951 की जनगणना के अनुसार इस जिले में आदिवासी क्रमश: 312636 एवं 72561 थी।
धर्म परिवर्तन की गति
ईसाई मिशनरी इस पहाड़ी प्रदेश में फैल गए और 1951 तक लगभग 72000 लोगों को ईसाई बनाने में सफल हो गए। उनके साधनों एवं कार्यकर्ता शक्ति को देखकर कहा जा सकता है कि धर्म परिवर्तन की यह संख्या अब तक एक लाख से भी ऊपर पहुंच चुकी होगी। उनके सौभाग्य से कई वर्ष तक भूतपूर्व गंगपुर रियासत का दीवान एक ईसाई वह भी विदेशी, था और उसका लाभ उठाकर मिशनरी दूरस्थ क्षेत्रों में घुस बैठे।
हिन्दू धर्माधिठित वैभव के लिए
संघ की विचारधारा में इस राष्ट्र को परम वैभव प्राप्त कराने की बात कही गई है। इसका अर्थ यह है कि इस वैभव को फिर से प्राप्त करने के लिए जो भी करना होगा तथा जो उसके लिए उपयुक्त सिद्ध होगा, वही हम सब करने वाले हैं। उसी प्रकार हम धर्म की रक्षा का भी उल्लेख करते हैं। फिर संघ को ठीक-ठाक क्या करना है? संगठन, धर्म-रक्षा या राष्ट्र के लिए वैभव की प्राप्ति ? वस्तुत: ये सभी बातें एक दूसरे से जुड़ी हैं। प्रकाश के लिए बिजली चाहिए, किन्तु बिजली का दीया (बल्ब) भी चाहिए। हम परमात्मा से आशीष मांगते हैं कि हमारी संगठित कार्यशक्ति धर्म की रक्षा करते हुए राष्ट्र को परम वैभव की ओर ले जाए। इस वाक्य में सबकुछ समाया हुआ है।
-पं. दीनदयाल उपाध्याय
विचार दर्शन-खण्ड-3 राजनीतिक चिन्तन, पृष्ठ-15)
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