मानवता की साक्षात प्रतिमूर्ति डॉ. कलाम
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मानवता की साक्षात प्रतिमूर्ति डॉ. कलाम

by
Aug 31, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 31 Aug 2015 12:20:50

अंक संदर्भ : 9 अगस्त, 2015

भारत भी ईसाइयों की विनाशलीला का शिकार हुआ है। पुर्तगालियों की हिंसा जगजाहिर थी तो अंग्रेजों की हिंसा सूक्ष्म थी, चुपचाप जड़ें खोदने वाली थी। एक ईसाई इतिहासकार ने बताया है कि पुर्तगालियों ने अपने कब्जे के भारत में क्या किया। टी.आर. डिसूजा के मुताबिक, 1540 के बाद गोवा में सभी हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियों को तोड़ दिया गया था या गायब कर दिया गया था। सभी मंदिर ध्वस्त कर दिए गए थे और उनकी जमीन और निर्माण सामग्रियों को नए चर्च या चैपल बनाने के लिए इस्तेमाल किया गया था। कई शासकीय और चर्च के आदेशों में हिन्दू पुरोहितों के पुर्तगाली क्षेत्र में आने पर रोक लगा दी गई थी। विवाह सहित सभी हिन्दू कर्मकांडों पर पाबंदी थी। हिन्दुओं के अनाथ बच्चों को पालने का दायित्व राज्य ने अपने ऊपर ले लिया था ताकि उनकी परवरिश एक ईसाई की तरह की जा सके। कई तरह के रोजगारों में हिन्दुओं पर पाबंदी लगा दी गई थी। जबकि ईसाइयों को नौैकरियों मे प्राथमिकता दी जाती थी। राज्य द्वारा यह सुनिश्चित किया गया था कि जो ईसाई बने हैं उन्हें कोई परेशान न करे। दूसरी तरफ हिन्दुओं को चर्च में उनके धर्म की आलोचना करने वाले वक्तव्य सुनने के लिए आना पड़ता था। ईसाई मिशनरियां गोवा में सामूहिक कन्वर्जन करती थीं। इसके लिए सेंट पाल के कन्वर्जन भोज का आयोजन किया जाता था। उसमें ज्यादा से ज्यादा लोगों को लाने के लिए जेसुइट हिन्दू बस्तियों में अपने नीग्रो गुलामों के साथ जाते थे। इन नीग्रो लोगों का इस्तेमाल हिन्दुओं को पकड़ने के लिए किया जाता था। ये नीग्रो भागते हिन्दुओं को पकड़कर उनके मुंह पर गाय का मांस छुआ देते थे। इससे वे हिन्दू लोगों के बीच अछूत बन जाते थे। तब उनके पास ईसाई मत में कन्वर्ट होने के अलावा कोई विकल्प नहीं रह जाता था। इतिहासकार ईश्वर शरण ने अपनी एक पुस्तक में लिखा है-'संत जेवियर के सामने औरंगजेब का मंदिर विध्वंस और रक्तपात कुछ भी नहीं था। अंग्रेज शासन के बारे में नोबल पुरस्कार विजेता वी.एस. नायपाल की यह टिप्पणी ही काफी है-'इस देश में इस्लामी शासन उतना ही विनाशकारी था जितना उसके बाद आया ईसाई शासन। ईसाइयों ने एक सबसे समृद्ध देश में बड़े पैमाने पर गरीबी पैदा की। मुस्लिमों ने दुनिया की सबसे सृजनात्मक संस्कृति को एक आतंकित सभ्यता बना दिया।'
पोप ने अब माफी मांगनी शुरू की है तो केवल लातिनी अमरीका से माफी मांगने भर से काम नहीं चलेगा। उन्हें कई देशों, समाजों, कई मतों और स्वयं ईसाइयत के विभिन्न संप्रदायों से माफी मांगनी पड़ेगी। उन्हें यहूदियों, बहुदेववादियों, अन्य संप्रदाय के ईसाइयों और हिन्दुओं से माफी मांगनी होगी। उन्हें माफी मांगनी पड़ेगी उन लाखों महिलाओं से जिन्हें यूरोप में चुडै़ल कहकर जला दिया गया। उन्हें माफी मांगनी होगी उन लाखों ईसाइयों से जिन्हें मत से विरत होने के कारण यातनाघरों में यातनाएं दी गईं। गैलीलियो जैसे वैज्ञानिकों से प्रताडि़त किए जाने के लिए माफी मांगनी होगी। पोप माफी मांग भी लेंगे, लेकिन क्या ये प्रताडि़त लोग उनकी माफी कबूल करेंगे?
आखिर माफी मांगने से इतिहास तो नहीं बदलता। समय के चक्र को पीछे नहीं चलाया जा सकता। फिर माफी मांगना नाटक और ईसाइयत की छवि सुधारने की कोशिश के अलावा और क्या है? असली माफी तो तब होगी जब ईसाइयत अपना असहिष्णु और विस्तारवादी चरित्र बदले। शायद यह कर पाना पोप के वश की बात नहीं। पोप फ्रांसिस भले कितने ही प्रगतिशील होने का दावा क्यों न करें, ईसाइयत के मूल चरित्र को वे कैसे बदल पाएंगे? कहते हैं, रस्सी जल जाती है पर ऐंठन नहीं जाती।  इस्लाम और ईसाइयत दोनों ही असहिष्णुता रूपी सिक्के के दो पहलू हैं। उनकी असहिष्णुता को देखकर कई बार लगता है महात्मा गांधी द्वारा बार-बार प्रचारित की जाने वाली यह बात सबसे खतरनाक थी कि सभी मत समान हैं या एक है। कैनबरा में जन्मे हिन्दू स्वामी अक्षरानंद के शब्दों में कहा जाए तो, 'यह बहुत मूर्खतापूर्ण और खतरनाक बात प्रचारित की जा रही है कि सभी मत समान या एक ही हैं। हम हिन्दू, ईसा और अल्लाह दोनों की शक्तियों से प्रताडि़त हैं। हिन्दू और अन्य मतों को समान और एक नहीं मान सकते।' 

बेटियों को दें सम्मान
लेख 'सेल्फी में लाडली' ने बेटियों के प्रति एक सम्मान का भाव जागृत किया है। कुछ दिनों पहले हरियाणा से ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' का नारा दिया था। जिसके बाद उन्होंने 'सेल्फी विद डॉटर' का भी एक अभियान सोशल मीडिया पर चलाया। इस अभियान को बहुत ही सराहना मिली और इसने देश सहित विदेशों तक में ख्याति बटोरी। लोगों ने अपनी बेटियों के साथ तस्वीरों को सोशल साइट्स पर बंाटा। अब समय है कि हम सभी लोग बेटियों को भी उतना ही सम्मान दें जितना बेटों को देते हैं।
—प्रकाश चन्द
क्यू-70, उत्तम नगर (नई दिल्ली)
बंगाल बन रहा कंगाल
रपट  'जिहादी शिकंजे में बंगाल की बेटियां' पढ़कर बंगाल की स्थिति का आकलन हो जाता है। आए दिन बंगाल के विभिन्न जिलों से आते समाचार पुष्ट करते हैं कि बंगाल में अराजक तत्वों और उन्मादियों को प्रदेश सरकार का संरक्षण प्राप्त है। इसी कारण वे जो चाहते हैं करते हैं और प्रशासन उनका कुछ भी नहीं करता। यहां तक कि इन गिरोहों में आतंकवादियों  के होने के समाचार आते रहते हैं। प्रदेश सरकार की वोट की राजनीति ने बंगाल को कंगाल बना    दिया है।
—राममोहन चन्द्रवंशी
टिमरनी, हरदा (म.प्र.)
नीतीश की खीज
अपने डीएनए को लेकर नीतीश कुमार जिस प्रकार से छटपटा रहे हैं वह स्वाभाविक है। वे भाजपा के बढ़ते जनाधार से बेचैन हैं। इसी बेचैनी ने उनको परेशान कर रखा है और उनके मन में जो आता है वे बोलने लगते हैं। प्रधानमंत्री ने अपनी सभा में केवल नीतीश के डीएनए की बात की थी। फिर नीतीश पूरे बिहार को इसमें क्यों घसीट रहे हैं? असल में अब उनके पास कोई मुद्दा तो बचा नहीं है तो इसी बात को मुद्दा बनाकर मीडिया में होहल्ला मचाया जाए और बिहार की जनता को दिग्भ्रमित किया जाए।
—अरुण मित्र
राम नगर (दिल्ली)
ङ्म आजकल नीतीश और लालू घबराए हुए हैं। इसलिए छोटी-छोटी बातों को तूल दे देते हैं और जो मन में आता है बोलने लगते हैं। डीएनए की बात पर तो उन्होंने पूरे बिहार को घसीट लिया और ऐसा प्रतीत कराया कि प्रधानमंत्री ने बिहार का अपमान किया है। चुनाव पास आते ही बिहार को लूटने और भ्रष्टाचार में संलिप्त रहने वाले एकत्र होने लगे और भाजपा को हराने का दमभरने लगे। लेकिन उन्हें पता होना चाहिए कि अब बिहार की जनता उनके बहकावे में नहीं आने वाली। उसे वही सरकार चाहिए जो प्रदेश का विकास करे।
—श्रीचन्द जैन
धर्मपुरा विस्तार, गांधीनगर(दिल्ली)
गुरू दिखाता सनमार्ग
भारतभूमि बड़ी ही पुण्य भूमि रही है।  समय-समय पर समर्थ सद्गुरुओं के चरणों से इस पुण्यभूमि का प्रताप कई गुना बड़ा है। गुरु की गाथा का जितना भी वाचन किया जाए वह कम है। समर्थ गुरुओं की श्रृंखला में चाणक्य, आदिशंकराचार्य, गुरु नानकदेव, गुरू अंगद देव, समर्थ गुरू रामदास आदि…अनेक वंदनीय नाम सामने आ जाते हैं। ये सभी गुरू भगवान से साक्षात मिलाने वाली विभूतियों में से एक थे। इन गुरुओं ने सिर्फ शिष्यों को ही नहीं तरासा बल्कि संपूर्ण राष्ट्र में आध्यात्मिक जनजागृति की एक लहर चलाई। इनके उदाहारण वर्तमान परिदृश्य को प्रेरणा    देते हैं।
—डॉ शुभा ग्रोवर
पंतविहार फेज, सहारनपुर (उ.प्र.)

  आतंकियों के पैरोकार
आतंकवादी याकूब मेमन को सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर फांसी देकर, जहां एक ओर मारे गए सैकड़ों बेगुनाह लोगों के साथ न्याय हुआ तो वहीं दूसरी ओर आतंकवादियों एवं उनके संरक्षकों एवं प्रायोजकों को यह संदेश मिला कि कोई भी आतंकवादी यदि भविष्य में पुन: इस प्रकार का अपराध करता है तो भारत उसे दण्डित करने के लिए पूर्ण रूप से सक्षम और संकल्पबद्ध है। किन्तु मेमन को फांसी पर लटकाये जाने के दौरान एक विकृत मानसिकता तथा राष्ट्र-विरोधी विचारधारा को सुनियोजित ढंग से उभारा गया। फांसी न होने के पक्ष में तीन सौ  तथाकथित नेताओं के मौखिक से लेकर लिखित प्रयास हुए।  वैसे लोकतंत्र में हर विषय पर विमर्श होना चाहिए। इसमें कोई बुराई नहीं है। किन्तु विमर्श शुरू करने के पहले ऐसा करने वालों को विमर्श के विषय में राष्ट्रीय प्राथमिकता, अन्तर्राष्ट्रीय स्थितियां तथा विमर्श के दूरगामी दुष्परिणामों को भी ध्यान मंे अवश्य रखना चाहिए। अन्यथा छोटी सी वैचारिक चूक से किसी व्यक्ति अथवा समूह के निजी फायदें तो हो सकते हैं, जबकि इससे होने वाली राष्ट्रीय क्षति तथा दूरगामी दुष्परिणाम का जिम्मेदार कौन होगा? इसे भी समझना चाहिए। मृत्यु-दण्ड समाप्त करने की वकालत करने वाले लोग किसी भी रूप में बौद्धिक दृष्टि से कमजोर नहीं हैं। ऐसे लोग सिर्फ मजहबी आधार पर मुसलमानों की चेतना को उभारकर उसका राजनीतिक लाभ उठाने का प्रयास करते हैं। ऐसे लोगों के लिए राष्ट्रीय भाव गौण है। यह एक खतरनाक मनोवृत्ति है। इससे राष्ट्र कमजोर होता है तथा विदेशी शक्तियों को भारत में आतंक फैलाने का अवसर मिलता है। इतिहास गवाह है कि जब-जब कोई व्यक्ति अथवा समूह राष्ट्रीय हित की उपेक्षा करते हुए निजी हित से प्रेरित होेकर ऐसे विमर्श उठाता रहा है तो राष्ट्रीय क्षति के साथ-साथ उसका भी नाश सुनिश्चित हुआ है।
   —डॉ़ रवि प्रकाश पाण्डेय
   प्रोफेसर, समाजशास्त्र विभाग,महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी (उ.प्र.)
भारत की दो टूक
आते-आते रह गये, श्री अजीज सरताज
भारत के दो टूक से, हुए बहुत नाराज।
हुए बहुत नाराज, किसी की नहीं सुनेंगे
आतंकी आकाओं से हर हाल मिलेंगे।
कह 'प्रशांत' ऐसे में अच्छा है, ना आएं
हमें नहीं अवकाश, तुम्हारे नाज उठाएं॥  
-प्रशांत 

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