1857 की महान क्रांति तथा इसके विश्वयापी प्रभाव
May 11, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

1857 की महान क्रांति तथा इसके विश्वयापी प्रभाव

by
Aug 28, 2015, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 28 Aug 2015 13:25:20

1857 की भारत की क्रांति विश्व की एक महान आश्चर्यजनक, अत्यंत प्रभावी तथा परिवर्तनकारी घटना थी। इसने न केवल ब्रिटिश साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद की चूलों को हिला दिया, बल्कि यूरोप के प्रमुख राष्ट्रों में एक नवजीवन तथा चेतना जागृत की। यह क्रांति ध्वंसात्मक तथा सृजनात्मक दोनों थी। इसके दूरगामी प्रभाव तथा परिणाम हुए। सामान्यत: इसका मूल्यांकन अधिकतर साम्राज्यवादी इतिहासकारों तथा अन्य लेखकों द्वारा एकपक्षीय, पूर्वाग्रहों से ग्रसित, ब्रिटिश दस्तावेजों तथा ईसाई मिशनरियों के रिकार्ड्स, तथ्यहीन तथा अप्रामाणिक आधारों पर किया गया है। इसके निष्कर्ष यूरोपीय जीवन के भौतिक मूल्यों तथा तात्कालिक परिणामों के आधार पर निकाले गये न कि इसकी प्रकृति, विश्वव्यापी क्रांतियों की तुलना तथा भारत तथा अन्य महाद्वीपों में इसके दूरगामी प्रभावों से।
अत: इसकी प्रकृति तथा विश्व की प्रमुख क्रांतियों के संदर्भ में इसका विवेचन करना महत्वपूर्ण होगा। निश्चय ही यह क्रांति न केवल कोई सिपाही विद्रोह था, न कोई हिन्दू या मुस्लिम षड्यंत्र, न कोई धर्मान्धों द्वारा ईसाइयों के विरुद्ध संघर्ष, न श्वेतों तथा कालों के बीच टकराव या न सभ्यता तथा बर्बरता के विरुद्ध संघर्ष था। इसके साथ ये क्रांति न कोई एशियाई लड़ाकू स्वभाव की परिचायक या सामन्तवादी प्रतिक्रिया थी। वस्तुत: यह कोई आकस्मिक घटना न थी बल्कि एक पूर्व नियोजित महान प्रयास तथा विशाल अभियान था।
विश्व की महान क्रांतियां
यदि थोड़े समय के लिए पूर्वाग्रहों तथा रूढि़वादी दृष्टिकोण से हटकर देखें तो इसमें किंचित भी संदेह नहीं रहता कि विश्व के इतिहास में यह महानतम क्रांतियों में से थी। विश्व के इतिहास में चार प्रमुख क्रांतियां मानी जाती हैं जो क्रमश: ब्रिटेन, फ्रांस, अमरीका तथा रूस में हुई। इंग्लैण्ड की 1688 ई. की क्रांति मुख्यत: टोरी तथा विह़व पार्टियों के बीच, जेम्स द्वितीय के भागने पर उत्तराधिकारी की लड़ाई थी कि कौन गद्दी पर बैठे जो मेरी तथा विलियम दोनों के संयुक्त शासन पर समझौते से खत्म हो गई। (देखें जी.ई. करिंगटन एवं जे. हेम्पडेन जैक्सन, हिस्ट्री ऑफ इंग्लैण्ड, पृ.426) विश्व के इस छोटे से देश की कुल आबादी दो करोड़ से कुछ अधिक थी। इसमें न स्काटलैण्ड था और न ही आयरलैण्ड। इसे शानदार, रक्तहीन क्रांति कहा गया। यहां के लेखकों ने इसको बढ़ा-चढ़ा कर अतिरंजित किया तथा इसको महिमामंडित कर विजय के तराने गाये। 1789 ई. में फ्रांस में क्रांति हुई। उस समय फ्रांस की कुल आबादी ढाई करोड़ थी। यह क्रांति यहां के अमीरों, पादरियों राजतंत्र के विरुद्ध जन आक्रोश का परिणाम थी, नेपोलियन के शासक बनते ही यह क्रांति समाप्त हो गई थी। इस क्रांति के तीन नारों- स्वतंत्रता, समानता तथा भ्रातृत्व का बड़ा यशोगान किया गया। अपनी व्यापकता तथा फ्रांस के लोगों की भागीदारी की तुलना में अति सीमित तथा इसके प्रभाव स्थायी न रहे। इसे मध्यवर्गीय क्रांति कहा गया (जॉर्ज लेफबरे, द वार्मिंग ऑफ द फ्रंचरीवोल्युशन, पृ. 135) डॉ. बी.आर. आम्बेडकर ने लिखा कि क्रांति के तीन नारे बहुत सुन्दर थे। पर वे किंचित भी समानता न ला सके। अमरीका की स्वतंत्रता तथा क्रांति (1775-1783 ई.) में हुई थी। अमरीका की आवादी कुछ लाख ही थी। मुख्य संघर्ष 17वीं शताब्दी से बसे यूरोप के भिन्न भागों से आये, धन तथा कच्चा माल प्राप्त करने आए लोगों तथा ब्रिटिश उपनिवेशों के अंतर्गत अंग्रेजों द्वारा करों में वृद्धि और अमरीकी लोगों के व्यापार तथा काम धंधों पर प्रतिबंधों से हुआ था (धर्मवीर गांधी, हैंडबुक ऑफ द यूनाइटेड अमरीका, पृ. 12) यह संघर्ष साम्राज्य विस्तार तथा उसकी सुरक्षा के लिए था (देखें, एल.एच. गिप्सन, द ब्रिटिश एंपायर बिफोर द अमरीकन रीवोल्युशन, सातवां भाग) ऐतिहासिक दस्तावेजों तथा प्रमाणों से ज्ञात होता है कि 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तक दुनिया के अधिकतर देश अमरीका से भलीभांति परिचित भी न थे। अधिकतर देशों को इसके अस्तित्व की जानकारी प्रथम महायुद्ध के साथ हुई। 1917 की रूसी क्रांति जारशाही के विरुद्ध थी। बोल्शेविक नेता लेनिन ने, मेंशेनिक नेताओं को हराकर रूस की सत्ता हथिया ली थी। यह क्रांति मुख्यत: 16 अक्तूबर 1917 से 5 दिसम्बर 1917 तक रही। इस क्रांति में अत्यधिक खून खराबा, हिंसा, परस्पर मारकाट हुई। सोवियत संघ ने रूस में हिंसा के मार्ग से अड़ोस-पड़ोस के ग्यारह देशों में अपना साम्राज्य स्थापित किया (विस्तार के लिए देखें, सतीशचन्द्र मित्तल, विश्व में साम्यवादी साम्राज्यवाद का उत्थान एवं पतन) 1917-1992 तक इस क्रांति के फलस्वरूप कुछ देशों को अधिनायकवाद तथा भीषण रक्तपात को सहना पड़ा। इस साम्राज्यवादी साम्राज्यवाद में अभिलेखागारीय साधनों के अनुसार लगभग 10 करोड़ लोगों की बलि हुई (स्तेफानी कुर्त्वा, द ब्लेक बुक ऑफ कम्युनिज्म : क्राइम, टेरर एण्ड रिप्रेसन, पृ. 4) विभिन्न देशों में राष्ट्रवादी शक्तियों ने इसका सतत् विरोध किया। उल्लेखनीय है कि इस क्रांति लाने वाले लेनिन ने क्रांति तथा आत्म प्रशंसा में सभी हदें पार कर दीं (देखें, वीआई लेनि, ऑन द ग्रेट अक्तूबर सोशलिस्ट रीवोल्युशन, पृ. 7,66, कलक्टैड वर्क्स ऑफ लेनिन, भाग 26) अनेक विद्वानों ने इसके प्रभाव को विनाशकारी बताया। जर्मनी के कौरस्की (1854-1938) ने इसे लोकतंत्र को विनिष्ट करने वाला, गोर्की (1868-1936) ने सामाजिक क्रांति नहीं बल्कि जानवरी अराजकता कायम करने वाला बताया।
उपरोक्त क्रांतियों की तुलना में 1857 की महान राष्ट्रीय क्रांति विश्व के इतिहास में एक आश्चर्यजनक, महान घटना तथा भारतीय इतिहास का एक उज्ज्वल, दिव्य तथा गौरवशाली पृष्ठ है। यह एक ऐसा अद्भुत संघर्ष था जिसने ब्रिटिश साम्राज्य की दादागिरी व आतंकवाद को एक खुली चुनौती दी थी। विश्व के आगामी पांच महीनों तक कंपित, अचंभित तथा कौतुहलयुक्त बना दिया था। इस युद्ध में भारत का कोई प्रांत या क्षेत्र न था जिसने इसमें बढ़-चढ़कर भाग न लिया हो, इस क्रांति में लगभग चार लाख लोग मारे गये थे। अकेले दिल्ली में जिसकी संख्या कुल एक लाख 53 हजार थी। 27000 लोग मारे गए थे। अकेले लखनऊ में 20,270 व्यक्ति मारे गए थे, संपूर्ण देश युद्ध क्षेत्र बन गया था। यह एक ऐसी क्रांति थी जो एक दिन में बीस-बीस स्थानों पर हुई। यह क्रांति 12 महीनों तक सतत चलती
रही थी।
यूरोप में उथल-पुथल
1857 की महान क्रांति ने यूरोप को दो भागों में बांट दिया- ब्रिटिश सामा्रज्य के समर्थकों तथा दूसरे इटली जर्मनी, फ्रांस, आयरलैण्ड, पुर्तगाल आदि देशों में। क्रांति का सीधा प्रभाव तत्कालीन ब्रिटेन के उच्चतम अधिकारियों तथा जनता की मानसिकता का बोध सहज रूप से तत्कालीन ब्रिटेन के उच्चतम अधिकारियों तथा जनता की मानसिकता का बोध  सही रूप से तत्कालीन ब्रिटिश संसद की कार्यवाही, मंत्रियों के वक्तव्यों, रानी विक्टोरिया की झुंझलाहट, इंग्लैण्ड के गिरजाघरों में अचानक बढ़ती हुई भीड़ से, सरकार द्वारा डे ऑफ ह्यूमिलेशन, प्रे एंड फास्ट तथा सरकारी आज्ञाओं से ज्ञात होता है। ब्रिटेन के पक्ष विपक्ष के नेताओं, प्रधानमंत्री पामर्स्टन, विपक्षी नेता डिसरैली व ऐलनबरो तथा डर्बी, सैलिसबरी, शेफ्टबरी तथा लॉर्ड मैकाले के निराशाजनक भाषणों, रानी के पत्रों डायरियों, संस्मरणों से क्रांति की व्यापकता तथा भयंकरता का अहसास होता है। प्रधानमंत्री पामर्स्टन ने क्रांति को दैवीय पाप तथा विपक्षी दल के नेता डिसरैली ने राष्ट्रीय विद्रोह कहा था। रानी विक्टोरिया ने क्रांति को इंग्लैण्ड के अत्यंत नाजुक क्षण तथा महान गंभीर विपत्ति कहा था। लॉर्ड मैकाले ने अपनी डायरी में इसे आत्मा को सर्वाधिक कचोटने वाली घटना कहा तथा लिखा कि मैं जीवनभर किसी भी घटना से इतना विचलित न हुआ जितना इससे। उसने अपना 57वां जन्मदिवस भी नहीं मनाया था। संक्षेप में अनेकों ने इसे महान दुखांत घटना माना है। इस क्रांति से इंग्ल् ौण्ड को भारत में अपने अस्तित्व को खतरा लगा। क्रांति की इस व्यापकता का लंदन के द टाईम्स ने पहले स्वीकार न किया तथा सेटरडे रिव्यू ने उसका समर्थन किया परंतु शीघ्र ही इसके सहित द स्पेक्टेटर, पंच, एडीनवश रिव्यू ने सभी ने इसकी भयानता का वर्णन किया। शीघ्र ही ब्रिटिश सेनायें भारत भेजी जाने लगी। क्रांति के ब्रिटिश साम्राज्य पर दूरगामी परिणाम हुए। यह सदैव ब्रिटिश मानों को झकझोरती रही। क्रांति भारत के भावी गवर्नर जनरलों कैनिंग से कर्जन तक तथा मिन्टो से माउन्टबेटन को एक प्रेतछाया की तरह घेरती रही। भारत के वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो को सन 1942 को आंदोलन को 1857 के विद्रोह जेसा लगा। तत्कालीन भारत मंत्रियों तथा वायसरायों के पत्र व्यवहार से ज्ञात होता है। (देखें एस गोपाल, ब्रिटिश पॉलिसी इन इंडिया (1858-1905) इस क्रांति ने अंग्रेजों तथा भारतीय संबंधों में एक खटास पैदा कर दी जिसे आगामी 90 वर्षों (1858-1947) तक वे भूल न पाये, ब्रिटिश प्रयासों के पश्चात न भारत ईसाई देश बन सका और न ही आस्ट्रेलिया या अफ्रीका की भांति अंग्रेजों को स्थायी कॉलोनी। 1857 से भारत के सशक्त राष्ट्रीय आंदोलन का प्रारंभ हुआ जिसकी इतिश्री 1947 के विभाजन के रूप में हुई।
1857 की क्रांति में समूचे यूरोप में एक नवचेतना तथा जागरण की लहर पैदा की। सर्वप्रथम फ्रंास के पत्रों ने भारत की क्रांति का वर्णन किया जिसमें भारतीय सैनिकों के कन्वर्जन के प्रयत्नों का वर्णन था, प्रारंभ में इसे द टाईम्स ने स्वीकार न किया। फ्रांस के पत्र ली सीशल ने अंग्रेजों की बर्बरतापूर्ण कार्रवाई की निंदा की थी। उसने 9 सितम्बर 1857 के अंक में लिखा, भारत में क्रांति ही अकेली बड़ी घटना है जिस पर इस समय सबका ध्यान केन्द्रित है। फ्रांस की सरकार एवं वहां के समाचार पत्र-पत्रिकाओं रिव्यू डेस डिक्स, रिव्यू डी पेरिस तथा ले ऐस्ट फेटे ने खुलकर क्रांति को उजागर किया। पर शीघ्र ही संबंध सुधारने पर भारत में फ्रांसीसियों की स्थित पांडिचेरी में क्रांति से स्थानीय फ्रांस के अधिकारियों को खतरा तथा भय लगा। उन्होंने तत्कालीन तामिलनाडु (मद्रास) के ब्रिटिश गवर्नर हेरिस से मदद मांगी तथा उसने सहायता दी। 1857 की क्रांति से पुर्तगालियों के साम्राज्य को धक्का लगा। भारत में पुर्तगाली बस्ती गोवा में हलचल हुई।
दीप जी राणा के नेतृत्व में गोवा के अनेक इलाकों खेपम, कानकोना, हेमाद, वारशे और माह-ग्राम पुर्तगालियों से मुक्त करा लिये। तत्कालीन पुर्तगाली रिकार्डस से ज्ञात होता है कि तत्कालीन स्थानीय पुर्तगाली सरकार ने लिस्बन को कई पत्र लिखे तथा तत्काल पुर्तगाल से सेना भेजने का आग्रह किया। उन्होंने, गोआ में पुर्तगाली शासन पाताल में पहुंचने की कगार पर लिखा। इटली में भारतीय क्रांति से नव जागरण हुआ। क्रांति से इटली जैसे देश ने अपने देशवासियों में स्वतंत्रता तथा एकीकरण की ललक पैदा कर दी। इटली के प्रसिद्ध राष्ट्रवादी मैजिनी ने अपने पत्र इटालिया-डेल-पोपोलो में भारत पर 23 लेख लिखे। वहां के वीर गैरीबाल्डी तो स्वयं भारत की क्रांति में भाग लेने चल पड़ा तथा उसने अपना समान भी समुद्री जहाज पर लाद दिया था। महान क्रांतिकारी नाना साहेब के सहायक अजीमुल्ला खां गैरीवाल्डी से इटली में मिले थे जिसमें उन्होंने पूर्ण समर्थन तथा सहायता का आश्वासन दिया था। इटली के अनेक पत्रों कालो कटलोनिया, टयूरिस के पत्र रिविजिता कन्टम्पोरिनिया, ला रागियो ने अंग्रेजों के विरुद्ध कठोर प्रतिक्रियाएं व्यक्त की थीं। प्राय: सभी ने भारत की अंग्रेजों से मुक्ति की कामना की थी। अजीमुल्ला खां रूस भी गये थे। तत्कालीन रूसी लेखकों द्रोब्रोल्यूनोव तथा चर्निशेवस्की ने भारत में हो रहे अंग्रेजों के अत्याचारों की कटु आलोचना की थी। उन्होंने भारत में अंग्रेजी शासन को राजकीय तथा निजी स्वार्थ माना न कि  सभ्यता का प्रसार (देखें निकातोई द्रोब्रोल्यूनोव द इंडियन नेशनल अपराजिंग ऑफ 1857) उन्होंने भारत में अंग्रेजी शासन को संगिनों के साये में बताया। दोनों लेखकों ने भारत के जनविद्रोह को ऐतिहासिक आवश्यकता बतलाया (देखें, ऐरिक कोमोरोव लेनिन एण्ड इंडिया: ए हिस्टोरिकल स्टडी, पृ. 7)
अमरीका महाद्वीप में प्रभाव
शीघ्र ही 1857 की क्रांति की गूंज सुदूर अमरीका के तटों तक पहुंची। 1857 ई. में रिचर्ड हो द्वारा निर्मित छपाई की रोटरी मशीन ने प्रकाशन की प्रक्रिया में क्रांति ला दी थी तथा अमरीकन जीवन में पत्र-पत्रिकाओं की भरमार थी। अमरीका के दो तीन दैनिक पत्रों न्यूयार्क डेली ट्रिब्यून, न्यूयार्क डेली टाईम्स तथा ब्रुकलिन डेली ईगल ने 1857 की क्रांति के संदर्भ में विपुल सामग्री प्रकाशित की थी। न्यूयार्क डेली टाईम्स मुख्यत: भारत में ब्रिटिश सरकार तथा ईसाई मिशनरियों के पक्ष में था। उसने प्रारंभ में क्रांति को कुचलने की बात कही थी। क्रांति को विशालतम विद्रोह कहा था (देखें 3 अगस्त 1857 का अंक) ब्रुकलिन डेली ईगल ने अपने कई अंकों में नाना साहेब के क्रियाकलापों पर लेख लिखे, पर 27 जुलाई 1857 के अंक में लिखा, विद्रोह का विस्तार डरावनी रफ्तार से हो रहा है। 23 देशी रेजीमेंट उसमें कूद पड़ी है। अधिकतर पत्रों की भारत से सहानुभूति थी। प्रिंस्टन रिव्यू ने इसे पीढ़ी की सबसे बड़ी घटना बतलाया। अटलांटिक मंथली ने इस क्रांति होने का कारण कन्वर्जन और जाति भ्रष्ट होने का भय बतलाया। नार्थ अमरीकन रिव्यू ने एक अंक में लिखा, भारत में ब्रिटिश सत्ता जड़ तक हिल गई है। अमरीका के अन्य पत्रों जैसे हाप्स न्यू मंथली, मैगजीन, लिबर्टी, वीकली ट्रिब्यून, न्यू इंग्लैण्ड ऐण्ड येल रिव्यू, सेंट लुईस क्रिश्चियन, एडवोकेट आदि ने अपनी प्रतिक्रियाएं व्यक्त कीं।
ऐशिया में प्रभाव
1857 की क्रांति के प्रभाव से एशिया अछूता न रहा। यहां के कुछ प्रमुख देशों में इसके प्रभावों का जाना उपयोगी होगा। भारत तथा फारस के संबंध अतीत काल से रहे। बहादुरशाह ने यहां के शाह को सहायता के लिए पत्र लिखा था, परंतु इस समय वह हैरात के प्रश्न पर व्यस्त था। परंतु उसने संदेश भिजवाया कि दिल्ली का शासक सुन्नी की बजाय शिया होने को तैयार हो, तो वह मदद देगा। क्रांति के समय अफगानिस्तान का अमीर दोस्त मोहम्मद था। 1855 ई. में उसकी कंपनी सरकार के साथ एक संधि भी हुई थी। अत: ब्रिटिश दबाव के कारण कोई सहायता न कर सका। परंतु बाद में वहाबी अनुयायियों के आंदोलन के रूप में प्रकट हुआ जिन्होंने भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड मेयो की हत्या कर दी थी। अप्रैल 1859 में नाना साहब ने सेना, परिवार सहित नेपाल में शरण ली थी। लखनऊ की हजरत बेगम भी वहीं रही थीं। तिब्बत के 12वें दलाई लामा ट्रिनले इयोतेसरे ने यद्यपि सभी विदेशियों के आगमन पर प्रतिबंध लगा दिया था परंतु कुछ व्यक्तियों के समाचारों से ज्ञात होता है कि वहां भी बेचैनी फैली थी। भूटान भी 1857 में सजग था। 1864 ई. में ईडन मिशन से ज्ञात होता है कि एक हिन्दुस्तानी तोन्गभू पैनलो द्वारा भूटान शासक से अंग्रेजों को खदेड़ने में सहायता तथा सहयोग मांगा था। म्यांमार (ब्रह्मा) ब्रिटिश साम्राज्य का अंग था। दिल्ली के अंतिम मुगल सम्राट बहादुशाह जफर के म्यांमार की जेल में भेज दिया था।
विश्व के अन्य भागों में जहां-जहां भारतीय मजदूरों के रूप में गये, क्रांति की गाथाएं भी अपने साथ ले गये थे। अत: अंग्रेज सर्वदा उनसे चौकन्ना तथा भयभीत रहा।
निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि इस महान क्रांति की प्रकृति अथवा स्वरूप के बारे में कोई कुछ भी कहे परंतु यह सत्य है कि ये विश्व में पहली बार यूरोपीयन साम्राज्य के विरुद्ध एक विशालतम एवं महानतम चुनौती थी। इससे बड़ा संघर्ष किसी भी देश की प्रसिद्ध क्रांतियों में न हुआ था। इसने न केवल ब्रिटिश साम्राज्यवाद तथा औपनिवेश की जड़ों को हिला दिया, बल्कि विश्व में यूरोप, अमरीका तथा ऐशिया के जनमानस को आंदोलित किया। क्रांति के प्रथम पांच मास (9 मई- 20 सितम्बर) विश्व के सभी प्रमुख समाचार पत्रों के मुखपृष्ठ का अंग बने रहे। अनेक देशों में अपनी स्वतंत्रता की उमंग जगाई। भारतीयों की दृष्टि से यह क्रांति संघर्ष का अंत नहीं, स्वतंत्रता आंदोलन का प्रथम अध्याय थी। आवश्यक है कि विश्वव्यापी 1857 की महान क्रांति के प्रभावों को जानने के लिए गंभीर शोध कार्य हो जो क्षेत्र अभी तक खाली पड़े हैं। साथ ही भारत में भी इसके विस्तार तथा प्रभाव को जानने के लिए एक नेशनल रजिस्टर बनाया जाये जिसमें भारत के विभिन्न जिलों के अनुसार इसका वर्णन प्रकाशित हो।   – डॉ. सतीशचन्द्र मित्तल

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

Operation sindoor

अविचल संकल्प, निर्णायक प्रतिकार : भारतीय सेना ने जारी किया Video, डीजीएमओ बैठक से पहले बड़ा संदेश

पद्मश्री वैज्ञानिक अय्यप्पन का कावेरी नदी में तैरता मिला शव, 7 मई से थे लापता

प्रतीकात्मक तस्वीर

घर वापसी: इस्लाम त्यागकर अपनाया सनातन धर्म, घर वापसी कर नाम रखा “सिंदूर”

पाकिस्तानी हमले में मलबा बनी इमारत

दुस्साहस को किया चित

पंजाब में पकड़े गए पाकिस्तानी जासूस : गजाला और यमीन मोहम्मद ने दुश्मनों को दी सेना की खुफिया जानकारी

India Pakistan Ceasefire News Live: ऑपरेशन सिंदूर का उद्देश्य आतंकवादियों का सफाया करना था, DGMO राजीव घई

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

Operation sindoor

अविचल संकल्प, निर्णायक प्रतिकार : भारतीय सेना ने जारी किया Video, डीजीएमओ बैठक से पहले बड़ा संदेश

पद्मश्री वैज्ञानिक अय्यप्पन का कावेरी नदी में तैरता मिला शव, 7 मई से थे लापता

प्रतीकात्मक तस्वीर

घर वापसी: इस्लाम त्यागकर अपनाया सनातन धर्म, घर वापसी कर नाम रखा “सिंदूर”

पाकिस्तानी हमले में मलबा बनी इमारत

दुस्साहस को किया चित

पंजाब में पकड़े गए पाकिस्तानी जासूस : गजाला और यमीन मोहम्मद ने दुश्मनों को दी सेना की खुफिया जानकारी

India Pakistan Ceasefire News Live: ऑपरेशन सिंदूर का उद्देश्य आतंकवादियों का सफाया करना था, DGMO राजीव घई

Congress MP Shashi Tharoor

वादा करना उससे मुकर जाना उनकी फितरत में है, पाकिस्तान के सीजफायर तोड़ने पर बोले शशि थरूर

तुर्की के सोंगर ड्रोन, चीन की PL-15 मिसाइल : पाकिस्तान ने भारत पर किए इन विदेशी हथियारों से हमले, देखें पूरी रिपोर्ट

मुस्लिम समुदाय की आतंक के खिलाफ आवाज, पाकिस्तान को जवाब देने का वक्त आ गया

प्रतीकात्मक चित्र

मलेरकोटला से पकड़े गए 2 जासूस, पाकिस्तान के लिए कर रहे थे काम

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies