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जड़ से काटने वाली 'शिक्षा'

by
Aug 31, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 31 Aug 2015 13:13:52

  अरुण कुमार सिंह
देश की राजधानी दिल्ली सहित पूरे भारत में कुछ मजहबी और गैर-सरकारी संगठन अपने विद्यालयों में भारत की सदियों पुरानी संस्कृति के विरुद्ध शिक्षा देते हैं और अपनी-अपनी संस्कृति को सबसे श्रेष्ठ बताते हैं। इस एजेंडा आधारित शिक्षा का उद्देश्य होता है अपने अनुयायियों की संख्या बढ़ाना, अपने मजहब का प्रचार-प्रसार करना और अपनी संस्कृति को ही सबसे श्रेष्ठ बताना। इसके लिए बच्चों को पहली कक्षा से ही सम्प्रदाय विशेष की बातें पढ़ाई जाने लगती हैं। इससे बच्चे दूसरे सम्प्रदाय के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित हो जाते हैं। उम्र के साथ उनका यह पूर्वाग्रह और दृढ़ होता जाता है। वे यह मानकर चलने लगते हैं कि उनका अपना ही मजहब ठीक है, उनकी अपनी ही संस्कृति अच्छी है और बाकी बेकार।
पूर्वोत्तर भारत में ईसाई मिशनरियों ने शिक्षा के नाम पर  ऐसा जाल बिछाया कि इस क्षेत्र के तीन राज्य (नागालैण्ड, मिजोरम और मेघालय) पूरी तरह ईसाई-बहुल हो चुके हैं। बाकी राज्यों में भी ये मिशनरियां बड़े जोर-शोर से इसी उद्देश्य की प्राप्ति में लगी हैं।  समाजसेवी भूषणलाल पाराशर, जो पूर्वोत्तर भारत में  कार्य करने वाले राष्ट्रवादी संगठनों के लिए दान इकट्ठा करते हैं, कहते हैं, 'ईसाई मिशनरियों ने बहुत ही रणनीतिपूर्वक शिक्षा की आड़ में पूर्वोत्तर भारत में अपनी जड़ें जमा ली हैं। मिशनरियों ने वनवासी बच्चों को शिक्षित तो किया, लेकिन उन्हें अपनी ओर खींच भी लिया। वे बच्चे अपने पूजा स्थल 'नाम घर' में पूजा नहीं करते हैं, बल्कि चर्च जाते हैं। वे अपने पुरखों की मान्यताओं और परम्पराओं को नहीं मानते हैं। वे लोग उन्हें अपनी जड़ों से ही काट चुके हैं।' विद्या भारती के मार्गदर्शक श्री ब्रह्मदेव शर्मा 'भाईजी' कहते हैं,'सामान्यत: किसी राष्ट्र की शिक्षा में उसके सांस्कृतिक मूल्यों, उसके गौरवशाली इतिहास, धरोहर और ज्ञान-विज्ञान को शामिल किया जाना चाहिए। विद्या भारती अपने विद्यालयों में ऐसी ही शिक्षा देती है। किसी भी सूरत में बच्चों को राष्ट्रीय चिन्तन से विपरीत शिक्षा नहीं दी जानी चाहिए। जो लोग ऐसी शिक्षा देते हैं, उन्हें रोकना सरकार की जिम्मेदारी है।' झारखण्ड के एक सामाजिक कार्यकर्ता विजय घोष का भी कुछ ऐसा ही मानना है। घोष कहते हैं, 'ईसाई मिशनरियों ने एजेंडा आधारित अपनी शिक्षा के लिए पूरे झारखण्ड को निशाने पर रखा है। सुदूर क्षेत्रों में भी विदेशी चंदे के बल पर विशाल विद्यालय और छात्रावास बन रहे हंै। इन छात्रावासों में मुख्य रूप से लड़कियों को रखा जाता है। लड़कियों को पढ़ाना तो बहुत अच्छी बात है, पर वहां लड़कियांे को ईसाइयत की ऐसी घुट्टी पिलाई जाती है कि वे पढ़-लिखकर अपने माता-पिता, अपने कुल और अपनी परम्पराओं की ही विरोधी हो जाती हैं। इनके जरिए ईसाई मिशनरियां उनके घर वालों को ईसाई बनाती हैं। बहुत ही सोची-समझी साजिश के तहत इन लड़कियों का विवाह किसी हिन्दू परिवार के लड़के से कराया जाता है। विवाह के कुछ समय बाद ही लड़के को ईसाई बनने के लिए बाध्य किया जाता है। जब लड़का ईसाई बन जाता है तो दोनों पति-पत्नी घर के अन्य सदस्यों को ईसाई बनने के लिए तैयार करते हैं। यही कारण है कि गुमला और सिमडेगा जिले में ईसाइयों की संख्या 32 से 33 प्रतिशत हो गई है। इससे भारत विरोधी गतिविधियां भी बढ़ रही हैं।' अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम के उपाध्यक्ष कृपा प्रसाद सिंह कहते हैं, 'मुस्लिम जगत भी भारत में एजेंडा आधारित शिक्षा को बढ़ावा देने में लगा है। पेट्रो डॉलर की ताकत पर पूरे देश में मदरसों और अन्य  शिक्षण संस्थानों का जाल बुना जा रहा है। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, केरल आदि राज्यों के कुछ हिस्सों में हाल के वर्षों में अनेक इस्लामी शिक्षण संस्थान प्रारंभ हुए हैं। अपने समाज के लोगों को शिक्षित करना कोई गलत बात नहीं है, लेकिन दुर्भाग्य से ऐसे कुछ संस्थानों में भारत विरोधी मानसिकता पनप रही है। समय-समय पर इसके अनेक उदाहरण देश के सामने आए हैं। इसके बावजूद इन शिक्षण संस्थानों को देश की कुछ राज्य सरकारें बढ़ावा दे रही हैं।'
यह अच्छी बात है कि जो संगठन एजेंडा आधारित शिक्षा देने में लगे हैं, उनके सामने विद्या भारती, वनवासी कल्याण आश्रम, सेवा भारती जैसी संस्थाएं चुनौतियां प्रस्तुत कर रही हैं। पूरे देश में विद्या भारती के 23 हजार से अधिक विद्यालय लाखों विद्यार्थियों को संस्कारयुक्त शिक्षा दे रहे हैं। वहीं कल्याण आश्रम के तत्वावधान में देश के अनेक भागों में 240 छात्रावास संचालित हो रहे हैं। इनमें सुदूर वनवासी क्षेत्रों के 1,18,716 बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। इनमें से 98 प्रतिशत बच्चे वनवासी हैं। 

किसी भी सूरत में बच्चों को राष्ट्रीय चिन्तन से विपरीत शिक्षा नहीं दी जानी चाहिए। जो लोग ऐसी शिक्षा देते हैं, उन्हें रोकना सरकार की जिम्मेदारी है।
-ब्रह्मदेव शर्मा 'भाईजी', मार्गदर्शक, विद्या भारती
मिशनरियों ने वनवासी बच्चों को शिक्षित तो किया, लेकिन उन्हें अपनी ओर खींच भी लिया। वे बच्चे अपने पूजा स्थल 'नाम घर' में पूजा नहीं करते हैं, बल्कि चर्च जाते हैं। वे अपने पुरखों की मान्यताओं और परम्पराओं को नहीं मानते हैं। वे लोग उन्हें अपनी जड़ों से ही काट चुके हैं।
– भूषणलाल पाराशर, समाजसेवी, दिल्ली
मुस्लिम जगत भी भारत में एजेंडा आधारित शिक्षा को बढ़ावा देने में लगा है। पेट्रो डॉलर की ताकत पर पूरे देश में मदरसों और अन्य इस्लामी शिक्षण संस्थानों का जाल बुना जा रहा है।
-कृपा प्रसाद सिंह, उपाध्यक्ष, वनवासी कल्याण आश्रम  
झारखण्ड में लड़कियांे को ईसाइयत की ऐसी घुट्टी पिलाई जाती है कि वे पढ़-लिखकर
अपने माता-पिता, अपने कुल और अपनी परम्पराओं की ही विरोधी हो जाती हैं। इनके जरिए ईसाई मिशनरियां उनके घर वालों को ईसाई बनाती हैं।
– विजय घोष, समाजसेवी, झारखण्ड

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