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पाञ्चजन्य के पन्नों से
वर्ष: 12 अंक: 16
20 अक्तूबर 1958
भारतीय जनसंघ की केन्द्रीय कार्यसमिति के निर्णय
संविधान की धारा 370 समाप्त हो: देश की राजनीति में सुधार जरूरी
दिल्ली 13 अक्तूबर। भारतीय जनसंघ की केन्द्रीय कार्यसमिति की एक दिवसीय बैठक आचार्य देवप्रसाद घोष की अध्यक्षता में यहां 11 अक्तूबर को प्रारम्भ होकर आज ही प्रात: समाप्त हुई। उक्त बैठक में भाग लेने वालों में महामन्त्री पं. दीनदयाल उपाध्याय, कश्मीर जम्मू प्रज्ञा परिषद के प्रधान पं. प्रेमनाथ डोगरा के अतिरिक्त सर्वश्री अटल बिहारी वाजपेयी, उत्तमराव पाटिल एमपी, कृष्णलाल सदस्य पंजाब विधान परिषद, आचार्य रामदेव, प्रो. महावीर, प्रो. बलराज मधोक, जगन्नाथ जोशी, पीताम्बर दास (उ.प्र.) के नाम उल्लेखनीय हैं।
पाक-परिवर्तनों के प्रति भारत सतर्क रहे
भारतीय जनसंघ ने पाकिस्तान में संविधान की समाप्ति तथा सैनिक अधिनायकवाद की स्थापना पर काफी चिन्ता प्रकट की है क्योंकि पाकिस्तान न केवल भारत का सीमावर्ती देश है, आपितु कुछ वर्ष पूर्व तक वह हमारा एक अंग था, अत: वहां होने वाली घटनाओं का भारत पर प्रभाव पड़ना अवश्यम्भावी है और भारत उनके प्रति मूकदर्शक नहीं रह सकता। भारतीय जनसंघ यह भी अनुभव करता है कि विश्व के सभी लोकतंत्रवादी देशों को पाकिस्तान में हुए इस लोकतन्त्र विरोधी परिवर्तन को गम्भीरता से देखना चाहिए और शासन तथा जनता दोनों को लोकतन्त्रवादी शक्तियों को सुदृड़ बनाने का भरसक प्रयत्न करना चाहिए।
श्री गुरुजी की संघ -आलोचकों को कड़ी फटकार
''वे इन आन्दोलनों को प्रारम्भ करते समय कल्पना कर लेते हैं, व कहते भी हैं कि ये तो आपातकाल की समस्याओं को सुलझाने के लिए अपनाए गए तात्कालिक उपाय मात्र हैं। पर वे यह भूल जाते हैं कि इनसे जिन दोषों को जन्म मिलता है वे तात्कालिक न रहकर स्थायी जड़ें जमा लेते हैं। अच्छी आदतों का निर्माण करना व सुदृढ़ राष्ट्रीय चारित्र्य को जगाना कितना दुष्कर कार्य है, सम्भवत: इसकी उन्हें कल्पना नहीं। हां, आदतों को खराब करने में क्या देर लगती है? परन्तु एक बार खराब आदत बन जाने पर वह अपने शिकार को आसानी से नहीं छोड़ती।'' इन शब्दों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक प. पूज्य श्री गुरुजी ने अपने पंजाब के दौरे के मध्य अमृतसर जिले के 1500 स्वयंसेवकों एवं 25000 नागरिकों के समक्ष धाराप्रवाह एवं, शुद्ध हिन्दी मेंे भाषण देते हुए देश के विभिन्न राजनैतिक दलों एवं नेताओं को कड़ी चेतावनी दी।
आन्दोलनकारी राजनीति घातक
उनके द्वारा संचालित विभिन्न आन्दोलनों एवं राजनैतिक स्टण्टों की कटु आलोचना करते हुए उन्होंने कहा 'उनकी दृष्टि केवल चुनावों को जीतने पर ही गड़ी रहती है। आज के सत्याग्रहों एवं अनशनों की बाढ़, 'खाद्यान्न लूटों व अपना पेट भरो' 'घेरा डालो' जैसे अराजकतावादी नारों के साथ खाद्य-आन्दोलन, मेरी राय में पूर्णतय समाज विरोधी हैं और केवल शुद्ध राजनैतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रारम्भ किए जाते हैं। इनका अवश्यम्भावी परिणाम राष्ट्र में मतिभ्रम एवं अराजकता फैलाने में होगा। इनका अन्तिम परिणाम राष्ट्र के चारित्र्य को निम्न स्तर तक गिराने में ही होगा।
संघ निर्माता की दूरदृष्टि
श्री गुरुजी ने कहा कि 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जन्मदाता ने अपनी दूरदृष्टि से उन गड्ढों को देख लिया था, जिनकी ओर हमाा्रा नेतृत्व राष्ट्र की तरुणाई को, जो राष्ट्र के पुनरुज्जीवन का मूल आधार हैं, ढकेल रहा था! इसके भीषण खतरों की पूर्व कल्पना करके ही उन्होंने सिद्धान्तत: ऐसे सब साधनों का त्याग कर दिया था जिनसे तरुण मस्तिष्कों की योग्य रचना में बाधा पड़ती है।
चुनौती स्वीकार करें
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर लगाए जाने वाले हिंसा के आरोप का खण्डन करते हुए पूज्य गुरुजी ने चुनौती दी, ''जो हम पर यह आरोप लगाते हैं, वे संघ के तैंतीस वर्ष के जीवन काल में ऐसी एक भी घटना बतलाएं जहां संघ के स्वयंसेवक ने किसी के विरुद्ध हिंसा करने के लिए अपना हाथ उठाया हो। संघ के निर्माता ने हमें मातृभूमि एवं अपने देशवासियों के रक्षार्थ आत्म बलिदान का पाठ सिखाया है, उन पर आक्रमण करने का नहीं।'' उन्होंने ऐसे सब लोगों से जिनमें कतिपय केन्द्रीय मन्त्री भी सम्मिलित हैं, जो जान बुझकर अप्रामाणिक तौर पर संघ के विरुद्ध ऐसे झूठे आरोप लगाते हैं, अनुरोध किया कि वे स्वयं के एवं राष्ट्र के हित में गलत उपायों का प्रयोग बन्द कर दें।
दोनों देशों की नीतियों से बिगड़े संबंध
''हमारा स्पष्ट मत है कि हिन्द तथा पाक पूर्णत: कृत्रिम है। एक दूसरे से संबंधित प्रश्नों का अधूरा समाधान ढूंढने तथा एक-एक प्रश्न का अलग-अलग विचार करने की दोनों देशों की सरकारों की नीति के कारण ही आज दोनों राष्ट्रों के आपसी संबंध बिगड़े हैं। इस प्रणाली को त्याग कर सभी समस्याओं का सम्यक दृष्टि तथा खुले हृदय से विचार करना चाहिए। ऐसा करने से भारत और पाकिस्तान के बीच आज पायी जाने वाली विवादपूर्ण समस्याओं का निराकरण होगा और वर्षानुवर्ष दोनों में चली आ रही सद्भावना का फिर से निर्माण होगा। उसी में से किसी ने किसी स्वरूप का हिन्द-पाक महासंघराज्य स्थापित होने की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाएगी।
-पं. दीनदयाल उपाध्याय
विचार दर्शन खण्ड-3, पृष्ठ संख्या 103
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