पुस्तक समीक्षा - सृजन और प्रलय के साक्षी-अटल बिहारी वाजपेयी
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पुस्तक समीक्षा – सृजन और प्रलय के साक्षी-अटल बिहारी वाजपेयी

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Aug 22, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 22 Aug 2015 14:49:01

भारतीय राजनीति में 60 के दशक में चीन के आक्रमण के बाद पंडित नेहरू को संसद के अंदर जिस तेजस्वी युवा की दहाड़ ने निरुत्तर किया था और जिन्हें नेहरू ने भारत का भविष्य का प्रधानमंत्री बताया था- वह अटल बिहारी वाजपेयी पूरे 50 वर्ष भारतीय राजनीति में सर्वमान्य और लोकप्रिय व्यक्तित्व बने रहे। लगभग एक दशक से मौन की स्थिति में अस्वस्थ वाजपेयी को जब सरकार ने इस वर्ष भारतरत्न से सम्मानित किया तो वे एक बार पुन: मीडिया की सुर्खियों में छा गए।
देश में कई पत्र-पत्रिकाओं ने उनपर विशेष सामग्री प्रकाशित की। इसी क्रम में राष्ट्रधर्म मासिक ने 'हम सबके अटल जी' विशेषांक का प्रकाशन किया जिसमें 1947 से 1950 तक अटल जी ने सम्पादक के रूप में कार्य किया था। विशेषांक के प्रारंभ में अटल जी के सामाजिक- राजनीतिक सहयात्री पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, रामनाईक, केसरीनाथ त्रिपाठी, मृदुला सिन्हा, कल्याण सिंह आदि के शुभकामना संदेश हैं।
अटल जी की दो प्रसिद्ध कविताएं- परिचय और आवाहन के साथ युवा अटल की श्याम-श्वेत छवि वाला राष्ट्रधर्म के प्रथम अंक का मुखपृष्ठ है, इसके पश्चात पाञ्चजन्य के अप्रैल 1950 अंक का मुखपृष्ठ छपा है जिसका संपादन भी अटल जी ने किया था। मुख्य रूप से इस विशेषांक में कुल 96 पृष्ठों में छोटे-बड़े लगभग 40 लेख और 4 कविताएं संकलित हैं। संपादकीय से पूर्व उस समय के शीर्ष साहित्यकार पं. श्रीनारायण चतुर्वेदी को अटल जी द्वारा लिखा पत्र प्रकाशित है। इसके पश्चात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार को समर्पित अटल जी द्वरा रचित कविता है।
संपादक ने अपनी संपादकीय टिप्पणी में अटल जी की प्रतिभा का प्रसंग लेते हुए कहा है- '1957 के सामान्य-निर्वाचन में बलरामपुर (उ.प्र.) क्षेत्र से जीतकर जब अटल जी पहली बार लोकसभा पहुंचे तो सदन में पहली बार बोलते ही प्रधानमंत्री नेहरू जी उनकी वक्तृता से इतने प्रभावित हुए कि जब जॉन फिट्जराल्ड कैनेडी अमरीका के राष्ट्रपति के चुनाव में खड़े हुए, तो उनके साथ वहां की निर्वाचन-प्रणाली को समझने के लिए उन्होंने अपनी पार्टी के किसी सदस्य को भेजने के बजाय जनसंघ के अटल जी को भेजा। शायद नेहरू जी को तभी उस युवक अटल बिहारी वाजपेयी में भारत के भावी प्रधानमंत्री बनने की योग्य-क्षमता की झलक मिल गयी थी।'
विशेषांक में दीनदयाल जी की श्रद्धांजलि पर केन्द्रित अटल जी का लेख 'आंसुओं में डूबे स्मृति चिन्ह' उनकी सहृदयता, प्रेरणादाई जीवंतशैली और भावुकता को अभिव्यक्त करता है- 'पंडित जी जिस कार्य के लिए जन्मे, जिये और जूझे उसी के लिए हौतात्म्य (शहादत) स्वीकार कर उन्होंने अपना जीवन-व्रत पूर्ण कर लिया। नंदा दीप बुझ गया, हमें अपने जीवन-दीप जलाकर अंधकार से लड़ना होगा। सूरज छिप गया, हमें तारों की छाया में अपना मार्ग ढूंढ़ना होगा।'
इसी क्रम में अटल जी पर 'पत्रकार से राजनीतिज्ञ' शीर्षक से स्व. नानाजी देशमुख का विशिष्ट लेख संकलित है जो प्रमाणित करता है कि अटल जी की वक्तृत्व कला और नेतृत्व क्षमता अद्भुत थी- 'डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का उत्तर प्रदेश में दौरा था। पत्रकार के नाते अटल जी भी साथ थे। डॉ. मुखर्जी के पहुंचने में बिलंब होने के कारण सभा में आए लोगों को जमाए रखने के लिए अटल जी से कहा गया। इस दौरान उनकी वक्तृत्व कला प्रकट हुई। उनके प्रभावी भाषण से लोग झूम उठते थे।'
इसी लेख में आगे नानाजी स्पष्ट करते हैं कि किस प्रकार एक प्रसिद्ध कवि और पत्रकार राजनीति की रपटीली राह पर पहुंच गया- 'डॉ. मुखर्जी ने कश्मीर आंदोलन के प्रारंभ में ही कश्मीर प्रवेश कर, सत्याग्रह करने का निश्चय किया। उनका जेल में जाना तय था। अत: संपूर्ण देश में कश्मीर आंदोलन का संदेश पहुंचाना अति आवश्यक था। इस कार्य को संपूर्ण करने के लिए अटल जी उनके निजी सचिव बनाए गए। इस प्रकार अटल जी पत्रकार से राजनीतिज्ञ बने।'
अटल जी के साथ पत्रकारिता का ककहरा सीखने वाले देवेन्द्र स्वरूप का लेख 'जब मैंने उनसे संपादन कला सीखी' शीर्षक से प्रकाशित है वे सगर्व स्वीकारते हैं- 'पत्रकारिता से मेरा दूर तक संबंध नहीं रहा था। वैसे भी मैं विज्ञान का विद्याथी रहा था। पता नहीं भाऊराव ने क्या देखकर इस क्षेत्र में भेजने का निर्णय लिया। मैंने संकोच के साथ अपनी समस्या बतायी। भाऊराव ने कहा, तुम चिंता मत करो। उस पत्र का संपादन अटल बिहारी वाजपेयी करेंगे, तुम्हें उनका सहयोग करना होगा।'
राष्ट्रधर्म के 'हम सबके अटल जी' विशेषांक में विभिन्न शीर्षकों के अंतर्गत कई लेख संकलित हैं इनमें जननायक- रामनाईक, श्री अटल बिहारी वाजपेयी : एक महामानव -केसरीनाथ त्रिपाठी, स्मृति पटल पर अंकित कुछ रेखाएं – बलरामजी दास टण्डन, एक संवेदनशील राजनेता – मृदुला सिन्हा, एक काव्य, ऋचा या मंत्र हैं अपने अटल जी -हृदयनारायण दीक्षित, स्मृति के वातायन से -डॉ. ब्रह्मदेव अवस्थी, …तो स्वाद नहीं आता – वीरेश्वर द्विवेदी,  ऐसे हैं अपने अटल जी – राजनाथ सिंह 'सूर्य', तीन प्रसंग अटल जी के चिंतन के – स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि, अटल जी, बातें और यादें -विजय कुमार, अतीत के चलचित्र से – मनोहर पुरी, कुछ यादें, कुछ यादों के दृश्य – शिवकुमार गोयल, अटल जी और 1942 -के. बिक्रम राव, अटल जी ने कहा- मेरी आस्था भारत – तरुण विजय, अटल जी का नन्हा दोस्त कान्हा -यादवराव देशमुख, तमिल में हमारे अटल जी -र. शौरिराजन, अजातशत्रु अटल जी -जुगल किशोर जैथलिया, अपने अटल जी, सबके अटल जी -डॉ. महाराजकृष्ण भरत, वह घटना… -लालजी टण्डन और अंतिम लेख विश्वप्रसिद्ध राजनेता श्री अटल जी शीर्षक से कैलाश जोशी द्वारा
लिखित है।
समग्र रूप से राष्ट्रधर्म ने देश के कालजयी राजनेता, सबके चहेते कवि और कुशल वक्ता भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेयी पर विशेषांक के रूप में संग्रहणीय, उपयोगी एवं प्रभावी आयोजन किया है। समाज, राजनीति और साहित्य से जुड़े लोगों के साथ-साथ युवा पीढ़ी के लिए भी सार्वकालिक लोकप्रिय व्यक्तित्व अटल बिहारी वाजपेयी पर केन्द्रित यह अंक अत्यंत उपयोगी और प्रामाणिक दस्तावेज सिद्ध होगा।    
-सूर्य प्रकाश सेमवाल

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